क्या 2029 से देश में होगा वन इलेक्शन, विपक्ष क्यों बता रहा साजिश ?
आजाद भारत का पहला चुनाव 1951-52 में हुआ। उस वक्त लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। 1957, 1962 और 1967 तक ये परंपरा जारी रही।
1969 में बिहार के मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री की सरकार दलबदल के चलते अल्पमत में आ गई और विधानसभा भंग हो गई। 1970 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव भी 11 महीने पहले करा लिए। इससे केंद्र राज्य के चुनाव आगे-पीछे हो गए।
अब 2029 में ये परंपरा फिर से शुरू हो सकती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मोदी कैबिनेट ने एक देश-एक चुनाव लागू करने के विधेयक को मंजूरी दे दी है। अगले हफ्ते बिल संसद में पेश हो सकता है। तमाम विपक्षी नेताओं ने इस सवाल उठाए हैं।
मोदी सरकार वन इलेक्शन क्यों चाहती है, क्या विपक्षी दल इसे रोक पाएंगे, फायदा और खामियां क्या हैं …
सवाल 1: ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?
जवाब: भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा, विधानसभाओं और निकाय के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे। एक ही दिन स्थानीय निकाय के चुनाव भी आयोजित किए जाएं।
सवाल 2: वन नेशन वन इलेक्शन के लिए अब तक क्या-क्या हो चुका है?
जवाब: 2014 में मोदी सरकार आने के बाद वन इलेक्शन पर चर्चा शुरू हुई…
सवाल 3: कोविंद पैनल ने वन नेशन वन इलेक्शन पर क्या सुझाव दिए?
जवाब: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पैनल ने 5 सुझाव दिए…
- सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
- हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
- पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
- चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड तैयार करेगा।
- कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।
सवाल 4: कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब आगे क्या होगा?
जवाब: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, केंद्र सरकार अगले हफ्ते बिल को संसद में पेश कर सकती है। सरकार इस बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है। संसद से बिल को चर्चा के लिए जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी यानी JPC के पास भेजा जाएगा। JPC इस बिल पर सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करेगी।

भारत की संसद में दो सदन होते हैं- लोकसभा और राज्यसभा। दोनों सदनों का मुख्य काम विधान या कानून बनाना है। इसके लिए पहले विधेयक सदन में पेश किया जाता है। फिर इस पर चर्चा होती है, उसके बाद सभी की सहमति या वोटिंग कराकर इसे पारित कर दिया जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ये कानून बन जाता है।
एक साथ चुनाव के लिए संविधान के कई प्रावधानों में संशोधन की जरूरत होगी, इसलिए वन नेशन वन इलेक्शन बिल को ‘संविधान संशोधन विधेयक’ के तौर पर पेश किया जाएगा। यह दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
सवाल 5: क्या 2029 तक देश में वन इलेक्शन लागू हो जाएगा या इसमें कुछ अड़चनें हैं?
जवाब: CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक, अगर बाकी राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई तो ज्यादातर नॉन BJP सरकारें इसका विरोध करेंगी। अगर सिर्फ संसद से पारित कराकर कानून बनाना संभव हुआ तो भी कई मुश्किलें होंगी। जैसे- एक साथ चुनाव कब कराया जाए? जिन राज्यों में अभी चुनाव हुए उनका क्या होगा? क्या इन सरकारों को बर्खास्त कर दिया जाएगा?
संजय कुमार का कहना है,

कानूनी तौर पर कई अड़चनें आने वाली हैं। कानूनी आधार पर इस समस्या को हल कर पाना संभव नहीं है। इसके लिए दूसरे राज्यों की सहमति बहुत जरूरी है। हालांकि, मतभेद इतना ज्यादा है कि ये मुमकिन नहीं लगता।
वहीं, चुनाव आयोग को पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी तैयारी करनी होगी। सभी चुनावों के आयोजन के लिए संसाधन और लॉजिस्टिक्स का मैनेजमेंट करना जरूरी है। इसमें EVM, सुरक्षा, कर्मचारियों की तैनाती और प्रचार जैसी तैयारियां शामिल हैं।’
पॉलिटिकल एक्सपर्ट विजय त्रिवेदी कहते हैं,

अगर 2025 में जनगणना शुरू होती है तो 2026 तक चलेगी। उसके बाद लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन भी किया जाना है। जिससे लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों में बदलाव होना लाजिमी है।
अगर केंद्र सरकार इन सभी स्थितियों से निपट लेती है, तो 2029 तक वन नेशन वन इलेक्शन हो सकता है।
सवाल 6: वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना मुश्किल, इसके बावजूद सरकार क्यों लाना चाहती है?
जवाबः विजय त्रिवेदी के मुताबिक, BJP वन नेशन वन इलेक्शन से विपक्ष सहित छोटी पार्टियों को कमजोर कर सकती है। विपक्षी पार्टियों के पास चुनावी मैनेजमेंट के लिए धन, बल और कार्यकर्ता कम होते हैं। जिससे उन्हें एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लड़ने में परेशानी हो सकती है।
संजय कुमार का कहना है कि ‘कैबिनेट में विधेयक को पास करने से पहले सरकार ने निश्चित तौर पर ये कैलकुलेशन किया होगा कि वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करना कितना मुश्किल है। जैसे ही BJP संसद में इसका बिल लाएगी, तमाम विपक्षी दल इसका विरोध करेंगे।’
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने BJP के इरादों पर कहा,

PM मोदी जो काम करते हैं, उसकी मंशा ये होती है कि ज्यादा से ज्यादा प्रचार हो। इसे ऐसे समझें कि संविधान के आर्टिकल 370 के खत्म होने से भले ही कश्मीर में ज्यादा कुछ न बदला हो, लेकिन देश में PM मोदी ने अपनी धाक जमा ली है। उन्होंने जनता में ये मैसेज दिया कि केंद्र सरकार ने काफी बड़ा काम कर दिखाया है। देश में बड़ी आबादी मध्यमवर्ग की है, उनको खर्चा बचाने की बात कहने से सरकार की लोकप्रियता बढ़ जाएगी।
सवाल-7: वन नेशन वन इलेक्शन के पीछे BJP की राजनीतिक मंशा क्या हो सकती है?
जवाबः विजय त्रिवेदी का कहना है कि केंद्र के लिए PM मोदी का चेहरा सबसे मजबूत है। अगर लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी होते हैं तो इसका फायदा BJP को मिल सकता है। खासकर UP, MP और राजस्थान जैसे काउ बेल्ट वाले राज्यों में।
हालांकि, लॉन्ग टर्म में इस पैटर्न का फायदा विपक्षी दलों को भी हो सकता है, जिनके पास नेशनल अपील वाला बड़ा नेता होगा। पब्लिक-पॉलिसी से जुड़े मुद्दों के थिंक टैंक IDFC इंस्टीट्यूट की एक स्टडी में कुछ रोचक बातें सामने आईं…
- अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो 77% वोटर्स दोनों जगह एक ही पार्टी को वोट करते हैं।
- अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में 6 महीने का अंतर होता है, तो एक ही पार्टी को वोट देने की संभावना 77% से घटकर 61% रह जाती है।
- दोनों चुनाव में 6 महीने से ज्यादा अंतर होने पर एक ही पार्टी को वोट करने की संभावना 61% से भी कम हो जाती है।
सवाल 8: वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में और विरोध में क्या-क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
जवाबः इस सवाल के समर्थन और विरोध में अलग-अलग तर्क दिए जा रहे हैं…
समर्थन में तर्क वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थकों का कहना है कि हर साल 5 से 6 राज्यों में चुनाव होते हैं। इससे देश के विकास कार्यों में बाधाएं आती हैं। ओडिशा का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 2004 के बाद से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ हुए, लेकिन नतीजे अलग-अलग रहे। वहां आचार संहिता बहुत कम देर के लिए लागू होती है, जिस वजह से सरकार के कामकाज में दूसरे राज्यों के मुकाबले कम खलल पड़ता है।
पूरे देश की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा गया था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि EVM ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ता। यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाता।
विरोध में तर्क राष्ट्रीय स्तर पर देश और राज्य के मुद्दे अलग-अलग होते हैं। एक साथ चुनाव हुए तो वोटर्स के फैसले पर असर पड़ने की संभावना है। चुनाव 5 साल में एक बार होंगे तो जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी। अभी की स्थिति में लोकसभा चुनाव जीतने वाली पार्टियों को डर होता है कि अच्छे से काम नहीं करेंगे तो विधानसभा में दिक्कत होगी।
वहीं, अगर लोकसभा 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई तो क्या होगा? क्योंकि अभी तक लोकसभा 6 बार 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई, जबकि एक बार इसका कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ा था। ऐसी स्थिति में तो फिर अलग-अलग चुनाव होने लगेंगे।
सवाल 9: वन नेशन वन इलेक्शन की रिपोर्ट में किन देशों से क्या लिया गया है? जवाब: एक देश एक चुनाव की रिपोर्ट तैयार करने से पहले कोविंद कमेटी ने 7 देशों की चुनाव प्रक्रिया की स्टडी की…