Ground Report Lal Chowk !
Ground Report Lal Chowk : बुजुर्ग 1987 का ‘बदला’ लेना चाहते हैं, युवा सब कुछ बदल देने पर आमादा, मतदान 25 को
आज इसी लाल चौक पर तिरंगा शान से लहरा रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी भी यहां से मैदान में है। चुनावी माहौल की बात करें तो बुजुर्गों में 1987 के चुनाव का बदला लेने वाली प्रतिशोध की भावना धधक रही है…तो युवा सब कुछ बदल देने पर आमादा नजर आते हैं।
जम्मू-कश्मीर का वह इलाका जो सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहता आया है, यह कभी अलगाववादी और राष्ट्रविरोधी तत्वों के धरना-प्रदर्शन, पत्थरबाजी का गढ़ माना जाता था। यहां के लोगों ने अपनी सांसों में लगातार तीन दशक तक गन, गोली…बारूद से निकलने वाला धुआं घुलने का दंश झेला है। कभी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए डा. मुरली मनोहर जोशी को लाल चौक पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। आज इसी लाल चौक पर तिरंगा शान से लहरा रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी भी यहां से मैदान में है। चुनावी माहौल की बात करें तो बुजुर्गों में 1987 के चुनाव का बदला लेने वाली प्रतिशोध की भावना धधक रही है…तो युवा सब कुछ बदल देने पर आमादा नजर आते हैं।
सबसे हॉट सीटों में से एक लाल चौक राज्य की सियासत का केंद्र है। प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में चुनाव दूसरे चरण में है। यहां 25 सितंबर को वोट डाले जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन पहले ही भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में श्रीनगर में चुनावी रैली करके गए हैं। लाल चौक पर मिले रशीद बेग कहते हैं कि पीएम ने अपने प्रत्याशी इंजीनियर एजाज हुसैन का नाम लेकर भाषण दिया। एजाज डीडीसी हैं और भाजपा ने उन्हें हज कमेटी ऑफ इंडिया का सदस्य बनाया है।
पीएम ने एजाज के बहाने पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के परिवारवाद पर हमला भी बोला। कहा, एजाज जैसे लड़के मैदान में उतरकर परिवारवाद वाली पार्टियों का डटकर मुकाबला कर रहे हैं। चुनाव में युवाओं के आगे आने का मतलब है कि जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र फल-फूल रहा है। रशीद कहते हैं, अपने प्रत्याशी के समर्थन में पीएम के इतना कहने के बावजूद इस सीट पर भाजपा की ज्यादा गुंजाइश नजर नहीं आती। वजह बताने की गुजारिश पर वह आगे बढ़ जाते हैं। लाल चौक सीट से एनसी से शेख एहसान अहमद, पीडीपी से जुहेब युसफ मीर व अपनी पार्टी से मो. अशरफ मीर मैदान में हैं। यहां लड़ाई एनसी व पीडीपी में ही नजर आ रही है।
शांति और सुकून चाहते हैं…सजावटी विकास नहीं
लाल चौक रेजीडेंसी रोड मार्केट के एक दुकानदार मुनीर अहमद की बातों से तस्वीर कुछ साफ हुई। मुनीर श्रीनगर में शांति और बदलाव को बखूबी बयां करते हैं, मगर लंबी शिकायत के साथ। कहते हैं कि पहले बंद के कारण कारोबार प्रभावित होता था…अब सही से चल रहा है। लेकिन,अब सजावटी विकास नहीं चाहते। जिसकी गलती है, सजा उसे मिलनी चाहिए। उसके परिवार, आम जनता को नहीं। जिन लोगों ने अपने परिवार के गुमराह लोगों का विरोध किया। मुश्किल दौर में दोतरफा मुश्किलें झेलीं। आज बदलाव के साथ खड़ा होना चाहते हैं। जो लोग शरीफ हैं, उन्हें भी परेशान किया जा रहा है। लोगों की भावनाओं को दबाया जा रहा।
- मुनीर कहते हैं, हम इज्जतदार लोग हैं। मेरी बेटी अमेरिका में जूनियर साइंटिस्ट है। डीआरडीओ में जा रही है। पुलिस वाला आकर मुझसे बदतमीजी से बात करने लगता है। पढ़े-लिखे बच्चों को अपना भविष्य यहां सुरक्षित नहीं लगता। सब बाहर जा रहे हैं। जिन युवाओं को पीएम ‘चेंज एजेंट’ बोलते हैं, उनके भी मन की बात सुननी चाहिए। मुनीर 1987 के चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हैं आैर कहते हैं कि इसके बाद लोगों ने वोट डालना छोड़ दिया। लेकिन, इस बार फिर लोग वोट डालेंगे। बाहर गए वोटर भी आ रहे हैं। जनता का प्रतिनिधि होने से काम आसान हो जाता है। इसे आप बुनियादी बदलाव मान सकते हैं।
इस बार किसी का फरमान नहीं चलेगा…अपनी मर्जी से देंगे वोट
लाल चौक के सामने मेवा दुकानदार बशीर अहमद कहते हैं कि 1983 से यहां हूं। इन 40 सालों में सब कुछ देखा है। चुनाव का जिक्र करने पर वह किसी पार्टी की हार-जीत पर नहीं बोलना चाहते। लेकिन, जम्मू-कश्मीर की पूरी सियासत ऐसे बयां करते हैं, जैसे टेप रिकॉर्डर इतिहास दोहरा रहा हो। वह बड़ा आरोप लगाते हैं। कहते हैं, 1987 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने चुनावों में धांधली की गलती न की होती, तो यहां शायद आतंकवाद न होता। जीत कोई रहा था, पर जिता किसी और को दिया गया।
बशीर कहते हैं कि मो. युसुफ शाह भी 1987 का चुनाव लड़ रहा था। उसकी बड़ी बढ़त थी। उसके विरोधी एनसी के गुलाम मोहिउद्दीन शाह को बमुश्किल चार हजार वोट बताए जा रहे थे। नतीजे आए तो गुलाम मोहिउद्दीन चुनाव जीत गए। इसके बाद मो. युसुफ शाह ने सैयद सलाहुद्दीन के रूप में एक आतंकी सरगना बनने की राह चुन ली। पाकिस्तान की शह पर यहां आतंकवाद शुरू हो गया। उसकी सजा हम लोग भुगतते रहे हैं। बशीर कहते हैं कि जो पारंपरिक क्षेत्रीय दल हैं, उन्हें हम आजमा चुके हैं। ये वंशवाद की राजनीति चला रहे हैं। पहले शेख अब्दुल्ला…फिर फारुक…फिर उमर अब्दुल्ला और अब उनके दो बेटे।
इसी तरह..मुफ्ती मोहम्मद सईद..महबूबा मुफ्ती और अब इल्तिजा। ये लोग परिवार से बाहर के अच्छे लोगों को सियासत में आगे नहीं आने देना चाहते। वह कहते हैं कि कश्मीर के लोग काफी बुद्धिमान हैं। सब समझ गए हैं। अब किसी का फरमान यहां नहीं चलेगा। लोग चुनाव के दिन निकलेंगे। अपनी मर्जी से वोट देंगे।
- बशीर कहते हैं कि पहले वोट कम पड़ते थे। वजह, पुरानी पीढ़ी के दिमाग में 1987 के चुनावों की घटना थी। वह वोटिंग से दूर रहती थी। आज की युवा पीढ़ी इतिहास तो जानती है लेकिन, उसे दोहराना नहीं चाहती। वे वोट डालना चाहते हैं। लोकसभा में वोट प्रतिशत बढ़ने का कारण यह भी है। अभी काम के लिए कमिश्नर व कलेक्टर के पास जाना पड़ता है। उससे बेहतर हो कि चुनी हुई सरकार हो, ताकि हम चुने हुए प्रतिनिधि से काम ले पाएं।
कश्मीरियों के दिल में अटल
बशीर कहते हैं कि कश्मीर के लोगों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हमने अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता को खो दिया, जो कश्मीरियत, जम्हूरियत व इंसानियत के दायरे में रहकर कश्मीरियों के लिए बात करते थे। उनके दिल में कश्मीरियों के लिए अलग दर्द था। अटल जी ने सिर्फ कहा ही नहीं, करके भी दिखाया। वे लाहौर गए। खेल व फिल्म जगत की हस्तियों व शिक्षाविदों को लेकर गए। लेकिन, बदकिस्मती से उधर के लोगों ने साथ नहीं दिया।