क्या खत्म हो गई दुनिया की सबसे क्रूर और लंबी लड़ाई?

 क्या खत्म हो गई दुनिया की सबसे क्रूर और लंबी लड़ाई? पश्चिम एशिया में अब क्या होगा?

13 सालों से चल रहे गृहयुद्ध में सिर्फ सीरिया के लोग ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की बड़ी ताकतें भी शामिल हो चुकी है.

सीरिया का संघर्ष दुनिया के सबसे खतरनाक और लंबे युद्धों में से एक माना जाता है. यह संघर्ष साल 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन के खिलाफ विद्रोह के साथ शुरू हुआ था. उस वक्त असद सरकार ने इस विद्रोह को सख्ती से दबाने की कोशिश की थी, जिसके बाद यह एक गृहयुद्ध तब्दील हो गया. पिछले 13 सालों में, इस देश में लाखों लोग मारे जा चुके हैं और सीरिया की अर्थव्यवस्था को लगभग नष्ट हो चुकी है. 

इस युद्ध में सिर्फ सीरिया के लोग ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की बड़ी ताकतें भी शामिल थी. गृहयुद्ध के दौरान कुछ देशों ने राष्ट्रपति असद का समर्थन किया था तो कुछ देशों ने विद्रोहियों का. इससे यह युद्ध और भी जटिल हो गया, लेकिन बीते एक सप्ताह के भीतर, सीरिया में असद शासन का पतन हो चुका है.

दरअसल विद्रोही सेनाओं ने पिछले एक सप्ताह में अलेप्पो से शुरुआत करते हुए हमा, होम्स, और दमिश्क तक विजय प्राप्त कर ली है. वहीं राष्ट्रपति बशर अल-असद, जो पिछले कई सालों से सीरिया पर कड़े शासन चला रहे थे, सोमवार यानी 9 दिसंबर को विद्रोहियों के दमिश्क (सीरिया की राजधानी) पहुंचने से पहले ही देश छोड़कर भाग खड़े हुए. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि क्या ये सीरिया के युद्ध का अंत है? क्या पश्चिम एशिया में बदलाव आएगा और दुनिया में इसके प्रभाव क्या होंगे?

सीरिया का संघर्ष

साल 2000 में सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति हाफिज अल-असद की मृत्यु के बाद देश की सत्ता उनके 59 वर्षीय बेटे बशर अल-असद ने संभाली थी. बशर से पहले उनके पिता 1971 से सीरिया पर शासन कर रहे थे. बशर अल-असद की सत्ता में आने के 11 साल बाद यानी साल 2011 में इस देश में गृहयुद्ध की शुरुआत हुई.

सीरिया में असद शासन के खिलाफ संघर्ष 2011 में तब शुरू हुआ जब अरब स्प्रिंग (Arab Spring) के कारण कई देशों में लोग लोकतंत्र की मांग कर रहे थे. उसी दौरान सीरिया में भी लोग अपने गुस्से और असंतोष को लेकर सड़कों पर उतरे, लेकिन असद सरकार ने इसे बेहद सख्ती से दबा दिया.

इस दबाव के कारण स्थिति और बिगड़ गई, और जल्द ही यह संघर्ष एक बड़े गृहयुद्ध (civil war) में बदल गया. इस युद्ध में असद सरकार का सामना कई विद्रोही समूहों से हुआ, जो असद के खिलाफ लड़ रहे थे.

धीरे-धीरे इस गृहयुद्ध में कई अन्य देश भी शामिल होने लगे. रूस और ईरान ने असद सरकार का समर्थन किया, जबकि अमेरिका और तुर्की ने विद्रोहियों का साथ दिया. इससे यह संघर्ष और भी जटिल हो गया.

इसके अलावा, इस युद्ध ने पूरे पश्चिमी एशिया को प्रभावित किया है. इसने कई आतंकवादी समूहों को जन्म दिया, जिनमें सबसे प्रमुख ISIS (आईएसआईएस) था, जो सीरिया और इराक में आतंक फैलाने के लिए जिम्मेदार था. यह संघर्ष बहुत लंबा चला और इसने सीरिया की अर्थव्यवस्था और समाज को पूरी तरह से नष्ट कर दिया. अब तक इस देश में लाखों लोग मारे जा चुके हैं, शहर और इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं, और देश की हालत बहुत खराब हो गई है.

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अरब स्प्रिंग आंदोलन क्या है 

यह आंदोलन 2010 में ट्यूनीशिया से शुरू हुआ, जब एक युवा सेल्समैन मोहम्मद बुआजी ज़ी ने सरकार के भ्रष्टाचार और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ आत्मदाह किया था. उनका यह कृत्य विरोध का कारण बना और पूरे क्षेत्र में फैल गया. अरब स्प्रिंग का मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र, स्वतंत्रता और सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करना था. लोग तानाशाही शासनों और असमानता के खिलाफ सड़कों पर उतरे.

इस आंदोलन के दौरान कई देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ. ट्यूनीशिया में राष्ट्रपति बेन अली को सत्ता छोड़नी पड़ी, और यह आंदोलन मिस्र, लीबिया, यमन, सीरिया, और अन्य देशों में फैल गया. कई देशों में सत्ता परिवर्तन के बावजूद संघर्ष और गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई. उदाहरण के लिए, सीरिया में असद शासन के खिलाफ विद्रोह हुआ, जो बाद में एक बड़े गृहयुद्ध में बदल गया. अरब स्प्रिंग का परिणाम हर देश में अलग-अलग रहा. कुछ देशों में लोकतांत्रिक परिवर्तन हुए, जबकि अन्य देशों में संघर्ष और अस्थिरता बढ़ गई.

असद शासन का पतन, 3 वजह

1. असद शासन के पतन के कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण यह है कि असद के मुख्य समर्थक देश, जैसे रूस, ईरान और लेबनानी हिजबुल्लाह, अपने-अपने संघर्षों में फंसे हुए थे. रूस, जो पहले असद का समर्थन करता था, अब यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ था. वहीं हिजबुल्लाह, जो लेबनान में असद का साथी था, इजराइल के साथ संघर्ष में बुरी तरह से पराजित था. ईरान भी अपने अन्य संघर्षों में व्यस्त था. यही वजह रही कि पिछले कुछ समय से असद को अपने सबसे बड़े सहयोगियों से मदद नहीं मिल रही थी, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो गई और उनका शासन खतरे में पड़ गया.

2. दूसरी वजह यह थी कि 13 साल के लंबे युद्ध ने सीरिया की सेना को पूरी तरह से थका दिया था. देश में सेना की स्थिति कमजोर हो गई थी और वहां भ्रष्टाचार भी बहुत फैल चुका था. वहीं दूसरी तरफ विद्रोही लड़ाके धीरे धीरे खुद को मजबूत कर रहे थे. इसके अलावा, पश्चिमी देशों ने सीरिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था, जिससे सीरियाई अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई और हालत और खराब हो गए. इन सभी समस्याओं ने असद को एक कमजोर स्थिति में डाल दिया, और विद्रोहियों के लिए यह एक बड़ा मौका बन गया और वे सीरिया के बड़े शहरों पर कब्जा करने में सफल हो गए.

3. इसके अलावा, तुर्की ने भी असद के खिलाफ विद्रोहियों का समर्थन किया. वर्तमान में तुर्की में 3 मिलियन से ज्यादा सीरियाई शरणार्थी है. ये शरणार्थी राष्ट्रपति एर्दोगन के लिए एक बड़ी राजनीतिक समस्या बन चुकी हैं. तुर्की चाहता था कि ये शरणार्थी अपने देश वापस जाएं, इसलिए इस देश ने विद्रोहियों को असद के खिलाफ आक्रमण करने की अनुमति दी. इसका नतीजा यह हुआ कि विद्रोही सेनाएं तेजी से सीरिया के महत्वपूर्ण शहरों में घुस गईं और अंत में वे राजधानी दमिश्क तक पहुंचने में सफल हो गए.

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सीरिया का भविष्य, क्या होगा आगे?

इस सवाल के जवाब में पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विनय यादव कहते हैं कि फिलहाल सीरिया के भविष्य को लेकर कुछ भी कहा नहीं जा सकता. इस देश में फिलहाल जा स्थिति है उसे लेकर सबसे पहला सवाल यह है कि क्या सीरिया फिर से एकजुट हो पाएगा? फिलहाल, सीरिया बुरी तरह से विभाजित है. विद्रोहियों के बीच आपसी मतभेद हैं, और हर समूह का अलग-अलग लक्ष्य है.

वहीं तुर्की, जो कुछ विद्रोही समूहों का समर्थन करता है, सीरिया के उत्तर-पूर्व में कुर्दों से लड़ रहा है, जिन्हें अमेरिका समर्थन देता है. इसके अलावा, सीरिया के दक्षिण-पश्चिम में भी दूसरे विद्रोही समूह सक्रिय हैं. इन सभी समूहों का एक साथ आना मुश्किल लगता है, और सीरिया की एकता को फिर से बनाना आसान नहीं होगा.

वहीं, विद्रोहियों में सबसे मजबूत माना जाने वाले समूह हैयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस), ने देश में अपने प्रभाव को बढ़ाया है. लेकिन यह समूह अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है. हैयात तहरीर अल-शाम के नेता अबू मोहम्मद अल-जोलानी को एक प्रमुख आतंकवादी माना जाता है. इस वजह से यह सवाल उठता है कि क्या एचटीएस सीरिया में शांति और स्थिरता ला सकेगा या नहीं.

पश्चिमी एशिया में अब क्या होगा 

पश्चिमी एशिया में सीरिया के संघर्ष ने तुर्की के लिए एक नया अवसर पैदा किया है. तुर्की, जो पहले से विद्रोहियों का समर्थन करता था, अब सीरिया में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है. तुर्की के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि सीरिया के शरणार्थी वापस अपने देश लौटें, और इसके लिए तुर्की ने विद्रोहियों का समर्थन किया है. तुर्की का यह कदम, सीरिया के भविष्य में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उसकी भूमिका को स्थापित कर सकता है.

अमेरिका और रूस, जो पहले से ही सीरिया के संघर्ष में शामिल थे, अब इस स्थिति में क्या भूमिका निभाएंगे, यह देखना होगा. अमेरिका, जो कुर्दों का प्रमुख समर्थक है, और रूस, जो असद का समर्थक था, दोनों को अब सीरिया में नए समीकरणों को समझने और अपने हितों के अनुसार अपनी नीतियां तय करने की जरूरत होगी. 

सीरिया के युद्ध का वैश्विक प्रभाव

सीरिया का संघर्ष न केवल पश्चिमी एशिया, बल्कि पूरे विश्व पर प्रभाव डाल चुका है. इससे न केवल शरणार्थियों का संकट उत्पन्न होना, बल्कि आतंकवाद और धार्मिक उग्रवाद भी बढ़ने की संभावना है. इसके अलावा, यह संघर्ष वैश्विक राजनीति के लिए एक नई चुनौती बन चुकी है, क्योंकि इसमें कई वैश्विक शक्तियां शामिल हो गई थीं. अब, जब असद का शासन समाप्त हो चुका है, तो यह देखना होगा कि सीरिया में स्थिरता कैसे स्थापित होगी और वैश्विक राजनीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा.

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