सलाखों में घुटती मासूमियत..?
सलाखों में घुटती मासूमियत…महिला कैदियों के अधिकारों पर सरकार को देना होगा ध्यान
उत्तर प्रदेश के संदर्भ में ‘भारतीय जेलों में महिला कैदियों और उनके बच्चों की स्थिति व उनकी संचार आवश्कताएं’ शीर्षक शोध से पता चलता है कि जेलों में संचार की वास्तविकता क्या है और मौजूदा स्थिति को और भी अधिक प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है. शोध की पूरी प्रक्रिया 2019 -20 के बीच में पूरी हुई. इसमें ये जानने की कोशिश की गई कि जेल में कम्युनिकेशन यानी संचार की क्या कुछ व्यवस्था पहले से है और क्या कमियां हैं…इसमें पाया गया कि भारत के जेलों में स्थिति कुछ खास ठीक नहीं हैं. भारतीय जेलों में प्रत्यक्ष मिलने और फोन पर संदेश देने की व्यवस्था है.
अगर कोई जेल जाता है तो फिर लोग ये सोचने लग जाते हैं कि उसके आगे की जिम्मेदारी जेल की है. इसके साथ ही समाज के लोग ये भी भुल जाते हैं, कि जो व्यक्ति जेल गया है, वो अगर रिहा होता है तो फिर इसी समाज में आकर वो रहेगा. पुलिस का काम होता है कि अगर कोई अपराध हुआ है, तो संबंधित व्यक्ति को पकड़कर जेल में डाला जाए, लेकिन ये भी ध्यान रखने की जरूरत है कि जो जेल गया है वो भी एक सीधा साधा जीवित इंसान है.
बंदियों के भी होते हैं अपने अधिकार
कोई अगर जेल जाता है, तो उसके भी कुछ अधिकार होते हैं, और इसके साथ ही कुछ उसकी जरूरतें होती हैं. इस शोध के लिए खास तरह से यूपी को ध्यान में रखा गया, क्योंकि यूपी पूरे भारत का सबसे बड़ा राज्य है. शोध का पूरा केंद्र आगरा ही रहा. उत्तर प्रदेश की छह प्रमुख जेलों को इस शोध के लिए ध्यान में रखा गया. जिनमें जिला जेल, आगरा (मुख्य केंद्र), नारी बंदी निकेतन (लखनऊ), जिला जेल, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, बांदा और केंद्रीय जेल नैनी (प्रयागराज) है. यूपी भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है.
बड़ी जनसंख्या होने के कारण क्राइम होने का चांस ज्यादा है. क्राइम की घटनाओं में मां के साथ उनके छोटे बच्चे भी जेल जाते हैं. इसमें सबसे अधिक दोषी तथा सबसे अधिक ट्रायल मामलों में दोषी है. इसलिए यूपी को चुनकर ये शोध को रूप दिया गया. काफी विस्तार से काम किया गया. एक जेल सरकार बनाती है, लेकिन जेल भीतर भी जो जेल होता है, जिसमें महिलाएं होती हैं. पुरूषों को काफी हद तक सुविधाएं मिल भी जाती हैं, लेकिन महिलाओं और बच्चों को जेल में कोई सुविधाएं नहीं मिल पाती है. जो बच्चा मां के साथ जेल जाता है, अगर उससे कोई मिलने आता है, तो सारी प्रक्रिया का पालन किया जाता है. उसे ये तनिक भी एहसास नहीं होता है कि बाहर की दुनिया इससे काफी अलग होती है.
जेल जाने वाले बच्चों को मिले सुविधा
कोई बच्चा अपने मां- बाप से भी मिलने आता है, तो वहां भी जेल की अनुभूति होती है, और उसी प्रक्रिया के अंतर्गत मिलाया जाता है. अगर कोई छोटा बच्चा अपनी मां से मिलने जाता है, तो उसके लिए एक कमरा हो, जहां पर काफी खिलौने हो, ताकि उस बच्चे को कभी ये ना लगे कि उसने अपनी मां को जेल के सलाखों के पीछे देखा था. किसी मामले में जब मां के साथ बच्चा जेल जाता है तो फिर उसके मानसिक असर क्या पड़ेगा, ये भी सोचने की जरूरत है. बच्चा वहां पर कोर्ट, अपराध, अपराधी, तारीख आदि जैसे ही शब्द सिखेगा, जबकि उस उम्र में बच्चों को मुसका, हंसी, खिलौने आदि जानने की जरूरत होती है. अगर ऐसे शब्द बच्चा सुन रहा है, तो फिर बाद में कैसे उम्मीद किया जा सकता है कि वो बच्चा कैसे नार्मल होगा. ऐसे बच्चों को एक बेहतर व्यवस्था दिया जाए तो वो ठीक रहे सकता है.
जेल के अंदर ध्यान दिए जाने की जरूरत
जेल में कई बार देखा गया है कि पुरुष बंदी स्टाफ के तौर पर काम करते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए जेल में ऐसी सुविधाएं नहीं है. एक ऐसा राज्य है, जहां महिलाओं को काफी छोटी सी जगह में रखा जाता है, उनको ठीक से चलने तक के लिए जगह नहीं मिल पाती, जिससे अब उनको देखने तक की दिक्कत आ रही है, उन्हें सिर्फ सफेद ही दिखता है. इसलिए वो खुद को नॉर्मल तक महसूस नहीं कर पाती हैं. जेल में देखा गया है कि 100 बंदियों पर मात्र दो समाचार पत्र आते हैं, लेकिन ऐसा क्यों होता है, इससे अधिक भी समाचार पत्र आ सकते हैं.
कैदियों के लिए जेल में समय काटना तक मुश्किल हो जाता है, इसलिए अखबार आदि का सहारा लेते हैं, लेकिन अब उनको अखबार भी नहीं मिल पाता है. इस शोध का काम कोरोना से पहले तक हो जाना था, लेकिन कोरोना के समय भी इसको जारी रखा गया ताकि सारी बातें सही से निकल कर आ सकें. कैदियों की स्थिति को ध्यान में रखकर ही तिनका-तिनका रेडियो की शुरुआत की गई, जो कि आज भी आगरा जेल में चल रहा है. रेडियो के कार्यक्रम के साथ कैदी महिलाएं और बच्चे जुड़ रहे हैं. इसके जरिए वो खुद को अभिव्यक्त करने का एक जरिया पा रही हैं. हालांकि, महिलाओं के कल्याण के साथ ही सरकार को ये भी ध्यान रखना होगा कि जो छोटे बच्चे हैं, उनको बाहर ले जाने की कोई व्यवस्था करनी होगी. जेल के बच्चे जैसे एक अलग ही दुनिया में होते हैं, जहां सबसे अधिक उनके बचपन के साथ अन्याय होता है. ऐसे बच्चों से उनका बचपन न छिने और उनको भी बराबरी के मौके मिलें, यह भी देखना होगा.
इस तरह के कदम उठाने से बच्चों पर कोई नेगेटिविटी का कोई असर नहीं होगा. बच्चों के लिए लगातार प्रोग्राम चलाए जाने की जरूरत है. कैदियों के साथ ही उनके अधिकारियों पर भी ध्यान देना होगा, वो किस परिस्थिति में कैदियों के साथ अपना जीवन गुजार रहे हैं, यह देखने के बाद कई लोगों की दृष्टि बदल सकती है. कई जेलों में देखा गया है कि वहां पर महिला कर्मचारियों की घोर कमी है. अगर महिला बंदी के साथ दो लोग ना रहे तो उसकी मूवमेंट तक रूक जाती है, लेकिन इसमें बंदी की क्या गलती है, इन सब बिंदुओं पर भी सोचने और दुरुस्त करने की जरूरत है.
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