रेलवे स्‍टेशनों के नाम का रहस्‍य !

 रेलवे स्‍टेशनों के नाम का रहस्‍य

स्‍टेशनों का नाम तीन भाषाओं में लिखा जाता है. पहला उस राज्‍य में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा, फिर हिंदी (देवनागरी)  इसके बाद अंग्रेजी. जिस राज्‍य में हिंदी प्रमुख भाषा है, वहां तीसरी भाषा के रूप में उर्दू में यह नाम लिखा जाता है. बंगाल में पहले बांग्‍ला, फिर हिंदी और अंग्रेजी. इसी तरह‍ असम में पहले असमिया फिर हिंदी, अंग्रेजी. यही पैटर्न पूरे देश में अमल में लाया जाता है. 

स्‍टेशन का नाम उस क्षेत्र के प्रसिद्ध शहर या स्‍थल का संकेत होता है. लेकिन एक रोचक तथ्‍य चेन्‍नई सेंट्रल रेलवे स्‍टेशन के नाम को लेकर है. पहले इसका नाम मद्रास सेंट्रल था. बाद में इसका नाम बदला गया. अब इसका पूरा नाम -पुरट्चि तलैवर डा. एमजी रामचंद्रन सेंट्रल रेलवे स्‍टेशन है. यह भारत में सबसे लंबे नाम वाला रेलवे स्‍टेशन है.

अंग्रेजी में इसमें 57 अक्षर आते हैं. रेलवे कोच और टिकट पर जगह की कमी होने के कारण इतना बड़ा नाम लिखना सुविधाजनक नहीं था तो रेलवे ने शुरू के दो शब्‍द- पुरट्चि तलैवर लिखना शुरू कर दिया. इससे जो लोग इस नाम से परिचित नहीं थे, उन्‍हें असुविधा होने लगी. खासतौर से गैर-तमिल भाषियों को. इस नामकरण का विरोध हुआ और यह सुझाव दिया गया कि इसके नाम में चेन्‍नई जरूर जोड़ा जाना चाहिए जिससे यात्रियों को कोई भ्रम न हो. अप्रैल 2019 में फैसला लिया गया अब एमजीआर चेन्‍नई सेंट्रल नाम कोच और टिकट पर होगा. चेन्‍नई सेंट्रल स्‍टेशन पर दोनों तरह के नाम लिखे हैं- चेन्‍नई सेंट्रल और पूरा नाम भी.  

तीन भाषाओं में नाम लिखने के नियम को नजरअंदाज करते हुए देहरादून रेलवे स्‍टेशन का नाम एक बार हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू की जगह संस्‍कृत में लिखा गया. भाजपा नेता संविद पात्रा ने इसे ट्वीट किया तो हो-हल्‍ला मचा. इस पर रेलवे अधिकारियों का बयान आया कि स्‍टेशन का जीर्णोद्धार निजी कंपनी कर रही थी और उसी ने उर्दू की जगह संस्‍कृत में नाम लिख दिया. बाद में इसे बदल कर संस्‍कृत की जगह उर्दू में दोबारा लिखा गया. 

लेकिन इस नियम का एक अपवाद है, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं है. वाराणसी के पास सारनाथ रेलवे स्‍टेशन का नाम हिंदी और अंग्रेजी के अतिरिक्‍त एक नई लिपि में लिखा गया है. इस लिपि को कम लोग ही पढ़ पाते होंगे. क्‍या रहस्‍य है, इसलिपि का. आइए बतााते हैं. यह लिपि आजकल कहीं प्रयोग नहीं होती. यह आज से लगभग ढाई हजार साल पहले जब देश पर सम्राट अशोक का शासन था, तब प्रयोग में आती थी. इसे अशोक ने धंमलिपि और इतिहासकार ब्राह्मी लिपि कहते हैं. हमारी आज की देवनागरी की दादी यही है. इसी से वह पैदा हुई है. अशोक ने अपने शासन में जो शिलालेख लिखवाए,इसी लिपि में लिखाये. पहले किताबें भी इसी लिपि में लिखी जाती हैं. 

चूंकि सारनाथ बौद्ध धर्म का उद्गमस्‍थल है, महात्‍मा बुद्ध ने अपने शिष्‍यों को यहीं पहली बार धम्‍म का उपदेश दिया था तो उनके ,सम्राट अशोक और देवनागरी की मूल लिपि के सम्‍मान में स्‍टेशन का नाम तीन भाषाओं में लिखा गया है-हिंदी, ब्राह्मी और अंग्रेजी. यहां उर्दू में नाम नहीं लिखा गया है. ब्राह्मी ऐसी लिपि है जिसे अब बहुत कम लोग जानते हैं. अशोक के शिलालेख इसी में लिखे गए हैं जिनकी भाषा प्राकृत है. ब्राह्मी में संस्‍कृत के भी ग्रंथ लिखे गए हैं. यही नहीं सारनाथ रेलवे स्‍टेशन के परिसर का प्रवेशद्वार भी सांची के प्रसिद्ध स्‍तूप के तोरणद्वार की प्रतिकृति के रूप में बनाया गया है. यही स्‍टेशन के दोनों छोर पर भी बनाये गए हैं. यह बौद्ध धर्म के प्रति आदर का प्रतीक है. 

कुछ स्‍टेशनों के नाम चार भाषाओं में लिखे गए हैं. जैसे नेल्‍लूर का नाम तेलुगू, हिंदी, अंग्रेजी के साथ उर्दू में भी लिखा गया है. यह इसलिए कि वहां के लोग उर्दू भी समझते हैं. लेकिन केरल में ऐसा नहीं है. वहां सिर्फ मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी में ही लिखे गए हैं. जहां दो प्रमुख क्षेत्रीय भाषाएं हैं,वहां उन दोनों में स्‍टेशनो के नाम लिखे गए हैं जैसे मुतलमडा.यह केरल का सबसे हराभरा रेलवे स्‍टेशन है. कुछ स्‍टेशनों के नाम सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी में ही लिखे गए हैं. कुल मिलाकर इसका मतलब यही है कि कोई भी यात्री हो,उसे स्‍टेशन का नाम समझने में दिक्‍कत न हो. 

एक बात और. स्‍टेशनों के इस नाम बोर्ड पर एक सूचना और अंकित होती है. वह है समुद्र तल से ऊंचाई. यह मीटर में अंकित होती है. इसका आशय सिर्फ यह है कि जब ट्रेन अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाय तो लोको चालक इंजन किस क्षमता से चलाए. अधिक ऊंचाई पर जाने के लिए अधिक शक्ति की जरूरत होती ही है. कुछ राज्‍यों में इन नाम पट्टों पर उस क्षेत्र का पिन कोड भी लिखा होता है लेकिन यह सभी के लिए अनिवार्य नहीं है. लेकिन इससे भी उस क्षेत्र की पहचान स्‍पष्‍ट होती है. अब यह सवाल पैदा होता है कि ये नाम पीले बोर्ड पर ही क्‍यों लिखे होते हैं क्‍यों कि वे दूर से साफ दिख जाते हैं. आप तेज चलती ट्रेन से भी पीछे छूटते स्‍टेशन का नाम पढ़ सकते हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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