भारत में रोजगार क्यों नहीं बढ़ रहे?

 भारत की अर्थव्यवस्था दौड़ रही है, लेकिन रोजगार क्यों नहीं बढ़ रहे?
भारत में पढ़े-लिखे लोगों खासकर ग्रेजुएटों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उनके लिए सही नौकरियां कम होती जा रही हैं. तेजी से अर्थव्यवस्था बढ़ने के बावजूद रोजगार के अवसरों में कमी का सामना करना पड़ रहा है.

बेरोजगारी दर का स्थिर रहना एक चिंता का विषय है क्योंकि देश की आबादी लगातार बढ़ रही है युवाओं के लिए नए रोजगार के अवसर पैदा होते रहना चाहिए. वहीं ग्रामीण इलाकों में लोग अभी भी खेती पर निर्भर हैं और रोजगार के लिए इसी क्षेत्र में काम कर रहे हैं.

अच्छी बात यह है कि महिलाओं की कार्य शक्ति में बढ़ोतरी देखी गई है. पिछले कुछ सालों में महिलाओं की नौकरियों में हिस्सेदारी घटने पर आलोचना की जा रही थी, लेकिन अब इसमें सुधार के संकेत मिल रहे हैं.

7 साल में बेरोजगारी दर में गिरावट
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 से लेकर 2023-24 तक ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर में गिरावट देखी गई है. 2017-18 में यह दर 5.3% थी, जो अब घटकर 2.5% हो गई है. वहीं, शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 7.7% से कम होकर 5.1% पर आ गई है. पिछले साल की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर बढ़ी है, जो 2022-23 में 2.4% से बढ़कर 2023-24 में 2.5% हो गई. वहीं, शहरी बेरोजगारी दर में सुधार देखने को मिला है, जो 5.4% से घटकर 5.1% हो गई है.

पुरुषों की बेरोजगारी दर 6.1% से घटकर 3.2% हो गई. इसी तरह, महिलाओं की बेरोजगारी दर 5.6% से घटकर 3.2% पर आ गई है. 2023-24 में बेरोजगारी की दर 3.2% पर स्थिर रही, जो 2022-23 के बराबर है. यह पहली बार है जब PLFS के शुरुआत (2017-18) से अब तक बेरोजगारी की दर में साल दर साल कोई कमी नहीं आई है.

भारत की अर्थव्यवस्था दौड़ रही है, लेकिन रोजगार क्यों नहीं बढ़ रहे?

महिलाओं की बेरोजगारी दर बढ़ी
महिलाओं के लिए बेरोजगारी दर बढ़ी है, जबकि पुरुषों के लिए थोड़ी कम हुई है. पुरुषों के लिए बेरोजगारी दर 3.3% से घटकर 3.2% हो गई है, जबकि महिलाओं के लिए यह 2.9% से बढ़कर 3.2% हो गई है. 

स्वतंत्र व्यवसाय में लगे लोगों का हिस्सा बढ़कर 58.4% हो गया है, जो पिछले साल 57.3% था. इसमें स्व-रोजगार, अनपेड घरेलू काम और छोटे व्यवसाय शामिल हैं. स्व-रोजगार में न केवल उद्यमिता शामिल है, बल्कि इसमें अस्थायी और अनौपचारिक काम भी शामिल होता है. मतलब यह है कि बहुत से लोग अपनी आजीविका के लिए अस्थायी और अनौपचारिक तरीके अपना रहे हैं. 

सबसे ज्यादा बेरोजगारी कहां
भारत में बेरोजगारी दर राज्यों के बीच काफी असमान है. सर्वेक्षण के अनुसार, 12.3% बेरोजगारी दर के साथ लक्षद्वीप सबसे ऊपर है. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी बेरोजगारी की दर 12.3% है. इन राज्यों में महिलाओं में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा क्रमश: 34.1% और 21.4% है. 

बेरोजगारी के मामले में गोवा तीसरे नंबर पर है. यहां कुल बेरोजगारी दर 8.9% है, जिसमें पुरुष बेरोजगारी 5.5% और महिला बेरोजगारी 17.3% है. राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से टूरिस्ट पर निर्भर है. केरल में भी लगभग इतनी ही 8.8% बेरोजगारी दर है.  

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कर्मचारी जनसंख्या अनुपात में बढ़ता रुझान
2023-2024 में कर्मचारी जनसंख्या अनुपात (WPR) 58.2% था. इसमें पुरुषों के लिए यह 76.3% और महिलाओं के लिए 40.3% रहा. WPR को कुल जनसंख्या में नौकरी करने वाले लोगों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है. इस रिपोर्ट में जॉब क्वालिटी में भी हल्का सुधार देखने को मिला है. नियमित वेतन पर काम करने वालों का हिस्सा 0.8 फीसदी अंक बढ़कर 21.7% हो गया है. 

पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी में कितना अंतर
लेबर फोर्स पार्टिसिपेट रेट में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सुधार देखा गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में 2017-18 के दौरान श्रम बल भागीदारी दर 50.7% थी, जो 2023-24 में बढ़कर 63.7% हो गई. इसका मतलब है कि अधिक लोग काम करने के लिए तैयार हो रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं. वहीं शहरी क्षेत्रों में भी LFPR में सुधार देखा गया है. 2017-18 में यह दर 47.6% थी, जो 2023-24 में बढ़कर 52.0% हो गई है.

भारत की अर्थव्यवस्था दौड़ रही है, लेकिन रोजगार क्यों नहीं बढ़ रहे?

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पुरुषों की श्रम बल भागीदारी दर 75.8% से बढ़कर 78.8% हो गई है. वहीं, महिलाओं की भागीदारी दर में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जो 23.3% से बढ़कर 41.7% हो गई है. 

धार्मिक आधार पर भी सुधार देखा गया है. मुस्लिम महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर 2021-22 में 15% थी, जो 2023-24 में बढ़कर 21.4% हो गई. वहीं, हिंदू महिलाओं की भागीदारी 26.1% से बढ़कर 33.3% हो गई है. इसी तरह सिख महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर 19.8% से बढ़कर 26.7% हो गई है और ईसाई महिलाओं की भागीदारी दर 34.2% से बढ़कर 38.3% हो गई है.

भारत को अच्छी नौकरियां पैदा करने में मुश्किल क्यों?
आजकल पढ़े-लिखे लोग, खासकर जो ग्रेजुएट डिग्री लिए हुए हैं, नौकरी की तलाश में हैं. लेकिन चिंता की बात ये है कि ऐसे लोगों के लिए अच्छी नौकरी के अवसर कम होते जा रहे हैं. सरकार भले ही कौशल विकास पर ध्यान दे रही है लेकिन कुशल नौकरियों में काम करने वाले लोगों का हिस्सा 2018-19 में 18% से घटकर 2022-23 में 14% हो गया है.

इस रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अच्छे और सुरक्षित रोजगार पैदा करने में नाकामयाब साबित हो रही है. औपचारिक और सुरक्षित रोजगार पैदा करने में काफी कठिनाई आ रही है. इसका नतीजा यह हो रहा है कि ज्यादातर लोग स्व-रोजगार की ओर बढ़ रहे हैं. मजबूरी में अपने लिए काम ढूंढ रहे हैं और इस कारण वे अनौपचारिक रोजगार या अनपेड पारिवारिक भूमिकाओं में जुट रहे हैं. ऐसे में उन्हें स्थिरता और सुरक्षा नहीं मिल पा रही है.

भारत में एग्रीकल्चर और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार के बढ़ने के साथ-साथ अनौपचारिकता भी बढ़ रही है. इन क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को श्रम कानूनों का संरक्षण नहीं मिलता है और उन्हें सामाजिक सुरक्षा या नौकरी की सुरक्षा भी नहीं मिलती है. यानी कि ये लोग बहुत ही असुरक्षित स्थिति में काम कर रहे हैं और अग उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाए तो उनके पास कोई सहारा नहीं होता.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी तकनीकों के आने से यहां तक कि कुशल श्रमिकों के लिए भी नौकरी के अवसर कम हो रहे हैं. अब चिंता बढ़ रही है कि ऑटोमेशन और डिजिटलाइज़ेशन से श्रम की मांग कम हो जाएगी. उदाहरण के तौर पर, आईटी कंपनियों में हुई छंटनियां यह दर्शाती हैं कि कैसे स्किल्ड वर्कर्स के लिए भी नौकरी के अवसर घट रहे हैं. इन सभी कारणों से भारत में अच्छी नौकरी पैदा करने की स्थिति और भी मुश्किल हो गई है. अगर इस समस्या का समाधान करना है तो इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना होगा.

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