ऑफिस में बैठे-बैठे भी हो सकते हैं फेफड़ों की बीमारियों के शिकार ?

ऑफिस में बैठे-बैठे भी हो सकते हैं फेफड़ों की बीमारियों के शिकार, जान लीजिए इसकी वजह
world lung day 2024 Household air pollution cause lung infection and cancer
फेफड़ों की बढ़ती बीमारियां चिंताजनक हैं क्योंकि इसके कारण हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। लंग्स कैंसर वैश्विक स्तर पर बड़ी चुनौती बनकर उभरा है जो हर साल डेढ़ लाख से अधिक लोगों की जान ले रहा है। अध्ययनकर्ता बताते हैं, इन समस्याओं को काफी हद तक रोका जा सकता है अगर सभी लोग अपने जोखिमों पर ध्यान देते हुए इससे बचाव के लिए निरंतर प्रयास करते रहें।

शोध बताते हैं कि धूम्रपान फेफड़ों की ज्यादातर बीमारियों के लिए प्रमुख कारण है। फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 80% मौतें धूम्रपान से ही संबंधित पाई जाती हैं। इसी तरह से वायु प्रदूषण, विशेषतौर पर इनडोर प्रदूषण भी इस महत्वपूर्ण अंग के लिए खतरनाक हो सकता है।

डॉक्टर बताते हैं, बाहरी प्रदूषण की तरह खराब इनडोर वायु गुणवत्ता भी फेफड़ों की गंभीर समस्याओं, अस्थमा-ब्रोंकाइटिस और यहां तक कि कैंसर का खतरा बढ़ा सकती है। अगर आपके घर-ऑफिस में वेंटिलेशन की अच्छी व्यवस्था नहीं है तो ये फेफड़ों के लिए नुकसानदायक स्थिति हो सकती है। ऑफिस में बैठे-बैठे भी आप फेफड़ों के रोग के शिकार हो सकते हैं।

फेफड़ों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे संबंधित बीमारियों की रोकथाम को लेकर हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे यानी विश्व फेफड़ा दिवस मनाया जाता है। आइए इनडोर प्रदूषण और इसके कारण होने वाली दिक्कतों को समझते हैं।

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वेंटिलेशन की कमी खतरनाक

ज्यादातर ऑफिस कांच के शीशों और एयर कंडीशन से पैक होते हैं, लिहाजा इमारतों में उचित वेंटिलेशन की व्यवस्था का अभाव हो सकता है। इसकी वजह से बंद कमरों में ताजी हवा नहीं आ पाती और न ही अंदर की हवा बाहर जा पाती है। इस तरह की स्थितियों में न सिर्फ श्वसन संक्रमण फैलने का खतरा अधिक होता है, साथ ही इससे दीर्घकालिक तौर पर फेफड़ों को भी क्षति पहुंच सकती है।

चूंकि अधिकतर लोग अपने दिन का ज्यादातर समय ऑफिस में ही बिताते हैं, ऐसे में इनमें फेफड़ों की समस्याओं का जोखिम और अधिक हो सकता है। 

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ अमित प्रकाश बताते हैं, खराब या लो-वेंटिलेशन वाली जगहों पर हवा में 100 गुना अधिक सूक्ष्म कण हो सकते हैं। इनडोर वायु प्रदूषकों के संपर्क में रहने के कारण फेफड़ों में संक्रमण जैसे निमोनिया होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा ये शरीर पर तत्काल प्रभाव भी पैदा कर सकते हैं जैसे कि आंखों, नाक और गले में जलन, सिरदर्द, चक्कर आना आदि। अस्थमा या अन्य श्वसन समस्याओं से परेशान रोगियों में इनडोर प्रदूषण लक्षणों को और भी खराब कर सकती है। 

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किन्हें इसका खतरा अधिक?
 
डॉक्टर बताते हैं, लंग्स कैंसर वाले कई मरीज जो सिगरेट नहीं पीते थे, उनकी हिस्ट्री जानने के दौरान पता चला कि या तो उनमें सेकेंड हैंड स्मोकिंग या फिर इनडोर प्रदूषण के कारण ये समस्या विकसित हुई। वैसे तो इनडोर प्रदूषण के कारण होने वाली समस्याओं का जोखिम किसी को भी हो सकता है। पर जो लोग अधिकतर समय बंद कमरों या ऑफिस में बिताते हैं या फिर पहले से ही फेफड़ों की बीमारी के शिकार हैं उनमें जटिलताएं अधिक देखी जाती हैं।
 
बच्चों का भी ज्यादातर समय स्कूल में बीतता है, इसकी वजह से इनडोर वायु प्रदूषण के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों का जोखिम इनमें भी अधिक हो सकता है।
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डब्ल्यूएचओ की सलाह

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक रिपोर्ट में बताया कि वयस्कों में फेफड़ों के कैंसर से होने वाली लगभग 11% मौतें इनडोर वायु प्रदूषण से उत्पन्न कैंसरकारी तत्वों के कारण होती हैं। इस प्रकार के प्रदूषकों से बचे रहने और अपने स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए घरों में वेंटिलेशन की अच्छी व्यवस्था रखना जरूरी है। कमरों में खिड़कियां लगवाएं जिससे बाहर से साफ हवा आ सके और अंदर की हवा बाहर निकल सके।

  • घरों की साफ सफाई के लिए हानिकारक रसायन वाले उत्पाद का इस्तेमाल न करें, इससे भी इनडोर प्रदूषण हो सकता है।
  • ओजोन युक्त उत्पादों से बचें। इसके अलावा एयर फ्रेशनर और तेज सुगंध वाले उत्पादों का उपयोग भी सीमित करें।
  • सभी लोगों को सांस के अभ्यास करना और बाहर खुली हवा में वक्त बिताना बहुत जरूरी है।
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नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण:…… की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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