जाति विभाजन को रोकने की कोशिश या चुनावी रणनीति?

 बीजेपी का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारा: जाति विभाजन को रोकने की कोशिश या चुनावी रणनीति?

बीजेपी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे के जरिए हिंदू समाज में एकता का संदेश देने की कोशिश कर रही है, ताकि चुनाव में हिंदु एकजुट होकर बीजेपी को वोट दें.

बीजेपी का नया नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे…’ हाल ही में काफी सुर्खियों में है. ये नारा सबसे पहले यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ ने दिया और अब चुनाव में मुद्दा बनता जा रहा है. सीएम योगी से लेकर पीएम मोदी और अमित शाह सहित बीजेपी के तमाम नेता ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ की बात को हर रैली में करते नजर आ रहे हैं.

2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जातीय राजनीति के कारण कुछ नुकसान हुआ था, जहां अलग-अलग जातियों के बीच बंटवारे ने पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं. बीजेपी अब यह समझ रही है कि अगर हिंदू समाज को जातीय आधार पर बांटने का खेल चलता रहा, तो इसका सियासी नुकसान पार्टी को हो सकता है. इसीलिए बीजेपी ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे के जरिए हिंदू समाज में एकता का संदेश देने की कोशिश की है.

वहीं, विपक्ष भी बीजेपी के इस नारे को पूरी ताकत से काउंटर करने की कोशिश कर रहा है. विपक्ष का कहना है कि बीजेपी का यह नारा केवल एक चुनावी चाल है, जो समाज में असंतोष फैलाने और असल मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश करता है. विपक्ष यह भी आरोप लगा रहा है कि बीजेपी के इस कदम से समाज में जातिवाद को और बढ़ावा मिल सकता है, न कि उसे खत्म किया जा सकता है.

कब दिया गया ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारा
सीएम योगी ने तीन महीने पहले आगरा में एक कार्यक्रम के दौरान बांग्लादेश के हालात पर टिप्पणी करते हुए एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था, “एक राष्ट्र से बड़ा कुछ नहीं हो सकता, कोई राष्ट्र तभी मजबूत हो सकता है, जब हम एकजुट और धर्मनिष्ठ रहेंगे. बंटेंगे तो कटेंगे.” इसके बाद इस बयान ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश में राजनीतिक हलचल मचा दी थी.

योगी आदित्यनाथ का यह बयान पहले उत्तर प्रदेश तक ही सीमित था, लेकिन अब यह महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में भी चर्चाओं का विषय बन चुका है. दोनों राज्यों में होने वाले चुनावों में इस नारे को एक राजनीतिक टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. बीजेपी और उनके सहयोगी दल इसे अपने प्रचार का अहम हिस्सा बना चुके हैं.

बीजेपी का 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारा: जाति विभाजन को रोकने की कोशिश या चुनावी रणनीति?

बीजेपी के बंटेंगे तो कटेंगे नारे का क्या मतलब है? 
बीजेपी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे का उद्देश्य भारतीय समाज, खासकर हिंदू समुदाय में एकता बनाए रखना है. इसका मतलब यह है कि अगर समाज जाति, धर्म, क्षेत्र या अन्य विभाजनों में बंट जाएगा, तो वह कमजोर हो जाएगा. इस नारे के जरिए बीजेपी हिंदू समाज में जातिगत आधार पर होने वाले विभाजन को रोकने का प्रयास कर रही है. 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे के जरिए बीजेपी का मकसद हिंदू मतदाताओं को एकजुट करना है. 2024 लोकसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण देखा गया था, जबकि हिंदू वोटों में वैसी एकजुटता नहीं दिखी. इस कारण बीजेपी अब इस नारे के जरिए हिंदू वोटबैंक को संगठित करने की कोशिश में है, ताकि चुनावी नुकसान की भरपाई की जा सके.

महाराष्ट्र में आरक्षण का मुद्दा बीजेपी के लिए चुनौती बना हुआ है, जबकि झारखंड में आदिवासी-मुस्लिम एकता बीजेपी की राजनीति में तनाव पैदा कर रही है, क्योंकि इससे धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति कमजोर पड़ रही है. इन राज्यों में बीजेपी इस नारे के साथ अपना जनाधार मजबूत करने का प्रयास कर रही है.

क्या सच में हिंदुओं का बांटा जा रहा है?
एबीपी न्यूज ने वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने लेखक विष्णु शर्मा से बाचतीत की. उन्होंने अपनी किताब का हवाला देते हुए इतिहास के कुछ पहलुओं के साथ समझाया.

विष्णु शर्मा ने कहा, “बचपन से हम पढ़ते आए हैं ‘हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई’. लेकिन जब इतिहास पढ़ते हैं तो कुछ और ही देखने को मिलता है. सैकड़ों साल पहले पूरी दुनिया में लंबे समय तक मुस्लिम और ईसाई के बीच युद्ध होते रहे. दोनों समुदाय अपना राज स्थापित करना चाहते थे. भारत पर भी इन्होंने कब्जा करने की कोशिश की. पहले मुगलों ने इस्लामिक राज कायम करने की कोशिश की. फिर अंग्रेजों ने भारत में ईसाई धर्म को बढ़ावा दिया, सरेआम कत्ले आम किया. किसी ने भी प्यार मोहब्बत से राज करने की कोशिश नहीं की, सभी ने तलवार के जोर पर शासन किया और हिंदुओं का खुलेआम धर्मान्तरण भी हुआ. देखा जाए तो करीब 800 सालों से हिंदू पीड़ित है.”

“साल 1906 में जब मुस्लिम लीग का जन्म हुआ, तो एक लाल इश्तिहार बांटा गया. उसमें साफ-साफ ये बताया गया था कि हिंदुओं का कैसे बर्बाद किया जाए. कहने का मतलब शुरुआत से ही मुस्लिम समुदाय एक था. उनका मकसद साफ था कि उन्हें जाति में बंटना नहीं है और भारत का मुस्लिम राष्ट्र बना देना है. उनके नेता भी इसी एजेंडे पर कायम रहे और इसी एजेंडे पर राजनीति की. नतीजा ये हुआ कि आज दुनियाभर में 57 देश कट्टर इस्लामिक हैं. एक भी सर्कुलर इस्लामिक देश नहीं है.”

बीजेपी का नारा जाति विभाजन को रोकने की कोशिश या चुनावी रणनीति?
इस सवाल के जवाब में विष्णु शर्मा ने कहा कि बीजेपी का मकसद सिर्फ वोट हासिल करके सरकार बनाना है. क्योंकि कांग्रेस ने पहले लोकसभा चुनाव में जाति जनगणना का मुद्दा उठाया, तो बीजेपी ने अब उसका जवाब ढूंढ लिया है. कांग्रेस जाति जनगणना पर अड़ी हुई है. वो पहले हिंदुओं की जाति जनगणना कराएंगे, फिर जाति आधार पर कुछ को आरक्षण देंगे, कुछ को नहीं. ऐसे हिंदुओं में दो जाति के लोगों के बीच आपस में झगड़े होंगे और भाईचारा खत्म होगा. 

“हालांकि, कांग्रेस ने अपनी सरकार वाले दो राज्यों में जाति जनगणना करवाई है, लेकिन आजतक उन्होंने आंकड़े जारी नहीं किए. यानी वो आंकड़े उनके मन मुताबिक नहीं आए. जब उनके एजेंडे के मुताबिक आंकड़े आ जाएंगे, तो आंकड़े जारी कर देंगे. कांग्रेस की कोशिश यही है कि कहीं हिंदू समाज एक न हो जाए.”

“भारत में रहने वाला एक समुदाय सिर्फ अपनी बात करता है, वो देश की बात नहीं करता है. उस समुह के खिलाफ बीजेपी ने कहा कि बंटोगे तो कटोगे. ये वही समुह है जो एएमयू में आरक्षण लागू नहीं होने देता, जामिया में आरक्षण नहीं लेने देता और यहां तक कि भारत का संविधान भी नहीं मानता. हिंदुओं की लड़की 18 से पहले शादी नहीं कर सकती, मगर मुसलमानों में शादी की कोई उम्र सीमा नहीं और कितनी भी शादी कर सकते हैं.”

बीजेपी को ऐसा नारा देने की क्या जरूरत पड़ी?
एबीपी न्यूज ने वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कुमार से भी बातचीत की. उन्होंने बताया कि ‘बंटोगे तो कटोगे..’ बीजेपी का यह एक प्रतिक्रियात्मक का नारा है. बीजेपी घुसपैठिया की बात करके हिंदुत्व के इर्द गिर्द वोट बैंक को जोड़ना चाहती है. उसमें राष्ट्रवाद का भी तड़का होता है. रामजन्मभूमि के समय बीजेपी ने हिंदुत्व के कई नारे दिए. लेकिन कांग्रेस ने इसकी कांट निकाल ली. राहुल गांधी ने पूरे देश में न्याय यात्रा की और ‘संविधान बचाओ’ का नारा दिया. इसका नतीजा भी दिखा बीजेपी को लोकसभा में नुकसान हुआ. उनकी सीटें 303 से घटकर 240 रह गईं. 

बीजेपी का 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारा: जाति विभाजन को रोकने की कोशिश या चुनावी रणनीति?

“इसलिए बीजेपी ने हिंदुत्व को एकजुट रखने के लिए ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा दिया. बीजेपी के कई नेताओं के बयानों से इस बात की पुष्टि भी होती है. जब कांग्रेस ने पलटवार किया तो उन्होंने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ कहना शुरू कर दिया. मतलब उन्होंने ये साफ कर दिया है कि ये नारा सिर्फ हिंदुओं को एक करने के लिए है. मगर जब आप हिंदुओं को एक करने का नारा देते हैं, तो अपने आप गैर हिंदू भी एक होने लगते हैं. बीजेपी ने यह नारा सिर्फ अपनी सुरक्षा कवच के लिए दिया है, क्योंकि राहुल गांधी ने संविधान बचाओ और आरक्षण का मुद्दा उठाकर उनके हिंदुत्व के नारे पर सेंध लगा दी थी. “

प्रेम कुमार ने आगे कहा, “जाति जनगणना के विरोध में बीजेपी कभी नहीं थी. खासकर जब बिहार विधानसभा में जब जाति जनगणना का प्रस्ताव पारित हुआ था तो बीजेपी सहित सभी दलों ने इसका समर्थन किया था. लेकिन क्योंकि राजनीतिक रूप से इंडिया गठबंधन की तरफ इस नारे का अपहरण हो गया तो बीजेपी को लगा कि हमारे हिंदुवादी एजेंडे में यह सबसे बड़ी बाधा है. अब असल में बीजेपी ने अपने हिंदुत्व वाले मूल एजेंडे को बचाने की कोशिश में है.”

वहीं वरिष्ठ पत्रकार विष्णु शर्मा का कहना है कि ‘बंटेंगे तो कटेंगे…’ ये बीजेपी का ऑफिशियल नारा नहीं होगा. उनका संदेश यही है कि हिंदू एक होकर बीजेपी को वोट डाले. यह सिर्फ एक राजनीतिक रणनीति है. क्योंकि कानून के हिसाब से देश में धर्म के आधार पर वोट मांगने की पाबंदी है. इसलिए घुमाकर बात करनी पड़ती है.

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