जनगणना होना तय : जनगणना होना तय: इस बार सोच-समझकर देना जवाब ?

जनगणना होना तय: इस बार सोच-समझकर देना जवाब, आंकड़ें बनने वाले हैं बड़े बदलाव की वजह
भारत में अब तक 15 बार जनगणना हो चुकी है. 1872 में वायसराय लॉर्ड मेयो के समय से हर 10 साल में ये काम होता आया है. 1949 के बाद से गृह मंत्रालय के अंदर रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त इस काम को करते हैं

भारत में अगले साल जनगणना का काम शुरू होना तय माना जा रहा है. साल 2026 के आखिर या 2027 में हमें जनगणना के नए नतीजे देखने को मिल सकते हैं. ये जनगणना दुनिया की सबसे बड़ी जनगणना होगी, जिसमें दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के लोगों की गिनती होगी.

भारत में हर 10 साल में जनगणना की जाती रही है, लेकिन 2021 में कोविड महामारी की वजह से इसे अनिश्चितकाल के लिए टालना पड़ा था. तब से टल ही रहा है. अब तक इसकी नई तारीख को लेकर कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है. 2011 में हुई जनगणना में 640 जिले, 7935 शहर और 6 लाख से ज्यादा गांव शामिल थे. 

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस बीच भारत की आबादी चीन से भी ज्यादा हो गई है. जनसंख्या में भी काफी बदलाव आए हैं. जैसे, 2011 में दिल्ली के पॉश इलाके हौज खास के कुछ हिस्सों को ग्रामीण क्षेत्र माना गया था, जबकि आज वहां अमीर लोग रहते हैं.

इस बार जनगणना के आंकड़े बड़े बदलाव की वजह बनने वाले हैं. जनगणना से दो अहम नतीजे मिलेंगे- एक संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन होगा, जो पिछले पांच दशकों से रुका हुआ है. दूसरा महिला आरक्षण, जिससे संसद में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी.

15 बार हो चुकी है जनगणना
आजादी से पहले अंग्रेजों के राज में 1865 से 1941 तक समय-समय पर जनगणना होती थी. लेकिन ये जनगणना सिर्फ प्रशासन चलाने के लिए होती थी और इसमें कई तरह की दिक्कतें आती थीं. गांवों में घरों पर नंबर नहीं होते थे, जिससे लोगों को ढूंढना मुश्किल होता था. कई लोग धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से जनगणना का विरोध करते थे. यहां तक कि जनगणना करने वालों को जंगली जानवरों से भी खतरा रहता था. अंग्रेजों ने जनगणना में जाति, धर्म, पेशा और उम्र जैसी जानकारी भी शामिल की, जो पश्चिमी देशों में आम नहीं था. इस जानकारी का भारत के समाज और राजनीति पर गहरा असर पड़ा.

भारत में अब तक 15 बार जनगणना हो चुकी है. साल 1872 में वायसराय लॉर्ड मेयो के समय से हर 10 साल में ये काम होता आया है. 1949 के बाद से गृह मंत्रालय के अंदर रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त इस काम को करते हैं.

1951 से लेकर अब तक की सभी जनगणनाएं 1948 के जनगणना अधिनियम के तहत हुई हैं, जो हमारे संविधान से भी पुराना है. इस कानून में कोई तारीख तय नहीं है कि कब जनगणना होनी ही चाहिए और न ही ये बताया गया है कि इसकी जानकारी कब तक सार्वजनिक करनी है. 

जनगणना होना तय: इस बार सोच-समझकर देना जवाब, आंकड़ें बनने वाले हैं बड़े बदलाव की वजह

नगणना से बढ़ेगी उत्तर-दक्षिण की तकरार?
जनगणना के आंकड़ों के आधार पर लोकसभा सीटों का बंटवारा होता है, जिसे परिसीमन कहते हैं. इससे उत्तर भारत के अधिक जनसंख्या वाले गरीब राज्य और दक्षिण भारत के संपन्न राज्यों के बीच राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर पुरानी बहस फिर से शुरू हो सकती है. दक्षिण भारत में जन्म दर कम है, इसलिए वहां की आबादी उत्तर भारत के मुकाबले कम तेजी से बढ़ रही है.

हर जनगणना के बाद परिसीमन होने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. परिसीमन के बाद संसद और राज्य विधानसभाओं की सीटों की संख्या को नए जनसंख्या आंकड़ों के हिसाब से बदला जाता है. ऐसा इसलिए ताकि हर सांसद या विधायक  लगभग बराबर संख्या में लोगों का प्रतिनिधित्व कर सके. लेकिन 1976 से  राजनीतिक सहमति न बन पाने के कारण ये काम रुका हुआ है.

अगर परिसीमन के नियमों के हिसाब से सीटों का बंटवारा  होता है, तो जिन राज्यों में आबादी तेजी से बढ़ी है, उनकी संसद में सीटें बढ़ जाएंगी और  जिन राज्यों में आबादी कम बढ़ी है, उनकी सीटें घट जाएंगी. दक्षिण भारत के राज्यों का कहना है कि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता हासिल की है, तो उन्हें इसकी सजा क्यों दी जाए. 2001 की जनगणना के बाद 2002 में परिसीमन तो हुआ था, लेकिन उसमें सिर्फ मौजूदा क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव किया गया था. सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था. 

जनगणना से उत्तर प्रदेश का दबदबा बढ़ेगा?
2019 में हिंदुस्तान टाइम्स में छपे एक लेख में पॉलिटिकल साइंटिस्ट मिलन वैष्णव और जेमी हिंस्टन ने अनुमान लगाया था कि 2026 में उत्तर प्रदेश के लोकसभा सांसदों की संख्या 80 से बढ़कर 143 हो सकती है, जबकि केरल की 20 ही रहेगी. वहीं तमिलनाडु की 39 से बढ़कर 49 होगी. इस स्थिति में लोकसभा की कुल संख्या बढ़कर 848 हो जाएगी.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने हाल ही में दक्षिण भारतीय नेताओं ने अपने राज्यों में घटती जन्म दर को लेकर चिंता जताई है. नायडू ने यहां तक कह दिया है कि राज्य में अब लोगों को लगता है कि अब उन्हें सचमुच में 16-16 बच्चे पैदा करने चाहिए, न कि एक छोटा और खुशहाल परिवार रखना चाहिए.

क्या 2026 में परिसीमन हो पाएगा?
दिलचस्प बात यह है कि 2025 में शुरू होकर 2026 में पूरी होने वाली जनगणना से तुरंत परिसीमन संभव नहीं हो सकता है. 2001 में हुए 84वें संविधान संशोधन में कहा गया है कि अगला परिसीमन 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही हो सकता है. यानी अगर 2021 की जनगणना समय पर हो भी जाती या 2023 या 2024 में हो जाती, तब भी परिसीमन 2031 की जनगणना के बाद ही हो पाता.

अगर जनगणना जिसे पूरा होने में दो साल लगते हैं, अगले साल शुरू होती है, तो सैद्धांतिक रूप से उसके तुरंत बाद परिसीमन हो सकता है. अगर सरकार जनगणना के बाद तुरंत परिसीमन कराना चाहती है, तो उसे  संविधान संशोधन करना होगा. 

जनगणना होना तय: इस बार सोच-समझकर देना जवाब, आंकड़ें बनने वाले हैं बड़े बदलाव की वजह

महिला आरक्षण का इंतजार!
सिर्फ परिसीमन ही नहीं, बल्कि संसद में महिला आरक्षण का भी इंतजार है. पिछले साल संसद ने 128वां संविधान संशोधन पारित किया था, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं. लेकिन यह परिसीमन के बाद ही लागू होगा, जब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की सीटों में बदलाव हो जाएगा.

अगर सरकार जल्दी से जनगणना और परिसीमन का काम पूरा कर लेती है, तो 2029 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं को आरक्षण का फायदा मिल सकता है. इससे संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, जिससे उनकी आवाज मज़बूत होगी. महिलाओं की जरूरतों को ध्यान में रखकर बेहतर नीतियां बनाई जा सकेंगी. महिलाओं को राजनीति में बराबरी का हक मिलने से समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा.

महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन में एक और खास बात है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए भी सीटें आरक्षित होंगी. SC/ST के लिए जितनी भी सीटें आरक्षित हैं, उनमें से एक तिहाई सीटें SC/ST महिलाओं के लिए होंगी. ये आरक्षित सीटें हर राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में अलग-अलग क्षेत्रों में बारी-बारी से लागू होंगी.

क्या होगी जातिगत जनगणना?
चर्चा है कि अगली जनगणना में जाति के आंकड़े भी इकट्ठा किए जा सकते हैं. इससे अलग से जातिगत जनगणना कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिसकी मांग कई राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं. विपक्षी दल लगातार पूरी आबादी की जाति-आधारित गणना कराने की मांग कर रहे हैं. बिहार, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने अपनी जातिगत जनगणना पूरी कर ली है. तेलंगाना जैसे अन्य राज्य भी अपनी जनगणना शुरू करने वाले हैं. 

हालांकि, अभी ये साफ नहीं है कि केंद्र सरकार की जनगणना में सभी जातियों की गिनती होगी या नहीं. जनगणना में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गिनती तो होती है, लेकिन सभी जातियों की गिनती आजादी के बाद बंद कर दी गई थी. ये व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थी. 

इन सभी कारणों से इस बार की जनगणना के आंकड़े देश में बड़े बदलाव ला सकते हैं.

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