अमेरिका की आप्रवासन नीति से अंतरराष्ट्रीय छात्रों को डरने की जरूरत नहीं ?

मुद्दा: अमेरिका की आप्रवासन नीति से अंतरराष्ट्रीय छात्रों को डरने की जरूरत नहीं; ट्रंप हैं, तो मुमकिन है

ट्रंप की आप्रवासन नीति अंतरराष्ट्रीय छात्रों के मन में शंका पैदा करती है, लेकिन डरने की जरूरत नहीं, क्योंकि ट्रंप हैं, तो कुछ भी संभव है।

International students need not fear US immigration policy during President Elect Donald Trump regime
डोनाल्ड ट्रंप …

क्या व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी अमेरिका की आप्रवासन नीति को बुरी तरह से प्रभावित करेगी, जिससे अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या संभावित रूप से प्रभावित होगी? इस सवाल पर न केवल भारत में, बल्कि अन्य देशों में भी चर्चा हो रही है, क्योंकि भारत समेत कई देशों से बड़ी संख्या में छात्र वहां पढ़ने जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में 3.37 लाख भारतीय छात्र हैं, जो कनाडा के बाद भारतीय छात्रों का दूसरा बड़ा गंतव्य है, जहां भारत के 4.27 लाख छात्र हैं।

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप जनवरी, 2025 में अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। ट्रंप की दूसरी पारी का अमेरिका और पूरे विश्व पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, और यह अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। लेकिन क्या हमें ट्रंप के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल की पुनरावृत्ति की उम्मीद करनी चाहिए, जिसे विदेशियों के प्रति अत्यधिक संदेहशील माना जाता था? सच कहूं तो, कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता।

जैसा कि आईसीईएफ मॉनिटर (इंटरनेशनल कंसल्टेंट फॉर एजुकेशन एंड फेयर्स) बताता है, ‘ट्रंप का पहला कार्यकाल, 2016 से 2020 तक, अमेरिका में विदेशी छात्रों की रुचि में उल्लेखनीय गिरावट आई और छात्र गतिशीलता को प्रभावित करने वाली बेहद प्रतिबंधात्मक नीतियां लागू की गई थीं। इसमें कुख्यात ‘यात्रा प्रतिबंध 3.0’ शामिल था, जिसने ईरान, लीबिया, सोमालिया, सीरिया, यमन, उत्तर कोरिया और वेनेजुएला के छात्रों के लिए अमेरिका में अध्ययन तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया था, और चीनी छात्रों के लिए वीजा नामंजूर करने में बढ़ोतरी हुई थी। 2018 में एक निजी रात्रिभोज में ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका में पढ़ने वाला चीन का ‘लगभग हर छात्र’ एक जासूस था। ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय नामांकन में 12 फीसदी की गिरावट आई थी और एच-1बी वीजा विस्तार से इन्कार तीन फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गया था।’

कुल मिलाकर, ट्रंप के पिछले कार्यकाल में आप्रवासन नीतियों में कई तरह के बदलाव हुए, जिनका असर कुशल पेशेवरों और छात्रों पर पड़ा, खास तौर पर एच-1बी, एफ-1 और एच-4 वीजा रखने वाले लोगों पर। भारत के ज्यादातर कुशल कर्मचारी एच-1बी वीजा पर काम करते हैं। एक साल में एच-1बी वीजा की मानक सीमा 65,000 है, इसके अलावा अमेरिकी संस्थान से मास्टर डिग्री या उससे ज्यादा डिग्री वाले आवेदकों को 20,000 अतिरिक्त वीजा दिए जाते हैं।

एच-1बी के अलावा, वैकल्पिक व्यावहारिक प्रशिक्षण (ओपीटी) नामक 12 महीने के कार्य वीजा का छात्र दावा कर सकते हैं। यह कम से कम लगातार दो सेमेस्टर के लिए पूर्णकालिक रहने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए उपलब्ध है, जो अमेरिका में अपने अध्ययन के क्षेत्रों में रोजगार पाने की योजना बना रहे हैं। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित (एसटीईएम) विषयों से स्नातक करने वाले छात्र अपने ओटीपी के 24 महीने अतिरिक्त विस्तार के पात्र हैं। तो क्या ट्रंप की वापसी से भारतीय छात्रों को चिंतित होना चाहिए? हम फिलहाल नहीं जानते कि ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने पर क्या होगा? डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेट्स पर प्रवासियों के प्रति नरम रुख अपनाने और कथित तौर पर अवैध आप्रवासन को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया था।

आईसीईएफ का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय छात्र ‘निराश’ हैं। लेकिन अमेरिका में शिक्षा उद्योग के नेता भी कह रहे हैं कि नई सरकार को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के मूल्य के बारे में अवगत कराने की आवश्यकता है। आईसीईएफ से जुड़े एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘कांग्रेस और ट्रंप प्रशासन के साथ काम करते हुए हम उन नीतियों की वकालत करेंगे, जो अनुसंधान, कार्यबल विकास, ज्ञान कूटनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा में अमेरिकी भूमिका को मजबूत करती हैं। अंतरराष्ट्रीय शिक्षा अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति है।’

यह केवल विदेशी छात्रों के मामले में अमेरिका के अधिक संरक्षणवादी होने की बात नहीं है। भारत और कनाडा के बीच भू-राजनीतिक तनाव से भारतीय छात्र प्रभावित हैं। और ऑस्ट्रेलिया, जो छात्रों के लिए एक और पसंदीदा गंतव्य है, अंतरराष्ट्रीय छात्रों के नामांकन पर सीमा लगा सकता है। यह चुनौती सिर्फ भारतीय छात्रों के लिए नहीं है। अगर कोई विदेश में पढ़ने का इच्छुक है, तो भी बैक-अप प्लान रखना जरूरी है। लेकिन अभी से निराशा में डूबने की जरूरत नहीं है। अगर कभी-कभी उम्मीदें टूट जाती हैं, तो डर भी झूठा साबित होता है। ट्रंप के मामले में आप निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि क्या होगा!

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