एकजुट होकर संदेश देना होगा, बस बहुत हो चुका!
एकजुट होकर संदेश देना होगा, बस बहुत हो चुका!
मैं गुस्से में हूं! उतनी ही गुस्से में, जितना इन दिनों हर भारतीय है। गुस्सा, जिसका पारावार नहीं। कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर से हुए जघन्यतम दुष्कर्म ने ऐसे घाव कुरेदे हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
लेकिन जिस चीज से मुझे ज्यादा गुस्सा आ रहा है, वो ये है कि इस घृणित अपराध के बाद भी लोग दुष्कर्मियों के प्रति मानवता दिखाते हैं। फांसी की सजा के विपक्ष में तर्क देते हैं। सच तो यह है कि हम अभी भी एकजुट होकर ताकतवर संदेश नहीं दे रहे हैं ताकि फिर से कोई दुष्कर्म न करे! हैवानियत देखते हुए दुष्कर्मियों के साथ किसी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए।
भारत में जघन्य दुष्कर्म करने में पुरुषों को कोई खौफ नहीं है क्योंकि उन्हें परिणामों का कोई भय नहीं है। इसलिए मैं कह रही हूं कि ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मामलों में सजा भी कड़ी से कड़ी जैसे मृत्युदंड होनी चाहिए।
हालांकि एक कुतर्क भी चल रहा है कि मृत्युदंड से लड़कियों के लिए स्थिति और भी खतरनाक हो जाएगी, क्योंकि फिर दुष्कर्मी पीड़िता की हत्या भी करने लगेंगे।
मतलब ये कौन कह रहा है? इतने विश्वास के साथ इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले क्या किसी के पास कोई अनुभवजन्य सबूत या मजबूत डेटा है? नहीं! इस संबंध में सिर्फ विरोधाभासी डेटा है। बल्कि इसके उलट काफी कुछ सबूत हैं। मैं आपको बताती हूं कैसे।
अव्वल तो यह तर्क कायरपन से भरा है। यह वही पितृसत्तात्मक संदेश देता है कि पुरुष, महिलाओं से ज्यादा बलशाली हैं और हमें उनके डर में जीना होगा। इसलिए अगर हम उनके खिलाफ कोई कदम उठाती हैं तो हमें ही उसकी सजा मिलेगी।
यह वही बात हो गई कि हमारा घर जल रहा है, पर हम देखते रहें, नहीं तो हम झुलस सकते हैं। कुल-मिलाकर कहा जा रहा है कि भले ही देश में रोज औसतन 90 दुष्कर्म हो रहे हों, पर हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। जबकि हमें रक्षात्मक नहीं, आक्रामक होने की जरूरत है।
दूसरी बात, साल 2017 की तुलना में साल 2018 में दुष्कर्मियों द्वारा पीड़िताओं की हत्या के मामले 31 प्रतिशत बढ़ गए। इसके बावजूद, ‘दुष्कर्म हत्याओं’ की संख्या बहुत कम है- दुष्कर्म के 1 प्रतिशत से भी कम। उस 1 प्रतिशत के डर से, क्या हम शेष 99 प्रतिशत दुष्कर्मों को दंड से मुक्ति की अनुमति दे सकते हैं? याद रखें, मृत्युदंड अपराध रोकने में कारगर साबित होगा, ना कि हत्याएं बढ़ाएगा।
आप शायद मेरी बात से अभी भी संतुष्ट नही हैं? हकीकत देखते हैं। पहला, हमारी न्यायपालिका बच्चों से दुष्कर्म करने वालों को मौत की सजा देती है। अगर मौत की सजा बच्चों से दुष्कर्म रोक सकती है, जैसा कि इस अध्यादेश के पीछे का कारण है, तो यह सभी तरह के दुष्कर्मों को क्यों नहीं रोक सकती है?
दूसरी बात, किन देशों में सबसे कम दुष्कर्म होते हैं? सऊदी अरब, चीन, उत्तर कोरिया और सिंगापुर और इन सब में क्या कॉमन है? हां, वे सभी दुष्कर्मियों को फांसी की सजा देते हैं।
भारत में सिर्फ एक ही चीज दुष्कर्म करने से रोक सकती है, वो है सिस्टम का भय और कड़ी से कड़ी सजा, जो कि अपराध के हिसाब से तय होनी चाहिए। मृत्युदंड से सभी दुष्कर्मियों को मजबूत संदेश जाएगा कि बस अब बहुत हो चुका!
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)