अमेरिका के नए राष्ट्रपति के सामने कितने युद्धों को खत्म कराने की जिम्मेदारी !
यूक्रेन से इजरायल तक: अमेरिका के नए राष्ट्रपति के सामने कितने युद्धों को खत्म कराने की जिम्मेदारी
ट्रंप ने हमेशा यह कहा है कि उनकी प्राथमिकता युद्ध को खत्म करना और अमेरिका के संसाधनों को बचाना है. उनका मानना है कि अगर युद्ध जल्द खत्म हो जाए, तो अमेरिका को और नुकसान नहीं होगा.
डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी से अमेरिकी विदेश नीति को नया आकार दे सकती है. चुनाव से पहले ट्रंप ने बार-बार यह दावा किया है कि वह यूक्रेन और गाजा में चल रहे युद्धों को हफ्तों के भीतर खत्म कर सकते हैं, यहां तक कि 20 जनवरी को उनके शपथ ग्रहण से पहले ही.
मई 2023 में ट्रंप ने दावा किया था, “रूस और यूक्रेन के लोग मर रहे हैं, मैं चाहता हूं कि यह मौतें रुक जाएं और मैं यह काम करवा दूंगा. मैं इसे 24 घंटों के भीतर करवा दूंगा.”
ट्रंप के इस बयान से लगता है कि वह इन युद्धों को जल्दी खत्म करने का भरोसा रखते हैं, हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि युद्ध के हल के लिए बहुत सारे राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य पहलुओं को ध्यान में रखना पड़ता है.
ट्रंप का दावा- “अगर सही राष्ट्रपति होता, तो रूस कभी यूक्रेन पर हमला नहीं करता!”
डोनाल्ड ट्रंप पिछले एक साल से यह दावा कर रहे हैं कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध को जल्दी खत्म कर सकते हैं. हालांकि इस मुद्दे पर वह ज्यादा जानकारी देने से बच रहे हैं. उन्होंने अभी तक यह नहीं बताया कि वह इसके लिए क्या कदम उठाएंगे. जब उनसे पूछा गया कि कैसे युद्ध खत्म होगा, तो उन्होंने एक समझौता करवाने का सुझाव दिया लेकिन उन्होंने कुछ स्पष्ट नहीं बताया.
इसके अलावा, ट्रंप ने अमेरिका की ओर की जा रही यूक्रेन की मदद की भी आलोचना की है और कहा है कि वह नहीं चाहते कि यूक्रेन युद्ध जीतें. जुलाई में बाइडेन के खिलाफ प्रचार करते हुए उन्होंने कहा था, “अगर अमेरिका के पास एक असली राष्ट्रपति होता जिसका रूसी राष्ट्रपति पुतिन सम्मान करते, तो रूस कभी यूक्रेन पर आक्रमण नहीं किया होता.” ट्रंप का यह बयान दिखाता है कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध को सुलझाने के लिए कूटनीतिक रास्ते की बजाय अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं.
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में खत्म होगा रूस-यूक्रेन और गाजा युद्ध?
डोनाल्ड ट्रंप के प्रचार अभियान के दौरान नेताओं ने कहा है कि उनका सबसे बड़ा लक्ष्य अगले कार्यकाल में रूस-यूक्रेन युद्ध को जल्दी खत्म करना होगा. ट्रंप के कैंपन कम्युनिकेशन डायरेक्टर स्टीवेन च्यांग ने कहा कि ट्रंप का मानना है कि यूरोपीय देशों को इस युद्ध के खर्च का अधिक बोझ उठाना चाहिए.
हाल ही में, टाइम्स ऑफ इजरायल की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि ट्रंप ने इजरायल से गाजा युद्ध को जल्द खत्म करने का आह्वान किया है, ताकि वह राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से पहले ही यह संकट समाप्त हो सके.
ट्रंप के पूर्व सुरक्षा सलाहकारों का क्या है सुझाव
ट्रंप के दो पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुखों ने मई में एक रिसर्च पेपर लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका को यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति जारी रखनी चाहिए, लेकिन यह सपोर्ट तभी दिया जाए जब यूक्रेन रूस के साथ शांति वार्ता शुरू करने पर तैयार हो जाए.
इसके बाद रूस को मनाने के लिए पश्चिमी देश यूक्रेन की नाटो में एंट्री की इच्छा को टालने का वादा करेंगे. ट्रंप के पूर्व सलाहकारों ने कहा कि यूक्रेन को अपनी जमीन पूरी तरह से वापस लेने की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, लेकिन उसे अब जो मौजूदा स्थिति है उसी के आधार पर शांति वार्ता करनी चाहिए.
लेकिन, ट्रंप के डेमोक्रेटिक विरोधी इस सोच से नाखुश थे. उनका कहना था कि ट्रंप पुतिन के साथ बहुत करीबी संबंध रखते हैं और उनकी यह नीति दरअसल यूक्रेन के लिए आत्मसमर्पण के बराबर है जो न सिर्फ यूक्रेन, बल्कि पूरे यूरोप के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.
यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि पूर्व सलाहकारों के रिसर्च पेपर ट्रंप के खुद के विचारों का सही प्रतिनिधित्व करता है या नहीं, लेकिन यह हमें इस बात का अंदाजा जरूर दे सकता है कि वह भविष्य में किस प्रकार की सलाह लेंगे.
क्या ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ नजरिया नाटो के भविष्य को प्रभावित करेगा?
ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ नजरिया केवल युद्ध को खत्म करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नाटो जैसे महत्वपूर्ण रणनीतिक मुद्दे पर भी लागू होता है. ट्रंप के इस दृष्टिकोण के अनुसार, उनका मुख्य उद्देश्य अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखना है, चाहे वह युद्ध हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय सैन्य गठबंधन.
नाटो, यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन एक सैन्य गठबंधन है जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के खिलाफ सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया था. नाटो के सदस्य देश आपस में सहमति जताते हैं कि अगर किसी तीसरे पक्ष द्वारा उन पर हमला किया जाता है, तो वे एक-दूसरे की सुरक्षा करेंगे.
आज नाटो में 32 देश शामिल हैं और ट्रंप लंबे समय से इस गठबंधन के खिलाफ रहे हैं. उनका कहना है कि यूरोप अमेरिका की सुरक्षा गारंटी का फायदा उठाता है, जबकि अमेरिका को इसके बदले में ज्यादा योगदान नहीं मिलता. ट्रंप ने हमेशा नाटो पर सवाल उठाए हैं और उनके आलोचकों का मानना है कि वे यूरोप पर दबाव डालने के लिए यह बयानबाजी करते हैं.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, नाटो के नेता अब इस बात को लेकर गंभीर चिंता में हैं कि ट्रंप की वापसी के बाद इस गठबंधन का भविष्य क्या होगा. अगर अमेरिका नाटो से बाहर जाता है, तो इसका न केवल नाटो की कार्यप्रणाली पर असर पड़ेगा, बल्कि दुनिया भर में शत्रु देशों के बीच यह संदेश जाएगा कि नाटो अब उतना मजबूत नहीं है जितना पहले था.
क्या मध्य पूर्व में भी शांति बहाल करेंगे ट्रंप?
यूक्रेन की तरह ही ट्रंप ने मध्य पूर्व में भी शांति बहाली का वादा किया है. इसका मतलब है कि वह गाजा में इजरायल-हमास युद्ध और लेबनान में इजरायल-हिजबुल्लाह युद्ध को समाप्त करने की कोशिश करेंगे. उन्होंने बार-बार कहा है कि अगर वे जो बाइडेन की जगह आज सत्ता में होते, तो हमास ने इजरायल पर हमला नहीं किया होता.
ऐसी संभावना है कि ट्रंप उस नीति पर लौटने का प्रयास करेंगे, जिसमें उन्होंने अमेरिका को ईरान के परमाणु समझौते से बाहर किया था. ईरान पर और अधिक प्रतिबंध लगाए थे और ईरान के सबसे ताकतवर सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को मार डाला था.
व्हाइट हाउस में रहते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल के पक्ष में कड़े फैसले लिए थे, जिनमें सबसे बड़ा कदम था यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में स्वीकार करना और अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरूशलम शिफ्ट करना. यह कदम ट्रंप के क्रिश्चियन एवेन्जेलिकल बेस को बहुत पसंद आया, जो रिपब्लिकन पार्टी का एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है.
हालांकि, आलोचक यह मानते हैं कि ट्रंप की इजरायल नीति ने मध्य पूर्व में तनाव बढ़ाया. ट्रंप प्रशासन के इस फैसले के बाद फिलिस्तीनी लोगों ने वाशिंगटन से संबंध तोड़ लिए क्योंकि अमेरिका ने यरूशलम को इजरायल की राजधानी मान लिया. ये शहर फिलिस्तीनियों के लिए राष्ट्रीय और धार्मिक जीवन का ऐतिहासिक केंद्र है.
इजरायल पीएम ने रक्षा मंत्री को किया बर्खास्त
5 नवंबर को जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान जारी था, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक बड़ा कदम उठाया. उन्होंने देश के रक्षा मंत्री योव गैलेंट को बर्खास्त कर दिया. नेतन्याहू ने कहा कि ‘भरोसे की कमी’ के कारण उन्होंने यह फैसला लिया है.
ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति बनने के साथ ही इजरायल को उम्मीद है कि उसे पहले कार्यकाल जैसी ही मदद मिलेगी. लेकिन एक सवाल यह है कि क्या ट्रंप इस बार भी क्षेत्र में युद्ध को बढ़ावा देंगे, खासकर जब वे खुद युद्ध के खिलाफ रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप ने इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से साफ कह दिया है कि वे इस संकट को निपटा लें और राष्ट्रपति पद संभालने से पहले युद्ध खत्म कर लें. इसका मतलब ये भी हो सकता है कि ट्रंप के नए कार्यकाल में इजरायल को पिछले कार्यकाल जैसी समर्थन की गारंटी नहीं है.
ट्रंप की विदेश नीति के इस नए रूप को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. क्या वे अपने वादों को पूरा कर पाएंगे? क्या यह बदलाव वास्तव में शांति और स्थिरता लाएगा? या फिर यह केवल एक राजनीतिक बयानबाजी है? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में ही मिल पाएंगे.