राजनीति के दोराहे पर खड़े ‘मर्यादा’ की डोर से बंधे दो नेता?
राजनीति के दोराहे पर खड़े ‘मर्यादा’ की डोर से बंधे दो नेता?
उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार में अपर्णा यादव को महिला आयोग में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई है. खबर है कि अपर्णा यादव को ये पोस्ट उनके कद के मुताबिक छोटी लग रही है और वो नाराज हैं.
इतिहास का जब एक चक्र पूरा होता है तो उसमें कई कालखंड शामिल होते हैं. ऐसा लगता है कि 10 साल बाद इतिहास का एक पन्ना फिर पलटा है और वो घटना जो कभी गांधी परिवार से शुरू हुई थी अब यादव परिवार पर केंद्रित होती दिख रही है.
2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी के अंदरखाने से जो तूफान उठा था वो शांत तो हुआ लेकिन उसके निशान अब उभरकर सामने आ रहे हैं. संकेत साफ हैं कि महज़ 33 सीटों पर सिमट जाने के बाद अब बीजेपी को नाराजगी भी देखनी पड़ेगी. अपर्णा यादव नाराज हैं. उनको बीजेपी ने राज्य महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनाया है. खबर तो यहां तक है कि वो अपने चाचा- श्वसुर शिवपाल यादव के संपर्क में हैं.
बयानबाजी और कयासों का दौर यूपी में चल पड़ा है. दरअसल यूपी की राजनीति में अपर्णा यादव भले ही कोई जन नेता के तौर पर न देखी जाती हों, लेकिन वो समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू हैं. अपर्णा का समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल होना एक बड़ा फैसला तो था ही इसके साथ ही यादव परिवार से बगावत भी थी. ऐसे में उनको जो जिम्मेदारी दी गई है उससे कई लोगों को लगता है कि ये उनके कद के मुताबिक नहीं है.
साल 2017 में लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकीं अपर्णा यादव साल 2022 में बीजेपी में शामिल हुई थीं. हालांकि उस समय भी उनके बीजेपी से चुनाव लड़ने की बातें हो रही थीं. लेकिन उनको पार्टी ने टिकट नहीं दिया. अपर्णा ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी के लिए प्रचार किया और हर बड़े मुद्दे पर बीजेपी की लाइन के मुताबिक अपनी बात रखी.
यहां पर गौर करने वाली बात ये थी कि अपर्णा ने भले ही बीजेपी के पक्ष में बयान दिए हुए हों लेकिन कभी उन्होंने अखिलेश या शिवपाल पर सीधा हमला नहीं किया. यादव परिवार के किसी भी सदस्य के बारे में कभी कुछ भी नहीं कहा. यहां तक कि बीजेपी में शामिल होने के बाद वो अस्पताल में मुलायम सिंह यादव से भी मिलने गई थीं.
अपर्णा यादव की नाराजगी की खबरों के बीच अब आपको याद दिलाते हैं बीजेपी के ही ऐसे नेता कि जिसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और भविष्य पार्टी के अंदर परिवार के खिलाफ बगावत पर टिका हुआ है. लेकिन इस नेता ने भी कभी परिवार के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला. हम बात कर रहे हैं राहुल गांधी के चचेरे भाई वरुण गांधी की.
साल 2014 में बीजेपी ने वरुण गांधी को सुल्तानपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया था. इसी बीच वरुण गांधी ने एक बयान दे दिया. सुल्तानपुर में उन्होंने कहा, ‘मैं एक नई तरह की राजनीति करना चाहता हूं. हमें छोटे उद्योगों की जरूरत है, एक तरह से स्वयं सहायता समूह जैसा राहुल जी ने अमेठी में स्थापित किया है. हालांकि मैंने उनके काम को व्यक्तिगत तौर पर नहीं देखा है.’
वरुण गांधी के इस बयान ने बीजेपी को असहज स्थिति में डाल दिया. वरुण गांधी ने इस पर सफाई दी कि उनके बयान को किसी पार्टी या प्रत्याशी के समर्थन के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. बात यहां से आगे निकल चुकी थी. अमेठी से चुनाव लड़ रहे राहुल गांधी ने इस पर प्रतिक्रिया देने में देर नहीं लगाई और कहा, ‘वरुण सही कह रहे हैं. हम अमेठी में प्लान के मुताबिक काम कर रहे हैं. मुझे खुशी है कि अमेठी में किए जा रहे काम कि दूसरे लोग भी तारीफ कर रहे हैं. हम किसानों को पूरी दुनिया से जोड़ रहे हैं. हम कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम करेंगे.’

वरुण गांधी ने इस बयान से पहले भी एक बात और कही थी. पीलीभीत से सांसद रहे वरुण गांधी को साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर से टिकट दिया गया था. दरअसल इसके पीछे बीजेपी की रणनीति थी कि उसके एकदम नजदीक वाली सीट अमेठी में राहुल गांधी को वरुण गांधी के जरिए घेरा जा सके. राहुल के खिलाफ बीजेपी से स्मृति ईरानी और आम आदमी पार्टी से कुमार विश्वास मैदान में थे. बीजेपी को इस बात का पक्का यकीन था कि वरुण गांधी अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ प्रचार करने के लिए कहा जाएगा तो मना नहीं करेंगे.
लेकिन टिकट के ऐलान के साथ ही वरुण गांधी ने अमेठी में प्रचार करने से साफ इनकार कर दिया. खास बात ये थी कि अमेठी से दोनों के ही पिता सांसद रह चुके थे. राहुल के खिलाफ चुनाव प्रचार की बात पर वरुण ने मीडिया से कहा, ‘मैं कभी मर्यादा की सीमा नहीं पार करूंगा’. वरुण ने साफ कर दिया था कि वो भले ही बीजेपी में हों लेकिन गांधी परिवार के खिलाफ कभी नहीं बोलेंगे.
वरुण गांधी के इसी बयान ने उनको बीजेपी होते हुए भी गैर साबित करने के लिए काफी था. कभी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे वरुण गांधी साल 2019 तक आते-आते पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गए. इस दौरान उनके कई बयान पार्टी को तीर की तरह चुभते रहे. हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ना-नुकुर के बाद पीलीभीत से वरुण गांधी को टिकट दे दिया. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में ‘मर्यादा’ से बंधे वरुण गांधी पूरी तरह से गायब हो गए.
करीब ढाई सालों से बीजेपी में अपने कद को तलाश रहीं अपर्णा के सामने भी कुछ वैसी ही पारिवारिक मर्यादा का सवाल खड़ा होता दिख रहा है. इस बात पर जब हमने वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस से बात की तो उनका कहना था कि बीजेपी के अंदर वरुण गांधी का कद अपर्णा से बहुत बड़ा है वो दो बार सांसद रहे. मेनका गांधी के बेटे हैं और उनके पीछे एक बड़ी राजनीतिक विरासत है. लेकिन उनकी राजनीतिक करियर की शुरुआत बीजेपी से ही हुई है.
कलहंस ने अपर्णा का जिक्र करते हुए हा कि वो समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी में आई थीं. उनको कैडर ने पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है और न पार्टी के संगठन में उनकी कोई दिलचस्पी है. अभी तक उन्होंने कभी अखिलेश यादव के खिलाफ खुलकर कोई बयान नहीं दिया है. सिद्धार्थ कलहंस ने कहा कि महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनने के बाद वो शिवपाल यादव का आशीर्वाद लेने भी गईं. पारिवारिक मर्यादा का सवाल उनके भी सामने है या तो वो इस पार जाएं या उस पार.
लेकिन उत्तर प्रदेश के ही वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश बाजपेई इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि अपर्णा की नाराजगी सिर्फ पोस्ट को लेकर है. बाजपेई का कहना है कि शिवपाल यादव से उनकी मुलाकात के भी ज्यादा मतलब नहीं निकाले जाने चाहिए क्योंकि अपर्णा पहले भी शिवपाल यादव बातचीत करती रही हैं जब यादव परिवार में झगड़ा चरम पर था. अपर्णा का मामला वरुण गांधी से बिलकुल अलग है.