भारत पर है दारोमदार कि दुनिया को दिशा दिखाए ?

भारत पर है दारोमदार कि दुनिया को दिशा दिखाए

पेरिस समझौते के अनुसार, इन प्रभावों को कम करने के लिए सभी देशों को उत्सर्जन कम करना चाहिए। विकसित देशों ने 2030 तक लगभग 45% की कमी करने का संकल्प लिया है, जो चुनौतीपूर्ण लेकिन महत्वपूर्ण लक्ष्य है। भारत जैसे विकासशील देशों ने कार्बन तीव्रता को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया है और 2070 के लिए नेट-जीरो लक्ष्य तय किया है।

कई देशों ने महत्वाकांक्षी नेट-जीरो लक्ष्य निर्धारित किए हैं। ईयू, अमेरिका और यूके ने सख्त अंतरिम लक्ष्यों के साथ 2050 तक का लक्ष्य रखा है। दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक चीन 2060 तक का लक्ष्य रखता है, जबकि जापान, दक्षिण कोरिया और कनाडा 2050 तक का।

ये लक्ष्य सीमित कार्बन बजट के भीतर कार्य करने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाते हैं, ताकि वार्मिंग थ्रेसहोल्ड को पार करने से रोका जा सके। दो प्राथमिक वार्मिंग थ्रेसहोल्ड 1.5 डिग्री सेल्सियस (यह अपरिवर्तनीय जलवायु परिवर्तन की शुरुआत को चिह्नित करता है) और 2 डिग्री सेल्सियस, (इसके ऊपर परिवर्तन पूरी तरह से अपरिवर्तनीय हो जाते हैं) हैं।

मानवता का सबसे जरूरी लक्ष्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान को रोकना है। 2020 में, अनुमान लगाया गया था कि यदि वैश्विक उत्सर्जन 400 अरब टन सीओटू तक सीमित है, तो 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहने की 63% संभावना है। लेकिन सालाना 40 अरब टन उत्सर्जन के साथ, यह सीमा 2030 तक खत्म हो सकती है। 2 डिग्री की सीमा के लिए गुंजाइश थोड़ी बढ़ जाती है। अनुमानों के अनुसार, यह 2045 और 2050 के बीच की समय-सीमा है। 2 डिग्री से परे फीडबैक-लूप मानव नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।

इन महत्वपूर्ण समय-सीमाओं को देखते हुए, भारत का 2070 का नेट-जीरो लक्ष्य विलम्ब से प्रतीत होता है। दुनिया की 17% आबादी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के साथ, भारत तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक भी है।

अगर भारत और चीन जैसे अधिक आबादी वाले देश 2 डिग्री तक पहुंचने से पहले नेट-जीरो हासिल नहीं करते हैं, तो पूरी दुनिया को इसके परिणाम भुगतने होंगे। सीधे शब्दों में कहें तो अगर भारत विफल होता है, तो मानवता विफल हो जाएगी।

भारत में जलवायु जिम्मेदारी के साथ आर्थिक विकास को फिर से परिभाषित करके नेतृत्व करने की क्षमता है। भारत को एक नया ऊर्जा प्रतिमान अपनाना चाहिए- जो आर्थिक प्रगति को बनाए रखते हुए ऊर्जा खपत वृद्धि को सीमित करे।

ऊर्जा-विवेक को अपनाकर हम ऐसा कर सकते हैं। प्रकृति के प्रति भारत का सांस्कृतिक सम्मान इसे रोजमर्रा के जीवन में सस्टेनेबल आदतों को अपनाने के लिए अद्वितीय स्थिति में रखता है। यह परिवर्तन भारत की एक विश्वगुरु के रूप में भूमिका की पुष्टि करेगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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