एक बच्चे को मिलने वाला ज्यादा प्यार, डाल देता है दूसरे बच्चे के मन में दरार ?

एक बच्चे को मिलने वाला ज्यादा दुलार दूसरे बच्चे के मन में डाल देता है दरार। कहीं इस भावना से टूट न जाए बालमन इसलिए दूर करें भाई-बहन के बीच पनपने वाली यह अनबन। Parenting Tips में जानिए कि क्यों होता है ऐसा और कैसे करें इस रिश्ते को मजबूत। क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. दीपाली बत्रा के साथ विशेष बातचीत।

क्या एक बच्चे को ज्यादा प्यार मिलना दूसरे को अकेला महसूस कराता है?
  1. माता-पिता की अलग-अलग बच्चों से अलग-अलग उम्मीदें रखते हैं।
  2. सिबलिंग राइवलरी के पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारक काम करते हैं।
  3. बच्चों की उम्र और माता-पिता का व्यवहार परिवार का माहौल तय करता है।
नई दिल्ली। Parenting Tips: पापा तो दीदी को ही प्यार करते हैं, मुझे मम्मी भी डांट लगाती हैं। दीदी को कोई नहीं डांटता और उसकी पसंद के खाने और सामान से भरा हुआ है घर। त्योहार पर बड़ी बेटी रोहिणी हास्टल से घर आई तो माता-पिता का सारा प्यार उसी को मिलने लगा। घर में मौजूद उसके छोटे भाई शिवम को महसूस होने लगा कुछ अकेलापन। जो तब नजर आया, जब रोहिणी ने भाईदूज को लेकर कुछ मजाक किया और गुस्से से लाल-पीला हो गया शिवम। यह है भाई-बहन के बीच होने वाली सिबलिंग राइवलरी, जो दो भाइयों के बीच भी हो जाती है।

अनबन के कारण हैं कई

सिबलिंग राइवलरी के कई कारण होते हैं जो बच्चों की उम्र, आवश्यकताओं और क्रोध पर नियंत्रण की क्षमता से प्रभावित होते हैं। बच्चों को मिलने वाला ध्यान, प्रशंसा और अनुशंसा भी इस द्वंद्व को बढ़ाते हैं। माता-पिता की अपेक्षाएं और उनके द्वारा भेदभावपूर्ण व्यवहार, जैसे कि किसी एक बच्चे को अधिक दुलार देना इस प्रतिस्पर्धा को बढ़ाते हैं। इसके अलावा, जैसे कि यदि कोई बच्चा अधिक बीमार रहता है तो उसे अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है इससे अन्य बच्चों में यह भावना उत्पन्न हो सकती है कि उन पर कम ध्यान दिया जा रहा है। इस प्रकार, सिबलिंग राइवलरी के पीछे कई मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारक कार्य करते हैं।

आपके शब्द हैं जरूरी
बच्चों के बीच की बातचीत और उनकी नोंक-झोंक पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनके भावनात्मक स्वास्थ्य को दर्शाता है। जब बच्चे शिकायत करते हैं या तुलना करते हैं, जैसे कि ‘उस दिन दीदी की पसंद से सामान आया था’ तो यह संकेत है कि वे नजरअंदाज होने का अनुभव कर रहे हैं। बच्चों की बातों को गंभीरता से लें। कई बार बच्चे गलत व्यवहार करते हैं ताकि उन्हें माता-पिता का अटेंशन मिल सके। यह स्थिति बच्चों के मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। माता-पिता के संवाद भी महत्वपूर्ण होते हैं। जब वे बड़ी संतान या छोटी संतान की प्रशंसा करते हैं और दूसरे की उपेक्षा करते हैं, तो यह उपेक्षित बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसलिए सभी बच्चों को समान ध्यान और प्रोत्साहन दें।
बचपन से ही हो शुरुआत
बच्चों को बचपन से ही बड़े-छोटे का अंतर समझाना महत्वपूर्ण है, ताकि वे एक-दूसरे का सम्मान कर सकें। माता-पिता को अपने संघर्षों का प्रबंधन करते हुए बच्चों के बीच प्रतियोगिता से बचना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम बच्चों से किस तरह और किस लहजे में बात कर रहे हैं। घर का माहौल आदरपूर्ण होना चाहिए, जिससे बच्चे टीमवर्क और संयम सीख सकें। बच्चों को बारी-बारी से जिम्मेदारियां देने से उनमें समझ और आपसी सहयोग बढ़ता है। सभी बच्चों को समान समय देने के साथ उन्हें माफी मांगने तथा माफ करने की कला सिखाना भी जरूरी है। जुड़वां बच्चों के मामले में भी यह स्थिति आ जाती है। ऐसे में उन्हें महसूस कराएं कि दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। अगर तनाव बढ़ता है, तो प्रोफेशनल मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।

कमजोर हो जाती है नींव

भाई-बहनों के बीच परस्पर द्वेष को समय रहते दूर करना आवश्यक है, क्योंकि फिर यह समय के साथ बढ़ता जाता है। साथ रहने के दौरान बच्चे शेयरिंग और सहयोग करना सीखते हैं। अगर उनके द्वंद्व हल नहीं होंगे, तो यह उनके भविष्य के रिश्तों को प्रभावित कर सकता है। उनमें नकारात्मक प्रतियोगिता का भाव विकसित हो जाता है, जिससे भाई-बहनों के रिश्ते खराब हो सकते हैं। बचपन की यादें समय के साथ गहरी होती जाती हैं और कभी-कभी यह नाराजगी माता-पिता पर भी निकलने लगती है, जिससे बच्चे यह सोचने लगते हैं कि माता-पिता केवल बड़े भाई या बहन को ही प्यार करते थे

  • बच्चों के झगड़ों के कारणों की पहचान करें और संयमित रहकर नाराजगी रोकने का प्रयास करें।
  • तुलनात्मक शब्दों का उपयोग न करें। झगड़ा होने पर दोनों बच्चों को अलग-अलग समझाएं।
  • नाराजगी को सकारात्मक दिशा में मोड़ने के लिए प्रेरित करें।
  • घर का माहौल सुधारें ताकि बच्चे गुस्सा करना या बुरा-भला कहना न सीखें।
  • यह कभी न कहें कि आप किस बच्चे से अधिक प्यार करते हैं या किसने आपको परेशान किया है।

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