तलाक में मेंटेनेंस से जुड़े नियम ?

तलाक में मेंटेनेंस से जुड़े नियम; क्या बेरोजगार पति भी इसका हकदार

कानून में गुजारे भत्ते से जुड़े क्या प्रावधान हैं, कोई कितनी रकम मांग सकता है, क्या बेरोजगार पति भी इसका हकदार है; …. ऐसे 6 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…

सवाल-1: पति से हर महीने 6.16 लाख रुपए गुजारा भत्ता मांगने का पूरा मामला क्या है?
जवाबः
 मामला कर्नाटक हाईकोर्ट का है। राधा मुनुकुंतला नाम की महिला का अपने पति से विवाद चल रहा है। उन्होंने हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 24 के तहत पति से मेंटेनेंस की मांग की।

20 अगस्त को सुनवाई के दौरान राधा के वकील ने कपड़े, खाने-पीने, दवा-इलाज और अन्य खर्चे गिनाते हुए 6 लाख 16 हजार रुपए हर महीने गुजारा भत्ता मांग लिया। हैरान जज ने अकेली महिला के लिए इतने खर्च की जरूरत पर सवाल उठाया।

जज ने राधा के वकील से कहा, ‘कोर्ट को ये मत बताइए कि एक व्यक्ति को बस इतना ही चाहिए। 6.16 लाख रुपए हर महीने! अकेली महिला अपने लिए इतना खर्च करती है क्या। अगर वह खर्च करना चाहती है, तो उसे खुद कमाने दो।’

जज ने कहा कि सेक्शन 24 का मकसद पति को सजा देना नहीं है कि पत्नी से विवाद होने पर पति को 6 लाख रुपए देने होंगे। उचित मांग लेकर आएं। अगर इसमें सुधार नहीं किया तो याचिका खारिज कर दी जाएगी। इस सुनवाई का वीडियो वायरल है।

सवाल-2: ये गुजारा भत्ता क्या होता है और इसका प्रावधान किस कानून में है?​​​​​​​

जवाबः जब एक व्यक्ति दूसरे कमजोर या अक्षम व्यक्ति को खाना, कपड़ा, घर, एजुकेशन और मेडिकल जैसी बेसिक जरूरत के लिए आर्थिक मदद करता है तो उसे गुजारा-भत्ता यानी मेंटेनेंस कहते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत गुजारा-भत्ता दो तरह का होता है-

1. अंतरिम गुजारा-भत्ता: जब मामला कोर्ट में लंबित है तो उस दौरान के लिए जो गुजारा-भत्ता तय किया जाता है, वह अंतरिम गुजारा-भत्ता होता है। जैसे- तलाक का कोई केस यदि कोर्ट में गया तो अंतिम फैसला आने तक कोर्ट एक धनराशि तय करता है। जब तक मुकदमा चलेगा, पति को वह तय रकम पत्नी को गुजारे-भत्ते के रूप में अदा करनी होगी।

2. परमानेंट गुजारा-भत्ता: तलाक के अंतिम फैसले में कोर्ट द्वारा तय की गई राशि पति को आजीवन पत्नी को देनी होती है। इसके साथ कई बार कुछ नियम और शर्तें भी हो सकती हैं। जैसे कि जब तक पत्नी दोबारा विवाह न करे आदि। स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 36 और 37 में गुजारे-भत्ते के बारे में जरूरी प्रावधान किए गए हैं।

इसके अलावा स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा-36 और 37 में भी गुजारा भत्ता के लिए प्रावधान हैं। CrPC की धारा-125-(1) (ए) के अनुसार मुस्लिम महिलाएं भी भरण-पोषण और गुजारा भत्ता की मांग कर सकती हैं।

सवाल-3: कितना मेंटेनेंस दिया जाएगा, ये कैसे तय होता है; क्या कोई अपर या लोअर लिमिट भी है?​​​​​​​
जवाबः
 मेंटेनेंस कितना देना होगा ये व्यक्ति की आय, संपत्ति, जिम्मेदारी और जरूरतों को देखकर तय किया जाता है। इसकी कोई अपर या लोअर लिमिट तय नहीं है।

सवाल-4: क्या मेंटेनेंस पाने का अधिकार सिर्फ पत्नियों को है या पति भी क्लेम कर सकते हैं?​​​​​​​
जवाबः 
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 का सेक्शन 24 जेंडर न्यूट्रल है। यानी पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से गुजारा-भत्ता मांग सकते हैं, लेकिन उसकी कुछ शर्तें हैं। जैसे-

  • यदि पति आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है।
  • यदि पति दिव्यांग है या किसी भी कारण से अपनी आजीविका कमाने में सक्षम नहीं है।
  • पति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है या वह किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है।

पत्नी पर गुजारा-भत्ता देने का दायित्व तभी होता है, जब वह आर्थिक रूप से मजबूत हो, सक्षम हो और पैसे कमा रही हो। हालांकि, व्यावहारिक तौर पर अदालतों में ऐसी अर्जी मंजूर नहीं होती।

नवंबर 2023 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक इंट्रेस्टिंग मामला सामने आया था। फैमिली कोर्ट ने एक शख्स को 30 हजार रुपए महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने कहा कि सेक्शन 24 सिर्फ पत्नियों का विशेषाधिकार नहीं है। पत्नी शिक्षित है और जानबूझकर नौकरी नहीं कर रही। पति के पास कई और भी जिम्मेदारियां हैं। कोर्ट ने गुजारे भत्ते की रकम 30 हजार से घटाकर 21 हजार कर दी।

सवाल-5: अगर पति-पत्नी दोनों अच्छा कमा रहे हैं, क्या तब भी मेंटेनेंस मिलेगा?​​​​​​​
जवाबः 
पत्नी अगर कामकाजी है या वह शादी से पहले नौकरी करती थी, इसका मतलब कि उसकी शैक्षिक योग्यता इतनी है कि वह खुद नौकरी करके अपनी जीविका चला सकती है। इस स्थिति में महिला को गुजारा-भत्ता नहीं मिलता है।

अक्टूबर 2023 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पति-पत्नी दोनों समान रूप से क्वालिफाइड हैं और एक बराबर कमा रहे हैं तो हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत पत्नी को मेंटेनेंस नहीं मिल सकता।

हालांकि इसका कोई अंतिम नियम नहीं है। अगर दंपती के बच्चे हैं तो पति को पिता के तौर पर अपने बच्चों के भरण-पोषण का खर्च उठाना होगा। अगर पति की आय पत्नी से कई गुना ज्यादा है तो ऐसी स्थितियों में कोर्ट पति को गुजारा-भत्ता देने का आदेश दे सकता है।

यदि पत्नी कामकाजी तो है, लेकिन उसकी आय इतनी नहीं है कि वह अकेले अपनी कमाई से सारे खर्च वहन कर सके तो भी कोर्ट गुजारे-भत्ते का आदेश दे सकता है। गुजारे-भत्ते का अंतिम फैसला कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है।

सवाल-6: अगर कोर्ट के आदेश के बावजूद कोई मेंटेनेंस देने से इनकार कर देता है, तो क्या होगा?​​​​​​​
​​​​​​​जवाबः 
गुजारा भत्ता दिए जाने के कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति ऊपरी अदालत में अपील कर सकता है, लेकिन उसके बाद पति को अदालत का आदेश मानने की कानूनी बाध्यता होती है। अगर कोर्ट के आदेश के बावजूद पति गुजारा भत्ता नहीं देता, तो पत्नी इसके खिलाफ आवेदन दे सकती है।

अदालत पति के बैंक अकाउंट को अटैच करने का आदेश दे सकती है। पति की सैलरी से सीधे पत्नी को गुजारा भत्ते दिए जाने का आदेश भी दिया जा सकता है।

पति की नियमित आमदनी नहीं हो और बैंक खाते में भी पैसे न हों तो उसकी सम्पत्ति की नीलामी और कुर्की से भी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। इससे बचने के लिए लोग अपनी सम्पत्तियों को परिजनों के नाम गिफ्ट कर देते हैं।

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