सरकार ने माना दिल्ली की हवा में प्रदूषण बिगाड़ रहा लोगों की सेहत ?
दिल्ली की हवा में बढ़ते नाइट्रोजन के यौगिकों का प्रदूषण आम लोगों की सांस पर भारी पड़ रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की ओर से दिल्ली के अलग अलग इलाकों में किए गए अध्ययन में पाया गया कि NO2 जैसे नाइट्रोजन के यौगिकों के हवा में बढ़ने से कई बार इमरजेंसी जैसे हालात बन रहे हैं। लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है।
नई दिल्ली ….दिल्ली की हवा में बढ़ते नाइट्रोजन के यौगिकों का प्रदूषण आम लोगों की सांस पर भारी पड़ रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की ओर से दिल्ली के अलग अलग इलाकों में किए गए अध्ययन में पाया गया कि NO2 जैसे नाइट्रोजन के यौगिकों के हवा में बढ़ने से कई बार इमरजेंसी जैसे हालात बन रहे हैं। लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है। केंद्र सरकार ने NO2 जैसे प्रदूषकों पर लगाम लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने बताया कि लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए सरकार की ओर से एडवाइजरी जारी की गई है। आपात स्थिति से निपटने के लिए केंद्र सरकार कई शहरों में ऑक्सीजन संयंत्र लगा रही है। किसी मेडिकल इमरजेंसी में इन संयंत्रों के जरिए आवश्यक ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सकेगी। इसके अलावा प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए गाड़ियों की तकनीक में बदलाव किया जा रहा है।
इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन (ICCT) के हाल के एक अध्ययन में सामने आया कि दिल्ली और गुरुग्राम में वाहन अक्सर ट्रैफिक में फंस जाते हैं। लगातार चालू रहने से इंजन का तापमान अधिक हो जाता है और नॉक्स का उत्सर्जन बढ़ जाता है। वहीं खराब सड़कों के चलते पर्टीकुलेटेड मैटर का प्रदूषण भी बढ़ता है। इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन के मुताबिक प्रयोगशाला या किसी स्थिर स्थिति में किसी गाड़ी के प्रदूषण की जांच की तुलना में सड़क पर चलने के दौरान प्रदूषण 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। इसके अलावा, भारत के उत्सर्जन मानदंड विकसित देशों की तुलना में कम कड़े हैं, जिससे वाहन अधिक प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण सालाना लगभग 10,000 अकाल मौतें होती हैं।
शिकागो विश्वविद्यालय (ईपीआईसी इंडिया) में ऊर्जा नीति संस्थान के कार्यकारी निदेशक कौशिक देब के मुताबिक जब सड़कों पर भीड़भाड़ बहुत अधिक होती है, तो प्रत्येक अतिरिक्त वाहन न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य जोखिम और भीड़भाड़ के कारण होने वाली देरी का सामना करता है, बल्कि दूसरों पर भी इसका बोझ डालता है।” खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने से श्वसन संबंधी रोग, हृदय संबंधी रोग और फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हर साल 7 मिलियन लोग असमय मृत्यु का शिकार होते हैं।
हाल ही में आए आईआईटी जोधपुर के अध्ययन के मुताबिक चीन और यूरोप की तुलना में भारत के शहरों का वायु प्रदूषण पांच गुना ज्यादा घातक है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने पाया कि भारतीय शहरों के वायु प्रदूषण में मौजूद पीएम 2.5 की ऑक्सीजन से क्रिया करने की क्षमता यूरोप और चीन के वायु प्रदूषण की तुलना में पांच गुना ज्यादा है। ऐसे में हवा में मौजूद प्रदूषक कण सांस के साथ शरीर में जा कर वहां मौजूद ऑक्सीजन से क्रिया कर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और ऑक्सीडेटिव तनाव को बढ़ाता है। ऐसे में फेफड़े, दिल सहित अन्य अंगों को नुकसान पहुंचता है और बीमारियों का खतरा बढ़ता है। आईआईटी जोधपुर के वैज्ञानिकों ने एरोसोल मास स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीक और डेटा एनालिटिक्स के जरिए दिल्ली के अंदर और बाहर पांच इंडो-गंगा मैदानी स्थलों पर अध्ययन किया। नेचर जनरल में प्रकाशित इस शोध में पाया गया कि पूरे क्षेत्र में समान रूप से हवा को प्रदूषित करने वाले प्रदूषक कण उच्च सांद्रता में मौजूद हैं। लेकिन स्थानीय उत्सर्जन स्रोतों और चल रहे निर्माण कार्यों के कारण प्रदूषक कणों की रासायनिक संरचना में काफी भिन्नता है। ऐसे में दिल्ली के आसपास हवा में मौजूद प्रदूषक कण या पर्टीकुलेटेड मैटर अन्य जगहों की तुलना में स्वास्थ्य के लिए ज्यादा खतरनाक हैं। दिल्ली के अंदर, अमोनियम क्लोराइड और कार्बनिक एरोसोल सीधे गाड़ियों के धुएं, घरों में जलने वाले ईंधन के प्रदूषण और वायुमंडल में उत्पादित जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के ऑक्सीकरण उत्पादों से उत्पन्न होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए सामान्य पर्टीकुलेटेड मैटर या प्रदूषक तत्वों से ज्यादा खतरनाक हैं । इसके विपरीत, दिल्ली के बाहर गंगा के तराई क्षेत्रों में होने वाले वायु प्रदूषण में प्रमुख रूप से अमोनियम सल्फेट और अमोनियम नाइट्रेट, साथ ही बायोमास जलने से बनने वाले कार्बनिक एरोसोल हैं । अध्ययन में पाया गया कि बायोमास और जीवाश्म ईंधन के अधूरे जलने से कार्बनिक एरोसोल, जिसमें गाड़ियों का धुआं भी शामिल है, पीएम ऑक्सीडेटिव क्षमता में प्रमुख योगदानकर्ता हैं, जो इस क्षेत्र में पीएम से जुड़े स्वास्थ्य प्रभावों को बढ़ाता है ।
इस अध्ययन में शामिल और आईआईटी जोधपुर की असोसिएट प्रोफेसर डॉ. दीपिका भट्टू के मुताबिक भारतीय पीएम 2.5 की ऑक्सीडेटिव क्षमता की तुलना करने पर चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं । भारतीय पीएम की ऑक्सीडेटिव क्षमता चीनी और यूरोपीय शहरों से पांच गुना तक अधिक है, जो इसे वैश्विक स्तर पर मौजूद सबसे अधिक ऑक्सीडेटिव क्षमता में से एक बनाती है । भारत के वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों और हितधारकों के बीच सहयोग के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की भी आवश्यकता है, खासकर दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में । हमें स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना होगा, मुख्य रूप से पुराने, ओवरलोड और अक्षम वाहनों के उत्सर्जन को कम होगा। वहीं अनधिकृत तौर पर चलने वाले जुगाड़ वाहनों को पूरी तरह से हटाना होगा।
जब गाड़ियों के इंजन में हाई टेंपरेचर पर ईंधन जलता है तो नाइट्रोजन डाइऑक्साइड या नॉक्स पैदा होती है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के प्रिंसिपल प्रोग्राम मैनेजर, एयर पॉल्यूशन कंट्रोल, विवेक चटोपाध्याय कहते हैं कि नॉक्स ईंधन में नहीं होता है। इंजन के चैंबर में जब हाई टैंप्रेचर होता है वहां हवा में मौजूद नाइट्रोजन से ही नॉक्स बनती है। इसी तरह पावर प्लांट, फरर्नेस, बॉयलर आदि जहां भी क्लोज एरिया में ईंधन के जलने से हाई टेंपरेचर होता है वहां हवा में मौजूद नाइट्रोजन ईंधन से निकलने वाली गैसों से क्रिया कर नॉक्स पैदा करता है। जिन गाड़ियों में थ्री वे कैटेलिक कनवर्टर लगा होता है उनमें नॉक्स की समस्या नहीं आती है। बीएस 4 की तुलना में बीएस 6 की गाड़ियों में निश्चित तौर पर 80 फीसदी तक नॉक्स का प्रदूषण घटा है। पर हमें समय समय पर ये जांचने की जरूरत है कि गाड़ी में लगा कैटेलिक कनवर्टर काम कर रहा है कि नहीं। आज भारत के जितने भी प्रदूषण जांच केंद्र हैं उनमें मुख्य तौर पर कार्बन मोनो ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन की जांच होती है। इन सेंटर्स को अपडेट करने की जरूरत है ताकि ये नॉक्स की भी जांच कर सकें। आज कई ऐसी तकनीक आ चुकी हैं जिनसे नॉक्स के प्रदूषण पर प्रभावी तौर पर लगाम लगाई जा सकती है। उदाहरण के तौर पर 2023 के पहले तक गाड़ियों का प्रदूषण सिर्फ लैब में चेक होता था। लेकिन एआरएआई 2023 के बाद से रियल ड्राइविंग एमीशन टैस्ट करता है। इसमें गाड़ियों को सड़क पर चला कर रीयल कंडीशन में प्रदूषण की जांच की जाती है। आज पश्चिमी देशों में कई अन्य आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिनके जरिए वायु प्रदूषण पर सख्ती से लगाम लगाई जा रही है। हमें भी इस दिशा में कदम उठाने होंगे।
हवा में मौजूद नॉक्स या नाइट्रोजन के यौगिक हमारी सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी कहते हैं कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड या नाइट्रोजन के यौगिकों से बने प्रदूषक तत्व सीधे तौर पर हमारे श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके कारण सांस फूलना, आंखों और सीने में जलन आदि महसूस की जा सकती है। कई बार श्वास नली और फेफड़ों में संक्रमण भी देखा जाता है। लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने पर फेफड़ों के कैंसर का भी खतरा बढ़ जाता है। अगर किसी को सांस लेने में दिक्कत हो रही हो या सांस फूल रही हो तो बिना देरी किए डॉक्टर से मिलना चाहिए। प्रदूषण एक नीतिगत समस्या है। इसके समाधान के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। प्रदूषित हवा में सांस लेने से हमारे शरीर के अलग अलग अंगों पर प्रभाव पड़ता है। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदूषण से मरने वाले लोगों की संख्या भी पिछले एक दशक में बढ़ी है।
प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए उठाए गए ये कदम
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने जानकारी दी कि भारत सरकार ने 1561 प्रेशर स्विंग एडसोर्प्शन (PSA) ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों को मंजूरी दी है। इनमें 1225 PSA संयंत्र शामिल हैं जिन्हें देश में PMCARES फंड के तहत लगाया गया है। इसके अलावा पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, बिजली मंत्रालय, कोयला मंत्रालय, रेल मंत्रालय आदि के सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा 336 PSA संयंत्र स्थापित किए गए हैं।
BS-IV से BS-VI ईंधन मानकों को लागू करने के बाद से NOx उत्सर्जन में 25-87% की कमी देखी गई है।
सरकार गाड़ियों में तेल भरते समय होने वाले उत्सर्जन को रोकने के लिए पेट्रोल पंपों पर वाष्प रिकवरी सिस्टम लगाने की योजना पर काम कर रही है। 2027 तक सभी शहरों में पेट्रोल पंपों पर ये व्यवस्था की दी जाएगी।
भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय की एक योजना इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम 2024 के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने, बायो-गैस उत्पादन संयंत्र स्थापित करने और इसे ऑटोमोटिव ईंधन में उपयोग के लिए बाजार में उपलब्ध कराने की योजना पर काम किया जा रहा है।