क्या है FCRA संशोधन, जानिए विदेशी चंदे की कालाबाजारी रोकने वाले बिल के विरोध में क्यों हैं एनजीओ

विभिन्न गैर सरकारी संगठन (एनजोओ) के विरोध के बीच लोकसभा में विदेशी अंशदान (योगदान) विधेयक, 2020 को पास कर दिया गया. इस बिल (Foreign Contribution (Regulation) Amendment Bill, 2020) को लेकर विभिन्न संगठनों ने विरोध जताया है. 

विभिन्न गैर सरकारी संगठन (एनजोओ) के विरोध के बीच लोकसभा में विदेशी अंशदान (योगदान) विधेयक, 2020 को पास कर दिया गया. 21 सितंबर को पास हुए इस बिल (Foreign Contribution (Regulation) Amendment (FCRA) Bill, 2020) को लेकर विभिन्न संगठनों ने विरोध जताया है. उनका कहना है कि इससे ईमानदारी से काम करने वाले एनजीओ खत्म हो जाएंगे. विदेशी अंशदान (नियमन) कानून (एफसीआरए) में क्या संशोधन किए गए हैं और क्यों इनका विरोध हो रहा है जानिए.

सबसे अहम बदलाव यह किया गया है कि अब किसी भी एनजीओ के पंजीकरण के लिए पदाधिकारियों के आधार नंबर जरूरी होंगे और लोक सेवक के विदेशों से रकम हासिल करने पर पाबंदी होगी. इसमें प्रावधान है कि केंद्र किसी एनजीओ या एसोसिएशन को अपना एफसीआरए प्रमाणपत्र वापस करने की अनुमति दे सकेगा.

सरकार बोली, पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए संशोधन जरूरी

विदेशी अंशदान (योगदान) विधेयक, 2020 (FCRA Bill, 2020) में कहा गया है कि कुल विदेशी कोष का 20 प्रतिशत से ज्यादा प्रशासनिक खर्चे में इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. वर्तमान में यह सीमा 50 प्रतिशत है. बदलाव के लक्ष्य और कारणों के बारे में बताया गया था, ‘विदेशी अंशदान (योगदान) विधेयक 2010 को लोगों या असोसिएशन या कंपनियों द्वारा विदेशी योगदान के इस्तेमाल को नियमित करने के लिए लागू किया गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिए विदेशी योगदान को लेने या इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है.’

यह कानून एक मई 2011 को लागू हुआ था और दो बार इसमें संशोधन हुआ. वित्त कानून की धारा 236 के जरिए पहला संशोधन हुआ और वित्त कानून, 2018 की धारा 220 से दूसरा संशोधन हुआ. इसमें कहा गया है कि हर साल हजारों करोड़ों रुपये के विदेशी योगदान के इस्तेमाल और समाज कल्याण का काम करने वाले ‘वास्तविक’ गैर सरकारी संगठनों या एसोसिएशनों और भुगतान में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए संशोधन किया जाना जरूरी था.

लोक सेवक नहीं ले सकेंगे विदेशी फंडिंग

एफसीआरए के तहत पूर्व अनुमति या पंजीकरण अथवा एफसीआरए के लाइसेंस नवीकरण का अनुरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति को अब अपने सभी पदाधिकारियों या निदेशकों के आधार नंबर देने होंगे, विदेशी नागरिक होने की स्थिति में पासपोर्ट की एक प्रति या ओसीआई कार्ड की प्रति देना जरूरी होगा .

इसमें ‘लोक सेवक’ और ‘सरकार या इसके नियंत्रण वाले निगम’ को ऐसी इकाइयों की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया है, जो विदेशी अनुदान हासिल करने के योग्य नहीं होंगे. इससे पहले तक चुनावी उम्मीदवार, पत्र-पत्रिका के एडिटर, जज, पार्टी या विधानसभा के सदस्य पर विदेश से चंदा लेने पर पाबंदी थी.

कुछ और अहम बदलाव

एक अहम बदलाव यह भी है कि विदेश से प्राप्त चंदे को संस्था अपनी पार्टनर कंपनी या उससे जुड़े लोगों के खाते में नहीं भेज सकती. अबतक यह आमतौर पर होता आया है. इतना ही नहीं अब विदेश से चंदा सिर्फ एक ही बैंक की एक ही शाखा में आ सकेगा, जिसे बैंक ने FCRA अकाउंट घोषित किया होगा. उस खाते में विदेशी चंदे के अलावा कोई पैसा जमा भी नहीं होगा.

विरोध कर रहे संगठनों का क्या है कहना

बहुत से एनजीओ फिलहाल विदेशी अंशदान (नियमन) कानून (एफसीआरए) में संशोधन का विरोध कर रहे हैं. वॉलेंटरी एक्शन नेटवर्क इंडिया (वानी) ने इसे देश भर में विकास, राहत, वैज्ञानिक शोध और जनसेवा जैसे कामकाज में लगे एनजीओ को खत्म करने वाला कदम बताते हुए कहा कि इस बिल से एनजीओ समुदाय के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा. एनजीओ का कहना है कि बिल में मान लिया गया है कि जो भी एनजीओ विदेश से पैसा ले रहे हैं वे गलत हैं, जबतक वे खुद को सही साबित न कर दें.

बता दें कि एफसीआरए के तहत पंजीकृत एनजीओ को 2016-17 और 2018-19 के बीच 58,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का विदेशी कोष मिला. देश में करीब 22,400 एनजीओ हैं.

 

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