मप्र के खेल अवॉर्ड… काबिल की नहीं कद्र ?
मप्र के खेल अवॉर्ड… काबिल की नहीं कद्र:अवॉर्ड में ‘खेल’- ज्यूरी नहीं, अफसर तय कर रहे किसे मिलेंगे विक्रम, विश्वामित्र

मप्र के सर्वोच्च खेल पुरस्कारों में मनमानी… चहेतों के लिए कोई नियम नहीं, जिसको न देना हो, उसके लिए कई शर्तें, चयन प्रक्रिया सवालों के घेरे में
विक्रम अवार्डी सरकारी नौकरी का हकदार होता है, इसलिए चहेतों को दे रहे
विक्रम, विश्वामित्र और एकलव्य जैसे प्रदेश के सर्वोच्च खेल पुरस्कारों में भारी गड़बड़ी हो रही है। आरोप है कि पुरस्कारों के लिए तय मापदंड के हिसाब से खिलाड़ियों का चयन नहीं किया जाता। अधिकारी ही गड़बड़ी करते हैं। लिस्ट बंद कमरे में तैयार होती है। ज्यूरी के सदस्य उस पर बगैर आपत्ति जताए मुहर लगा देते हैं। दरअसल, ज्यूरी में जो सदस्य होते हैं वे सभी मप्र अकादमी के कोच होते हैं, जो खेल अफसरों के अधीन होते हैं। इस कारण दबाव में रहते हैं।
मप्र हर साल प्रदेश के 30 खिलाड़ियों को अवॉर्ड देता है। इनमें 10 विक्रम, 15 एकलव्य, 3 विश्वामित्र, 1 प्रभाष जोशी और 1 लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड शामिल है। सबसे अहम विक्रम अवॉर्ड है। जिस खिलाड़ी को यह मिलता है, वह सरकारी नौकरी का हकदार हो जाता है। अवॉर्ड चयन के लिए खेल विभाग की अंकों पर आधारित नियमावली है। जिसके ज्यादा अंक, उसे अवार्ड का पात्र माना जाता है। फैसला 7 सदस्यीय ज्यूरी करती है। खेल विभाग के अफसरों की इस नाइंसाफी से कई खिलाड़ियों ने मायूस होकर खेलना छोड़ दिया है।
भास्कर ऐसे खिलाड़ियों तक पहुंचा जो विभाग की चयन प्रक्रिया से लड़ते-लड़ते थक हारकर घर बैठ गए हैं। अभी ये हैं ज्यूरी में… कैप्टन भागीरथ घुड़सवारी अकादमी के कोच, दलवीर सिंह रोइंग अकादमी के कोच, महासिंह कुश्ती अकादमी के कोच, समीर दाद हॉकी अकादमी के कोच, कमल चावला टीटी नगर स्टेडियम में स्नूकर कोच और साई के डायरेक्टर।
खिलाड़ियों का दर्द… ज्यादा पॉइंट, पर अवॉर्ड नहीं, खेल छोड़ रहे
इंटरनेशनल प्लेयर को सीएम हेल्पलाइन से भी मदद नहीं
इंटरनेशनल कराते प्लेयर हूं। कॉमनवेल्थ, साउथ एशियन की मेडलिस्ट हूं। नेशनल में 8 गोल्ड हैं। 2015 से लगातार अप्लाई करने पर भी विक्रम अवॉर्ड नहीं मिला। सीएम हेल्पलाइन में शिकायत की। आरटीआई लगाई, लेकिन मुझे नहीं बताया गया कि आखिर किस आधार पर दूसरों को चुना गया। अब पढ़ाई पर फोकस कर रही हूं।’ –शिवानी करोले, कराते खिलाड़ी, धार
मुझसे कम अंक वाले को मिला अवॉर्ड, लेकिन मुझे नहीं

2019 से लगातार अप्लाई करने पर भी मुझे अवॉर्ड नहीं मिला। सॉफ्टबॉल, सॉफ्ट टेनिस, थ्रोबॉल, डायरेक्ट वालीबॉल जैसे नॉन ओलिंपिक खेलों में अवॉर्ड दिए जा रहे हैं। मैंने पड़ताल की तो पाया कि इन खेलों के कई अवॉर्डियों की उपलब्धियां मुझसे काफी कम थी।’ – गोविंद शिंदे, हैंडबॉल खिलाड़ी, इंदौर
मुझ पर NIS की शर्त लगाई, जिसे अवॉर्ड दिया उस पर नहीं
जूडो के 20 से ज्यादा इंटरनेशनल प्लेयर दिए। न अवॉर्ड मिला, न सही जवाब। कहा गया कि आप एनआईएस कोच नहीं हैं। जबकि जिस मलखंभ कोच को विश्वामित्र अवॉर्ड दिया, वह भी NIS नहीं हैं। विभाग ने अकादमी के कोचों को 1-1 उपलिब्ध पर ये अवॉर्ड दे रखे हैं। मैंने तो 20 खिलाड़ी दिए हैं। दर्द यही कि बिना अवॉर्ड रिटायर हो जाऊंगा। –आबिद खान, जूडो कोच, जबलपुर
एक्सपर्ट व्यू – फेडरेशन की अनदेखी, सीधे आवेदन लेना चूक
^पहले अवॉर्ड के लिए फेडरेशन या एसोसिएशन के जरिए आवेदन लिए जाते थे। नियम हटाने से मनमानी करने में आसानी हो रही है। मप्र में अकादमी कल्चर खेलों पर असर डाल रहा है। अकादमी में मंझे हुए खिलाड़ियों को प्रवेश दिया जाता है। वह खिलाड़ी सालभर बाद अवॉर्ड पा जाता है।
उसी आधार पर उसके कोच को भी अवॉर्ड दे दिया जाता है। यह नहीं देखा जा रहा कि उसकी शुरुआत कहां से हुई, किसने ट्रेनिंग दी, किसने तैयार किया। एसोसिएशन और एसोसिएशन के कोचों की भूमिका को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह गलत है। शायद ही ऐसी कोई अकादमी होगी, जिसके कोच को विश्वामित्र और खिलाड़ी को एकलव्य, विक्रम या प्रभाष जोशी अवॉर्ड न मिला हो। बीएस कुशवाह, लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्डी और पूर्व खेल संचालक, मप्र शासन
नियम हैं… पर इस्तेमाल मनमाने ढंग से ओलिंपिक, पैरा-ओलिंपिक या विश्वकप में भागीदारी करने पर 300 अंक, एशियन गेम्स के 200 अंक, कामनवेल्थ में गोल्ड पर 200, सिल्वर पर 150, ब्रॉन्ज पर 100 व भागीदारी पर 50 अंक मिलते हैं। नेशनल, साउथ एशियन गेम्स आदि में शामिल होने और मेडल जीतने के अलग-अलग अंक तय हैं।
हम पूरी चयन प्रक्रिया दुरुस्त कर रहे हैं ^मुझे भी अवॉर्ड की चयन प्रक्रिया को लेकर शिकायतें मिली हैं। हम पूरी प्रक्रिया को दुरुस्त कर रहे हैं। अब चयन प्रक्रिया पारदर्शी होगी ताकि कोई सवाल न उठा सके। अब जो अवॉर्ड दिए जाएंगे, वे नई चयन प्रणाली के तहत ही दिए जाएंगे।’ विश्वास सारंग, खेल मंत्री, मप्र सरकार