लाइव डिबेट में मनुस्मृति के चीथड़े किए ?
ये कहते हुए RJD प्रवक्ता प्रियंका भारती ने मनुस्मृति की प्रतियों के चीथड़े कर दिए। 18 दिसंबर को एक टीवी डिबेट शो में ये हुआ। प्रियंका ने इसका वीडियो X पर पोस्ट किया, तो सोशल मीडिया के दो फाड़ हो गए। एक तरफ प्रियंका का समर्थन करने वाले लोग थे, दूसरी तरफ मनुस्मृति को सर्वश्रेष्ठ बताने वाले। 22 दिसंबर की शाम 4.30 बजे तक #मनुस्मृति_सर्वश्रेष्ठ_है के साथ करीब 32 हजार पोस्ट किए गए।
मनुस्मृति पर अक्सर विवाद क्यों होता है, इस किताब में ऐसा क्या है, अंबेडकर ने इसे क्यों जलाया था; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: मनुस्मृति पर हालिया विवाद की शुरुआत कहां से हुई?
जवाब: पिछले एक हफ्ते की घटनाओं को सिलसिलेवार पढ़िए…
14 दिसंबर: कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने संसद में अपने दाएं हाथ में संविधान और बाएं हाथ में मनुस्मृति की कॉपी लेकर कहा, ‘सावरकर बोलते थे कि भारत के संविधान के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। वे मनुस्मृति की बात करते थे। क्या BJP अपने नेता के शब्दों के साथ है। वो संविधान की बात करती है तो सावरकर को ही शर्मिंदा करती है।’
17 दिसंबर: गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अपने बयान के एक हिस्से में कहा कि अंबेडकर नाम लेना अब फैशन हो गया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ‘X’ पर लिखा, ‘मनुस्मृति को मानने वालों को अंबेडकर जी से बेशक तकलीफ होगी।’
18 दिसंबर: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘मनुस्मृति और RSS वाली उनकी विचारधारा बताती है कि वह बाबासाहेब के संविधान का सम्मान नहीं करना चाहते हैं।
इसी रोज एक टीवी डिबेट शो में गृहमंत्री अमित शाह के डॉ. अंबेडकर से जुड़े बयान को लेकर बहस हो रही थी। इसी दौरान RJD की प्रवक्ता प्रियंका भारती ने मनुस्मृति को महिला विरोधी बताते हुए उसकी कॉपी फाड़ दी, जिसकी वीडियो क्लिप उन्होंने सोशल मीडिया ‘X’ पर साझा की।
बागेश्वर धाम ने 21 दिंसबर को लिखा, ‘मनुस्मृति सर्वश्रेष्ठ था है और रहेगा, मनुस्मृति जलाने या फाड़ने का अधिकार संविधान ने किसी को नही दिया है, ऐसा कृत्य करने वाले आरोपियों पर कठोर कार्यवाही होनी चाहिए।’
सवाल-2: आखिर मनुस्मृति कहां से आई और कैसे इतनी चर्चित हो गई?
जवाब: मनुस्मृति हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथों में से एक है। मनुस्मृति को मनु संहिता या मानव धर्मशास्त्र के नाम से भी जानते हैं। मशहूर माइथोलॉजिस्ट देवदत्त पट्टनायक के मुताबिक,
यह किताब तकरीबन 1800 साल पहले अस्तित्व में आई थी। यह वह वक्त था जब वैदिक हिंदुत्व, मंदिर आधारित पौराणिक हिंदुत्व में बदल रहा था।
इतिहासकार नरहर कुरुंदकर अपनी किताब ‘मनुस्मृति: कॉन्टेम्परेरी थॉट्स’ में लिखते हैं,
मनुस्मृति दो शब्दों का मेल है, पहला मनु और दूसरा स्मृति। स्मृति का मतलब धर्मशास्त्र होता है। ऐसे में मनु द्वारा लिखा गया धार्मिक लेख मनुस्मृति कहा जाता है। ईसा के जन्म से दो-तीन सौ साल पहले इसकी रचना शुरू हुई थी।
मनुस्मृति की रचना को लेकर कई विद्वानों का मानना है कि इसे समय के साथ कई ब्राह्मण विद्वानों ने मिलकर इकट्ठा किया है। इंडोलॉजिस्ट पैट्रिक ओलिवेल अपनी किताब ‘मानुस कोड ऑफ लॉ: ए क्रिटिकल एडिशन एंड ट्रांसलेशन ऑफ द मानव धर्मशास्त्र’ में लिखते हैं, ‘मनुस्मृति का ‘यूनीक और सिमैट्रिकल स्ट्रक्चर’ इस बात की ओर इशारा करता है कि इसे या तो किसी ‘प्रतिभाशाली व्यक्ति’ ने लिखा या फिर किसी ‘सशक्त अध्यक्ष’ ने इसे तैयार किया।’
देवदत्त पटनायक के मुताबिक, ‘लोग इसे मनु की संहिता समझते हैं, जो गलत है। असल में यह ‘मनु के विचार’ हैं। जैसे मुस्लिमों का शरिया और कैथोलिक ईसाइयों का चर्च डॉग्मा होता है, वैसे ही कुछ लोग मनुस्मृति को कानून की किताब मान लेते हैं। असल में ऐसा नहीं है।’
नरहर कुरुंदकर के मुताबिक,
मनुस्मृति में अधिकार, अपराध, बयान और न्याय के बारे में बात की गई है। ये मौजूदा कानून की किताबों की तरह लिखी गई है।
पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर राजीव लोचन के मुताबिक, ‘जब अंग्रेज भारत आए तो उन्हें लगा कि जैसे मुस्लिमों के पास कानून की किताब के तौर पर शरिया है, ऐसे ही हिंदुओं के पास भी मनुस्मृति है। इस वजह से उन्होंने इस किताब के आधार पर मुकदमों की सुनवाई शुरू कर दी। साथ ही काशी के पंडितों ने भी अंग्रेजों से कहा कि वे हिंदुओं के सूत्रग्रंथ के रूप में मनुस्मृति का प्रचार करें। यहीं से इस विचार ने जन्म लिया कि मनुस्मृति हिंदुओं का मानक धर्मग्रंथ है और ये प्रचलित हो गया।’
सवाल-3: आखिर इस किताब में लिखा क्या है?
जवाब: नरहर कुरुंदकर के मुताबिक, ‘मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं, जिनमें 2,684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2,964 है। यह हिंदुओं को धर्म और उनके कर्तव्यों के बारे में बताते हैं।’
मनुस्मृति में किसी का ‘वर्ण’ तय करने के लिए उसके कामकाज, हुनर और योग्यता को आधार बनाया गया, न कि जन्म को। इसमें जातियों और जीवन के अलग-अलग हालातों में सामाजिक दायित्व और कर्तव्य की जानकारी दी गई है। साथ ही अलग-अलग जातियों के पुरुष और महिला से जुड़े पर्सनल और प्रोफेशनल नियम-कायदे बताए गए हैं।
वेंडी डोनिगर और ब्रायन स्मिथ अपनी किताब ‘द लॉज ऑफ मनु’ में लिखते हैं, ‘मनुस्मृति का सार यह है कि दुनिया और वास्तव में जीवन कैसे जिया जाता है, और इसे कैसे जीना चाहिए।’ वेंडी और ब्रायन का मानना है कि ये किताब धर्म के बारे में है, जो कर्तव्य, कानून, अर्थशास्त्र और व्यवहार से भी जुड़ी है।’
सवाल-4: क्या ये किताब वाकई महिला और दलित विरोधी है?
जवाब: पैट्रिक ओलिवेल के मुताबिक, ‘इस ग्रंथ का मकसद ‘राजा की संप्रभुता और ब्राह्मणों के मार्गदर्शन में एक बेहतर समाज का ब्लूप्रिंट’ पेश करना है। शायद इसे युवा ब्राह्मणों को पढ़ाया भी जाता होगा।’
वेंडी और ब्रायन के मुताबिक,
इस किताब के लेखक ब्राह्मण को मानव जाति का आदर्श प्रतिनिधि मानते हैं। जबकि क्रम में सबसे नीचे रखे गए शूद्र को ‘ऊंची’ जातियों की सेवा करने का इकलौता कर्तव्य दिया गया है। कुछ श्लोकों में महिलाओं के खिलाफ उनके पूर्वाग्रह दिखते हैं।
मनुस्मृति में महिलाओं के कर्तव्यों और जीने के तरीकों के बारे में बताया गया है, जो मौजूदा समय में सही नहीं माना जाता है। वहीं शूद्रों को लेकर भी कई विवादित बातें लिखी गईं हैं। कुछ श्लोकों के अर्थ से समझिए…
- अध्याय 1, श्लोक 31: ब्रह्मा ने संसार की रचना की थी और उनके मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, पेट से वैश्य और पैर से शूद्र पैदा हुए।
- अध्याय 5, श्लोक 148: किसी भी महिला को अपने बचपन में पिता; जवानी में पति और जब पति मर जाए तो बुढ़ापे में बेटों के नियंत्रण में रहना चाहिए। उसे कभी भी स्वतंत्र रूप से जीने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
- अध्याय 5, श्लोक 151: पिता या पिता की सहमति से भाई जिसके साथ शादी कर दे, उस पति की सेवा महिला को जीवनभर करनी चाहिए और उसकी मौत के बाद ब्रह्मचर्य में रहना चाहिए।
- अध्याय 8, श्लोक 21: जब शूद्र राजा के लिए कानून की व्याख्या करता है, तो उसका राज्य कीचड़ में डूबी गाय की तरह डूब जाता है और वह असहाय होकर देखता रहता है।
- अध्याय 8, श्लोक 129: एक योग्य शूद्र को कभी धन नहीं जुटाना चाहिए; क्योंकि जब एक शूद्र धनवान यानी अमीर हो जाता है, तो वह ब्राह्मणों को परेशान करता है।
- अध्याय 8, श्लोक 371: जब कोई स्त्री अपने पति को धोखा दे, उसका तिरस्कार करे तो राजा को उसे सार्वजनिक चौराहे पर कुत्तों से भक्षण करवा देना चाहिए।
- अध्याय 9, श्लोक 335: शूद्र का सबसे बड़ा धर्म यह है कि वह वेदों के ज्ञाता, विद्वान, गृहस्थ और सम्मानित ब्राह्मण की सेवा करे।
(ये सभी श्लोक और उनके अर्थ पैट्रिक ओलिवेल और सुमन ओलिवेल की किताब ‘मनुस कोड ऑफ लॉ’ से लिए गए हैं।)
सवाल-5: अंबेडकर ने क्यों और कैसे जलाई थी मनुस्मृति?
जवाब: समाज सुधारक और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर मनुस्मृति की मुखालफत करते थे। 25 दिसंबर 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले (अब रायगढ़) के महाड में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मनुस्मृति को जलाया था। ऐसा कर अंबेडकर ने जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया था।
इसके लिए महाड में एक खास वेदी तैयार की गई, जिसमें 6 इंच गहरा और 1.5 फुट चौकोर गड्ढा खोदा गया था। वेदी में चंदन की लकड़ियां रखी गईं। 25 दिसंबर 1927 को सुबह 9 बजे समाज सुधारक गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे और 6 दलित साधुओं के साथ डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति का एक-एक पन्ना फाड़कर आग में डालना शुरू किया।
उस वक्त इस घटना का पूरे देश में विरोध भी हुआ, लेकिन आज भी 94 साल बाद, इस घटना की याद में मनुस्मृति दहन दिवस मनाया जाता है।
अंबेडकर मानते थे कि मनुस्मृति समाज में जाति प्रथा को बढ़ावा देने और भेदभाव को फैलाता है। यह ग्रंथ महिलाओं और दलितों के शोषण और भेदभाव को सही ठहराता है।
अंबेडकर अपनी किताब ‘फिलॉसफी ऑफ हिंदुइज्म’ में लिखते हैं,
मनु ने चार वर्णों वाली व्यवस्था की वकालत की थी। उन्होंने इन चार वर्णों को अलग-अलग रखने के बारे में बताकर जाति व्यवस्था की नींव रखी। हालांकि, ये नहीं कहा जा सकता है कि मनु ने जाति व्यवस्था की रचना की है, लेकिन उन्होंने इस व्यवस्था के बीज जरूर बोए थे।
अंबेडकर ने अपनी किताब ‘कौन थे शूद्र’ और ‘जाति का अंत’ में भी मनुस्मृति की आलोचना की।
सवाल-6: जब ये किताब इतनी आपत्तिजनक है, तो इसका समर्थन कौन लोग कर रहे हैं?
जवाब: इतिहासकार नरहर कुरुंदकर अपनी किताब ‘मनुस्मृति: कॉन्टेम्परेरी थॉट्स’ में लिखते हैं,
मनुस्मृति के समर्थकों का मानना है कि सृष्टि की रचना ब्रह्मा ने की थी और दुनिया का कानून प्रजापति मनु-भृगु की परंपरा से आया है। ऐसे में मनुस्मृति का सम्मान करना चाहिए।
नरहर कुरुंदकर लिखते हैं, ‘कहा जाता है कि स्मृतियां वेदों पर आधारित हैं और मनुस्मृति भी वेदों के हिसाब से ही है। इस वजह से इसे वेदों की तरह ही सम्मान मिलना चाहिए। शंकराचार्य के साथ-साथ दूसरे धर्मगुरुओं ने भी इसी आधार पर इसका बचाव किया है। जबकि मनुस्मृति के आधुनिक समर्थक कहते हैं कि इस किताब के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया जाए तो ये किताब समाज के कल्याण की बात करती है।’
लेखक संजीव सभलोक एक आर्टिकल में लिखते हैं, ‘मनुस्मृति के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया जाए तो आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती भी इसे सपोर्ट करते थे। विनायक दामोदर सावरकर, गोलवलकर भी इसके समर्थकों में शामिल हैं। सावरकर का मानना था कि मनुस्मृति ‘वेदों के बाद सबसे ज्यादा पूजा जाने वाला ग्रंथ है’ और ‘राष्ट्र के आध्यात्मिक और दिव्य यात्रा का आधार है।’ गोलवलकर ने मनु को ‘मानव जाति का पहला, सबसे महान और बुद्धिमान नियम बनाने वाला व्यक्ति’ माना है।‘
सवाल-7: क्या इस तरह सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति फाड़ना सही है?
जवाब: मानवाधिकार जन-निगरानी समिति के संयोजक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, ‘मनुस्मृति वेद और उपनिषद जैसा पवित्र ग्रंथ नहीं है। इसे 2000 साल पहले लिखा गया। इसकी बातें वेद और उपनिषद से मेल नहीं खाती हैं, क्योंकि इसमें महिलाओं को संपत्ति और शिक्षा का अधिकार न देने की बात की गई है। किसी ग्रंथ को फाड़ना अलग बात है, वो किसी की पर्सनल चॉइस है, जबकि उसका विरोध करना और उसका खंडन करना अलग बात है।’