तिहाड़ जेल की वो दीवार जो इस किताब पर है आधारित !

तिहाड़ जेल की वो दीवार जो इस किताब पर है आधारित

इस आलेख में विशेष तौर पर किताब को केंद्र में रखा गया है. तिनका तिनका तिहाड़ शीर्षक से छपी यह पुस्तक तिहाड़ की महिला बंदिनियों का कविता संग्रह है. यह बंदिनियों की कलम से जेल के अनुभवों को कहता सच्चा और सटीक दस्तावेज है. इस किताब को जेल सुधारक वर्तिका नन्दा यानी मैं और विमला मेहरा, आइ.पी.एस, पूर्व महानिदेशक, दिल्ली जेल ने सांपादित किया था. इस तरह के जेल साहित्य का भारत में पहला उदाहरण है जिसका अनुवाद अंग्रेजी के अलावा छ: भारतीय भाषाओं में हुआ और इतालियन में भी. यही किताब बाद में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी शामिल हुई.  

तिहाड़ पर किए इस विस्तृत काम के जरिए भारत में जेल पत्रकारिता की नींव पड़ी है. बाद में तिनका तिनका जेल रेडियो और तिनका पॉडकास्ट बंदियों के सरोकार आगे ले जाने का सशक्त माध्यम बने. चूंकि जेल के इस बयान को महिला बंदिनियों ने खुद ही लिखा है, इसलिए यह जेल-साहित्य बंदियों के मनोभाव और जेल की परिस्थितियों को समझने में मददगार साबित हो सकता है. 2013 से 2024 की अवधि में जेल की जिंदगी के आकलन और बंदियों की संवाद की जरूरतों की पड़ताल पर तिनका तिनका द्वारा अलग-अलग विधाओं में लगातार काम होता रहा है.

प्रयोग के तौर पर तिनका तिनका तिहाड़: 

2013 में इस प्रयोग के तहत महिला बंदियों से आग्रह किया गया कि वे जेल की जिंदगी पर अपनी कविताएं लिखें. बाद में चार महिलाओं का चयन हुआ. वे थीं- रमा चौहान, सीमा रघुवंशी, रिया शर्मा और आरती. इनकी कविताओं को इकठ्ठा और संपादित कर उन्हें- तिनका तिनका तिहाड़- का नाम दिया गया. 2013 में राजकमल प्रकाशन से हिंदी और अंग्रेजी में छपी यह किताब एक काव्य संग्रह है . इस किताब का दूसरा संस्करण 2023 में तिनका तिनका फाउंडेशन ने प्रकाशित किया.

रमा चौहान की कविता का एक अंश- ना जाने, ना अनजाने, ना सोचा, ना चाहा कभी मैंने,
मगर वो विरानियां चारदीवारी की मांगी कभी मैंने.
हंसती खेलती मेरी दुनिया, एक दिन खौफजदा हो गई,
जिस दिन एक अनजान दर्द में, मैं अपनी बेटी से जुदा हो गयी.
जालिमों ने ना देने दिया बच्ची को दूध, ना देने दी माँ को दवा,
बस!! हाथ पकड़ कर मेरा, वो एक अंजान राहों में ले चला. (पृष्ठ 33)

10 अगस्त, 2015 को एनडीटीवी पर एक कार्यक्रम – हम लोग- के लिए सीमा और प्रमोद- दोनों को आमंत्रित किया गया. सीमा ने एनडीटीवी पर कहा- 
“जब मैम (वर्तिका नन्दा) आईं तो उन्होंने पूछा “कुछ लिखती हो “तो मैम को बताया की लिखती हूं.मैम ने बोला, जाओ डायरी दिखाओ. मुझे पहले थोड़ा डर लगा कि कौन है क्योंकि उसमें कुछ अपने सीक्रेट्स भी होते हैं. मैम ने तारीफ की और अच्छा लगा कि किसी ने तारीफ की. कुछ कविताएं मैम ने लीं और फिर मुझे आगे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया.“

चारों बंदिनियों में आरती ने तिहाड़ में सबसे लंबा समय गुजारा.  सितंबर, 2011 को वो जेल में आई और दिसंबर, 2023 को जेल से छूटी. 2023 में तिनका तिनका तिहाड़ के 10 साल पूरे होने पर किताब का दूसरा संस्करण प्रकाशित किया गया जिसका विमोचन सितंबर, 2023 में तिहाड़ जेल में ही हुआ. 9 दिसंबर, 2023 को आरती को जेल में उसके विशेष कामों के लिए जिला जेल, गुरुग्राम में राष्ट्रीय तिनका तिनका बंदिनी अवॉर्ड दिया गया तो अवॉर्ड लेने के लिए जेल सुपरिंटेंडेंट कृष्णा शर्मा खुद आईं. यह पुरस्कार मोहम्मद अकील (आइपीएस), जेल महानिदेशक, हरियाणा ने दिया. आरती उस समय भी जेल में ही थी.

संदर्भ:
– नन्दा, वर्तिका: तिनका तिनका तिहाड़:  राजकमल प्रकाशन: 2013
– नन्दा, वर्तिका: तिनका तिनका तिहाड़:  तिनका तिनका फाउंडेशन, 2023
– यूट्यूब पर तिनका जेल रेडियो पॉडकास्ट

शोध और अनुवाद: 
इतालवी छात्र जॉर्जिया ऑल्ड्रिनी ने 2014 में स्नातकोत्तर शिक्षा पाते हुए अपने शिक्षक की मदद से तिनका तिनका तिहाड़ का इतालवी भाषा में अनुवाद किया. इसके लिए उन्होंने भारत की यात्रा की और शोधार्थी से लंबी मुलाकात भी की. अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने भारत और इटली में जेलों की स्थितियों पर अपने विश्लेषणात्मक अध्ययन को अंतिम रूप देने के लिए उन शब्दों और अभिव्यक्तियों की तुलनात्मक पड़ताल की जो इटली और भारत के तिहाड़ परिसर में बंद कैदियों ने लिखे थे. 2018 में मुझे भेजे एक ईमेल में जॉर्जिया ने लिखा, “इस अध्ययन के परिणाम आश्चर्यजनक थे. यह अभी तक का मेरा किया सबसे दिलचस्प और भावनात्मक कार्य है ”. … मैंने इतालवी और भारतीय जेलों के कानून और स्थितियों का वर्णन करना शुरु किया और दोनों प्रणालियों के नकारात्मक पक्षों को भी टटोला. अंत में जेलों के मानवीय पक्ष को समझते हुए मैंने महसूस किया कि दोनों देशों के बंदियों की भावनाएं एक जैसी हैं. मुझे आपकी पुस्तक मिली और मैंने इसका अनुवाद करने का फैसला किया ताकि उन सभी भावनाओं और शब्दों का पता लगाया सके, जो इतालवी कैदियों द्वारा लिखी गई कविताओं की इतालवी पुस्तक के समान थे ”.

उपयोगिता और प्रभाव: 

तिनका तिनका तिहाड़ की वजह से दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेल की महिला बंदिनियों की लेखनी समाज के सामने आ सकी. इसका विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ जिसकी वजह से यह कई भौगौलिक बाधाओं को पार कर सकी. देश-विदेश में बौद्धिक स्तर पर इस पर विचार मंथन हुआ. इस किताब ने सरकार, जेल अधिकारियों, जेल स्टाफ और न्याय-व्यवस्था को बंदियों की जरूरतों औऱ व्यथाओं के प्रति अतिरिक्त सजग और सतर्क बनाया. सामाजिक स्तर पर जेल को लेकर सकारात्मक अवधारणा को बनाने में मदद मिली. सबसे बड़ी बात यह कि इसने बंदिनियों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने में महती भूमिका निभाई. जो चार बंदिनियां इसका हिस्सा बनीं, उन पर इस सृजन का सीधा असर पड़ा . साथ ही उनकी उपलब्धियों की अनवरत चर्चाओं ने बाकी बंदिनियों को भी सामने आने, कहने और साहित्यिक सृजन के लिए प्रेरित किया. ये महिलाएं एक-दूसरे से प्रेरणा और उत्साह पाने लगीं और अपनी जिंदगी को नए सिरे से संवार पाने में सफल हुईं.  2015 में इस किताब को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने प्रिजन स्टैटिसटिक्स इंडिया में भी शामिल किया.

तिहाड़ जेल में शूट किया गया थीम सांग जेसि लोकसभा स्पीकर ने 2015 में रिलीज किया. इसे मैंने लिखा था. बंदियों ने गाया. उन्होंने अपने कपड़े खुद तैयार किए.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि ……. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]        

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *