हरियाणा चुनाव 2024: क्या इस बार छोटी पार्टियां बनेंगी गेम चेंजर?

 हरियाणा चुनाव 2024: क्या इस बार छोटी पार्टियां बनेंगी गेम चेंजर?
हरियाणा चुनाव में छोटी पार्टियों का उदय राजनीतिक समीकरण बदल सकता है. 1 अक्टूबर को वोटिंग के बाद 4 अक्टूबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे.

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. राज्य में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है, लेकिन इस बार चुनाव में छोटी पार्टियों की भूमिका काफी अहम हो सकती है. खासकर आम आदमी पार्टी (AAP) की एंट्री से राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं.

इसके अलावा दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), अभय सिंह चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी), गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी (एचएलपी) का प्रदर्शन बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकता है.

90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में पिछले दो दशकों से बीजेपी और कांग्रेस ही प्रमुख पार्टियां रही हैं. पहले 2005 से 2014 तक भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस का शासन रहा. फिर 2014 से भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज है. वहीं 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आगे रही. 2014 और 2019 में बीजेपी आगे रही. अब हाल ही में खत्म हुए 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने 5-5 बराबर सीटें जीतीं.

बीजेपी के लिए आसान नहीं रहा!
हरियाणा में बीजेपी की कोशिश है कि जीत की हैट्रिक लगाई जाए. हालांकि, यह राह आसान नहीं है. 2014 में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से राज्य में सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी बहुमत से थोड़ा पीछे रह गई, जेजेपी के साथ गठबंधन में सरकार बनी. अब चुनाव से पहले ही जेजेपी-बीजेपी का गठबंधन टूट गया है. जेजेपी अलग अकेले चुनाव लड़ रही है. वहीं 2024 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी की सीटें 10 से घटकर 5 रह गई. 

लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद हरियाणा में बीजेपी ने अपनी पूरी रणनीति बदल ली है. हर वर्ग को साधने के लिए बीजेपी ने फुल प्रूफ प्लान भी तैयार कर लिया है. हाल ही में बीजेपी ने अपना मुख्यमंत्री चहेरा बदला है. मनोहर लाल खट्टर की जगह ओबीसी चहेरा नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया. प्रदेश अध्यक्ष के लिए ब्राह्मण फेस मोहन लाल बड़ौली को बनाकर नया दांव खेला. प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया जाट समाज से आते हैं. सोशल इंजीनियरिंग पर पार्टी खास फोकस कर रही है.

हरियाणा चुनाव 2024: क्या इस बार छोटी पार्टियां बनेंगी गेम चेंजर?

कांग्रेस के सामने क्या है मुश्किल?
हरियाणा में कांग्रेस के प्रमुख नेता हैं दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला. ये नेता व्यक्तिगत रूप से बड़ी संख्या में मतदाताओं की प्रभावित कर सकते हैं. मगर हरियाणा कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. 

हरियाणा कांग्रेस को लेकर कहा जा रहा है कि पार्टी के भीतर दो गुट हो गए हैं. एक गुट भूपेंद्र हुड्‌डा और दीपेंद्र हुड्‌डा का है और दूसरे गुट में कुमारी सैलजा और सुरजेवाला हैं. हाल ही में ये गुटबाजी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी की ओर से बुलाई गई मीटिंग में देखने को मिली. कुमारी शैलजा ने प्रदेश अध्यक्ष उदयभान पर सीधे पक्षपात का आरोप लगाया. उन्होंने बैठक में सिर्फ एक पक्ष के लोगों को बुलाने और तरजीह देने का आरोप लगाया. संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को मामला शांत कराना पड़ा.

वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ नाम से पदयात्रा निकाल रहे हैं. जुलाई में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पदयात्रा में कुमारी शैलजा शामिल नहीं हुई थी. इसके बाद 27 जुलाई से शैलजा ने अलग से पदयात्रा निकाली थी. इसके बाद रणदीप सुरजेवाला ने पदयात्रा निकाली. उनकी इस पदयात्रा के पोस्टर में पहले प्रदेशाध्यक्ष उदयभान और पूर्व मुख्यमंत्री के फोटो नहीं थी. बाद में जब विवाद बढ़ा तो उदयभान और हुड्‌डा दोनों की फोटो लगा दी गई. ये विवाद ऐसे समय हो रहा है जब राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस गुटबाजी का फायदा दूसरे दल उठा सकते हैं.

हरियाणा में अब AAP की एंट्री
आम आदमी पार्टी ने 2024 का लोकसभा चुनाव इंडिया ब्लॉक पार्टनर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. हरियाणा में कांग्रेस को 9 में से 5 लोकसभा सीटों पर जीत मिली. वहीं आम आदमी पार्टी कुरुक्षेत्र सीट से चुनावी मैदान पर उतरी, लेकिन सीट नहीं सकी. आप के उम्मीदवार सुशील गुप्ता बीजेपी के उम्मीदवार नवीन जिंदल से 29,021 वोटों से हार गए. हालांकि दोनों उम्मीदवारों को पांच लाख से ज्यादा वोट मिले.

इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी अपनी किस्मत आजमा रही है, लेकिन खास बात यह है कि उसने इंडिया ब्लॉक से किनारा कर लिया है और राज्य की सभी 90 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. AAP को लगता है कि हरियाणा में उसकी पार्टी मजबूत हो रही है और बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी है.

हालांकि आंकड़े आप के पक्ष में नहीं दिख रहे. 2019 विधानसभा चुनाव में आप ने 46 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, मगर पार्टी को पूरे राज्य में सिर्फ 59,839 वोट ही हासिल हुए थे. 

हरियाणा चुनाव 2024: क्या इस बार छोटी पार्टियां बनेंगी गेम चेंजर?

आप की एंट्री से किसे नुकसान?
हरियाणा के कुछ जिले गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक, हिसार में आम आदमी पार्टी का मजबूत आधार बनता दिख रहा है. यहां शहरी इलाकों में पार्टी अपनी मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश कर रही है. जमीनी स्तर पर आम आदमी पार्टी स्थानीय मुद्दों को उठाकर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है. अभी पंचायत और जिला परिषद चुनाव में पार्टी ने इन जगहों पर अच्छा प्रदर्शन किया था.

ऐसे में अकेले आम आदमी पार्टी के विधानसभा चुनाव लड़ने से सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही बीजेपी के खिलाफ सुशासन, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, किसानों के मुद्दे उठा रहे हैं. विरोधी वोटों का विभाजन कांग्रेस का वोट बैंक कम कर सकता है.

नया संगठन JJP
जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला जाट समुदाय का एक प्रमुख चेहरा हैं. पिछले विधानसभा से पहले ही दुष्यंत चौटाला ने अपनी पारिवारिक पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से बाहर आकर खुद की पार्टी JJP खड़ी की थी. जेजेपी अपने पहले ही 2019 विधानसभा चुनाव में 10 सीटें जीतकर किंगमेकर के रूप में उभरी थी और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई. दुष्यंत चौटाला को उप-मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. 

हालांकि, उनका ये फैसला उनके कुछ समर्थकों को पसंद नहीं आया था, क्योंकि अपनी पार्टी के प्रचार के दौरान वह बीजेपी की जमकर आलोचना करते आए थे. आखिरकार, मार्च 2024 में करीब साढ़े चार साल बाद बीजेपी ने जेजेपी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था. गठबंधन टूटने के बाद जेजेपी लगातार जमीनी स्तर पर काम कर रही है. राज्य के ग्रामीण इलाकों में पार्टी अपना अच्छा प्रभाव रखती है और देवीलाल की विरासत पर दावा करती है. हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में जेजेपी किसके साथ गठबंधन करेगी, ये अभी साफ नहीं है. 

बसपा को मिला INLD का साथ
हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा INLD एक ऐसा राजनीतिक दल है, जो अपने दम पर किसी भी समय चुनाव लड़ने की ताकत रखता है. पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में INLD का ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत वोट आधार है. वहीं हाल ही में इनेलो ने मायावती की बीएसपी के साथ गठबंधन का ऐलान किया है. गठबंधन खुद को बीजेपी और कांग्रेस के विकल्प के रूप में पेश कर रहा है.

इंडियन नेशनल लोकदल राज्य की 53 और बीएसपी 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बीएसपी को हरियाणा के कुछ क्षेत्रों के दलित मतदाताओं और इनेलो का कुछ क्षेत्र की जाट बिरादरी का साथ है. कांग्रेस की रणनीति भी इन दोनों वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने की है. ऐसे में अगर इस बार इनेलो-बसपा गठबंधन ने कुछ कमाल कर दिया तो इसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है. 

हरियाणा में क्या है सबसे बड़ी ताकत
हरियाणा में वोट बैंक की सबसे बड़ी ताकत जाट समुदाय है. 90 में से करीब 40 सीटों पर जाट समुदाय ही चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं. रोहतक, हिसार, सोनीपत, कैथल, जींद, फतेहाबाद, झज्जर, भिवानी और सिरसा में जाटों का दबदबा है. इन्हीं जिलों के शहरी क्षेत्रों की कुछ सीटों पर पंजाबी और बनिया मतदाता जीत-हार का फैसला करते हैं. 

हरियाणा चुनाव 2024: क्या इस बार छोटी पार्टियां बनेंगी गेम चेंजर?

दक्षिण हरियाणा में अहीर, यादवों के साथ गुर्जर वोटरों की संख्या ज्यादा है. पूर्वी हरियाणा में दलित, पंजाब से लगते अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र में सिख/पंजाबी वोटर उम्मीदवारों का भाग्य तय करते हैं. पंजाब से लगती सिरसा की कुछ एक-दो सीटों पर भी सिख वोटर अहम भूमिका में हैं.

किस पार्टी का किस जाति पर फोकस
कांग्रेस पार्टी खास तौर से जाट समुदाय के भरोसे ही चुनाव जीतने की कोशिश में है. साथ ही कांग्रेस दलित वोटों को भी लुभाने पर जोर देती नजर आ रही है. वहीं बीजेपी का मुख्य रूप से फोकस अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और बनिया पर है. आम आदमी पार्टी का जोर बीजेपी और कांग्रेस दोनों के वोट में सेंध लगाने पर है. जेजेपी-आईएनएलडी गठबंधन का दलित और जाट दोनों पर फोकस है. जेजेपी भी जाट और दलित वोट बैंक के सहारे है.

छोटी पार्टियां विशेष समुदायों या क्षेत्रों में अपना प्रभाव रखती हैं. इससे बड़ी पार्टियों के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लग सकती है. छोटी पार्टियां स्थानीय मुद्दों को उठा सकती हैं. किसानों के मुद्दे, बेरोजगारी, शिक्षा आदि पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं. नए और युवा मतदाता परंपरागत राजनीति से अलग विकल्प तलाश सकते हैं. छोटी पार्टियां भी इस वर्ग को आकर्षित कर सकती हैं. ऐसे में छोटी पार्टियों का प्रदर्शन कई सीटों पर निर्णायक हो सकता है.

हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगी कि छोटी पार्टियां पूरी तरह से गेम चेंजर बनेंगी, लेकिन वे चुनाव के परिणामों को निश्चित रूप से प्रभावित कर सकती हैं. हरियाणा की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं, जिससे राज्य का राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है.

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