निगम कमिश्नरों की पावर कम करने की तैयारी ?
निगम कमिश्नरों की पावर कम करने की तैयारी
मेयरों ने मंत्री विजयवर्गीय से कहा था- एक काम के दो-दो टेंडर निकाल रहे अफसर
मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि इन चार में से दो मांगों को पूरा करने के लिए सरकार सैद्धांतिक तौर पर सहमत है। मेयर नगर निगम कमिश्नर के फाइनेंशियल पाव में कटौती क्यों चाहते हैं? आश्रय शुल्क घटाने से क्या असर पड़ेगा? पढ़िए रिपोर्ट…
![19 जुलाई को 16 नगर निगम के मेयर और कमिश्नर्स की बैठक हुई थी।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2024/10/22/whatsapp-image-2024-07-19-at-11926-pm1721395709_1729618371.jpeg)
वित्तीय अधिकार कम क्यों कराना चाहते हैं मेयर
राज्य सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले (अगस्त 2023) महापौर, एमआईसी (महापौर परिषद) नगर निगम आयुक्त वित्तीय अधिकार दोगुने किए थे। इसके तहत पांच लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर निगम में आयुक्त को 5 करोड़, महापौर को 10 करोड़ और एमआईसी को 10 से 20 करोड़ रुपए के कामों की स्वीकृति देने का अधिकार दिया गया।
इसी तरह 5 लाख तक की जनसंख्या वाले नगर निगम आयुक्त को एक करोड़ रुपए तक, महापौर को 5 करोड़ और मेयर इन काउंसिल को 10 करोड़ और निगम को 10 करोड़ से 20 करोड़ से अधिक तक के कामों के अधिकार दिए गए।
जुलाई के महीने में नगर निगम कमिश्नर और मेयर के साथ नगरीय आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बैठक ली थी। इस बैठक में कुछ नगर निगम के मेयर ने कहा कि कमिश्नर्स को जो 5 करोड़ के अधिकार दिए हैं। वे उससे ज्यादा के काम करवा रहे हैं। मसलन 8 करोड़ का काम है तो कमिश्नर ही दो हिस्सों में टेंडर जारी कर रहे हैं। इससे मेयर और एमआईसी के अधिकारों का हनन हो रहा है।
अफसरों के चक्कर नहीं काटना पड़ेंगे
जानकार कहते हैं कि कमिश्नर के वित्तीय अधिकारों में कटौती होने से पब्लिक पर सीधा असर तो नहीं पड़ेगा, लेकिन महापौर के अधिकार बढ़ने से पार्षदों के काम होना आसान हो जाएंगे। उन्हें क्षेत्र के कामों के लिए अफसरों के चक्कर नहीं काटना पड़ेंगे।
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कमर्शियल प्रोजेक्ट पर आश्रय शुल्क 5% से घटाकर 2.5% होगा
मध्यप्रदेश में सरकार किसी भी कमर्शियल प्रोजेक्ट में ईडब्ल्यूएस मकान बनाने के एवज में 5% आश्रय शुल्क लेती है। प्रदेश के बिल्डर्स इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि आश्रय शुल्क हाउसिंग प्रोजेक्ट में लागू करना ठीक है, लेकिन कमर्शियल प्रोजेक्ट में नहीं।
कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) ने यह मुद्दा मंत्री विजयवर्गीय के सामने उठाया था। अब सरकार इसे खत्म करने के बजाय 2.5% करने की तैयारी कर रही है। जानकारों का कहना है कि कमर्शियल प्रोजेक्ट से आश्रय शुल्क घटाने का असर निम्न आय वर्ग के लिए बनाए जाने वाले मकानों की योजना पर जरूर पड़ेगा। सरकार इस राशि का इस्तेमाल ईडब्ल्यूएस स्कीम में करती है।
लीज और फ्री होल्ड के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के साथ हुई बैठक में इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव ने फ्री होल्ड का मसला उठाया था। उन्होंने कहा था कि इंदौर में लीज की प्रॉपर्टी को फ्री होल्ड करने का काम नहीं हो रहा है। इससे जनता परेशान है।
इस पर नगर निगम आयुक्त शिवम वर्मा ने जवाब दिया कि नियमों में बहुत जटिलता है, जिसके कारण यह काम नहीं हो पा रहा है। वर्मा ने यह सुझाव तक दे दिया था कि फ्री होल्ड के अधिकार एमआईसी को दे देना चाहिए। बैठक में मंत्री विजयवर्गीय ने सभी मेयर से लीज प्रकरण और फ्री होल्ड के बारे में जानकारी ली।
जबलपुर के मेयर जगत बहादुर सिंह अन्नू ने बताया कि दो साल में लीज रिन्यू के 327 में से 132 प्रकरण स्वीकृत किए जा चुके हैं। जबकि फ्री होल्ड के 480 में से 208 प्रकरणों को मंजूरी दी गई है। वहीं इंदौर मेयर ने बताया कि फ्री होल्ड के सिर्फ 9 मामले ही स्वीकृत हो सके हैं।
जानिए लीज स्वीकृत करने के किसे कितने अधिकार
लीज स्वीकृत करने और नवीनीकरण के नियम में मार्च 2023 में संशोधन किया था। जिसके तहत नगर निगमों में आयुक्त, एमआईसी और निगम परिषद के बीच नए सिरे से अधिकारों का बंटवारा किया था। बावजूद इसके निगमों में लीज के प्रकरण बड़ी संख्या में लंबित पड़े हैं।
5 लाख या इससे अधिक जनसंख्या वाले नगर निगम:
ऐसे निकाय में कमिश्नर को 2 करोड़, एमआईसी को 2 करोड़ से ज्यादा और 10 करोड़ तक। निगम परिषद को 10 करोड़ से ज्यादा लेकिन 20 करोड़ तक। नगरीय प्रशासन आयुक्त को 20 करोड़ से ज्यादा लेकिन 50 करोड़ तक। वहीं राज्य सरकार को 50 करोड़ से ज्यादा तक के अधिकार है।
5 लाख से कम जनसंख्या वाले नगर निगम:
ऐसे निकाय में कमिश्नर को 40 लाख रुपए, एमआईसी को 40 लाख से ऊपर 2 करोड़ तक। निगम परिषद को 2 करोड़ से ऊपर 5 करोड़ तक, वहीं नगरीय प्रशासन आयुक्त को 5 करोड़ से ऊपर 10 करोड़ तक। राज्य सरकार को 10 करोड़ रुपए तक के अधिकार हासिल है।
नगर पालिका में प्रेसिडेंट इन काउंसिल को 2 करोड़ रुपए तक, परिषद को 2 करोड़ से ऊपर 5 करोड़ तक। वहीं आयुक्त नगरीय प्रशासन को 5 करोड़ से ऊपर 10 करोड़ तक तो राज्य सरकार को 10 करोड़ से ज्यादा के अधिकार हासिल है।
इसी तरह नगर परिषद में प्रेसिडेंट इन काउंसिल को 50 लाख रुपए, नगर पालिका परिषद को 50 लाख से ऊपर 1 करोड़ रुपए तक। नगरीय प्रशासन आयुक्त को 1 करोड़ से 10 करोड़ तक तो राज्य सरकार को 10 करोड़ से ज्यादा के वित्तीय अधिकार है।
सरकार के तीन आदेश, फिर भी फ्री-होल्ड नहीं हो रही प्रॉपर्टी
नगरीय निकायों की जिन संपत्तियों की लीज 30 साल या उससे ज्यादा हो चुकी है, उन संपत्तियों को फ्री होल्ड करने का पहला आदेश 24 फरवरी 2016 को जारी किया था। इस आदेश का शासन द्वारा राजपत्र में भी जारी कराया गया, लेकिन निगम ने इस नियम का पालन नहीं किया।।
दूसरा संशोधित आदेश 4 मई 2021 को जारी किया गया। लेकिन निगम ने लीज संपत्तियों को फ्री होल्ड करने के बजाय लीज नवीनीकरण करना बेहतर समझा। इसके बाद 28 मार्च 2023 को इस नियम में एक संशोधन और हुआ, लेकिन अधिकांश नगर निगमों ने इसकी कवायद को ठंडे बस्ते में डाल रखा है।
लीज होल्ड प्रॉपर्टी और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी क्या है ?
30 साल या इससे अधिक अवधि की नगरीय निकाय की लीज पर मिली प्रॉपर्टी या जमीन को फ्री होल्ड कराया जा सकता है। इसकी स्वीकृति मिलने के बाद जमीन के मालिक को इसे बेचने, दान करने या फिर किसी अन्य व्यक्ति को निर्माण के लिए अनुमति देने का अधिकार मिल जाता है। जबकि लीज प्रॉपर्टी को बेचा नहीं जा सकता है। किसी अन्य व्यक्ति को निर्माण या इस्तेमाल करने की अनुमति भी नहीं रहती है। ऐसी प्रॉपर्टी का मालिकाना हक भी तय समयावधि के बाद निकाय वापस ले सकती है।
मास्टर प्लान के कारण अटके बड़े प्रोजेक्ट
मंत्री विजयवर्गीय हाल ही में जबलपुर दौरे पर गए थे, तब इस मुद्दे को क्रेडाई ने उठाया था। दरअसल, नगर पालिक निगम की धारा 16 में नियम है कि 5 एकड़ से अधिक के हाउसिंग प्रोजेक्ट की अनुमति शहर के बाहर मिलेगी। इसके लिए नक्शा भी नगर निगम से नहीं, बल्कि टीएनसीपी से स्वीकृत कराना पड़ता है।
यदि किसी शहर का मास्टर प्लान लागू हो जाता है तो धारा 16 समाप्त हो जाएगी। ऐसे में हाउसिंग प्रोजेक्ट शहर में करना आसान हो जाएगा। बताया जाता है कि मास्टर प्लान के इंतजार में प्रदेश में 135 एकड़ के प्रोजेक्ट पेंडिंग हैं।
मास्टर प्लान पर मुख्य सचिव का फोकस
मुख्य सचिव अनुराग जैन का फोकस बड़े शहरों के मास्टर प्लान पर है। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने पदभार ग्रहण करने के बाद 3 अक्टूबर को विभाग प्रमुखों की पहली बैठक ली थी। बैठक में मुख्य सचिव को बताया गया कि भोपाल और इंदौर के मास्टर प्लान पर काम चल रहा है। ये जल्द ही आ जाएंगे। इस पर उन्होंने कहा कि पुराने सातों संभाग (नर्मदापुरम, चंबल और शहडोल को छोड़कर) मुख्यालयों के मास्टर प्लान साथ में तैयार किए जाएं।