दवाएं हो रहीं बेअसर, 2050 तक जा सकती करोड़ों जानें,

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पर UN की मीटिंग ….
दवाएं हो रहीं बेअसर, 2050 तक जा सकती करोड़ों जानें, डॉक्टर की 10 सलाह

यही हो रहा है इस वक्त दुनिया में, जिसे लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूएन चिंतित हैं। कल 26 सितंबर को एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के खतरे का हल ढूंढने के लिए यूनाइटेड नेशंस की एक हाई लेवल मीटिंग हुई। इसमें दुनिया के सभी देशों के प्रतिनिधि, सिविल सोसायटी और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थाएं शामिल थीं।

हाल ही में विश्व प्रसिद्ध जर्नल ‘द लेंसेट’ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, एंटीबायोटिक और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण अगले 25 सालों में 3 करोड़ 90 लाख लोगों की मौत हो सकती है।

यह सवाल पहली बार नहीं उठा है, लेकिन जरूरी बात ये है कि वक्त के साथ संकट बड़ा होता जा रहा है। इस बारे में हम पहले भी अपने दो आर्टिकल्स में विस्तार से बता चुके हैं।

….ये रेजिस्टेंस क्यों पैदा हो रहा है। दवाएं क्यों बेअसर हो रही हैं। साथ ही जानेंगे कि-

  • इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है?
  • लोग क्या गलतियां कर रहे हैं?
  • डॉक्टर्स और हेल्थकेयर सिस्टम की कितनी जवाबदेही है?
  • लोगों को क्या सावधानियां बरतने की जरूरत है?

सवाल: ‘द लेंसेट’ में पब्लिश ‘एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस स्टडी’ को लेकर पूरी दुनिया की हेल्थ कम्युनिटी इतनी चिंतित क्यों है?

जवाब: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कुछ समय पहले सुपरबग्स को लेकर चिंता जताई थी। यह भी कहा था कि हमें एंटीबायोटिक्स के अतिरिक्त इस्तेमाल से बचना होगा, वरना एक ऐसा समय आएगा, जब दवाएं पूरी तरह फेल हो जाएंगी और बीमारियों पर इनका कोई असर नहीं होगा।

अब ‘लेंसेट’ में पब्लिश स्टडी कह रही है कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण अगले 25 सालों में 3 करोड़ 90 लाख लोगों की मौत हो सकती है। इसका मतलब है कि आने वाले समय में बहुत सी दवाएं बेअसर हो जाएंगी। इसलिए यह बहुत बड़ा संकट हो सकता है।  

सवाल: आखिर ये स्थिति पैदा क्यों हुई कि जो दवाएं बीमारियों को ठीक करने के लिए बनाई गईं, वही बेअसर होने लगीं।

जवाब: इस दुनिया का नियम है कि वही जीव जीवित रहता है, जो खुद को नए परिवेश के हिसाब से ढालकर और मजबूत बनाता चलता है। ऐसा ही मच्छरों ने किया। पहले मॉर्टीन के धुएं से लड़ना सीखा। फिर जहरीली अगरबत्ती और फिर फास्ट कार्ड से। वे अपनी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते चले गए और अब बहुत ताकतवर हो गए हैं।

इसी तरह कई पैथोजेन्स ने एंटीबायोटिक्स दवाओं का सामना करना सीख लिया है। अब इन पर दवाओं का कोई असर नहीं पड़ता। इसलिए पहले जिन बीमारियों में ये दवाएं तुरंत असर दिखाती थीं, अब पैथोजेन्स के एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंट हो जाने से बेअसर साबित हो रही हैं। ग्राफिक में देखिए, ऐसा क्यों हुआ।

सवाल: एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस इतना बड़ा खतरा क्यों है?

जवाब: आने वाले समय में ऐसे सुपरबग्स यानी ऐसे पैथोजेन्स की संख्या बढ़ती जाएगी, जिन पर सभी दवाएं बेअसर होंगी। ऐसे में इंसानों के लिए इनका सामना करना मुश्किल हो जाएगा। कई सामान्य बीमारियां भी मौत का कारण बनने लगेंगी। यह भी हो सकता है कि वैज्ञानिक भविष्य में जितनी खतरनाक स्थिति की कल्पना कर रहे हैं, यह उससे भी अधिक दुष्कर हो जाए।

सवाल: इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है। लोग या फिर डॉक्टर्स?

जवाब: डॉ. विजय सक्सेना कहते हैं कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण बन रही इस स्थिति में दोनों की साझी जिम्मेदारी है। दुनिया भर की सरकारें और हेल्थकेयर सिस्टम भी जिम्मेदार हैं।

दिक्कत ये है कि आज गली-गली में झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है, जिनके पास कोई प्रॉपर एजूकेशन और मेडिकल डिग्री नहीं है। गरीबी इतनी ज्यादा है कि ऐसे डॉक्टरों के पास जाने वाले लोगों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। यही कारण है कि बहुत ज्यादा मात्रा में और बहुत ज्यादा पोटेंसी वाली एंटीबायोटिक और एंटीमाइक्रोबियल दवाएं दी जा रही हैं।

हेल्थकेयर सिस्टम इतना महंगा है कि लोग डॉक्टर के लंबे खर्च से बचने के लिए भी सीधे मेडिकल स्टोर से दवाएं खरीदकर खा लेते हैं। इन दोनों ही परिस्थितियों के लिए सरकार और यह सिस्टम जिम्मेदार है।

सवाल: आम लोगों की तरफ से क्या गलतियां और लापरवाहियां हुईं?

जवाब: ज्यादातर बीमार होने पर हॉस्पिटल न जाने को लापरवाही की बजाय पैसे की बचत की तरह देखते हैं। खुद से गूगल करके या मेडिकल स्टोर जाकर दवाएं खरीदकर खा लेते हैं। इन्हीं छोटी-छोटी लापरवाहियों का नतीजा आज हमारे सामने है।

सवाल: दवाइयां बनाने वाली फार्मा कंपनियों की इसमें क्या भूमिका है?

जवाब: डॉ. विजय सक्सेना कहते हैं कि हमारे देश में सबसे बड़ा संकट इस वक्त ये है कि दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को लेकर कोई प्रॉपर स्ट्रक्चर और सिस्टम नहीं है। थोक में दवाएं बन रही हैं और झोलाछाप डॉक्टर उसे प्रिस्क्राइब भी कर रहे हैं। यहां भी कठोर नियम और सरकारी विजिलेंस होना बहुत जरूरी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया के डॉक्टर्स से प्रिस्क्रिप्शन में कम दवाएं लिखने और बहुत जरूरी होने पर ही एंटीबायोटिक दवाएं प्रिस्क्राइब करने की एडवायजरी जारी की थी। इसी साल जून में ICMR ने भी कहा कि भारत में डॉक्टर्स हर दूसरे पेशेंट को गलत प्रिस्क्रिप्शन लिख रहे हैं और जरूरत से ज्यादा दवाएं दे रहे हैं।

सवाल: मेडिकल कम्युनिटी तो अपनी तरफ से इस संकट से निपटने के लिए काम कर रही है। आम लोगों को क्या सावधानियां बरतने की जरूरत है।

जवाब: थोड़े से सर्दी-जुकाम में तुरंत मेडिकल स्टोर जाकर दवा लेने की बजाय हमें आराम करना चाहिए। सीजनल सर्दी-जुकाम 2-3 दिन में खुद ही ठीक हो जाता है। एंटीबायोटिक दवाएं डॉक्टर की सलाह के बिना कभी न खाएं।

दवाओं के भरोसे रहने की बजाय अच्छी सेहत और मजबूत इम्यूनिटी पर ध्यान दें। अच्छी और बैलेंस्ड डाइट और हेल्दी लाइफ स्टाइल इसके बेहतर विकल्प बन सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *