हाईप्रोफाइल लोगों को कैसे डिजिटल अरेस्ट कर रहे लुटेरे

हाईप्रोफाइल लोगों को कैसे डिजिटल अरेस्ट कर रहे लुटेरे
अनजान लिंक पर क्लिक करना खतरनाक; जानें फर्जी पुलिसवालों को कैसे पहचानें

दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज ‘ऑपरेशन डिजिटल अरेस्ट’ के पार्ट-1 में रिपोर्टर ने 6 घंटे के लिए खुद को डिजिटल अरेस्ट कराकर इन्हें बेनकाब किया। आज पार्ट-2 में एक्सपट्‌र्स के जरिए जानिए- कैसे इन ऑनलाइन लुटेरों को पहचान सकते हैं…

क्या होता है डिजिटल अरेस्ट ?

  • ये साइबर ठगी का नया तरीका है। आरोपी वॉट्सऐप या अन्य किसी माध्यम से वीडियो कॉल करते हैं। ये पुलिस की वर्दी में होते हैं या खुद को CBI अधिकारी बताते हैं। बैकग्राउंड में आपको थाने का पूरा सेटअप दिखेगा।
  • लुटेरे इस बात का विश्वास दिलाते है कि आप पर जो आरोप लगे हैं, उसका वे ऑनलाइन समाधान कर देंगे। इस पर पीड़ित को लगता है कि इस चंगुल में छूट जाएगा।
  • झूठे सबूतों के जरिए डराते हैं कि-आपके अकाउंट से आतंकवादियों को पैसे दिए गए हैं। एयरपोर्ट पर आपके नाम का जो पार्सल मिला है उसमें ड्रग है। मनी लॉन्ड्रिंग के नाम भी डराते हैं।
  • वीडियो कॉल के जरिए पीड़ित की मॉनिटरिंग करते हैं और उसे हिलने तक नहीं देते। जैसे-जैसे आप डरना शुरू करेंगे वैसे – वैसे ठग की आवाज तेज होती जाएगी।
  • आपको केस में फंसाने की धमकी देना शुरू कर दिया जाएगा। जांच के नाम पर आपको वॉट्सऐप पर लैटर भेजा जाएगा।
  • आपसे कहा जाएगा आपके खातों के सभी पैसों को सरकारी ऐजेंसी के गुप्त खातों में ट्रांसफर किया जा रहा है।
  • इसकी जांच के बाद यह पैसा लौटा दिया जाएगा। पैसा ट्रांसफर होने के दो तीन घंटे बाद तक भी आपको कैमरे के सामने ही बैठने के लिए मजबूर किया जाएगा।
  • इससे आपके खातों से ट्रांसफर हुए पैसों को अलग-अलग खातों में ट्रांसफर कर निकालने के लिए उन्हें समय मिल जाएगा।

यदि पुलिस मामले की जांच करती है तो उसकी क्या प्रोसेस है

पुलिस अधिकारियों के अनुसार पुलिस जांच और पूछताछ की एक प्रोसेस होती है। पुलिस के सामने कोई भी मामला आने पर पहले FIR दर्ज की जाती है। इसकी एक कॉपी परिवादी और एक कॉपी आरोपी को दी जाती है। इसमें बताया जाता है कि आपके खिलाफ ये मामला है। पूछताछ के लिए भी पहले आरोपी को नोटिस भेजा जाता है और उसे थाने में बयान के लिए एक तारीख दी जाती है। कोई भी बयान ऑनलाइन नहीं होता।

यदि गिरफ्तारी करनी है तो उसे पुलिस सीधे पहले गिरफ्तार नहीं करती। थाने में उसके बयान लेने के बाद पुलिस हिरासत में रखती है और इसके बाद गिरफ्तारी होती है। गिरफ्तार होने के बाद इसकी सूचना परिवार को दी जाती है। बताया जाता है कि उसे किस आरोप में गिरफ्तार किया गया है। 24 घंटे के अंदर उसे कोर्ट में पेश किया जाता है।

डिजिटल अरेस्ट के जाल से बचने के लिए क्या सावधानी बरतें?

  • अपने मोबाइल में आने वाले किसी भी लिंक को बिना जानकारी के नहीं खोलना चाहिए।
  • अपनी सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी पर्सनल जानकारी अपलोड न करें।
  • अनजान लिंक पर खुद से संबंधित कोई भी जानकारी अपलोड नहीं करनी चाहिए।
  • बैंक का क्रेडिट स्कोर जानने वाले लिंक पर क्लिक करने से बचना चाहिए। लोग यहां PAN व आधार कार्ड की पूरी जानकारी डाल देते है। इससे ठगों तक आपका सारा महत्वपूर्ण व गोपनीय डेटा पहुंच जाता है।
  • किसी भी व्यक्ति या अधिकारी के कहने पर अपने खातों की जुड़ी जानकारी या OTP शेयर नहीं करने चाहिए।
  • आपके पास सिम बंद होने या पार्सल जैसे कॉल आएं तो समझ जाएं कि ये फ्रॉड है। कोई भी टेलिकॉम कंपनी या एजेंसी फोन पर इंक्वायरी नहीं करती।
  • अगर आपसे कोई पुलिस अधिकारी बन बात कर रहा है तो आपको डरने की जरूरत नहीं है। पुलिस या कोई भी सुरक्षा एजेंसी की इन्वेस्टिगेशन ऑनलाइन या वीडियो के माध्यम से नहीं होती है।
  • अगर कोई पैसों से जुड़ा मामला है तो पुलिस आपके खातों को फ्रीज करवाएगी ना ही आपके खातों से किसी दूसरे खातों में पैसे को ट्रांसफर करवाएगी।
  • अगर आप को डिजिटल अरेस्ट कर ठग लिया गया है तो तुरंत इसकी जानकारी नजदीक पुलिस थाने में देनी चाहिए।

किस तरह काम करता है ये नेटवर्क? यह ठग अलग-अलग प्रदेशों से अपने नेटवर्क को ऑपरेट करते हैं। अलग-अलग माध्यम से हाईप्रोफाइल लोगों के मोबाइल नंबर और पर्सनल डेटा जुटा लेते हैं। एक टीम और होती है जो ठगी के रुपए को खपाने का काम करती है। ये अलग-अलग शहरों में बेरोजगार युवाओं को ढूंढती है, जिनके खाते किराए पर लिए जा सकें।

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