जनगणना में अलग से धार्मिक पहचान की मांग क्यों कर रहे हैं आदिवासी संगठन?
सरना कोड: जनगणना में अलग से धार्मिक पहचान की मांग क्यों कर रहे हैं आदिवासी संगठन?
सरना धर्म प्रकृति को भगवान का रूप मानकर उसकी देखभाल और पूजा करने की परंपरा का पालन करता है.
क्या है सरना कोड
सरना एक धर्म है जो प्रकृतिवाद पर आधारित है, यानी इसके अनुयायी प्रकृति की पूजा करते हैं. इसमें लोग पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों और अन्य प्राकृतिक तत्वों को पवित्र मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं. यह धर्म प्रकृति को भगवान का रूप मानकर उसकी देखभाल और पूजा करने की परंपरा का पालन करता है. झारखंड में सरना कोड की मांग नई नहीं है. हालांकि इस विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासियों के लिए एक अलग धार्मिक पहचान की मांग फिर से सुर्खियों में आ गई है. विधानसभा में पास हुए प्रस्ताव को अगर केंद्र ने मंजूरी दे दी तो देश में सरना एक नए धर्म के रूप में सामने आएगा.
वर्तमान में कितने धर्म हैं
वर्तमान में, भारत में छह धर्मों यानी, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख धर्म, बौद्ध और जैन धर्म को एक आधिकारिक धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता प्राप्त है, यानी इन धर्मों के अनुयायियों के लिए अलग-अलग कानून और अधिकार तय किए गए हैं.
सरना धर्म को कितने लोग मानते हैं
जनगणना 2011 के जनगणना के दौरान झारखंड के 40.75 लाख लोगों ने और भारत के छह करोड़ लोगों ने अपना धर्म सरना दर्ज कराया था. इसमें भी देश के अन्य राज्यों की तुलना में झारखंड में 34.50 लाख थे जिन्होंने अपना धर्म सरना दर्ज कराया था. रिपोर्ट की मानें तो झारखंड में वर्तमान में कुल 62 लाख सरना आदिवासी हैं.
आदिवासी जनसंख्या को नए धर्म की पहचान क्यों जरूरी
जनगणना 2001 में, छह धर्मों – हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन – को कोड नंबर 1 से 6 तक दिए गए थे. अन्य धर्मों के लिए धर्म का नाम तो लिखा जाता था, लेकिन उन्हें कोई कोड नंबर नहीं मिलता था. इसके बाद साल 2011 की जनगणना में भी यही तरीका अपनाया गया था. साल 1951 में जब पहली बार जनगणना किया गया था उस वक्त आदिवासियों के लिए धर्म कॉलम में एक अलग विकल्प था, जिसे “ट्राइब” यानी जनजाति कहा गया था, लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया. इसके बाद आदिवासियों की गिनती अलग-अलग धर्मों में बांट दी गई, जिससे उनकी सही संख्या का पता नहीं चल सका.
अगर केंद्र सरकार झारखंड विधानसभा के प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तो आदिवासियों को एक अलग कोड नंबर मिल जाएगा, जिससे उनकी धार्मिक पहचान को पहचाना जा सकेगा. हालांकि, सरना धर्म कोड की मांग में गोंड और भील जैसे आदिवासी समूहों को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वे अपने धर्म को अलग मानते हैं.
आदिवासी समुदाय सरना कोड की मांग क्यों करते आ रहे हैं? इस सवाल के जवाब में हजारीबाग विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. जीएन झा कहते हैं कि झारखंड में कुल 32 जनजातियां हैं, इनमें से 8 ‘पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप’ (PVTG) हैं. इन सभी जनजातियों को हिंदू समुदाय में वर्गीकृत किया गया है. जिन आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपनाया है, वे अपनी धर्मनिरपेक्षता में ‘ईसाई’ लिखते हैं. इसी कारण आदिवासी समुदाय अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए सरना कोड की मांग कर रहे हैं.
क्या इससे आदिवासियों के धर्मांतरण का खतरा कम हो जाएगा?
दरअसल, मुद्दे को लेकर काफी मतभेद है. एक तबका का मानना है कि आदिवासियों को हिंदू बताया जा रहा है, जो गलत है और उन्हें उनकी अपनी धार्मिक पहचान मिलनी चाहिए. तो वहीं, दूसरा तबका इसके खिलाफ है. वह चाहता है कि अगर सरना को अलग से पहचान दे दी तो भोले-भाले आदिवासियों को बहला फुसलाकर धर्मांतरण कराना आसान हो जाएगा. हालांकि, ईसाई मिशनरीज इस तरह के किसी भी आरोप नकारते रहे हैं.
सरना कोड लागू करने पर क्या है पार्टियों का स्टैंड
झारखंड विधानसभा चुनाव के तीनों बड़े दलों ने राज्य में उनकी सरकार आने पर सरना कोड लागू करने की बात कर रहे हैं. इस वादे के पीछे मुख्य कारण है आदिवासी वोट बैंक. कांग्रेस जेएमएम अपने चुनावी घोषणापत्र में सरना धर्म कोड की वकालत भी की है.
वहीं 3 नवंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर विचार करेगी और उचित कदम उठाएगी. वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पहले से ही ये दावा कर चुके हैं कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो वह सरना कोड को लागू कर देगी. आसान भाषा में कहें तो इस चुनाव में कांग्रेस और जेएमएम दोनों पार्टियों ने ही एक बार फिर से सत्ता में आने पर इसे लागू करने का वादा किया है. कांग्रेस-जेएमएम के सरना धर्म कोड लागू करने के दांव को भारतीय जनता पार्टी के यूसीसी के जरिए हिंदुत्व के नैरेटिव के काट के तौर देखा जा रहा है. तो वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भी कहा है कि पार्टी सरना कोड को लागू करने के पक्ष में है.
हेमंत सरकार ने बुलाया था विशेष सत्र
इससे पहले नवंबर 2020 में हेमंत सोरेन की सरकार ने सरना कोड के लिए विशेष विधानसभा सत्र बुलाया था. इस सत्र में जनगणना 2021 में सरना धर्म को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव पर चर्चा की गई थी. हेमंत सोरेन इस संबंध में पीएम मोदी को खत भी लिख चुके हैं, हालांकि उस वक्त झारखंड के पूर्व सीएम चंपई सोरेन ने जेएमएम और कांग्रेस दोनों पर निशाना साधते हुआ कहा था कि सरना कोड 1951 तक था लेकिन कांग्रेस ने इसे खत्म कर दिया. ऐसे में सरना कोड की बात करने से पहले जेएमएम को कांग्रेस से संबंध तोड़ लेना चाहिए.
सरना कोड की मांग को आदिवासी समुदाय के बीच ईसाई मिशनरियों के प्रभाव और सक्रियता से जोड़कर भी देखा जाता है. इस कोड की खिलाफत करने वालों का कहना है कि सरना धर्म असल में सनातन धर्म परंपरा का ही एक आदि धर्म और जीवन पद्धति है. ऐसे में अलग सरना धर्म कोड के जरिए आदिवासियों को बांटने और सनातन हिंदू धर्म से दूर करने की कोशिश है ताकि उनका ईसाई धर्म में धर्मांतरण आसानी से कराया जा सके.