लोकसभा में जिन्हें लगाया गले- उपचुनाव में उनसे तौबा-तौबा
लोकसभा में जिन्हें लगाया गले- उपचुनाव में उनसे तौबा-तौबा, गठबंधन के नाम पर यूज एंड थ्रो पॉलिसी क्यों?
उत्तर प्रदेश और राजस्थान में होने वाले उपचुनाव से पहले सीट बंटवारे को लेकर पार्टियों के बीच गहमागहमी मची हुई हैं, लोकसभा में बड़ी पार्टियां जिन सहयोगियों को गले लगा रही थीं. उपचुनाव में उन्हीं से परहेज कर रही हैं. यूपी से लेकर राजस्थान तक हो रहे उपचुनाव में यही पैटर्न देखने को मिल रहा है. कांग्रेस-सपा हो या फिर बीजेपी-आरएलडी सब अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहती हैं.
सियासत में कोई किसी का सगा नहीं होता, हर कोई अपना सियासी नफा-नुकसान का गुणा-भाग कर दोस्त और दुश्मन बनाने का फैसला करता है. ऐसे में लोकसभा चुनाव में जिनके साथ फायदा दिख रहा था, उन्हें गले लगाने से परहेज नहीं किया, लेकिन उपचुनाव में उन्हीं से किनारा कर लिया है. यूपी से लेकर राजस्थान तक हो रहे उपचुनाव में यही पैटर्न दिख रहा है कि बड़े दल अपने पार्टनर दल पर भरोसा करने के बजाय अपने दम पर चुनावी जंग लड़ने उतरे हैं.
राजस्थान में कांग्रेस ने बीएपी और आरएलपी के साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ी थी, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने दोनों ही सहयोगी दलों के साथ किनारा कर लिया है. इसी तरह यूपी में सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर 2024 की चुनावी लड़ाई लड़ी थी, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस खाली हाथ रह गई. यूपी में बीजेपी ने भी निषाद पार्टी के किनारा कर लिया है. 2022 में निषाद पार्टी की जीती हुई मझवां सीट पर बीजेपी खुद चुनाव लड़ रही है. ऐसे ही बिहार में आरजेडी ने सहयोगी दल कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी है.
बीजेपी-सपा ने सहयोगी से किया किनारा
यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिसमें मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच है. सूबे की 9 सीटों में से 8 सीट पर बीजेपी खुद ही चुनाव लड़ रही है और एक सीट मीरापुर अपने सहयोगी आरएलडी के लिए छोड़ी है. निषाद पार्टी 2022 के आधार पर दो सीटें मझवां और कटेहरी मांग रही थी तो आरएलडी मीरापुर और खैर सीट पर दावा कर रही थी. बीजेपी ने आरएलडी को मीरापुर सीट तो दे दी, लेकिन निषाद पार्टी को एक भी सीट नहीं दी. मझवां सीट भी नहीं मिली, जहां पर निषाद पार्टी का विधायक था.
वहीं, इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस और सपा ने मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था. कांग्रेस यूपी की पांच सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जिस पर बीजेपी और उसके सहयोगी दल का कब्जा था. सपा, कांग्रेस को सिर्फ खैर और गाजियाबाद सीट ही देना चाहती थी. सियासी समीकरण के लिहाज पर यह दोनों ही सीटें बीजेपी के लिए मजबूत मानी जा रही हैं तो विपक्ष के लिए कमजोर. ऐसे में कांग्रेस ने दोनों ही सीटों पर चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए तो सपा ने सभी 9 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया.
बीजेपी और सपा को खुद पर भरोसा
यूपी के उपचुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. यही वजह है कि बीजेपी और सपा दोनों ही प्रमुख दल अपने-अपने सहयोगी पार्टियों के बजाय खुद पर ज्यादा भरोसा कर रही है. इसीलिए सपा कांग्रेस को उपचुनाव में सीट न देकर खुद ही बीजेपी से दो-दो हाथ करने को उतरी है. इसी तरह से बीजेपी ने निषाद पार्टी या फिर दूसरे सहयोगी दलों के बजाय खुद अपने चुनावी सिंबल पर लड़ रही है. बीजेपी ने 8 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं तो एक सीट पर आरएलडी चुनाव लड़ेगी. बीजेपी और सपा ने इस बात को 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों से सबक लिया है, उसे लगता है कि अपने-अपने चुनाव निशान पर लड़ेगी तो जीत पक्की है, लेकिन किसी भी सहयोगी दल पर चुनाव लड़ती है तो जीत की गारंटी नहीं है.
राजस्थान में कांग्रेस ने सहयोगी से बनाई दूरी
राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं और कांग्रेस सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हनुमान बेनीवाल की आरएलपी और राजकुमार रोत की बीएपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस को गठबंधन का सियासी लाभ भी मिला था, लेकिन फिर भी उपचुनाव में बीएपी और आरएलपी से किनारा कर लिया है. राजस्थान की जिन सात सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उसमें 4 सीटें कांग्रेस कोटे से खाली हुई हैं तो एक बीजेपी विधायक के निधन से खाली हुई हैं.
कांग्रेस का सहयोगी दलों से किनारा
बीएपी प्रमुख राजकुमार रोत के लोकसभा सांसद चुने जाने से चौरासी सीट खाली हई है तो आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल के सांसद बन जाने के चलते खींवसर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं. कांग्रेस के सातों सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बाद बेनीवाल ने कह दिया है कि अब वो अपने कैंडिडेट के नाम का ऐलान करेंगे. बीएपी ने पहले ही दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रखे हैं. कांग्रेस ने भले ही सहयोगी दलों से किनारा कर लिया है, लेकिन अब मुकाबला चार सीट पर बीजेपी से सीधा है तो तीन सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई बन गई है.
बिहार में कांग्रेस को नहीं मिली एक भी सीट
बिहार की चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. इंडिया गठबंधन के तहत आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियां और वीआईपी एक साथ लोकसभा का चुनाव लड़ी थी, लेकिन अब उपचुनाव में सिर्फ आरजेडी और लेफ्ट ही किस्मत आजमा रही हैं. चार में से तीन सीट रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज आरजेडी लड़ रही है तो सीपीआई (माले) तरारी सीट से चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस और वीआईपी को एक भी सीट नहीं मिली है. बिहार में एक सीट पर कांग्रेस उपचुनाव लड़ना चाहती थी, जिसके लिए इमामगंज सीट मांग रही थी. आरजेडी ने कांग्रेस की डिमांड को नजर अंदाज कर दिया है. इस तरह से आरजेडी ने कांग्रेस से किनारा कर लिया और अपने दम पर किस्मत आजमाने का फैसला किया है.