3 साल में 80% तक बढ़ गई प्राइवेट स्कूलों की फीस !
सर्वे में हुआ खुलासा! तीन साल में स्कूल फीस में 50-80% तक की छलांग, अभिभावकों की जेब पर भारी बोझ
सर्वे में खुलासा हुआ है कि देशभर के प्राइवेट स्कूलों ने पिछले तीन सालों में फीस में 50% से 80% तक की बढ़ोतरी की है.
यदि आपको लग रहा है कि हर वर्ष स्कूल की फीस कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है, तो ऐसा सोचने वाले आप अकेले नहीं हैं. हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार देशभर के स्कूलों में फीस बड़ी तेजी से बढ़ी है. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों में देशभर के प्राइवेट स्कूलों ने फीस में 50 से 80 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर दी है. इस बेतहाशा बढ़ोत्तरी ने मध्यमवर्गीय परिवारों की कमर तोड़ दी है.
यह सर्वे दिल्ली स्थित LocalCircles नाम की संस्था ने किया है, जिसमें देशभर के 300 से ज्यादा जिलों से 85,000 से अधिक अभिभावकों की राय ली गई. इसमें खुलासा हुआ कि ज्यादातर निजी स्कूल हर साल 10-15% तक फीस बढ़ा रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि इस दौरान कई स्कूलों ने बिल्डिंग फीस, टेक्नोलॉजी चार्ज, मेंटेनेंस फीस जैसे नए खर्चे भी जोड़ दिए, जो पहले कभी नहीं लिए जाते थे.
अभिभावकों का कहना है कि न तो पढ़ाई की क्वालिटी में कोई बड़ा सुधार दिख रहा है और न ही स्कूल की सुविधाओं में. इसके बावजूद फीस हर साल तेजी से बढ़ रही है. रिपोर्ट में बताया गया कि 42% अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों के स्कूलों में फीस में 50% से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है, जबकि 26% लोगों ने कहा कि फीस 80% तक बढ़ गई है.
वसूले जा रहे रुपये
इस सर्वे में एक चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि बहुत से स्कूलों ने प्राइवेट ट्रांसपोर्ट, डिजिटल लर्निंग जैसी चीजों के नाम पर अलग से रुपये वसूलने शुरू कर दिए हैं. कोरोना के बाद जहां ऑनलाइन पढ़ाई एक मजबूरी बनी, वहीं कई स्कूलों ने इसे कमाई का जरिया बना लिया.
मुनाफे का धंधा?
अब सवाल ये उठता है कि क्या शिक्षा भी सिर्फ एक मुनाफे का धंधा बनती जा रही है? सरकार ने जरूर कुछ नियम बनाए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि इन पर सही से अमल नहीं हो पा रहा है. कई राज्यों में फीस नियंत्रण समिति तो बनी है, लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ कागजों तक सीमित है.
रिपोर्ट के अनुसार अभिभावक सरकार से मांग कर रहे हैं कि एक राष्ट्रीय स्तर की नीति बने, जिससे स्कूलों की फीस पर लगाम लगाई जा सके और हर बच्चे को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सुलभ हो सके.
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- लोकल सर्कल्स के सर्वे में बढ़ती फीस पर लोगों ने जताई चिंता
- देश के 309 जिलों से 31000+ पैरंट्स हुए शामिल
- बताया- 3 साल में स्कूल फीस कितनी बढ़ी
स्कूल खुलने के साथ ही फीस बढ़ोतरी को लेकर पैरंट्स की चिंता बढ़ गई है। लोकल सर्कल्स के सर्वे में 44% पैरंट्स ने बताया कि उनके बच्चों के स्कूलों की फीस पिछले तीन साल में 50% से 80% तक बढ़ चुकी है। सर्वे में देश के 309 जिलों से 31,000 से ज्यादा अभिभावकों ने हिस्सा लिया। इनमें 38% महिलाएं थीं।
सर्वे में कहा गया है कि देश में प्राइवेट स्कूल्स की फीस इतनी ज्यादा हो गई है कि मिडिल क्लास और निम्न आय वर्ग के परिवार परेशान हैं। कई पैरंट्स लोन लेकर या अपनी जरूरतें कम करके बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं।
हैदराबाद में तो प्राइमरी स्कूलों में एडमिशन के लिए फीस दोगुनी कर दी गई है। बेंगलुरु में पैरंट्स ने 10% से 30% तक बढ़ी स्कूल फीस पर आपत्ति जताई है। पैरंट्स का आरोप है कि हर साल बिना किसी ठोस कारण के फीस बढ़ा दी जाती है। वहीं, स्कूल प्रशासन का कहना है कि टीचर्स की सैलरी और अन्य खर्चों के कारण उन्हें फीस बढ़ानी पड़ती है।
फीस बढ़ोतरी को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी हुई है। एक पैरंट ने सोशल मीडिया पर लिखा, हर साल स्कूल फीस 10% से 40% तक बढ़ जाती है, लेकिन सुविधाएं वैसी की वैसी रहती हैं। आम आदमी की सैलरी इतनी नहीं बढ़ती, फिर हम ये बढ़ी हुई फीस कैसे दें?
2022 से 2025 के बीच स्कूल फीस कितनी बढ़ी?
कितने पैरंट्स ने प्रतिक्रिया दी | 3 साल में स्कूल फीस कितनी बढ़ी |
8% | 80% से अधिक |
36% | 50-80% |
8% | 30-50% |
27% | 10-30% |
8% | कोई बदलाव नहीं |
13% | हमने स्कूल बदल लिया इसलिए बताना मुश्किल है, या कुछ कह नहीं सकते |
क्या सरकार कंट्रोल कर सकती है फीस?
दिल्ली की शिक्षा निदेशक वेदिता रेड्डी ने टीम बनाकर जांच कराने का दिया आश्वासन
नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में नया सत्र शुरू होने के साथ ही स्कूलों द्वारा मनमानी तरीके से फीस बढ़ाने की शिकायत सामने आ रही हैं. राजधानी में 1700 से ज्यादा निजी स्कूल संचालित हैं, जिनको शिक्षा निदेशालय से मान्यता मिली हुई है. इनमें से करीब 200 से ज्यादा स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाने की जानकारी सामने आ रही है. इनमें से 40 से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं जिनमें पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों ने स्कूलों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
अभिभावकों ने न सिर्फ इन स्कूलों की शिकायत की है, बल्कि उनके खिलाफ खुलकर विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं. जिन स्कूलों के खिलाफ विभागों ने शिकायत दी है और प्रदर्शन किया है उन स्कूलों में प्रमुख रूप से डीपीएस द्वारका, डीपीएस रोहिणी, डीपीएस वसंत कुंज, इंद्रप्रस्थ वर्ल्ड स्कूल, महाराजा अग्रसेन मॉडल स्कूल पीतमपुरा शामिल हैं. इन्हीं स्कूलों में से एक दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) द्वारका में पढ़ने वाले 100 से अधिक छात्र-छात्राओं के अभिभावकों ने दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) पर प्रदर्शन कर तत्काल कार्रवाई की मांग की है, ताकि उनके बच्चों को उत्पीड़न से बचाया जा सके.
अभिभावकों ने; ”डीपीएस द्वारका द्वारा हमारा और हमारे बच्चों का लगातार उत्पीड़न किया जा रहा है. साथ ही सरकारी आदेशों की अवहेलना भी की जा रही है. प्रदर्शन में शामिल अभिभावक एवं सामाजिक संस्था युवा राष्ट्रीय चेतना मंच के राष्ट्रीय महासचिव महेश मिश्रा ने बताया कि कोविड-19 महामारी (2020-21 शैक्षणिक वर्ष) के दौरान डीपीएस सोसाइटी द्वारा संचालित स्कूलों ने सरकारी और न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना करते हुए भारी शुल्क वृद्धि कर दी, जबकि 15% फीस छूट देने का आदेश दिया गया था.
महेश मिश्रा ने बताया कि डीपीएस द्वारका ने न केवल मनमाने ढंग से बढ़ाई गई फीस की मांग की, बल्कि इसका विरोध करने वाले वाले अभिभावकों के बच्चों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया. उन्होंने बताया कि 193 से ज्यादा स्कूलों की फीस वृद्धि का मामला दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है. इसके अलावा अन्य सबसे ज्यादा स्कूल ऐसे हैं जिनके खिलाफ विभागों ने पिछले साल भी शिकायत की थी और इस साल भी शिकायत आ रही है.
स्कूल प्रबंधन द्वारा शिक्षा निदेशालय के आदेशों की अवहेलना:
डीपीएस द्वारका, रोहिणी, वसंत कुंज और पीतमपुरा स्थित महाराजा अग्रसेन मॉडल स्कूल के अभिभावकों ने स्कूलों के खिलाफ शिक्षा निदेशालय और एनसीपीसीआर में शिकायत की है. शिकायत के बाद निदेशालय ने स्कूलों के खिलाफ जांच का आदेश दिया है. इन स्कूलों ने बढ़ी हुई फीस न देने पर कुछ बच्चों के स्कूल से नाम काट दिए हैं तो वहीं कुछ बच्चों का रिजल्ट भी रोक दिया है. वहीं कुछ बच्चों के बिना नाम काटे हुए ही उन्हें कक्षाएं लेने से रोक दिया है.
अभिभावकों का आरोप है कि बच्चों को अवैध तरीके से जबरन लाइब्रेरी में बिठाया जा रहा है. अभिभावकों का कहना है कि शिक्षा निदेशालय के कई निर्देशों के बावजूद स्कूल प्रशासन ने उन्हें मानने से इनकार कर दिया है, जिससे छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. अभिभावकों ने डीओई के 27 मार्च 2025 के आदेश सहित, इसके बार-बार उल्लंघन की शिकायत की है. इतना ही नहीं स्कूलों द्वारा बच्चों को निकाले जाने की धमकी दिया जा रहा है, जिससे वे मानसिक तनाव और चिंता से गुजर रहे हैं. कई छात्रों को जबरन स्कूल के पुस्तकालय में रखा गया, जहां वे अपने सहपाठियों से बात तक नहीं कर सकते थे. शौचालय या पानी पीने जाने के दौरान भी उन्हें स्कूल के हाउसकीपिंग स्टाफ की निगरानी में रखा गया. उन्हें अलग समय पर लंच करने के लिए मजबूर किया गया, ताकि वे अन्य छात्रों से बातचीत न कर सकें. इसके साथ ही कई छात्रों को जानबूझकर कक्षाओं का आवंटन नहीं किया गया, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हुई.
अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि एनसीपीसीआर (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) ने भी बार-बार की गई शिकायतों के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिससे उत्पीड़न जारी है. अभिभावकों ने कहा कि एनसीपीसीआर की निष्क्रियता के कारण स्कूल प्रबंधन को कानून तोड़ने की छूट मिल गई है. आयोग ने जवाब दिया कि मामला दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है, इसलिए वे हस्तक्षेप करने में असमर्थ हैं.
महाराजा अग्रसेन स्कूल ने रोका रिजल्ट: पीतमपुरा स्थित महाराजा अग्रसेन स्कूल की ओर से बच्चों का एग्जाम रिजल्ट देने से इंकार करने का मामला सामने आया है. पेरेंट्स का कहना है कि स्कूल पहले बढ़ी हुई फीस का बकाया भुगतान मांग रहा है. पीतमपुरा में रहने वाली प्रियंका जैन ने बताया कि उनके दो बच्चे कक्षा चौथी और सातवीं में पढ़ते हैं. 27 मार्च को बच्चों का रिजल्ट आना था. स्कूल उन अभिभावकों के बच्चों का रिजल्ट जारी कर रहा है जो बढ़ी फीस दे चुके हैं. वहीं, जिन बच्चों के पेरेंट्स ने बढ़ी फीस का बकाया भुगतान करने से मना कर दिया है, उनका परीक्षा परिणाम जारी नहीं किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि करीब 150 से ज्यादा बच्चों का रिजल्ट रोका गया है.
डीपीएस वसंत कुंज और रोहिणी की भी मिली शिकायत: डीपीएस वसंत कुंज द्वारा शिक्षा निदेशालय की बिना अनुमति के बढ़ाई गई फीस न देने पर कुछ बच्चों का नाम काटने की भी शिकायत मिली थी. इसके बाद उन्हें एनसीपीसीआर की ओर से नोटिस जारी किया गया था. वहीं, शिक्षा निदेशालय ने भी सभी प्राइवेट स्कूलों को शिक्षा निदेशालय की बिना अनुमति के बढ़ाई गई फीस का भुगतान न करने पर नाम न काटने की एडवाइजरी जारी करके चेतावनी भी दी थी.
दरअसल, शिक्षा निदेशालय को सेक्टर-24 स्थित डीपीएस रोहिणी के खिलाफ लिखित शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसके बाद उसने यह एडवाइजरी जारी की थी. उसमें शिक्षा निदेशालय ने कहा था कि फीस का मुद्दा न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है. इस संबंध में अभी तक न्यायालय द्वारा कोई ऐसा निर्णय पारित नहीं किया गया है, जिसमें स्कूल को प्रस्ताव के अनुसार अभिभावकों से बढ़ी हुई फीस वसूलने की अनुमति दी गई हो.
अभिभावकों की प्रमुख मांगें:
- स्कूल प्रशासन का तुरंत अधिग्रहण किया जाए. दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम (DSEAR) 1973 के तहत छात्रों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जाए.
- 2 अप्रैल 2025 की घटना की आपराधिक जांच, छात्रों को बहला-फुसलाकर कक्षा में भेजने और फिर पुस्तकालय में बंद करने के लिए किशोर न्याय अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाए.
- स्कूल के वित्तीय रिकॉर्ड की फॉरेंसिक ऑडिट, संभावित वित्तीय कदाचार, मुनाफाखोरी और शिक्षा के व्यावसायीकरण की जांच की जाए.
- अतिरिक्त वसूली गई फीस की वापसी. शिक्षा निदेशालय के 22 मई 2024 के आदेश के अनुसार 2023-24 सत्र की अधिक शुल्क राशि लौटाई जाए.
- छात्रों का उत्पीड़न बंद हो. कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों को पुस्तकालय में जबरन बैठाने की प्रक्रिया तुरंत रोकी जाए.
- नई शुल्क वृद्धि को खारिज किया जाए. स्कूल के गैर-अनुपालन और अवैध पीटीए अनुमोदन के आधार पर प्रस्तावित फीस वृद्धि को नामंजूर किया जाए.
- सीसीटीवी फुटेज की जांच (20 मार्च 2025 से अब तक)
- छात्रों के बयान वीडियो रिकॉर्डिंग के तहत दर्ज किए जाएं.
- डीपीएस सोसाइटी और डीपीएस द्वारका प्रबंधन पर कानूनी कार्रवाई जे.जे. अधिनियम के उल्लंघन के लिए की जाए.
शिक्षा निदेशक को भी अभिभावकों ने बताई समस्याएं: बैठक के दौरान अभिभावकों ने शिक्षा निदेशक वेदिता रेड्डी को बताया कि डीडीई ऑफिस में दी गई शिकायत के बाद जांच कराई गई लेकिन उसकी रिपोर्ट में झूठे दावे किए गए. डीडी कार्यालय द्वारा स्कूल में जांच करने पहुंचे नॉमिनी ने शिकायतकर्ता बच्चों से बातचीत नहीं की, और ना ही सीसीटीवी कैमरे चेक किए. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कोई भी बच्चा पुस्तकालय में बंद नहीं था. अभिभावक स्कूल फीस नहीं भर रहे थे और स्कूल कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहा है यह सरासर गलत है. अभिभावकों ने इन झूठे दावों को सख्ती से खारिज किया और कहा कि किसी भी स्थिति में बच्चों के साथ मानसिक उत्पीड़न नहीं किया जाना चाहिए. कई बच्चों ने खुद शिक्षा निदेशक के सामने अपने साथ हुए उत्पीड़न की जानकारी दी. महेश मिश्रा ने बताया कि इसके बाद शिक्षा निदेशक वेदिता रेड्डी ने एक 5 सदस्यीय नई कमेटी बनाकर शिकायतों की जांच शुरू करा दी है.