इंदौर का सटोरिया था सागा ग्रुप ?
एमपी सहित देश के 16 राज्यों में 10 हजार करोड़ से अधिक की ठगी कर सागा ग्रुप का सीएमडी समीर अग्रवाल दुबई में छिपा है। उसकी गिरफ्तारी पर एमपी और यूपी पुलिस ने 50-50 हजार रुपए इनाम का ऐलान किया है। सीबीआई ने भी उसके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है।
…… सागा ग्रुप ने 15 साल में ठगी का नेटवर्क खड़ा किया और लोगों को अलग-अलग स्कीम्स के जरिए ठगा। अब पार्ट-2 में पढ़िए कि कैसे सट्टा खिलाने वाला समीर अग्रवाल एक ग्रुप का सीएमडी बना? किस तरह फिल्मी हस्तियां और नेता उसके एक इशारे पर सागा ग्रुप के कार्यक्रमों में पहुंचते थे।
सिलसिलेवार जानिए कैसे ठगी के पैसे से प्रॉपर्टी बनाई
समीर अग्रवाल: मुंबई के मटका सट्टा से जुड़ा, वहीं से मिला ठगी का आइडिया
समीर अग्रवाल का लेटेस्ट अपडेट ये है कि वह दुबई में रहता है, लेकिन उसने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में शामिल एक छोटे से देश सेंट क्रिस्टोफर और नेविस की नागरिकता ले ली है। इस देश का उसका नया पासपोर्ट भी बन चुका है। उसकी पत्नी, मां और दोनों बेटियां नवी मुंबई में रहते हैं। कुछ लोग बताते हैं कि दिखावे के तौर पर उसने पत्नी से तलाक लिया है।
पिछले 16 साल में समीर ने सागा ग्रुप के जरिए करोड़ों रुपए कमाए हैं। मप्र के मुरैना जिले के टेंट्रा गांव का रहने वाला समीर का परिवार दो पीढ़ियों पहले इंदौर शिफ्ट हो गया था। समीर के पिता राजेंद्र अग्रवाल एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। समीर उनका इकलौता बेटा है।
साल 2008 में उसने ग्रेजुएशन किया, पढ़ाई के दौरान ही वह मुंबई से ऑपरेट होने वाले मटका सट्टा से जुड़ा और इंदौर में उसका बुकी बन गया। उस समय चिटफंड कंपनियों की देश में बाढ़ सी आई हुई थी। समीर ने भी 2009 में पहली चिटफंड कंपनी खोली और उसके बाद से लगातार फर्जी कंपनियां बनाकर लोगों से पैसा ऐंठता रहा। साल 2012 के बाद समीर इंदौर छोड़कर नवी मुंबई शिफ्ट हो गया।
भोपाल में केस को रफा-दफा करने 4 करोड़ खर्च किए
समीर अग्रवाल बड़ी ही चालाकी से कंपनी और सोसाइटी के रजिस्ट्रेशन ड्राइवर और नौकरों के नाम पर कराया, जिससे सीधे वह किसी कानूनी फंदे में न फंसे। साल 2020 में श्री स्वामी विवेकानंद सोसाइटी के खिलाफ पहली एफआईआर भोपाल के पिपलानी थाने में दर्ज हुई थी।
अवधपुरी में रहने वाले अंकित मालवीय ने शिकायत में लिखा कि समीर अग्रवाल, रवि तिवारी, आरके शेट्टी और अन्य ने मिलकर पैसा दोगुना करने का झांसा दिया। इस तरह से उन्होंने कई लोगों को ठगा है। पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया था।
इसके बाद समीर अग्रवाल भोपाल आया था। उसने शिकायतकर्ता अंकित मालवीय से समझौता कर केस को रफा-दफा किया। पुलिस सूत्रों का कहना है कि उस दौरान उसने 4 करोड़ रुपए खर्च किए थे। इस केस के बाद समीर दुबई के अबूधाबी शिफ्ट हो गया।
पिता के साथ चाट का ठेला लगाता था, अब होटल का मालिक
यूपी के ललितपुर के रहने वाले रवि तिवारी के पिता तिलकराम होमगार्ड जवान थे। तीन भाइयों में सबसे बड़ा रवि साल 2008-09 में पिता के साथ ललितपुर में चाट फुलकी का ठेला लगाता था। साल 2009 में समीर अग्रवाल ने झांसी में एडवांटेज ट्रेड कॉम कंपनी का एक कार्यक्रम आयोजित किया था।
रवि अपने रिश्तेदार आलोक के साथ इस कार्यक्रम में पहुंचा था। दोनों ने बतौर एजेंट एडवांटेज ट्रेड कॉम कंपनी जॉइन की। उस समय दोनों की उम्र मुश्किल से 17-18 साल रही होगी। दोनों ने बेहद कम समय में कंपनी को करोड़ों का इन्वेस्टमेंट दिलाया और सीधे समीर अग्रवाल के संपर्क में आ गए। समीर ने आलोक को यूपी और उत्तराखंड, जबकि रवि को एमपी का हेड बना दिया।
निवेशकों के पैसों से खुद की प्रॉपर्टी बनाई
रवि तिवारी ने निवेशकों की जमा रकम से भोपाल, इंदौर, ललितपुर, टीकमगढ़, झांसी में कई प्लॉट, खेती की जमीन, फार्म हाउस बनाए हैं। उसका परिवार भोपाल के अयोध्या बायपास के पास गीत ग्रीन कॉलोनी में रहता है। करोंद में उसने पिता तिलकराम के नाम से एक होटल एंड रेस्टोरेंट खोला है।
इस होटल में वह कई रसूखदार लोगों को बुलाता है और सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करता है। रवि तिवारी के जरिए जेएलसीसी कंपनी में 600 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट हुआ है। ललितपुर में पीड़ितों की शिकायत के बाद पुलिस ने रवि और उसके भाई विनोद को अगस्त में गिरफ्तार किया। दोनों फिलहाल ललितपुर जेल में हैं।
जूट के बोरे बेचने का कारोबार करता था आलोक
ललितपुर के रहने वाले आलोक और रवि तिवारी दोनों ने एक साथ समीर अग्रवाल की कंपनी जॉइन की थी। कंपनी से जुड़ने से पहले आलोक ललितपुर मंडी में जूट के बोरे बेचने का काम करता था। आलोक को समीर अग्रवाल ने यूपी और उत्तराखंड का हेड बनाया था।
उसने एमपी में कंपनी के ब्रांच ऑफिस खोलने में अहम भूमिका निभाई थी। आलोक की ममेरी बहन शैलजा बजाज से रवि तिवारी की शादी हुई है। इस तरह से दोनों रिश्ते में जीजा-साले लगते हैं। आलोक ने अकेले समीर अग्रवाल की जेएलसीसी और यूएलसीसी सोसाइटियों में 1800 करोड़ रुपए के निवेश कराया है।
यूपी-एमपी में 100 करोड़ की प्रॉपर्टी का मालिक
आलोक ने ललितपुर, भोपाल, इंदौर में काफी प्रॉपर्टी बनाई है। ललितपुर में वह कई कॉलोनियों में पार्टनर भी है। उसने हैदराबाद में भी प्रॉपर्टी खरीदी है। ललितपुर पुलिस के मुताबिक आलोक जैन के पास 100 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है।
सूरज रैकवार: 12 हजार रुपए सैलरी, 20 करोड़ की प्रॉपर्टी का मालिक
एलजेसीसी में कैशियर के तौर पर काम करने वाले सूरज को हर महीने 12 हजार रुपए मिलते थे। एलजेसीसी में इन्वेस्टमेंट कर 4 लाख रुपए गंवा चुके जीतू चंदेल के मुताबिक सूरज के पास 20 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी है। उसके पास भोपाल में 5-5 हजार वर्ग फीट के दो प्लॉट, बानपुर में 10 एकड़ खेती की जमीन, टीकमगढ़ के सुभाषपुरा में दो प्लॉट, 7 दुकानें हैं।
इसके अलावा वह चार गाड़ियों का मालिक है। जीतू के मुताबिक उसने टीकमगढ़ में जो मकान बनाया है उसकी कीमत ही 5 करोड़ रुपए है। मकान में विदेशी मार्बल लगा हुआ है। सूरज रैकवार इस समय फरार है और उस पर 25 हजार का इनाम घोषित है।
अंगद कुशवाहा: गंजबासौदा में हम्माल था, अब कॉलोनाइजर
विदिशा के गंजबासौदा का रहने वाला अंगद पहले मंडी में हम्माल था। साल 2015-16 में वह समीर अग्रवाल की कंपनी एसएसवी( श्रीस्वामी विवेकानंद सोसाइटी) से बतौर एजेंट जुड़ा। जब भोपाल के पिपलानी थाने में एसएसवी के खिलाफ एफआईआर हुई तो समीर अग्रवाल ने इसे बंद कर एलजेसीसी सोसाइटी शुरू कर दी थी।
अंगद को एलजेसीसी में गंजबासौदा ब्रांच का हेड बना दिया। लोग जो पैसा निवेश करते थे उससे अंगद ने प्रॉपर्टी खरीदी। वह भोपाल में प्लॉट काटने का काम करने लगा। गंजबासौदा पुलिस को अंगद के खिलाफ 25 से ज्यादा शिकायतें मिली हैं। कंपनी का दफ्तर बंद होने के बाद से वह फरार है।
सुबोध रावत: नेताओं से संपर्क, 50 करोड़ का आसामी
टीकमगढ़ पुलिस सुबोध रावत को गिरफ्तार कर चुकी है। रावत ने पुलिस को अपने बयान में बताया कि 2012 में उसकी मुलाकात ललितपुर में अजय तिवारी से हुई थी। तब ऑप्शन वन नाम से कंपनी का संचालन किया जा रहा था। इसके मालिक समीर व पंकज अग्रवाल थे।
अजय के माध्यम से उसकी मुलाकात ललितपुर में आलोक जैन, रवि तिवारी और सुरेंद्र पाल सिंह से हुई। उनके कहने पर वह इस कंपनी से जुड़ा। वह निवेशकों के पैसे आलोक, रवि व सुरेंद्रपाल को भेजता था। इसके बाद इस रकम को झांसी चेस्ट में भेज दिया जाता था। वहां से ये रकम हवाला के जरिए समीर के पास विदेश भेजी जाती थी।
सुतीक्ष्ण सक्सेना: एलजेसीसी में पार्टनर, कई प्लॉट और जमीनों का मालिक
साल 2020 में जब समीर अग्रवाल की स्वामी विवेकानंद सोसाइटी बंद हुई तो सुतीक्ष्ण सक्सेना की पार्टनरशिप में एलजेसीसी सोसाइटी शुरू की गई। सुतीक्ष्ण ने इन्वेस्टर्स के पैसों से टीकमगढ़ में 26 लाख रुपए में 2000 वर्गफीट का प्लॉट, 900 वर्गफीट का एक डूप्लैक्स भी खरीदा है।
भोपाल के अयोध्या बायपास पर 50 लाख रुपए में 2000 वर्गफीट जमीन, रायसेन-भोपाल रोड पर 4 लाख रुपए में 1200 वर्गफीट का प्लॉट खरीदा है। उसके पास 16 लाख रुपए कीमत की एसयूवी है। उसके एक्सिस बैंक अकाउंट में 50 हजार रुपए जमा है। पत्नी प्रीति के नाम पर उसने एलजेसीसी सोसाइटी में 50 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट किया है।
फिल्मी कलाकारों के जरिए कंपनी का प्रमोशन
एलजेसीसी की ओर से मुंबई, हैदराबाद, गोवा, लखनऊ, झांसी, भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में कार्यक्रम कराए जाते थे। इसमें कंपनी की ग्रोथ और एजेंट्स की लग्जरी लाइफ की नुमाइश की जाती थी। जेएलसीसी कंपनी के कार्यक्रमों में फिल्मी एक्टर श्रेयस तलपड़े से लेकर सुखविंदर सिंह नामी गायक को बुलाया जाता था।
ललितपुर पुलिस ने एक्टर श्रेयस तलपड़े को भी एक एफआईआर में आरोपी बनाया है। एसपी ललितपुर मोहम्द मुश्ताक कहते हैं कि फिल्मी एक्टर ने लोगों को कंपनी में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया है। इस कारण उन्हें भी आरोपी बनाया गया है। उनके मुंबई पते पर नोटिस भेजा गया है।
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क्या कहें किस्मत की खूबी, दिन बुरे आने लगे और लालच में फंसकर पत्थरों में ठोकरें खाने लगे।
किसी नामालूम कवि की ये लाइनें सुनाते हुए गोटीराम राठौर खुद को कोसते हैं। कहते हैं- मेरी जमीन भी चली गई और लालच में पैसा भी। भिंड जिले के दबोह कस्बे में रहने वाले गोटीराम की जमीन से होकर बायपास गुजरा है। जमीन के बदले मुआवजे के तौर पर सरकार से उन्हें 5 साल पहले साढ़े पांच लाख रुपए मिले थे।
राठौर ने ये पूरी रकम एलजेसीसी ( लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड) में जमा करवा दी। सोसाइटी ने 5 साल में दोगुनी राशि देने का दावा किया था। अब सोसाइटी के दफ्तरों में ताले पड़े हुए हैं। ये अकेले गोटीराम की कहानी नहीं है। भिंड जिले के अलग-अलग कस्बों के लोगों के साथ इसी तरह फ्रॉड हुआ है।
दैनिक भास्कर ने जब इस पूरे मामले की पड़ताल की तो पता चला कि एलजेसीसी सोसाइटी ने न केवल भिंड बल्कि मध्यप्रदेश के 16 जिलों के लोगों के साथ 1 हजार करोड़ का फ्रॉड किया है। फ्रॉड के शिकार हुए लोग अब थानों के चक्कर काट रहे हैं। पड़ताल में ये भी पता चला कि ये सोसाइटी, सागा ग्रुप का हिस्सा है।
सागा ग्रुप ने पिछले 15 साल में देश के 16 राज्यों के एक हजार शहरों-कस्बों में अलग-अलग नाम की कंपनी और फिर सोसाइटियों के दफ्तर खोले। बताया जा रहा है कि कंपनी के कर्ताधर्ता 10 हजार करोड़ रुपए लेकर फरार हो गए हैं। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सागा ग्रुप के खिलाफ FIR दर्ज हो चुकी है। ईडी (एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट) ने भी मनी लॉन्ड्रिग का केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू की है।
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1. कृषि मंत्रालय में 7 को-ऑपरेटिव सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन
सागा ग्रुप ने साल 2012-13 के बीच कुल 7 सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन कृषि मंत्रालय में कराया। इनमें से दो सोसाइटियों के दफ्तर एमपी में खोले गए। लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (LJCC) का रजिस्ट्रेशन 24 जनवरी 2013 को हुआ।
इसमें समीर अग्रवाल सीएमडी, अनुराग बंसल चेयरमैन, आरके शेट्टी वित्तीय सलाहकार, संजय मुदगिल ट्रेनर, सुतीक्ष्ण सक्सेना और पंकज अग्रवाल पार्टनर के तौर पर जुड़े। सागा ग्रुप ने सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन लोन देने के लिए किया था।
कंपनी 2016 से बैंकिंग, क्रेडिट, एफडी, आरडी, एमआईएस, सुकन्या, धन पेटी, एजुकेशन प्लान, पेंशन प्लान, आयुष्मान जैसी स्कीम के जरिए लोगों से पैसा इन्वेस्ट कराने लगी।

2. एक लाख एजेंट्स बनाए और 1 हजार ब्रांच खोलीं
सागा ग्रुप ने सोसाइटियों के रजिस्ट्रेशन के बाद देशभर में तहसील और ब्लॉक स्तर पर 1 हजार ब्रांच खोली। एक लाख एजेंट्स जोड़े। कुछ को सैलेरी पर रखा, बाकियों को इन्वेस्टमेंट लाने पर 4 से 12 प्रतिशत का कमीशन दिया जाता था। मप्र के 16 जिलों में 40 ब्रांच ऑफिस खोले गए। यूपी के ललितपुर समेत 22 जिलों में भी जगह-जगह ब्रांच ऑफिस खोले गए।
ये सोसाइटी लुभावने स्कीम लॉन्च कर लोगों के पैसे जमा कराती थी। इनमें मंथली इनकम सहित एफडी, आरडी, एमआईएस की रसीद देकर मैच्युरिटी की तारीख तय कर देती थी। नकद लेन-देन पर ज्यादा जोर था। इसमें प्रतिदिन के हिसाब से भी लोगों से पैसे जमा कराए जाते थे।
3. एक साल से लेकर 21 साल तक के प्लान में कराते थे इन्वेस्टमेंट
सभी सातों सोसाइटियों में एक तरह के निवेश प्लान लॉन्च किए गए थे। इनमें एक साल से लेकर 21 साल तक के प्लान शामिल हैं। 1 हजार रुपए एक साल में जमा करने वाले को 1172 रुपए दिए जाते थे। वहीं, पांच साल की एफडी पर ये रकम दोगुना करने का दावा करते थे।
इसके अलावा रोजाना और महीने के अनुसार आरडी का भी प्लान था। इसमें 200 रुपए महीने जमा करने पर एक साल की मैच्योरिटी पर 2560 रुपए मिलते थे। आरडी 200 से 5000 रुपए के बीच कोई भी खोल सकता था। इसमें भी एक साल से लेकर 7 साल तक का प्लान पेश किया गया था।
4. वेबसाइट और ऐप बनाए, बड़े शहरों में ट्रेनिंग कराई
सागा ग्रुप ने वेबसाइट और ऐप बना रखे थे। सभी एजेंटों को ऐप के जरिए ही लोगों के पैसे जमा कराने होते थे। इसका लॉगिन और पासवर्ड होता था। इसमें ग्राहक की पॉलिसी नंबर के आधार पर एजेंटों को उसकी मैच्योरिटी देखने की सुविधा मिलती थी।
एजेंट जोड़ने का चेन सिस्टम था। एजेंट जो भी पैसे निवेश कराते थे, उसके ऊपर वाले एजेंट को भी उसमें से कुछ प्रतिशत कमीशन मिलता था। ये चेन सिस्टम सीएमडी समीर अग्रवाल तक बना हुआ था।
इसी ऐप में एजेंट्स का कमीशन भी आता था, जो पॉइंट्स के रूप में दिखता था। इसे कैश करने का एक ही तरीका था कि उतनी राशि वो किसी ग्राहक से निवेश कराए और उसे खुद रखकर पॉइंट के रूप में मिले कमीशन से उसका भुगतान कर दे। एजेंटों को उनके कमीशन पर सोसाइटी जीएसटी भी काटती थी।
एजेंटों को हर महीने ट्रेनिंग के लिए झांसी, सागर, लखनऊ, भोपाल आदि शहरों में बुलाया जाता था। वहां रुकने से लेकर खाने-पीने की सारी व्यवस्था सोसाइटी ही करती थी। कई बार ऑनलाइन ट्रेनिंग कराई जाती थी।
ट्रेनर के तौर पर संजय मुद्गिल जुड़ता था। वो एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मिलने वाले ऑफरों को इतने लुभावने तरीके से पेश करता था कि एजेंट उसे पूरा करने के लिए जी-जान लगा देते थे।
5. दुबई, थाईलैंड, बैंकॉक के टूर, प्लॉट और लग्जरी वाहनों का लालच
एलजेसीसी सहित सभी सोसाइटी अपने एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मुंबई, गोवा आदि शहरों के साथ बैंकाक, थाईलैंड और दुबई जैसे देशों की सैर भी कराती थी। देश के बड़े-बड़े शहरों जैसे मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई आदि जगहों पर सेमिनार करती थीं।
इनमें एजेंटों को सम्मानित किया जाता था। साथ ही टारगेट पूरा करने वाले एजेंट्स को बड़ी और महंगी गाड़ियां गिफ्ट में दी जाती थी। किसे-कौन सी गाड़ी मिलेगी, ये उसके हर महीने के इन्वेस्टमेंट पर डिपेंड करता था। न्यूनतम राशि के साथ कंपनी गाड़ी खरीदकर देती थी। बाकी पैसा बैंक से फाइनेंस कराया जाता था, जिसकी किस्त एजेंट अपने टारगेट पूरे कर भरता था।
15 साल में अलग-अलग कंपनियों के नाम से ठगी
सागा ग्रुप के बारे में प्रचारित किया गया कि ये कंपनी विदेश में सोने-कोयले की खदान, तेल कुआं और रियल इस्टेट का काम करती है। समीर अग्रवाल पिछले 15 साल से अलग-अलग नाम की कंपनी और सोसाइटियों के जरिए लोगों से ठगी कर रहा है।
साल 2009: एडवांटेज ट्रेड कॉम नाम से ग्वालियर में कंपनी का रजिस्ट्रेशन
ये कंपनी टूर पैकेज बेचने का काम करती थी। इसमें 7500 रुपए एक ग्राहक से लिए जाते थे। टूर देश के ही अलग-अलग हिस्सों में कराया जाता था। तीन साल के इस प्लान में यदि कोई ग्राहक टूर नहीं करता था तो उसे डबल रकम के तौर पर 15000 रुपए भुगतान का लालच दिया जाता था।
साल 2012: ऑप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का ग्वालियर में रजिस्ट्रेशन
इस कंपनी में एडवांटेज ट्रेड के ग्राहकों को मर्ज कर दिया गया। इसका हेड ऑफिस इंदौर में खोला गया। कंपनी तब बॉन्ड बेचती थी। इसमें पांच साल में लोगों की रकम डबल करने का झांसा दिया जाता था।
साल 2016: कंपनी बंद, 7 सोसाइटियों का रजिस्ट्रेशन
समीर अग्रवाल ने कंपनियों को बंद कर कृषि मंत्रालय में अलग-अलग नामों से 7 सोसाइटी रजिस्टर्ड कराई। मध्यप्रदेश में श्री स्वामी विवेकानंद मल्टीस्टेट को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी (एसएसवी) ने ऑप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का स्थान लिया।
साल 2019: एसएसवी सोसाइटी बंद, LJCC शुरू
भोपाल में एसएसवी के खिलाफ शिकायतें और एफआईआर दर्ज होने पर सेबी ने इसके कामकाज पर रोक लगा दी। इसके बाद एमपी में लस्टिनेस जनहित क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (LJCC) ने काम शुरू किया। एसएसवी के सभी ग्राहकों को इसमें मर्ज कर दिया गया। सारा काम पुरानी सोसाइटी की तरह ही होता था।
लोगों को मिलने वाले सरकारी मुआवजे पर नजर
सागा ग्रुप ने एमपी में उन जगहों को टारगेट किया, जहां लोगों को सरकारी मुआवजे के तौर पर पैसा मिला। एमपी और यूपी के बुंदेलखंड रीजन में पिछले सालों में सरकार के कई बड़े प्रोजेक्ट आए। ललितपुर में 2012 में बजाज पावर प्लांट की स्थापना हुई। एमपी के टीकमगढ़ में बानसुजारा बांध बना। इसमें लोगों की जमीनें अधिगृहीत हुई। उनके पास पैसे आए। सागा ग्रुप ने सोसाइटियों के जरिए ये पैसा अपनी स्कीम्स में निवेश कराया।

अब जानिए, कैसे ठगी के नेटवर्क का खुलासा हुआ
एमपी के टीकमगढ़, विदिशा, भिंड, सागर, छतरपुर, दमोह, सागर, कटनी, सीहोर आदि शहरों में जनवरी 2024 से कंपनी ने मैच्योरिटी की राशि का भुगतान बंद कर दिया। पहले लोगों को लोकसभा चुनाव का हवाला दिया गया। इसके बाद अलग-अलग बहाने बनाए गए।
जब पैसा नहीं मिला तो लोगों ने थाने पहुंचकर शिकायतें करनी शुरू कीं। अगस्त के महीने में ललितपुर और टीकमगढ़ में एक साथ पुलिस ने पहली बार पीड़ितों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की।
टीकमगढ़ के तत्कालीन एसपी रोहित काशवानी (अब विदिशा एसपी) बताते हैं कि हमारे पास सागा ग्रुप की सोसाइटी के खिलाफ 100 शिकायती आवेदन आए। इसके आधार पर हमने 5 एफआईआर दर्ज कीं, जिनमें ग्रुप के सीएमडी समीर अग्रवाल समेत 17 लोगों को आरोपी बनाया।
इनमें से सोसाइटी के टीकमगढ़ हेड सुबोध रावत समेत 11 आरोपियों को हमने उसी समय गिरफ्तार कर लिया था। हमने आरोपियों की 4 करोड़ रुपए कीमत की प्रॉपर्टी भी जब्त की है। इसमें वाहन और जमीनें हैं।

यूपी के ललितपुर में 13 एफआईआर
ललितपुर एसपी मोहम्मद मुश्ताक के मुताबिक, कई हजार करोड़ की ठगी सिंडिकेट बनाकर की गई है। अभी तक 13 एफआईआर दर्ज की हैं। इस मामले में ललितपुर के मास्टरमाइंड रवि तिवारी और आलोक जैन को गिरफ्तार किया है। उनके खातों में जमा 54 लाख रुपए फ्रीज कराया गया है।
ईडी भी इस मामले की जांच कर रही है। उत्तराखंड पुलिस भी 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है। मास्टरमाइंड और दुबई के अबूधाबी में बैठे समीर अग्रवाल की गिरफ्तारी के लिए लुकआउट नोटिस भी जारी किया जा चुका है।
पीड़ितों की जुबानी सुनिए, कंपनी की ठगी की कहानी

अनूप रैकवार, टीकमगढ़: मैं ठेले पर सैंडविच बेचता हूं। एलजेसीसी में तीन साल पहले हर दिन 500 रुपए जमा किए थे। मुझे बताया गया था कि मैच्योरिटी पूरी होने पर 7 लाख रुपए मिलेंगे। अब कंपनी भाग गई है। जिस एजेंट ने मुझसे पैसा जमा करवाया था, उसने भी पैसा देने से हाथ खड़े कर दिए हैं।
गोटीराम राठौर, भिंड: दबोह के रहने वाले गोटीराम राठौर की खेती की जमीन को सरकार ने हाईवे बनाने के लिए अधिगृहीत किया। इसके एवज में उन्हें 5.50 लाख रुपए का मुआवजा मिला। गोटीराम कहते हैं कि सोसाइटी के एजेंट ने संपर्क किया। बताया कि रकम पांच साल में दोगुनी हो जाएगी यानी 11 लाख रुपए मिलेंगे। फायदे का सौदा देख मैंने पूरी रकम इन्वेस्ट कर दी।
सचिन गोयल, विदिशा: गंजबासौदा में फेरी लगाकर किराना सामान बेचने वाले सचिन गोयल जेएलसीसी में रोज 100 रुपए जमा करते थे। उन्होंने इस तरह 36 हजार रुपए जमा किए। एक साल में उन्हें 38 हजार रुपए देने का लालच दिया गया था। अब ब्रांच में ताला लग चुका है।