नई दिल्ली। केंद्र ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की है। जस्टिस संजीव खन्ना 11 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ लेंगे। उनकी नियुक्ति वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद हुई है। जस्टिस संजीव खन्ना देश के 51वें सीजेआई होंगे। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल लगभग छह महीने का होगा और वह 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

CJI चंद्रचूड़ होंगे सेवानिवृत्ति
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को गुरुवार को भारत का 51वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वह 11 नवंबर को शपथ लेंगे, जिसके एक दिन बाद मौजूदा न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ सेवानिवृत्ति हो जाएंगे।
 

6 महीने से अधिक होगा न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 8 नवंबर 2022 को सीजेआई के रूप में पदभार संभाला था। न्यायमूर्ति खन्ना का सीजेआई के रूप में कार्यकाल छह महीने से थोड़ा अधिक होगा और वह 13 मई 2025 को सेवानिवृत्ति हो जाएंगे।
कानून मंत्री ने सोशल मीडिया पर दी जानकारी

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए माननीय राष्ट्रपति ने भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद 11 नवंबर 2024 से प्रभावी रूप से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया है।

कौन हैं जस्टिस संजीव खन्ना?

न्यायमूर्ति खन्ना को 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 2006 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया था। 18 जनवरी 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। 14 मई 1960 को जन्मे जस्टिस संजीव खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर में कानून की पढ़ाई की।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस खन्ना के कुछ उल्लेखनीय निर्णयों में चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को बरकरार रखना शामिल है। वे पांच जजों की बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए बनाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया था।
जस्टिस खन्ना पांच जजों की बेंच का हिस्सा थे, जिसने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा, जिसने तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था।