सभी दल इन दोनों ही राज्यों में अपनी-अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं…

सभी दल इन दोनों ही राज्यों में अपनी-अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं…

राजनीति बड़ी अजीब होती है। नेता समय से भी धीरे-धीरे चलने को कहते हैं, ताकि वे दुनिया से आगे निकल सकें। फिलहाल यह सब हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चल रहा है।

दोनों जगह चुनाव हैं। हरियाणा में तू डाल-डाल, मैं पात-पात की कशमकश चल रही है। विनेश और बजरंग पहलवान को शामिल करके कांग्रेस खुशियां मना रही थी, लेकिन ‘आप’ से हो रहा समझौता टूटते ही कांग्रेस की खुशियां कुछ हद तक फीकी दिखाई देने लगीं।

हो सकता है ‘आप’ को दूर रखकर हरियाणा कांग्रेस की राज्य इकाई खुश हो रही हो, लेकिन इसका फायदा भाजपा को ही होने वाला है क्योंकि ‘आप’ प्रत्याशियों को जहां भी, जितने भी वोट मिलने वाले हैं, वे जाएंगे कांग्रेस के खाते से ही।

हालांकि केजरीवाल के जातीय गणित के कारण ‘आप’ पार्टी कुछ नुकसान भाजपा का भी कर सकती है लेकिन वह कांग्रेस के नुकसान की तुलना में नगण्य होगा। कम वोटों के अंतर से होने वाली जीत-हार में ‘आप’ पार्टी का असर साफ दिखने वाला है।

देर से ही सही, हो सकता है कांग्रेस नेतृत्व को यह बात समझ में आ जाए, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी। हालांकि चुनाव परिणाम आने पर ही असल माजरा समझ आएगा, लेकिन यह तय है कि भाजपा को दस साल के राज के बावजूद कमजोर नहीं माना जा सकता।

दरअसल, कांग्रेस यहां एज पर तो है लेकिन उसके वोट टूटने के यहां कई कोण हैं। जेजेपी का समझौता चंद्रशेखर से है, वे एससी-एसटी वोट तोड़ेंगे। इनेलो का समझौता बसपा से है, वे भी इन्हीं वोटों को तोड़ेंगे। ‘आप’ से समझौता टूटने से कुछ नुकसान वहां से भी हो सकता है।

कुल मिलाकर फूंक-फूंककर कदम रखने होंगे। उधर जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहला विधानसभा चुनाव हो रहा है। पहला बदलाव यहां पिछले लोकसभा चुनाव में आया था, जिसमें अब तक की सर्वाधिक वोटिंग हुई थी। वरना इससे पहले तो 25 से 30 प्रतिशत वोट पड़ते थे और चुनाव हो जाया करता था।

नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी राजनीतिक पार्टियों के लम्बे राज का यही राज था। भाई लोग 10-12 हजार वोट पाकर ही चुनाव जीत जाया करते थे। इस चुनाव में कश्मीर में अनुच्छेद 370 ही प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। भाजपा इस अनुच्छेद को हटाने का श्रेय लेकर चुनाव जीतना चाहती है। उसका दावा है कि 370 के हटने से यहां शांति आई है। पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है, जो कि बढ़ी भी है।

उधर नेशनल कॉन्फ्रेंस इसी अनुच्छेद 370 को वापस लागू करने को मुख्य मुद्दा बनाए हुए है। उसका दावा है कि वह सत्ता में आई तो कश्मीर में अनुच्छेद 370 फिर से लागू करवा देगी। जबकि यह मामला राज्य स्तर का है ही नहीं। जब तक केंद्रीय सत्ता नहीं चाहे, अनुच्छेद 370 फिर से लागू नहीं हो सकता।

नेशनल कॉन्फ्रेंस का यह दावा केवल लोगों को बरगलाने के लिए है। इसमें सच्चाई नहीं है। यह सच है कि जम्मू क्षेत्र को छोड़कर कश्मीर घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस का अच्छा-खासा प्रभाव है। लम्बे समय तक उसने यहां शासन भी किया है। पहले शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में, फिर उनके बेटे फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व में और एक बार फारूख के बेटे उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में भी।

जम्मू क्षेत्र में जरूर भाजपा का प्रभाव है। नेशनल काॅन्फ्रेंस ने कांग्रेस से समझौता शायद इसीलिए किया है कि वह कांग्रेस के बल पर जम्मू क्षेत्र की कुछ सीटें भाजपा से छीन सके। कौन, कितनी ताकत से उभर पाएगा यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा, लेकिन फिलहाल कश्मीर और हरियाणा दोनों जगह चुनाव प्रचार चरम पर है। सभी दल अपनी-अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं।

अनुच्छेद 370 का मुद्दा नेशनल कॉन्फ्रेंस का दावा है कि अगर वह सत्ता में आई तो कश्मीर में अनुच्छेद 370 फिर से लागू करवा देगी। जबकि यह मामला राज्य स्तर का है ही नहीं। जब तक केंद्रीय सत्ता नहीं चाहे, अनुच्छेद 370 फिर से लागू नहीं हो सकता।

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