बिहार बन रहा साइबर क्राइम का हब ?
साइबर ठगीः बिहार में जनता को ही नहीं, व्यवस्था को भी है विकास की जरूरत
अगर कहीं आप ये सोच रहे हैं कि साइबर ठगी, कम पढ़े लिखे, नासमझ लोगों के साथ होती होगी, तो आप एक बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं. बिहार के एक डॉक्टर से साइबर ठगों ने सीबीआई अधिकारी बनकर चार करोड़ कुछ ही दिन पहले ठगे हैं. इससे पहले चीफ सेक्रेटरी रहे आईएएस अधिकारी आमिर सुभानी के अकाउंट से पैसे उड़ा लिए गए थे जो पुलिस की त्वरित कार्रवाई से वापस मिल पाए. एक दूसरे आईएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत के नाम से फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट बनाकर ठगी के प्रयासों के लिए भी प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है.
किसी बड़े ब्रांड की फ्रेंचाइजी दिलवाने के नाम पर ठगी की कई शिकायतें बिहार पुलिस के पास हैं. रोज जो लाटरी जीतने से लेकर क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़ाने तक के नाम पर ठगी होती है, उसकी तो कोई गिनती ही नही.
बिहार बन रहा साइबर क्राइम का हब
सिर्फ बिहार में देखेंगे तो 2020 से लेकर मार्च 2024 तक ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी यानी साइबर ठगी की 70 हजार 166 शिकायतें दर्ज की गई हैं. जी हाँ, कोई दस-बीस या पांच सौ-हजार नहीं बहुत बड़ी संख्या ही. रकम की बात करें तो इस दौर में करीब 399.18 करोड़ रुपये की ठगी के मामले दर्ज हुए और उसमें से केवल 42.12 करोड़ की राशि ही पुलिस बैंकों में रुकवा पाई है.
यानी ठगी की केवल 10.55 प्रतिशत के लगभग राशि साइबर अपराधियों के पास जाने से पहले पुलिस खातों में रोक पायी. समय से कार्रवाई न होने के कारण बाकी की करीब नब्बे प्रतिशत राशि ठग ले उड़ने में कामयाब हो गए. बिहार में पुलिस की जो आर्थिक अपराध इकाई (इकॉनोमिक ओफ्फेंस यूनिट – ईओयू) है, उसके अन्दर के विभाग में साइबर क्राइम के अपराध आते हैं.
ईओयू की तिमाही रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में जो कार्रवाइयाँ हुईं, उनके मामले में नालंदा जिला सबसे आगे हैं. कार्रवाइयों के मामले में पटना दूसरे, सहरसा तीसरे, औरंगाबाद चौथे और गोपालगंज पांचवें स्थान पर है. ईओयू ने साइबर अपराध के विरुद्ध कार्रवाई की गति बढ़ाने को लेकर इस साल जनवरी से मार्च तक नेशनल साइबर क्राइम रिकार्डिंग पोर्टल (एनसीआरपी) पर दर्ज शिकायतों की समीक्षा की. उसी समीक्षा के आधार पर जिलों की रैंकिंग तय की गई है.
नुकसान अधिक, फायदा है कम
साइबर ठगों से बचाकर होल्ड कराई गई राशि को वापस पीड़ितों को लौटाने के मामले में औरंगाबाद सबसे आगे है. नालंदा पैसे वापस करवाने के मामले में दूसरे, लखीसराय तीसरे, जहानाबाद चौथे और अररिया पांचवें स्थान पर है. प्राथमिकी दर्ज करने के मानक पर सारण पहले स्थान पर है. जो साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी के मामले हैं, उनमें नालंदा सबसे आगे रहा. बिहार में कोविड-19 के लॉकडाउन के काल में साइबर अपराधों में बहुत तेज वृद्धि देखी गयी थी. इनकी वजह से पिछले साल जून में सभी 40 पुलिस जिलों और चार रेल जिलों में 44 साइबर पुलिस थानों की शुरुआत की गई थी (प्रशासनिक तौर पर बिहार में 38 ही जिले होते हैं). इसके अलाव बिहार में पीड़ित महिलाओं और बच्चों को डाक एवं ई-मेल से भी प्राथमिकी दर्ज कराने की सुविधा दी गई है.
साइबर ठगी का नाम सुनते ही पंचतंत्र के मित्रलाभ वाले हिस्से की एक प्रसिद्ध सी कहानी भी याद आती है. इस कहानी में एक बाघ जब बूढ़ा हो जाता है और दौड़-भागकर शिकार करने में असमर्थ हो जाता है तो वो एक युक्ति निकालता है. अपने ही किसी शिकार के पास कभी उसे सोने का एक कंगन मिल गया था. बाघ नहा-धोकर दांतों में घास दबाये जंगल से गुजरने वाले एक मार्ग के किनारे बैठ गया. जो भी पथिक उधर से गुजरता, बाघ उससे कहता जीवन भर पाप करने के कारण बुढ़ापे में वो प्रायश्चित करने बैठा है, इसलिए स्वर्ण दान कर रहा है. आप पास के सरोवर से नहा-धोकर आइये, मेरे सामने ये आसन है, इसपर विराजकर दान ग्रहण कीजिए.
कोई न कोई पथिक उसके झांसे में आ ही जाता. जैसे ही वो नहाने के लिए सरोवर में उतरता तो पता चलता सरोवर तो अन्दर कीचड़ से दलदल जैसा हो गया है. यात्री फंस जाता और बाघ झपट कर उसके अपना शिकार बना लेता! अक्सर साइबर क्राइम से वाकिफ न होने के कारण लोग मूर्ख पथिक की तरह बाघ के झांसे में ही आ जाते हैं. बैंक सौ बार अपने प्रचारों में दिखा रहे होते हैं कि वो फोन पर ओटीपी नहीं मांगते. फोन पर नहीं बैंक आकर लिखित आवेदन पर खाते से सम्बंधित बदलाव होते हैं. इसके बाद भी जब कोई कहता है कि वो क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़ा देगा, तो सौ में से एक-दो उसके झांसे में आ ही जाते हैं.
कई मोर्चों पर करनी होगी पहल
तेजी से बढ़ते साइबर क्राइम के मद्देनजर केवल एक मोर्चे यानी पुलिसिंग पर बल देने से समस्या सुलझेगी भी नहीं. आज की तिथि में केवल अट्ठारह वर्ष के होने के बाद ही नहीं, उससे पहले भी बैंक खाते खुलवाए जा सकते हैं. इसके अलावा स्मार्ट फोन के माध्यम से भीम, गूगल पे जैसे एप्प इस्तेमाल करके ऑनलाइन पेमेंट का चलन भी बहुत बढ़ गया है. आज लोग सब्जी से लेकर सिगरेट तक खरीदने में छोटी-बड़ी दुकानों पर ऑनलाइन पेमेंट ही कर रहे हैं. बच्चों से लेकर बड़ों तक को ऑनलाइन लेन-देन में बरती जाने योग्य सावधानियों के विषय में बहुत कम पता होता है. स्कूल-कॉलेज में आर्थिक प्रबंधन से सम्बंधित जानकारी देने की आवश्यकता है.
इसके साथ ही ग्रामीण स्तर पर पंचायतों में बैठकें करके लोगों को साइबर क्राइम, सुरक्षा और सावधानी के मुद्दों पर जागरूक किये जाने की जरूरत है. इसके अलावा साइबर अपराध होने की स्थिति में क्या करें, फौरन 1930 पर फोन करके शिकायत कैसे करें, लिखित शिकायत कैसे दर्ज करवाई जाती है, इन सभी मुद्दों पर लोगों को जागरूक और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है. इसके अलावा ध्यान देने लायक बात ये भी ही कि बिहार में ब्रिटिश हुकूमत के दौर से ही बाहर काम करने वाले प्रवासी डाक के जरिये पैसे भेजते रहे हैं. आज पलायन की जो स्थिति है उसके कारण बड़े पैमाने पर बिहार में खर्च होने वाला पैसा कोई बाहर ही कमा कर घर भेजता है. साइबर ठगी का असर ऐसे में अधिक होगा. संभवतः बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों से शिकायतें दर्ज भी नहीं हो पा रही होंगी. उनका ध्यान भी रखना होगा.
बाकी जो 44 थाने अभी चल रहे हैं, वो बिहार का आकार और आबादी को देखते हुए कम ही हैं. केवल जनता को ही नहीं, बिहार में व्यवस्था को भी विकास की आवश्यकता तो है!
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]