चिंताजनक : भारत देश में बढ़ने की जगह कम हुए डॉक्टर ?
चिंताजनक: गांवों में 82 फीसदी फिजिशियन, 83% सर्जन और 80% बालरोग विशेषज्ञ ही नहीं; बढ़ने की जगह कम हुए डॉक्टर
ग्रामीण भारत की यह तस्वीर सोमवार को जारी केंद्र सरकार की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) 2022-23 की रिपोर्ट में पता चली है, जिसके मुताबिक बीते 18 साल में यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी में तीन गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है।
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी काफी तेजी से बढ़ रही है। स्थिति यह है कि यहां 82 फीसदी फिजिशियन, 83 फीसदी सर्जन और 80 फीसदी से ज्यादा बालरोग विशेषज्ञ के पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। पांच हजार से ज्यादा इन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दवा लिखने वाले फिजिशियन डॉक्टर एक हजार से भी कम हैं, लेकिन यहां फार्मासिस्ट की संख्या सात हजार से भी ज्यादा है।
ग्रामीण भारत की यह तस्वीर सोमवार को जारी केंद्र सरकार की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) 2022-23 की रिपोर्ट में पता चली है, जिसके मुताबिक बीते 18 साल में यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी में तीन गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 5,491 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिनमें से महज 913 केंद्रों में सर्जन, 1,442 में प्रसूति रोग विशेषज्ञ, 992 में फिजिशियन और 1,066 केंद्रों पर बाल रोग विशेषज्ञ कार्यरत हैं, जबकि सरकार का मानना है कि यहां कुल 21,964 विशेषज्ञों की जरूरत है। बावजूद इसके राज्यों ने अभी तक 21,964 में से केवल 13,232 पदों पर ही डॉक्टरों को भर्ती करने की मंजूरी दी है और उसमें से केवल 4,413 डॉक्टर ही इस समय मरीजों की सेवा कर रहे हैं। कुल मिलाकर इन केंद्रों पर 17 हजार से ज्यादा विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। इनमें सर्जन, प्रसूति रोग, बालरोग और फिजिशियन शामिल हैं।
मां-शिशु दोनों के लिए जोखिम
स्वास्थ्य केंद्रों पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी मां और शिशु दोनों के लिए जोखिम भरा हो सकती है। दिल्ली एम्स की वरिष्ठ डॉ. प्रज्ञा बताती हैं कि गर्भवती के लिए प्रसूति रोग विशेषज्ञ का मार्गदर्शन जरूरी है। रिपोर्ट बताती है कि 5,491 में से केवल 1,442 केंद्रों पर ही प्रसूति रोग विशेषज्ञ मौजूद हैं।
नौ हजार केंद्रों पर एक भी डॉक्टर नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, देश के 757 जिलों में करीब 6.64 लाख गांव हैं। यहां 1.65 लाख उप स्वास्थ्य केंद्र, 25,354 पीएचसी और 5,491 सीएचसी मौजूद हैं। साल 2005 से तुलना करें तो 20 हजार से ज्यादा नए उप स्वास्थ्य केंद्र और करीब दो-दो हजार से ज्यादा पीएचसी और सीएचसी की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन गंभीर तथ्य यह है कि नौ हजार से ज्यादा पीएचसी बिना डॉक्टर संचालित हो रहे हैं। यहां कुल 41,931 पदों पर 32,901 डॉक्टर या चिकित्सा अधिकारी तैनात है। इसी तरह सीएचसी और पीएचसी पर आठ हजार से ज्यादा लैब टेक्नीशियन, सात हजार फार्मासिस्ट, 1,719 रेडियोग्राफर और 22 हजार से ज्यादा नर्सिंग कर्मचारियों के पद खाली पड़े हैं।
बढ़ने की जगह कम हुए डॉक्टर
रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 तक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में कार्यरत विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या 4,485 रही जो 2023 में 4,413 रह गई, जबकि इसी अवधि में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) स्तर पर डॉक्टरों की संख्या 30,640 से बढ़कर 32,901 तक पहुंची है। यह आंकड़ा बता रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में हर साल विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी का ग्राफ बढ़ रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव डॉ. अपूर्व चंद्रा ने बताया कि साल 1992 से सरकार हर साल ग्रामीण स्वास्थ्य को लेकर यह सांख्यिकी रिपोर्ट जारी कर रही है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार को लेकर देश में अभी काफी प्रयास किए जाने बाकी हैं।