वो किताबें जिनकी वजह से भारत में हुआ जमकर विवाद ?

 वो किताबें जिनकी वजह से भारत में हुआ जमकर विवाद; कांग्रेस के लिए बनीं सिरदर्द, बीजेपी भी फंसी

कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर फिर चर्चा में हैं. उन्होंने अपनी एक किताब में कहा है कि अगर साल 2012 में प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बना दिए जाते तो कांग्रेस इतनी बुरी हार नहीं हारती.

कई मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस किताब में मणिशंकर अय्यर ने लिखा है कि अगर डॉ. मनमोहन सिंह की जगह प्रणब मुखर्जी को 2012 में प्रधानमंत्री बना दिया जाता तो 2014 के लोकसभा चुनाव में हार नहीं होती. इसके साथ उन्होंने कहा कि बीते 10 सालो में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से उनकी बहुत ही कम बातचीत हो पाती है. इसकी वजह पार्टी में वो एक तरह से किनारे हो गए हैं.  

मणिशंकर अय्यर की इस किताब की चर्चा आने से पहले ही बहुत ज्यादा हो रही है. माना जा रहा है कि अपने बयानों की वजह से कई बार पार्टी में ‘सजा’ या आलोचना झेल चुके अय्यर ने इस किताब के जरिए ‘दिल का दर्द’ बयां किया होगा. इसमें लिखी बातें कांग्रेस को नए विवाद में धकेल सकती हैं. 

हालांकि, कांग्रेस और किताबों से जुड़े विवादों का पुराना नाता रहा है. इससे पहले भी कई किताबें आ चुकी हैं जिसकी वजह से कांग्रेस को विवादों का सामना करना पड़ा है.  इस लेख में हम उन किताबों का जिक्र करेंगें जो कांग्रेस के लिए सिरदर्द साबित होती रही हैं.

1-‘द इमरजेंसी; ए पर्सनल हिस्ट्री’
साल 2015 में कोमी कपूर की लिखी इस किताब में आपातकाल के समय हुई घटनाओं का जिक्र किया गया है. साल 1975 में लगाई गई इमरजेंसी का ब्यौरा देती ये किताब उस समय के कांग्रेस नेताओं के रवैये की आलोचना करती है. किताब में दावा है कि कांग्रेस नेताओं का व्यवहार तानाशाहों जैसा था. इसकी बड़ी वजह विपक्षी पार्टियों को बंदी बनाना और प्रतिबंध लगाना था.

2- नेहरू; द इन्वेश्न ऑफ इंडिया
कांग्रेस के चर्चित नेता और सांसद शशि थरूर ने इस किताब में आजादी के बाद नेहरू के शासनकाल का विश्लेषण किया है. हालांकि, इस किताब में उन्होंने संतुलन बनाते हुए कई जगहों पर आलोचनात्मक रवैया भी अपनाया है जिससे नए विवाद का जन्म हुआ. शशि थरूर ने देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू की समाजवादी-संरक्षणवादी सोच पर भी सवाल उठाए हैं.  इसके साथ ही उनके शासनकाल में सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर भी सवाल उठाए हैं.

3- जिन्ना; इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस
बीजेपी नेता और वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह की ये किताब पाकिस्तान की मांग करने वाले जिन्ना को लेकर आम भारतीयों की धारणा के खिलाफ है. लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने भारत के विभाजन में पंडित नेहरू और महात्मा गांधी को भी जिम्मेदार ठहराया है. जसवंत सिंह ने इस किताब में दावा किया है कि इन दोनों नेताओं ने जिस तरह हिंदू-मुस्लिम झगड़ों को लेकर रवैया अपनाया था, इसकी वजह से जिन्ना ने अलग देश बनाने की मांग की थी. बता दें कि साल 2009 में ये किताब आई थी और उस समय इसको लेकर बहुत विवाद हुआ था. इस विवाद की सबसे खास बात ये थी कि इसमें आलोचना कांग्रेस नेताओं की गई थी लेकिन विवादों में बीजेपी भी फंस गई. बीजेपी ने उनको पार्टी से निकाल दिया.

4- इंडिया आफ्टर गांधी; द हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड लारजेस्ट
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की लिखी ये किताब एक भारत के राजनीतिक इतिहास का अहम दस्तावेज है. इस किताब में तमाम राजनेताओं और पार्टियों के शासनकाल के बारे में संतुलित विश्लेषण किया गया है. ये किताब भी विवादों के घेरे में रही. रामचंद्र गुहा ने इस किताब के जरिए कांग्रेस के शासनकाल में हुए दंगों और आर्थिक नीतियों के बारे में लिखा है और पार्टी इससे सवालों के घेरे में आ गई. हालांकि, किताब में बीजेपी, संघ परिवार और दक्षिणपंथी विचारधारा के बारे में भी लिखा गया है.

5- द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर; द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की ये किताब काफी चर्चा में रही. इस किताब पर फिल्म भी बन चुकी है. किताब में मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के बारे में कई विवादित घटनाओं का जिक्र किया गया है. इसमें बताया गया है कि मनमोहन कैबिनेट से ऊपर एक सुपर कैबिनेट थी जिसको उस समय की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चलाती थीं. कई बार सरकार फैसलों पर सुपर कैबिनेट ही अंतिम मुहर लगाती थी. संजय बारू ने किताब में दावा किया है कि फैसला लेने कई बार मनमोहन सिंह को किनारे कर दिया जाता था जबकि वो प्रधानमंत्री थे. किताब में मनमोहन सिंह को एक कमजोर नेता के तौर पर दिखाया गया है. जबकि, दावा ये भी किया गया है कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के हीरो मनमोहन सिंह थे, लेकिन श्रेय गांधी परिवार को दिया गया.

6- क्रुसेडर ऑर कन्सपाइरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रुथ
पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख की ये किताब कोयला घोटाले का सीधा दोषी उस समय मनमोहन सिंह को बताती है. किताब में कहा गया है कि व्यक्तिगत तौर मनमोहन सिंह एकदम साफ हैं. लेकिन,उनका अपने मंत्रियों पर नियंत्रण नहीं था. पीसी पारेख ने इस किताब में दावा किया कोयला खनन के पट्टों में पारदर्शिता को लागू करने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरी तरह से नाकाम साबित हुए.

7- वन लाइफ इज नॉट इनफ; एन ऑटोबायोग्राफी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे और पूर्व विदेश मंत्री के. नटवर सिंह की ये किताब कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हुई. ये किताब नटवर सिंह की आत्मकथा है.उन्होंने इस किताब के जरिए पार्टी के अंदर की राजनीति और मनमोहन सिंह के कार्यकाल की आलोचना की है. नटवर सिंह ने पार्टी और सरकार में लिए गए फैसलों की प्रक्रिया के बारे में बताया है जो कि विवाद का विषय बन गए.

8- द प्रेसिडेंशियल इयर्स
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता रहे प्रणब मुखर्जी की यह किताब पार्टी के नेताओं पर कई सवाल खड़े करती है. किताब में कांग्रेस और सोनिया गांधी पर टिप्पणी को लेकर उठे विवाद के बाद प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने किताब पर तब तक रोक लगाने की मांग की गई थी. लेकिन बाद में इसको पब्लिश कर दिया गया. प्रणब मुखर्जी ने लिखा कि कांग्रेस का अपने ही करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान नहीं कर पाई और 2014 में  बड़ी हार का सामना करना पड़ा.  प्रणब मुखर्जी ने कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद पार्टी ने दिशा खो दी थी और सोनिया गांधी सही फैसले नहीं कर पा रही थीं. इस किताब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी आलोचना की गई है.

9- द डिसेंट ऑफ एअर इंडिया
एअर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक रहे जितेंद्र भार्गव ने इस किताब के जरिए विमान सेवा  देने वाली सरकारी कंपनी एअर इंडिया के ढहने के पीछे मनमोहन सिंह सरकार की नीतियों को बताया है. किताब में दावा किया गया है कि यूपीए सरकार में किस तरह से फैसले लिए गए जो सार्वजनिक सेवा इस कंपनी के लिए बर्बादी की वजह बने.

10- राजनीति के 5 दशक
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मनमोहन सरकार में गृहमंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे की किताब में भगवा आतंकवाद पर बड़ी बात कही गई है. उन्होंने कहा कि साल 2013 में जयपुर में आयोजित कांग्रेस के चिंतन शिविर में भगवा आतंकवाद का जिक्र किया था. लेकिन, उन्होंने इसे पहली बार गृह मंत्रालय की एक गोपनीय फाइल में पढ़ा था. उन्होंने कहा ये बयान देने से पहले मामले की तह तक भी गए थे.  इसके साथ ही उन्होंने किताब के विमोचन के दौरान कहा कि कश्मीर के लालचौक जाने की सलाह पर वो डर गए थे.  शिंदे की ओर से आए इन बयानों के बाद कांग्रेस बीजेपी के निशाने पर आ गई थी.

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