भयावह होती जा रही दिल्ली में प्रदूषण की समस्या ?
इन वजहों से साल दर साल भयावह होती जा रही दिल्ली में प्रदूषण की समस्या, दिल्ली-NCR में लगाया गया GRAP 3
दिल्ली में प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। हवा में स्थानीय प्रदूषण के साथ ही पराली के धुएं की हिस्सेदारी 30 फीसदी तक पहुंच चुकी है। सफर की रिपोर्ट के मुताबिक हवा में बुधवार को प्रदूषण का स्तर सामान्य से सात गुना तक दर्ज किया गया। घटते तापमान और बढ़ती आर्द्रता ने प्रदूषण की स्थिति को और खतरनाक बना दिया है।
दिल्ली में प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। हवा में स्थानीय प्रदूषण के साथ ही पराली के धुएं की हिस्सेदारी 30 फीसदी तक पहुंच चुकी है। हवा में बुधवार को प्रदूषण का स्तर सात गुना तक दर्ज किया गया। घटते तापमान और बढ़ती आर्द्रता ने प्रदूषण की स्थिति को और खतरनाक बना दिया है। हालात की गंभीरता को देखते हुए शुक्रवार सुबह से पूरे दिल्ली एनसीआर में ग्रैप के तीसरे चरण को लागू कर दिया गया है। इसके तहत कई तरह की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।
कई प्रयासों के बावजूद दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या भयावह होती जा रही। कभी पराली के धुएं को दिल्ली के प्रदूषण की मुख्य वजह बताया जा रहा है, तो कभी गाड़ियों के धुएं को। प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए कई तरह के कदम भी उठाए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये प्रदूषण की समस्या कई दशकों के अनियंत्रित विकास और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ का परिणाम है। ऐसे में वायु प्रदूषण की मुख्य वजहों को समझने के साथ ही चरणबद्ध तरीके से इस समस्या के समाधान के लिए कदम उठाने होंगे।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के प्रिंसिपल प्रोगाम मैनेजर (एयर पॉल्यूशन कंट्रोल) विवेक चटोपाध्याय कहते हैं कि दिल्ली में लगभग 6 महीने मौसम में बहुत अधिक बदलाव नहीं होता। मौसम स्थिर रहता है और हवा की गति धीमी रहती है। दिल्ली में 1990 के दशक में ग्लोबलाइजेशन के बाद गाड़ियों की संख्या तेजी से बढ़ी, इससे प्रदूषण की समस्या भी बढ़ी। 1998 से 2008 के बीच बड़ी संख्या में बसों और गाड़ियों को सीएनजी में बदले जाने के बाद प्रदूषण के स्तर में कुछ कमी आई। रिकॉर्ड के मुताबिक 2010-2011 के करीब दिल्ली की हवा में पीएम 10 की मात्रा 200 से 250 के बीच रहती थी। दिल्ली में 2010-2011 से पीएम 2.5 के स्तर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान प्रणाली (सफर) ने रिकॉर्ड करना शुरू किया। इसके बाद लोगों को खराब होते हालात का अंदाजा मिला।
सीएसई ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि 2018 से 2024 के बीच अक्टूबर से जनवरी के बीच दिल्ली में हवा में प्रदूषण का स्तर खराब या बहुत खराब श्रेणी में ही रहता है। अध्ययन में ये भी पाया गया कि सरकार और संस्थाओं की ओर से प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों से खराब या बेहद खराब प्रदूषण वाले दिनों में तो कमी आई है, लेकिन प्रदूषण वाले दिनों में बढ़ोतरी हुई है। इन दिनों में पीएम 2.5 का हवा में औसत स्तर 180 से 190 के बीच दर्ज किया गया। मानकों के तहत हवा में इसका स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
रिसर्च जर्नल साइंस डायरेक्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 90 के दशक में सरकार की वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीतियों ने 1980-1981 से 2003-2004 तक सड़क वाहनों की संख्या में लगभग 92.6% की वृद्धि की है। ये वाहन मुख्य रूप से गैर-नवीकरणीय जीवाश्म ईंधन का उपभोग करते हैं, और ग्रीन हाउस गैसों, विशेष रूप से CO2 उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्ता हैं । भारत में, परिवहन क्षेत्र अनुमानित 258.10 टीजी CO2 उत्सर्जित करता है , जिसमें से 94.5% योगदान सड़क परिवहन (2003-2004) का था। दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए गाड़ियों का धुआं सबसे बड़ा कारण हैं।
पूरे साल दिल्ली के वायु प्रदूषण में गाड़ियों के धुएं की हिस्सेदारी औसतन 10 से 15 फीसदी तक रहती है। दिल्ली में लगभग 1.3 करोड़ वाहन हैं। इनके अलावा रोज लगभग एक मिलियन ट्रिप एसीआर की गाड़ियां दिल्ली में लगाती हैं। इन गाड़ियों के चलने वे निकलने वाला धुआं और उड़ने वाली धूल के चलते पूरे साल में दिल्ली के प्रदूषण में इनकी हिस्सेदारी काफी बढ़ जाती है। वाहनों की संख्या में तीव्र वृद्धि के परिणामस्वरूप वाहनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषकों में भी वृद्धि हुई है। दिल्ली में पंजीकृत वाहनों में 66% हिस्सा दोपहिया वाहनों का है, जो वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर सुदेश यादव कहते हैं, दिल्ली में प्रदूषण का स्तर अधिक हो चुका है। मिक्सिंग हाईट कम होने की वजह से भी प्रदूषक कणों का फैलाव हवा में नहीं हो पाता है, जिससे यह वातावरण में फंसे रह जाते हैं। गर्मी में मिक्सिंग हाईट तीन किमी तक होती है, जबकि ठंड में यह 1.5 किमी से लेकर 300 मीटर तक रह जाती है। इसकी वजह से प्रदूषण बढ़ जाता है। मौजूदा समय में हवा की गति कम होने की वजह से भी प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। हवा की गति अधिक होने की स्थिति में वह प्रदूषकों को फैला देती है। स्थिर तापमान, ठहरी हवा, मिक्सिंग हाईट और पराली, निर्माण कार्य से बढ़े प्रदूषण के कॉकटेल ने स्थिति को अधिक विकराल बना दिया है। बाहरी राज्यों से आ रहा पराली का धुआं मुसीबत को दोगुना कर रहा है। सर्दियों के मौसम में पराली का धुंआ उत्तर और उत्तर-पश्चिम दिशा से आने लगता है, जिससे दिल्ली सबसे अधिक प्रभावित होती है। निर्माण कार्य की वजह से प्रदूषकों का बढ़ना भी दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण है। निर्माण कार्यों की वजह से पार्टिकुलेट मैटर का प्रदूषण सबसे अधिक बढ़ता है।
दिल्ली सरकार की ओर से आईआईटी कानपुर से दिल्ली में प्रदूषण के श्रोतों पर कराए गए एक अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली की हवा में अब पीएम 10 की बात की जाए तो लगभग 56 फीसदी हिस्सेदारी चल रहे निर्माण कार्यों की है। इसमें मुख्य रूप से कंस्ट्रक्शन और डिमॉलीशन वर्क है। वहीं दूसरी सबसे बड़ी लगभग 10 फीसदी की हिस्सेदारी उद्योगों की है। वहीं तीसरे स्तर पर लगभग 9 फीसदी के साथ गाड़ियों का धुआं है। वहीं अगर हम पीएम 2.5 की बात करें तो यहां भी 38 फीसदी के साथ पहले नम्बर पर कंस्ट्रक्चर और डिमॉलीशन ही है। दूसरे नम्बर पर 20 फीसदी के साथ गाड़ियों का धुआं है।
दिल्ली में प्रदूषण का तीसरा सबसे बड़ा कारण पराली के धुएं को माना जा रहा है। दरअसल पराली का धुएं एक नीतिगत बदलाव का परिणाम हैं। पंजाब और हरियाणा मूल रूप से गेहूं का उत्पादन करने वाले राज्य हैं। लेकिन हरित क्रांति के बाद यहां बड़े पैमाने पर धान का उत्पादन शुरू हुआ। ये यहां एक कैश क्रॉप के तौर पर लगाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) ने अपने अध्ययनों में पाया कि एक किलो चावल पैदा करने में लगभग 500-1,000 लीटर तक पानी खर्च होता है। ऐसे में पंजाब और हरियाणा में भूगर्भजल संकट पैदा होने लगा। इसको देखते हुए पंजाब सरकार ने एक नीतिगत फैसला 2009 में लिया। 2009 में, पंजाब ने ‘पंजाब सबसॉइल वाटर संरक्षण अधिनियम’ पारित किया, जिसके तहत सरकार द्वारा घोषित तिथि से पहले चावल की बुवाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कानून के अनुसार भूगर्भजल संरक्षण के लिए धान की रोपाई 10 जून के बाद किए जाने के निर्देश दिए गए। ऐसे में किसानों के पास धान काट कर फसल लगाने के लिए काफी कम समय बचने लगा। वहीं हारवेस्टर आने के बाद धान काट कर खेत खाली करने के लिए किसानों ने पराली में आग लगाना शुरू कर दिया। सरकार कई तरह की प्रयास कर रही है कि किसान पराली में आग न लगाएं। लेकिन जुर्माने और अन्य कई तरह के प्रोत्साहन के बावजूद सरकार अब तक इस प्रयास में पूरी तरह सफल नहीं हो सकी है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग में इंडस्ट्री के प्रतिनिधि एवं सदस्य श्याम कृष्ण गुप्ता कहते हैं कि पराली जलाने की घटनाएं पहले की तुलना में घटी हैं। लेकिन इन पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगी है। ये स्पष्ट है कि राज्य सरकारें कहीं न कहीं इन घटनाओं को रोकने में सफल नहीं हो पा रहीं हैं। पराली जलाने की घटनाएं रोकने के लिए हमें स्थानीय समाधान खोजने होंगे। हमें ऐसे हारवेस्टर तैयार करने होंगे जिनसे अनाज के साथ पराली भी काट ली जाए। कुछ इस तरह की व्यवस्था करनी होगी कि किसानों को पराली के दाम मिल सकें। या सरकार अपने खर्च पर पराली को काट कर इसको किसी इंडस्ट्री को दे सके। वहीं पराली की घटनाओं पर लगाम लगाने के साथ ही हमें स्थानीय प्रदूषण पर लगाम लगाने के बारे में भी सोचना होगा। सड़क की धूल और गाड़ियों के धुएं पर लगाम लगाए जाने से प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक राहत मिल सकती है।
अरावली की पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर के लिए एक प्राकृतक बैरियर का काम करती हैं। थार के मरूस्थल से उड़ने वाले धूल के अंधड़ इन पहाड़ियों के चलते दिल्ली तक नहीं पहुंचते हैं। लेकिन असंतुलित विकास के चलते इन पहाड़ियों को भी नुकसान पहुंचा है। केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान (सीयूराज) के एक अध्ययन के मुताबिक 1975 से 2019 के बीच अरावली की लगभग 9 फीसदी पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। अध्ययन में कहा गया है कि अगर तेजी से बढ़ते शहरीकरण और खनन की मौजूदा गति जारी रहा तो 2059 तक यह नुकसान बढ़कर लगभग 22 फीसदी हो जाएगा । शोाकर्ताओं के अनुसार दिल्ली एनसीआर इस नुकसान के कारण और प्रभाव दोनों के केंद्र में होगा।
अध्ययन में ये भी अनुमान लगाया गया है कि जैसे-जैसे अरावली समतल होगी, थार रेगिस्तान का दिल्ली की ओर विस्तार बढे़गा। यहां का मौसम भी धूल भरा और शुष्क हो जाएगा। वहीं, प्रदूषण का स्तर और भयावह होगा। मौसम में अनिश्चितता भी बढ़ेगी। 2269 पहाड़ियां अरावली का निर्माण करती हैं, तो गुजरात से राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक फैली हैं।
क्या है समाधान
विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली के प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए सरकार को एक व्यापक नीति बनानी होगी। इसके तहत एक तरफ जहां दिल्ली में गाड़ियों पर लगाम लगनी होगी, वहीं सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाना होगा। यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रभारी वैज्ञानिक एवं पर्यावरण विद डॉ. फैयाज खुदसर कहते हैं कि धूल न उड़े इसके लिए एक थ्री स्टोरी फॉरेस्ट मॉडल अपनाना होगा, जिसमें बड़े पेड़ लगाने के साथ ही सड़कों के किनाने स्थानीय घास लगानी होगी जो मिट्टी को बांध कर रखे। कंस्ट्रक्शन को लेकर एक नीति बनानी होगी। सालभर दिल्ली एनसीआर में कंस्ट्रक्चर के काम चलते रहते हैं, इस पर लगाम लगानी होगी। वहीं, दिल्ली के पास एक बड़ा फ्लड प्लेन है इसमें बड़े पैमाने पर स्थानीय पेड़ लगाए जा सकते हैं, जो प्रदूषण कणों के लिए बैरियर का काम करेंगे। अरावली में भी स्थानीय पेड़ों की बड़े पैमाने पर प्लांटिंग किए जाने की जरूतर है।
GRAP 3 में लागू होगी ये 11 सूत्रीयत कार्य योजना
- सड़कों की धूल को उड़ने से रोकने के लिए पानी का छिड़काव किया जाएगा, और लैंडफिर साइटों पर आग लगने से रोका जाएगा
- सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को बढ़ाया जाएगा। दिल्ली मेट्रो की भी फ्रीक्वेंसी ऑफिस ऑवर्स में और वीकडेज में बढ़ेंगी
- सड़कों की मशीन से सफाई कराई जाएगी।
- कंस्ट्रक्शन और तोड़फोड़ के कामों पर प्रतिबंध रहेगा
- पूरे एनसीआर में स्टोन क्रशर बंद किए जाएंगे
- दिल्ली-एनसीआर में सभी खनन के काम बंद रहेंगे
- दिल्ली-एनसीआर में बीएस3 पेट्रोल और बीएस 4 एलएमवी वाहनों पर रोक लगेगी
- ट्रकों पर भी लगाम लगेगी।सिर्फ जरूरी सामानों के ट्रांस्पोर्ट की अनुमति होगी
- दिल्ली के बाहर पंजीकृत बीएस 3 और उससे नीचे के डीजल चालित एलसीवी यानी माल वाहक वाहनों को दिल्ली में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा।
- अंतरराज्यीय बसों को छोड़कर दिल्ली में दूसरे किसी बस के प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।
- कक्षा 5 तक के बच्चों के लिए स्कूलों को ऑनलाइन मोड में चलाने का आदेश भी दिया गया है।