करोड़ों के आवासीय भूखंड हथियाने के लिए यमुना प्राधिकरण में फर्जीवाड़ा ?

यमुना प्राधिकरण में फर्जीवाड़े का बड़ा खुलासा हुआ है। अधिकारियों ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कामर्शियल क्योस्क के आवंटियों को क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी कर दिया। यह पूरा खेल प्राधिकरण की आवासीय भूखंड योजना के आरक्षित कोटे में सेंध लगाकर करोड़ों की कीमत के भूखंडों को हथियाने के लिए रचा गया था। मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने जांच के लिए समिति गठित कर दी है।

करोड़ों के आवासीय भूखंड हथियाने के लिए यमुना प्राधिकरण में फर्जीवाड़ा।
  1. एसीईओ की अध्यक्षता में जांच समिति गठित
  2. अधिकारियों और आवंटियों की मिलीभगत
  3. समिति एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी

ग्रेटर नोएडा। यमुना प्राधिकरण में फर्जी तरीके से क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी किए गए है। अधिकारियों ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कॉमर्शियल क्योस्क के आवंटियाें को क्रियाशील का प्रमाण पत्र जारी कर दिया। पूरा खेल प्राधिकरण की आवासीय भूखंड योजना के आरक्षित कोटे में सेंध लगाकर करोड़ों की कीमत के भूखंडों को हथियाने के लिए रचा गया।

मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने जांच के लिए अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी की अध्यक्षता में समिति गठित कर दी है। समिति एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी। जिन आवंटियों को क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी हुए हैं। आवासीय भूखंड योजना में उनकी वरियता समाप्त कर सामान्य श्रेणी में डाल दिया गया है।

आवासीय श्रेणी में पांच प्रतिशत का आरक्षण 

यमुना प्राधिकरण में कॉमर्शियल, संस्थागत, औद्योगिक श्रेणी के आवंटियों को आवासीय श्रेणी में पांच प्रतिशत का आरक्षण मिलता है। इसका फायदा उठाने के लिए कॉमर्शियल श्रेणी के आवंटियों ने प्राधिकरण के अधिकारियों से सांठगांठ कर खेल किया।

दस आवंटियों को क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी

वाणिज्य विभाग ने क्योस्क योजना के दस आवंटियों को क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी कर दिए। इसे प्रबंधक स्तर से जारी किया गया, इसके लिए बनी फाइल पर वाणिज्यिक विभाग के व्यक्ति सहायक, प्रबंधक सिद्धार्थ चौधरी के अलावा सलाहकार, उप-महाप्रबंधक वित्त अशोक कुमार एवं विशेष कार्याधिकारी राजेश कुमार ने भी हस्ताक्षर किए हैं।

प्रमाण पत्र को बैकडेट में जारी किया गया

प्राधिकरण के नियमानुसार क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी व मुख्य कार्यपालक अधिकारी को ही है। इसके बावजूद प्रबंधक सतर से क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी किए गए। शुरुआती जांच में सामने आया कि इन प्रमाण पत्र को बैकडेट में जारी किया गया, ताकि आवंटियों को आवासीय भूखंड योजना में आरक्षित कोटे का लाभ दिया जा सके।

आवासीय योजना में आरक्षित कोटे के लिए भूखंडों की संख्या के सापेक्ष ही प्रमाण पत्र जारी हुए ताकि सभी को भूखंड आवंटित हो सके। मुख्य कार्यापालक अधिकारी को शिकायत मिलने के बाद हुई प्राथमिक जांच में विभागीय अधिकारियों का फर्जीवाड़ा खुलकर सामने आ गया। 

निरीक्षण रिपोर्ट के आधार पर होता है प्रमाण पत्र जारी

प्रमाण पत्र जारी करने से पहले संबंधित विभाग के सूचना पर नियोजन विभाग की टीम मौके पर जाकर कराए गए निर्माण की जांच करती है। नियोजन विभाग की रिपोर्ट के आधार पर प्रमाण पत्र जारी होता है, लेकिन इस मामले में कोई निरीक्षण नहीं किया। जिन दस क्योस्क के लिए क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी किए गए, उसमें से केवल एक का ही निर्माण हुआ है, शेष क्योस्क की जगह अभी खाली जमीन पड़ी है।

मई से अगस्त के बीच की तारीख के जारी किए गए प्रमाण पत्र

क्योस्क योजना के आवंटियों को मई से लेकर अगस्त के बीच क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। प्राधिकरण की आवासीय भूखंड योजना पांच जुलाई को निकाली गई थी। इस योजना में आवेदन के लिए 23 अगस्त अंतिम तिथि थी। अगस्त में जारी क्रियाशील प्रमाण पत्र 16 तारीख को जारी किया गया था। इसलिए आवंटी ने आवासीय भूखंड योजना में आरक्षण का लाभ लेने के लिए आवेदन कर दिया।

ऐसे बन जाते हैं दो हजार वर्गमीटर के भूखंड के मालिक

प्राधिकरण की 361 आवासीय योजना में 120 वर्गमीटर से लेकर दो हजार वर्गमीटर तक के आवासीय भूखंड हैं। इसमें 2.28 लाख से अधिक आवेदन मिले हैं। लेकिन कामर्शियल श्रेणी के आवंटियों के आरक्षित कोटे से सात से नौ वर्गमीटर का क्योस्क खरीदकर आवंटी 120 वर्गमीटर से लेकर 2000 वर्गमीटर के भूखंड का मालिक बनने के प्रयास में थे। कोर्ट में जितने भूखंड हैं, उतने ही क्रियाशील प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। इससे क्योस्क के आवंटियों को आवासीय भूखंड मिलना लगभग तय था।

एसीईओ श्रुति की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की गई है। समिति एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी, जो भी अधिकारी दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी। रिपोर्ट के आधार पर क्रियाशील प्रमाण पत्रों को निरस्त किया जाएगा। क्योस्क का आवंटन भी रद किया जा सकता है। – डॉ. अरुणवीर सिंह, सीईओ यमुना प्राधिकरण

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