जब ED के पास सिविल कोर्ट की ताकत, तो सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं माना इकबालिया बयान?

जब ED के पास सिविल कोर्ट की ताकत, तो सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं माना इकबालिया बयान? समझें
ED के सामने आरोपी की ओर से दिए गए इकबालिया बयान को मानने से शीर्ष अदालत का इन्कार किया जाना कई लोगों के मन में एक सवाल छोड़ गया. कंफ्यूजन ज्यादा इसलिए है क्योंकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 ये पहले से तय करती है कि पुलिस या जांच अधिकारी के समक्ष दिया गया बयान सबूत नहीं माना जाएगा. अगर कानूनविद ये बात पहले से जानते हैं तो फिर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी? आइए समझते हैं.
Explainer: जब ED के पास सिविल कोर्ट की ताकत, तो सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं माना इकबालिया बयान? समझें

सुप्रीम कोर्ट ने ED के सामने दिया गया आरोपित का इकबालिया बयान मानने से इन्कार कर दिया.

हेमंत सोरेन के सहयोगी प्रेम प्रकाश को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जमानत देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की वह चर्चा में है. शीर्ष अदालत का यह आदेश ऐसे कई लोगों के लिए नजीर बन सकता है जो लंबे समय से जमानत की राह देख रहे हैं. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ED के सामने आरोपी की ओर से दिया गया इकबालिया बयान मानने से इन्कार कर दिया है. अदालत ने आरोपी को जमानत देते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांत पर जोर दिया और कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद.

ED के सामने आरोपी की ओर से दिए गए इकबालिया बयान को मानने से शीर्ष अदालत का इन्कार किया जाना कई लोगों के मन में एक सवाल छोड़ गया. कंफ्यूजन ज्यादा इसलिए है क्योंकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 ये पहले से तय करती है कि पुलिस या जांच अधिकारी के समक्ष दिया गया बयान सबूत नहीं माना जाएगा, फिर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या ED के पास इकबालिया बयान को सबूत के तौर पेश करने की ताकत है? इस पूरे मामले को समझने से पहले आपको समझना होगा कि आखिर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था और सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी क्यों की?

सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया आदेश

हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को जमानत देते वक्त जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि पीएमएलए के तहत हिरासत में रहने वाले आरोपी द्वारा ED अधिकारियों को दिया गया वो बयान जिसमें उसने खुद को किसी दूसरे मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में दोषी ठहराया है, उसे पीएमएलए की धारा 50 के तहत स्वीकार नहीं किया जाएगा.

आसान भाषा में इसे समझें तो कोर्ट के आदेश का मतलब ये था कि कोई व्यक्ति अगर किसी मामले को लेकर पहले से ED की हिरासत में है और ED उससे किसी दूसरे मामले को लेकर पूछताछ करती है और उसे कोर्ट में सबूत के तौर पर प्रस्तुत करती है तो दूसरे मामले में दिए गए इकबालिया बयान को सबूत नहीं माना जाएगा, क्योंकि ये नहीं कहा जा सकता कि व्यक्ति ने स्वतंत्र इच्छाशक्ति से ये बयान दिया है. कोर्ट ने फैसले में ये भी कहा कि ऐसी स्थिति में अगर याचिकाकर्ता के इकबालिया बयान को सबूत माना गया तो यह साक्ष्य अधिनियम की धारा-25 का उल्लंघन होगा.

क्या है PMLA की धारा 50 जो ED को देती है सिविल कोर्ट की ताकत

कोर्ट ने आरोपी के इकबालिया बयान को अस्वीकार करते समय PMLA की धारा 50 का जिक्र किया है, यह धारा सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत ED के निदेशक को वही शक्तियां देती है जो एक सिविल कोर्ट के पास हैं. इस धारा के तहत ED किसी को भी समन भेज सकती है और पूछताछ के लिए उपस्थित होने का आदेश दे सकती है. शपथ पत्र पर बयान ले सकती है और उसे कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश कर सकती है. यानी इस धारा के तहत ED जो भी कार्रवाई करती है उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और धारा 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाही माना जाता है. चूंकि प्रेम प्रकाश मनी लॉन्ड्रिंंग के किसी अन्य मामले में हिरासत में हैं और उन्होंने इकबालिया बयान किसी दूसरे मामले में दिया है. इसलिए कोर्ट ने उसे अस्वीकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 20(3) का भी किया जिक्र

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी न्यायिक हिरासत में लिए गए व्यक्ति को ED किसी दूसरे मामले में तलब नहीं कर सकती. अगर उसे ऐसा करना है तो संबंधित कोर्ट से अनुमति लेनी होगी. मामले के तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी प्रेम प्रकाश के बयान को संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत माना, क्योंकि आरोपी ने एक मामले में हिरासत में रहते हुए दूसरे मामले में इकबालिया बयान दिया था.

क्या है संविधान का अनुच्छेद 20(3)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(3) के मुताबिक कोई किसी भी आरोपी को किसी अन्य अपराध के लिए इकबालिया बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. यह अनुच्छेद उस व्यक्ति को जांच के दौरान चुप रहने का विशेषाधिकार देता है. इसमें यह भी निहित है कि किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से ज्यादा बार मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए.

क्या है PMLA एक्ट जो ED को देता है विशेषाधिकार

प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को 1 जुलाई 2005 को लागू किया गया था. इसका मकसद मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में लगाम लगाना है. यानी अवैध स्रोतों से अर्जित काले धन को सफेद करने से रोकना. इस एक्ट के तहत ED अवैध रूप से अर्जित आय और संपत्ति को जब्त करने का अधिकार रखती है. यह एक्ट ED को अधिकार देता है जिससे वह आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है, उसकी संपत्ति जब्त कर सकती है.

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