बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं ??

बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं
यह लेखक अक्सर सोचता है कि क्या मोदी आज वही हैं, जो थे? हमेशा ‘फ्रंटफुट’ पर खेलने वाले, ‘एक अकेला सब पर भारी’ ब्रांड वाले, हर अवसर पर विपक्ष को ललकारने वाले, भाजपा को हर बार एक नई रणनीति देकर ‘दुर्जेय’ बनाने वाले, भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनाने वाले और अपने को ‘देश का चौकीदार’ व ‘प्रधान सेवक’ कहने वाले,‘मोदी है तो मुमकिन है’, ‘ये मोदी की गारंटी है’ और फिर ‘गारंटी की गारंटी है’ वाले, क्या अब भी वैसी ही ‘हनक’ वाले मोदी हैं या कुछ उदार, नरम व लचीले मोदी हैं?
Independence Day Opinion Prime Minister Modi hoist the flag at Red Fort sarcastic remarks on opponents
पीएम मोदी …बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं

एक बार फिर पंद्रह अगस्त के दिन प्रधानमंत्री मोदी लाल किले पर झंडा फहराएंगे और एक बार फिर उनके विरोधी कटाक्ष मारेंगे। इसी तरह एक बार फिर मोदी अगले पांच बरस के ‘एनडीए’ के एजेंडे को बताएंगे और एक बार फिर विरोधी उसका ‘छिद्रान्वेषण’ करेंगे… यह दुर्लभ संयोग ही है कि नेहरू की तरह मोदी ने भी लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है और यह भी ‘दुर्लभ दुर्योग’ है कि विपक्ष ने अभी तक पूरे दिल से मोदी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में नहीं स्वीकारा है। कई विपक्षी ‘प्रवक्ताओं’ के शब्दों में यह एक ‘हथियाई हुई’ सरकार है!

कैसी ‘उलटबांसी’ है कि मोदी ‘जीते’ भी लगते हैं और ‘हारे’ भी लगते हैं। हारते-हारते भी वह इतना जरूर जीते हैं कि अपनी ‘सरकार’ बना सके, लेकिन जीतते-जीतते इतना हारे भी हैं कि ‘भाजपा’ की सरकार बनाने की जगह वह कुछ सहयोगी दलों के सहारे ही सरकार बना सके हैं। यह लेखक अक्सर सोचता है कि क्या मोदी आज वही हैं, जो थे? हमेशा ‘फ्रंटफुट’ पर खेलने वाले, ‘एक अकेला सब पर भारी’ ब्रांड वाले, हर अवसर पर विपक्ष को ललकारने वाले, भाजपा को हर बार एक नई रणनीति देकर ‘दुर्जेय’ बनाने वाले, भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनाने वाले और अपने को ‘देश का चौकीदार’ व ‘प्रधान सेवक’ कहने वाले,‘मोदी है तो मुमकिन है’, ‘ये मोदी की गारंटी है’ और फिर ‘गारंटी की गारंटी है’ वाले, क्या अब भी वैसी ही ‘हनक’ वाले मोदी हैं या कुछ उदार, नरम व लचीले मोदी हैं?
कइयों को वह आज ‘शेक्सपियर’ की किसी ‘त्रासदी’ के उस ‘हीरो’ की तरह लगते हैं, जिसने बड़े-बड़े युद्ध जीते, लेकिन जिसे खलनायक ‘इयागो’ ने छल करके निपटाने की कोशिश की, लेकिन इस ‘हीरो’ का ‘सौभाग्य’ कि हारते-हारते भी वह पूरी तरह नहीं हारा और सरकार बनाकर तीसरी बार फिर विपक्ष का ‘सिरदर्द’ बन गया। यों आज ‘सत्तापक्ष’ और ‘विपक्ष’ दोनों ही ‘चोटिल’ हैं। एक का ‘ईगो’ घायल हुआ है, तो दूसरे का भी हुआ है, लेकिन एक अपने घाव दिखाता नहीं, जबकि दूसरा ‘दिखाता’ है। एक अपने ‘अहं’ से हारा है, तो दूसरा अपने ‘वहम’ से हारा है। लेकिन सोचिए, जब एक बार फिर मोदी लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करेंगे, तब उनके ‘मन’ में क्या चल रहा होगा और विपक्षी मन ही मन में क्या सोच रहे होंगे और हमारे जैसे टिप्पणीकारों को कैसे ‘कॉमिक-त्रासद’ भाव महसूस हो रहे होंगे…

हमारा मानना है कि ऐसे ‘दुर्वह’ वक्तों में कभी बड़े नेताओं के ‘दिलोदिमाग’ को भी पढ़ने की कोशिश की जानी चाहिए, क्योंकि सारे ‘गुणदोषों’ के बावजूद वे भी ‘मनुष्य’ होते हैं। उनकी भी ‘फीलिंग्स’ होती हैं। उन्हें हर चोट सीने पर लेनी होती है और हर क्षण ‘निर्णायक’ व ‘अकाउंटेबिल’ होना होता है…

विपक्ष के अनुसार, मोदी अब ‘बैसाखियों’ वाली ऐसी सरकार के नेता हैं, जिसे हरदम हिलते रहना है, जिसे हर कदम पर ‘सहयोगी दलों’ के मूड का खयाल रखना है। शायद इसीलिए इस बार मोदी के वैसे ‘दो टूक’ तेवर नहीं दिखते, जैसे दस बरस तक हर रोज दिखते रहे। फिर भी विपक्ष की विडंबना है कि एक बार फिर मोदी पंद्रह अगस्त के दिन लाल किले की प्राचीर से बोलते दिखेंगे। ऐसे दृश्यों को देख बहुतों के दिल से धुआं उठता दिखेगा, जिसे देख मीर की तरह कोई पूछता होगा कि ये धुआं सा कहां से उठता है… और उधर मोदी के मन में भी एक ‘कसक’ होगी कि जाना था 400 पार, लेकिन पहुंचे 240 तक ही यार! फिल्म गाइड की तरह इस ‘गाइड’ का मन भी गाता होगा ः क्या से क्या हो गया बेवफा ‘जनता’ तेरे प्यार में…

उधर विपक्ष हारकर भी अपने को हारा नहीं मान रहा। वहां विरोध की जगह एक ‘जिद’ सी आ बैठी है। हर बात पर ‘रूठना’ है, ‘शिकायत’ करनी है। ‘नाराज’ रहना है। ‘वॉकआउट’ व ‘प्रदर्शन’ करना है और आए दिन ‘गांधीशरणम् गच्छामि’ करना है। जबकि एक बार फिर पीएम मोदी ‘लाल किला’ पर लाइव होंगे और एक बार फिर ‘तेज विकास’ के सपने होंगे, देश की ‘अर्थव्यवस्था’ को दुनिया की ‘तीसरी अर्थव्यवस्था’ बनाने, जल्दी से ‘विकसित भारत’ बनाने, गरीबों के लिए तीन करोड़ घर देने, युवाओं को रोजगार के अवसर देने…यानी ‘सबका साथ सबका विकास’ वाली नई पुरानी योजनाएं होंगी और एक बार फिर ‘सबका प्रयास सबका विश्वास’ वाले संकल्पों पर जोर बढ़ता दिखेगा।

साथ ही, पाक से आती ‘आतंकवादी चुनौती’ व ‘तख्ता पलट’ के बाद ‘बांग्लादेश’ से आने वाली ‘चुनौतियों’ से ‘निपटने’ की रणनीति के संकेत होंगे और ‘एनडीए’ के ‘सर्वाश्लेषी’ व ‘सहकारी’ नजरिये को व्यक्त करते मोदी होंगे… सभी जानते हैं कि मोदी को हर वक्त ‘तनी हुई रस्सी पर’ या कहें ‘तलवार की धार पर’ चलना है, क्योंकि अब तक ‘अपना चूल्हा’ था, अब ‘सांझा चूल्हा’ है। यानी, अब मोदी को ‘बीजेपी’ की भाषा छोड़ ‘एनडीए’ की भाषा में बोलना है और सहयोगियों के ‘मूड्स’ का खयाल रखना है।

यों भी,‘वक्फ बोर्ड कानून’ में सुधार के ‘बिल’ को सहयोगियों के ‘किंतु-परंतुओं’ और विपक्ष के विरोध के कारण ‘जेपीसी’ को भेजना, ‘एससी-एसटी आरक्षण’ के मामले में ‘यथास्थिति’ बनाए रखने की बात करना, ‘बांग्लादेश’ के संकट पर सर्वदलीय बैठक बुलाना…बताता है कि पहली बार मिलकर काम करना पड़ रहा है। शायद विपक्ष इस कारण और अधिक परेशान नजर आता है, क्योंकि उसकी नजर में जो एक ‘असंभव-सी सरकार’ थी, वही अब मजे-मजे से सारे काम किए जा रही है। आज की इस विडंबनापूर्ण स्थिति को देख इस लेखक को लता मंगेशकर का गाया चौदहवीं का चांद फिल्म के गाने का यह मुखड़ा याद आता है: बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *