जलवायु-जंगल और जमीन की चिंता ?

 अजरबैजान का UN जलवायु सम्मेलन हो या अमृतसर में सहकार भारती अधिवेशन, जलवायु-जंगल और जमीन की चिंता

गुरु की नगरी अमृतसर से अजरबैजान के बाकू की दूरी 2439 किलोमीटर है. यहां स्वदेश और विदेश के इन दो शहरों की बात इसलिए हो रही है कि दोनों जगह हुए सम्मेलनों में चिंता एक जैसी है. अजरबैजान के बाकू में 29वां वार्षिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 29) 11 से 22 दिसंबर तक चला और यहां एक ग्लोबल एग्रीमेंट भी हुआ. इस वैश्विक समझौते में सुनिश्चित किया गया है कि विकासशील देशों को 2035 से प्रतिवर्ष 300 बिलियन डालर की राशि विकसित देशों द्वारा दी जाएगी, ताकि उन चुनौतियों से लड़ने के साथ सटीक निवारण की दिशा में कदम बढ़ाए जा सके. 

अमृतसर में 6 से 8 दिसंबर तक हुए सहकार भारती के राष्ट्रीय सम्मेलन में स्वदेशी अपनाने के लिए साथ जल,जंगल और जमीन के साथ पर्यावरण के प्रति चिंता और इसका हल सहकार से करने पर बल दिया. हर वर्ष दुनिया के अनेक देशों के साथ साथ भारत में गुणवत्ता का सूचकांक, पर्यावरण एवं इस संबंधित चिंता की रिपोर्ट और आंकड़े सामने आते है. बाढ़, सूखा, चक्रवात समेत तमाम तरह के प्रदूषण से निजात के लिए अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रदेश और लोकल स्तर पर कार्यक्रम होते हैं. 

इन सब गतिविधियों के बीच 29वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन विशेष कहा जा सकता है, क्योंकि इस सम्मेलन में जो ग्लोबल एग्रीमेंट हुआ है, उसके अनुसार 2035 तक 100 बिलियन डालर हर साल और 2035 से 300 बिलियन डालर हर साल विकासशील देशों को संबंधित सभी चुनौतियों से निपटने के लिए देने की सहमति बनी है. इस सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे.

भारत ने यहां अपनी तैयारी के साथ अनुभवों को ना केवल साझा किया था, बल्कि इस सम्मेलन में जलवायु कार्रवाई एवं अंतर्राष्ट्रीय तथा घरेलू स्तर पर की जा रही पहल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले भारत जैसे देश के लिए जलवायु सूचकांक में सुधार किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. 

परिणामस्वरुप, सम्मेलन में भारत सहित अन्य विकासशील देशों को 2035 तक जलवायु वित्त के रूप में विकसित देशों से प्रति वर्ष  100 और 2035 से 300 बिलियन डॉलर देने के वैश्विक समझौते पर हस्ताक्षर सभी देशों ने तब किये, जबकि इस राशि को ऊंट के मुंह में जीरा यानी बहुत कम आंका गया. वैसे भारत के नेतृत्व में विकासशील देशों ने इसे मामूली राशि माना है, जो प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन डॉलर की उनकी अपेक्षा से कई गुणा कम है.

इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों की ओर से अपने ऐतिहासिक कार्बन कटौती वायदों को बढ़ाने के लिए कोई नई घोषणा नहीं की गई. इसे एक बड़ी विफलता के रूप में देखा जा सकता है.सीओपी 29 का एक सकारात्मक परिणाम यह है कि विश्व समुदाय अभी भी जलवायु सुरक्षित दुनिया के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता में लगा हुआ है.जलवायु पर संदेह करने वाले डोनल्ड ट्रम्प के अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनने के बाद, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि बेलम (ब्राजील) में जलवायु एवं तमाम तरह के प्रदूषण निवारण वार्ता किस तरह आगे बढ़ेगी, जहां अगला संस्करण,सीओपी 30 यानी 10 से 21 नवंबर 2025 तक होने वाले इस महासम्मेलन के लिए नया चैलेंज है.

लगातार  बढ़ रहे अत्याधिक गंभीर चक्रवातों, बाढ़, सूखे, वायु,पृथ्वी और जल प्रदूषण जैसे विषयों का सामना कर रहे भारत को वैश्विक मंच पर अपने नेतृत्व को बनाए रखने के साथ साथ अपनी घरेलू चुनौतियों से निपटने के लिए हरित वित्त और शून्य कार्बन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए. अपने विशाल सौर, पवन और बायोमास संसाधनों के साथ भारत को उनकी पूरी क्षमता का दोहन करने का लक्ष्य रखना चाहिए. 

इस संबंध में यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि हम अपने पास मौजूद ऊर्जा भार के प्रकार (बिजली या गर्मी या शीतलन) की पहचान करें और बैटरी जैसी महंगी भंडारण प्रौद्योगिकियों तक पहुंच की आवश्यकता के बिना नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन प्रौद्योगिकी को उसके अनुरूप बनाएं. इसके बजाय, हाइड्रोजन के रूप में दीर्घकालिक भंडारण क्षमता विकसित करने के लिए सौर या पवन या बायोमास संचालित हाइड्रोजन उत्पादन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.  स्थानीय ताप मांग को पूरा करने के लिए सौर तापीय प्रौद्योगिकियों पर फिर से विचार किया जाना चाहिए.

[उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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