कुछ सुधार जरूरी हैं उच्चतम न्यायपालिका के कार्यालय में ?
11 नवम्बर को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ सेवानिवृत्त हो जाएंगे और इसके साथ ही पिछले एक दशक में इस पद पर किसी भी व्यक्ति का सबसे लंबा कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद की शपथ लेने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में यह इस उच्च पद के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर विचार करने का एक अच्छा समय है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के शीर्ष पर लंबे समय तक रहने के बाद भारत में कई छोटे कार्यकाल देखने को मिलेंगे। अगले छह मुख्य न्यायाधीशों में से केवल एक- न्यायमूर्ति सूर्यकांत एक वर्ष से अधिक समय तक सेवाएं देंगे। न्यायमूर्ति खन्ना, गवई, विक्रम नाथ और नरसिम्हा सभी का कार्यकाल छह से आठ महीने के बीच का होगा।
न्यायमूर्ति नागरत्ना- जो कि भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश होंगी- 2027 में केवल 36 दिनों के लिए पद पर रहेंगी। सीजेआई का औसत कार्यकाल 17.8 महीने का है। यह कोई भी सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बहुत कम है।
ये छोटे कार्यकाल सीनियरिटी-कन्वेंशन के कारण हैं, जिसके तहत सीजेआई की नियुक्ति की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया जाता है। सीनियरिटी-कन्वेंशन की कमियां चाहे जो हों, उसका लाभ यह है कि यह काफी वस्तुनिष्ठ लगता है।
ऐसे समय में जब राजनीतिक विवादों को संविधान पीठों के समक्ष प्रस्तुत करने की संभावना है, सीजेआई के चयन में व्यक्तिपरकता का तत्व शामिल करना न्यायालय की वैधता को कम कर सकता है और इसे और अधिक राजनीतिक बना सकता है। यही कारण है कि सीनियरिटी-कन्वेंशन और इसके छोटे कार्यकाल अभी भले बने रहें, लेकिन उच्च न्यायपालिका के कामकाज में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
न्यायपालिका का एक पहलू- जिसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है- सीजेआई की ‘रोस्टर के मास्टर’ के रूप में भूमिका है। इसमें मुख्य न्यायाधीश को इस पर पूर्ण विवेकाधिकार प्राप्त होता है कि न्यायालय के समक्ष आने वाले किसी भी मामले की सुनवाई के लिए किस न्यायाधीश को नियुक्त किया जाए।
इस भूमिका के निर्वहन में कथित अनियमितताएं 2018 में आयोजित एक अभूतपूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों द्वारा उठाई गई शिकायतों से जाहिर हुई थीं। उसके छह साल बाद- जबकि पाकिस्तान तक ने केसों के आवंटन में अपने सुप्रीम कोर्ट के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों को शामिल करके इस भूमिका में सुधार किया है- भारत ने इसे बरकरार रखा है।
न्यायालय की वैधता कम न हो, इसके लिए केसों के आवंटन की प्रक्रिया को अधिक व्यापक और पारदर्शी बनाना होगा। सीजेआई सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासनिक प्रमुख की भूमिका भी निभाते हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर, सचिवालय, बजट, सुरक्षा और केस प्रबंधन सम्बंधी आवश्यकताओं का प्रबंधन बहुत बड़ा काम है।
सीजेआई से यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वे न्यायाधीश के रूप में अपने काम के साथ नौकरशाही के प्रबंधन का काम भी देखें। जिस तरह प्रधानमंत्री के काम में सहायता करने के लिए एक पीएमओ होता है, जिसके लिए विशेषज्ञों का चुनाव किया जाता है- उसी प्रकार सीजेआई के पास भी प्रशासनिक कार्यालय होना चाहिए।
इसके लिए, यूके सहित अन्य देशों ने सुप्रीम कोर्ट के ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ का पद बनाया है। एक स्वतंत्र पेनल द्वारा चुना गया यह अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिए आवश्यक सभी गैर-न्यायिक प्रशासनिक कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है।
समय आ गया है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में भी सभी प्रशासनिक कार्यों के लिए एक सीईओ हो। इससे सीजेआई को डिजिटलीकरण की देखरेख और छुट्टी मंजूर करने जैसे सामान्य प्रशासनिक कार्य नहीं करने पड़ेंगे, जिससे करदाताओं का कीमती पैसा बचेगा।
अक्सर कहा जाता है कि खराब व्यवस्था एक अच्छे व्यक्ति को हरा देती है। भारत को कई ऐसे मुख्य न्यायाधीश मिले हैं, जो बेदाग ईमानदारी, कौशल और स्वतंत्रता के धनी रहे हैं। हम निवर्तमान सीजेआई चंद्रचूड़ को शुभकामनाएं देते हैं और आने वाले सीजेआई खन्ना का स्वागत करते हैं, लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि न्यायपालिका जैसी जटिल व्यवस्था केवल सीजेआई पर निर्भर नहीं रह सकती, चाहे वे कितने भी सुपात्र क्यों न हों। समय आ गया है कि सीजेआई के कार्यालय के संस्थागत सुधार की चुनौती को सीधे लिया जाए, ताकि मुख्य न्यायाधीशों को वह समर्थन दिया जा सके, जिसके वे हकदार हैं।
हमें स्वीकारना चाहिए कि न्यायपालिका जैसी जटिल व्यवस्था केवल सीजेआई पर निर्भर नहीं रह सकती, चाहे वे कितने भी सुपात्र क्यों न हों। सीजेआई के कार्यालय के संस्थागत सुधार की चुनौती का हमें सामना करना चाहिए। (ये लेखकों के अपने विचार हैं)