कुंभ मेले में क्या-क्या होता है ?

 कुंभ मेले में क्या-क्या होता है, क्यों गंगा के तट पर जुटते हैं लाखों लोग? एक विस्तृत रिपोर्ट

शाही स्नान कुंभ मेले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. साधुओं के शाही स्नान के बाद आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति मिलती है.

कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है. ये मेला हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन) पर आयोजित किया जाता है. हर बार लाखों लोग इसमें शामिल होते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते है.

2025 के कुंभ मेले की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. इस बार महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से पौष पूर्णिमा स्नान के साथ शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा. इस दौरान 14 जनवरी को मकर संक्रांति, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या और 3 फरवरी को बसंत पंचमी भी मनाई जाएगी. ये सभी आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर होंगे.

इस महीने भर चलने वाले आयोजन में तीर्थयात्रियों के रहने के लिए अलग से तंबू लगाकर एक छोटा सा शहर बसा दिया जाता है. यहां रहने की सभी सुविधाएं जुटाई जाती हैं. प्रशासन, स्थानीय अधिकारियों और पुलिस की मदद से इस आयोजन को व्यवस्थित किया जाता है.

कुंभ मेले में दूर-दूर के जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं से साधु-संत आते हैं. इन साधुओं के शरीर पर भभूति लिपटी होती है, बाल लंबे होते हैं और वे चीतल की खाल ओढ़ते हैं. स्नान के लिए विभिन्न नाग साधुओं के अखाड़े भव्य जुलूस के रूप में संगम तट पर पहुंचते हैं.

क्या है कुंभ मेले की कहानी
कुंभ मेला सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि यह भारत की प्राचीन पौराणिक कथाओं से जुड़ी एक अद्भुत परंपरा है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसकी जड़ें सागर मंथन की कथा से जुड़ी हैं, जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया था. मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर जब देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष हुआ,तब अमृत की कुछ बूंदें भारत की चार पवित्र नदियों के तटों पर गिरीं. 

ये चार बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं. इसलिए, हर बार जब ग्रह-नक्षत्र की स्थिति अनुकूल होती है, तो इन चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है. इनमें से प्रयाग को तीर्थराज भी कहा जाता है और यहां हर बारह साल में महाकुंभ मेला लगता है.

कुंभ मेले में क्या-क्या होता है, क्यों गंगा के तट पर जुटते हैं लाखों लोग? एक विस्तृत रिपोर्ट

कुंभ मेले का पहला लिखित प्रमाण भगवत पुराण में मिलता है. कुंभ मेले का एक और लिखित प्रमाण चीनी यात्री ह्वान त्सांग (या ज़ुआनज़ांग) के यात्रा विवरण में मिलता है, जिन्होंने 629-645 ईस्वी में हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत का दौरा किया था. साथ ही, समुद्र मंथन के बारे में भी भगवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में उल्लेख किया गया है.

कितने तरह का होते हैं कुंभ मेले
कुंभ मेले की तारीख सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की खगोलीय स्थिति के आधार पर तय की जाती हैं. इन खगोलीय स्थितियों के अनुकूल समय को पवित्र माना जाता है. इसी कारण से कुंभ मेला हर बार अलग-अलग समय पर मनाया जाता है. नासिक और उज्जैन में अगर मेला उस समय होता है जब कोई ग्रह सिंह राशि में होता है, तो उसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है. इस समय को शुभ माना जाता है.

  • महाकुंभ मेला: यह मेला केवल प्रयागराज में होता है और यह हर 144 साल में एक बार मनाया जाता है. इसे 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद मनाया जाता है.
  • पूर्ण कुंभ मेला: यह मेला हर 12 साल में एक बार होता है. यह प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है. हर 12 साल में इन चारों स्थानों पर घूमा करता है.
  • अर्ध कुंभ मेला: ये हर 6 साल में एक बार होता है. सिर्फ दो स्थानों पर होता है: हरिद्वार और प्रयागराज.
  • माघ कुंभ मेला: यह मिनी कुंभ मेला के नाम से भी जाना जाता है. यह हर साल प्रयागराज में आयोजित होता है और यह माघ माह में हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है.

कुंभ मेले में क्या-क्या होता है, क्यों गंगा के तट पर जुटते हैं लाखों लोग? एक विस्तृत रिपोर्ट

कुंभ मेले में क्या-क्या होता है?
कुंभ मेले में कई तरह की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं. शाही स्नान कुंभ मेले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. इसमें तमाम अखाड़ों के साधु-संत पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं. यह स्नान सुबह 3 बजे शुरू होता है. साधुओं के शाही स्नान के बाद आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति मिलती है.

कुंभ मेले का एक प्रमुख आकर्षण शाही जुलूस है, जिसे ‘पेशवाई’ भी कहा जाता है. इस दौरान अखाड़ों के साधु-संत हाथी, घोड़े और रथों पर सवार होकर भव्य जुलूस निकालते हैं. यह एक अद्भुत नजारा होता है. इसके अलावा कुंभ मेले में जाने-माने संत और आध्यात्मिक गुरु धार्मिक प्रवचन देते हैं. इन प्रवचनों में आध्यात्मिक ज्ञान, भक्ति और मोक्ष के बारे में चर्चा की जाती है.

कुंभ मेले में तमाम अखाड़ों के साधु अपने-अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं. जैसे कि योग, प्राणायाम और अन्य शारीरिक क्रियाएं. अखाड़े अपने पसंदीदा भगवान के आधार पर विभाजित होते हैं. शैव अखाड़े भगवान शिव की पूजा करते हैं. वैष्णव अखाड़े भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. उदासीन अखाड़ा का सिख समाज से जुड़ाव माना जाता है. गुरु नानकदेव के सुपुत्र श्रीचंद्र ने उदासीन संप्रदाय की स्थापना की थी.

कुंभ मेले में एक विशाल मेला भी लगता है जहां कई तरह के सामान मिलते हैं. यहां लोग खरीदारी करते हैं और स्थानीय कला और शिल्प का आनंद लेते हैं. जगह-जगह पर कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं. जैसे कि नृत्य, संगीत, नाटक आदि. इसमें कोई शक नहीं कि कुंभ मेला कमाई का एक प्रमुख अस्थायी स्रोत है जो कई लोगों को रोजगार देता है.

कुंभ मेले में क्या-क्या होता है, क्यों गंगा के तट पर जुटते हैं लाखों लोग? एक विस्तृत रिपोर्ट

क्यों गंगा के तट पर जुटते हैं लाखों लोग?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं, वे हमेशा के लिए धन्य हो जाते हैं. इतना ही नहीं, यह पाप भी धो देता है और उन्हें मोक्ष के मार्ग की ओर ले जाता है. ऐसी मान्यता है. 
 
आधुनिक भारत में कुंभ मेला अब पहले से कहीं ज्यादा विशाल और भव्य हो गया है. हर साल लाखों लोग, न सिर्फ भारत से बल्कि दुनिया भर से मेले का हिस्सा बनने आते हैं. कुंभ मेले का प्रसारण दुनिया भर में किया जाता है. लोग इसे टीवी या इंटरनेट पर देखते हैं.

कुंभ 2019: तीन गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स!
2019 का कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन ही नहीं था, बल्कि एक ऐसा आयोजन था जिसने दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया. इस मेले ने तीन गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किए- सबसे बड़ी यातायात और भीड़ प्रबंधन व्यवस्था, सबसे बड़ा पेंटिंग अभियान, सबसे बड़ा स्वच्छता और कचरा निपटान तंत्र.

ये तीनों रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि भारत कैसे आधुनिक तरीके से धार्मिक आयोजन कर सकता है. ये रिकॉर्ड्स सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल हैं.

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