गेहूं और खाने के तेल की कीमतें महंगाई की वजह क्यों है?
गेहूं और खाने के तेल की कीमतें महंगाई की वजह क्यों है?
पिछले कुछ समय से खराब मौसम और किसानों को होने वाले नुकसान की वजह से गेहूं का उत्पादन कम हुआ है. गेहूं के निर्यात पर पाबंदी और सरकारी खरीद में कमी से भी बाजार में गेहूं की कमी हो सकती है.
इस साल नवंबर में महंगाई की रफ्तार धीमी रही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में 6.21% रही महंगाई दर नवंबर में घटकर 5.48% रह गई है. यह गिरावट मुख्य रूप से खाने-पीने की चीजों, खासकर सब्जियों के दाम कम होने की वजह से आई है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर घटकर 9.04% रह गई, जो अक्टूबर में 10.87% थी. पिछले साल नवंबर में यह 8.70% थी.
सर्दियों में सब्जियों की पैदावार अच्छी होने से उनके दाम कम होने की उम्मीद है. अक्टूबर में सब्जियों की महंगाई दर 42.23% थी, जो नवंबर में घटकर 29.33% रह गई. भले ही खाने-पीने की चीजों के दामों में बढ़ोतरी की रफ्तार कम हुई है, लेकिन दो चीजें (गेहूं और खाने के तेल) अब भी आम आदमी की जेब पर भारी पड़ रही हैं.
गेहूं और खाने के तेल की कीमतें महंगाई की बड़ी वजह इसलिए हैं क्योंकि ये दोनों चीजें भारतीय खाने में बहुत जरूरी हैं और इनकी खपत बहुत ज्यादा होती है. जब इनके दाम बढ़ते हैं, तो आम आदमी के घर का बजट बिगड़ जाता है और महंगाई बढ़ जाती है.
पहले जानिए महंगाई दर का मतलब क्या है?
महंगाई दर हमें यह बताती है कि किसी अर्थव्यवस्था में कीमतें कितनी तेजी से बढ़ रही हैं. मान लीजिए कि पिछले साल प्याज का भाव 10 रुपये प्रति किलो था और इस साल यह 15 रुपये प्रति किलो हो गया है. इसका मतलब है कि प्याज के भाव में 5 रुपये (यानी 50%) की बढ़ोतरी हुई है. इस तरह, प्याज की महंगाई दर 50% होगी.
महंगाई दर की गणना हर महीने की जाती है. यह दो तरह से की जाती है: साल-दर-साल यानी पिछले साल की तुलना में इस साल कीमतें कितनी बढ़ी हैं और महीने-दर-महीने यानी पिछले महीने की तुलना में इस महीने कीमतें कितनी बढ़ी हैं.
गेहूं और तेल के दाम महंगाई से राहत में बन गए रोड़ा
गेहूं और तेल के बढ़ते दामों का असर आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है. दिल्ली के नाजफगढ़ मंडी में गेहूं का थोक भाव करीब 2900-2950 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि पिछले साल इस समय यह 2450-2500 रुपये था. नवंबर में गेहूं और आटे की महंगाई दर 7.88% रही, जबकि मैदा के लिए यह आंकड़ा 7.72% था.
नवंबर में वनस्पति तेलों की महंगाई दर 13.28% रही. उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पैक्ड पाम ऑयल का औसत खुदरा मूल्य 143 रुपये प्रति किलो है, जो पिछले साल 95 रुपये था. सोयाबीन तेल का भाव 154 रुपये प्रति किलो है, जो पिछले साल 110 रुपये था. सूरजमुखी तेल का भाव 159 रुपये प्रति किलो है, जो पिछले साल 115 रुपये था. सरसों के तेल का भाव 176 रुपये प्रति किलो है, जो पिछले साल 135 रुपये था.
गेहूं की कमी से जूझ रहा भारत?
पिछले तीन सालों से भारत में गेहूं की पैदावार अच्छी नहीं रही है. सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक 2007-08 के बाद सबसे कम हो गया है. भारत सरकार ने मई 2022 में गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी ताकि देश में गेहूं की कमी न हो. गेहूं के निर्यात पर पाबंदी के बावजूद देश में गेहूं के दाम ऊंचे बने हुए हैं.
सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक 16 साल में सबसे कम हो गया है. भारत सरकार ने देश में गेहूं की आपूर्ति बढ़ाने और दामों को कम करने के लिए रिकॉर्ड मात्रा में गेहूं बेचा है. भारतीय खाद्य निगम (FCI) के आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल को सरकारी गोदामों में सिर्फ 75 लाख टन गेहूं बचा था, जबकि पिछले साल यह 83.5 लाख टन था. पिछले 10 सालों में 1 अप्रैल को औसतन 1.67 करोड़ टन गेहूं स्टॉक में रहा था.
गेहूं की कमी: सरकार ने बेचा रिकॉर्ड स्टॉक
भारत में गेहूं की कमी के बावजूद सरकार ने पिछले साल रिकॉर्ड 1 करोड़ टन गेहूं बेचा ताकि दामों को कंट्रोल किया जा सके. हालांकि देश में गेहूं की कमी है, लेकिन सरकार आयात को बढ़ावा नहीं दे रही है. सरकार ने गेहूं पर लगे 40% टैक्स को कम या खत्म नहीं किया है और न ही रूस जैसे देशों से सीधे गेहूं खरीद रही है.
इसके बजाय सरकार अपने स्टॉक से गेहूं बेच रही है ताकि बाजार में गेहूं की आपूर्ति बढ़े और दाम कम हों. सरकार आटा मिलों और बिस्कुट बनाने वाली कंपनियों जैसे थोक खरीदारों को गेहूं बेच रही है. लेकिन इस बार उम्मीद की किरण दिख रही है.
भारतीय किसानों ने इस बार ज्यादा जमीन पर गेहूं की खेती की है. अच्छी बारिश के कारण मिट्टी में नमी है और जलाशयों में भी पानी भरपूर है. इसके अलावा, ‘ला नीना’ के कारण सर्दी लंबी रहने की संभावना है, जो गेहूं की फसल के लिए अच्छा है.
गेहूं की कमी: सरकार के लिए दोहरी चुनौती
उम्मीद है कि 2024-25 में गेहूं की बंपर फसल होगी और देश में गेहूं की कमी दूर होगी. अगर ऐसा होता है, तो गेहूं के दाम भी कम हो सकते हैं और आम आदमी को महंगाई से राहत मिल सकती है. लेकिन अभी कुछ महीनों तक गेहूं की कमी से निपटना एक बड़ी चुनौती है.
1 दिसंबर को सरकारी गोदामों में सिर्फ 2.06 करोड़ टन गेहूं था. इसमें से 1.5 करोड़ टन गेहूं हर महीने राशन की दुकानों के जरिए बांटा जाता है. इसका मतलब है कि मार्च तक के लिए सिर्फ 71 लाख टन गेहूं बचा है जिसे बाजार में बेचा जा सकता है. पिछले साल सरकार ने बाजार में 1.01 करोड़ टन गेहूं बेचा था. इससे दामों को कंट्रोल करने में मदद मिली थी.
वहीं किसानों को MSP पर गेहूं बेचने में दिक्कत हो रही है. इस बार सरकार के पास बाजार में बेचने के लिए कम गेहूं है. इसके अलावा, बाजार में गेहूं के दाम बहुत ज्यादा हैं, इसलिए किसान सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर गेहूं बेचने के लिए तैयार नहीं हो रहे. यह स्थिति सरकार के लिए दोहरी चुनौती है. एक तरफ उसे बाजार में गेहूं की कमी को पूरा करना है, तो दूसरी तरफ उसे किसानों से गेहूं की खरीद भी करनी है.
क्या अब गेहूं आयात ही एक ऑप्शन है?
अगर भारत में गेहूं की कमी जारी रही, तो सरकार को शायद गेहूं का आयात करना पड़ सकता है. लेकिन अच्छी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम इस समय काफी कम हैं. रूस में गेहूं का भाव लगभग 230 डॉलर प्रति टन है. ऑस्ट्रेलिया में गेहूं का भाव लगभग 270 डॉलर प्रति टन है.
रूस से गेहूं मंगाने पर ढुलाई और बीमा का खर्च करीब 40-45 डॉलर प्रति टन आता है. ऑस्ट्रेलिया से गेहूं मंगाने पर यह खर्च 30 डॉलर प्रति टन आएगा. इस तरह, भारत में गेहूं की लागत 270-300 डॉलर प्रति टन या 2290-2545 रुपये प्रति क्विंटल होगा. यह भाव भारत सरकार की ओर से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2425 रुपये प्रति क्विंटल के काफी करीब है. इसलिए, अगर सरकार गेहूं का आयात करती है, तो यह ज्यादा महंगा नहीं होगा और देश में गेहूं की कमी को पूरा करने में मदद मिल सकती है.
तेल के दाम क्यों बढ़ रहे हैं?
खाने के तेल की कीमतें बढ़ने की मुख्य वजह है इंडोनेशियाई पॉम ऑयल. पाम ऑयल आमतौर पर सोयाबीन या सूरजमुखी तेल से सस्ता होता है, लेकिन पिछले 3-4 महीनों से इसमें बदलाव आया है. अगस्त तक पाम ऑयल के दाम सोयाबीन और सूरजमुखी तेल से कम थे. लेकिन अब, भारत में आयातित कच्चे पाम तेल (CPO) का भाव 1280 डॉलर प्रति टन है, जो कच्चे सोयाबीन तेल (1150 डॉलर) और सूरजमुखी तेल (1235 डॉलर) से ज्यादा है.
पाम ऑयल के दाम बढ़ने की मुख्य वजह इंडोनेशिया का यह फैसला है कि वह डीजल में पाम ऑयल की मिलावट 35% से बढ़ाकर 40% करेगा. इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा पाम ऑयल उत्पादक देश है. वह अगले साल B40 बायोडीजल लाने की योजना बना रहा है.
अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) का अनुमान है कि इंडोनेशिया में बायोडीजल के लिए 1.47 करोड़ टन पाम तेल का इस्तेमाल होगा. इससे इंडोनेशिया से तेल का निर्यात कम होगा और दुनियाभर में तेल की कीमतें बढ़ रहे हैं. यह भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर खाने का तेल विदेशों से मंगाता है.
सबसे सस्ता खाने का तेल है पाम ऑयल?
पाम ऑयल कुदरती तौर पर मिलने वाला सबसे सस्ता खाने का तेल है. एक हेक्टेयर जमीन से 20-25 टन ताजे पाम फल मिलते हैं जिनसे 20% तेल निकाला जा सकता है. यानी एक हेक्टेयर से 4-5 टन कच्चा पाम तेल निकलता है.
दूसरी तरफ, सोयाबीन और सरसों/रेपसीड की पैदावार एक हेक्टेयर से ज्यादा नहीं होती. सोयाबीन से 3-3.5 टन और सरसों/रेपसीड से 2-2.5 टन ही उपज मिलती है. इनसे तेल भी कम निकलता है. सोयाबीन से 0.6-0.7 टन और सरसों/रेपसीड से 0.8-1 टन प्रति हेक्टेयर तेल निकाला जा सकता है.
इसलिए, यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि पाम ऑयल दुनिया में सबसे ज्यादा बनाया जाने वाला खाने का तेल है. अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार, 2023-24 में दुनिया में 7.63 करोड़ टन पाम ऑयल बना, जो सोयाबीन (6.27 करोड़ टन), रेपसीड (3.45 करोड़ टन) और सूरजमुखी (2.21 करोड़ टन) से कहीं ज्यादा है.
2025 में भी महंगा रहने की आशंका?
पाम ऑयल के बाजार में 2025 में भी अनिश्चितता का माहौल बना रहेगा. खराब मौसम और पाम के पेड़ों को दोबारा लगाने में देरी के कारण तेल की आपूर्ति में मुश्किलें आ रही हैं. 2024 में पाम ऑयल के दाम काफी ऊंचे रहे हैं. इसकी मुख्य वजह इंडोनेशिया से तेल का निर्यात कम होना और मलेशिया में खराब मौसम है.
वहीं इंडोनेशिया में बायोडीजल बनाने के लिए पाम ऑयल की मांग लगातार बढ़ रही है. सरकार की नीतियों के कारण यह मांग और भी तेजी से बढ़ रही है. अभी डीजल में 35% पाम ऑयल मिलाया जाता है (B35). 2025 में इसे बढ़ाकर 40% (B40) कर दिया जाएगा. आगे इसे 50% (B50) तक बढ़ाने की योजना है.
इंडोनेशियाई पाम तेल एसोसिएशन (GAPKI) के अनुसार, B40 बायोडीजल के लिए 17 लाख मीट्रिक टन ज्यादा पाम ऑयल की जरूरत होगी. B50 बायोडीजल के लिए 50 लाख मीट्रिक टन ज्यादा पाम तेल की जरूरत होगी. इससे पाम तेल की मांग बढ़ेगी और उसके दाम भी ऊंचे रह सकते हैं. अनुमान है कि 2025 में पाम ऑयल का औसत भाव 4600 रिंग्गित प्रति मीट्रिक टन होगा. 2024 में यह भाव 4200 रिंग्गित और 2023 में 3812 रिंग्गित था.
पाम ऑयल की कमी: क्या दूसरे तेल भरपाई कर पाएंगे?
भारत में हर साल 2.5-2.6 करोड़ टन खाने का तेल इस्तेमाल होता है, जिसमें से 9-9.5 करोड़ टन पाम ऑयल होता है. यह तेल ज्यादातर विदेशों से आयात किया जाता है. अगर पाम ऑयल की कमी होती है, तो उसकी भरपाई कुछ हद तक सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात से की जा सकती है. सोयाबीन तेल मुख्य रूप से अर्जेंटीना और ब्राजील से आयात किया जाता है, जबकि सूरजमुखी तेल रूस, यूक्रेन और रोमानिया से आता है.
नवंबर 2023 में भारत ने 0.87 करोड़ टन पाम ऑयल आयात किया था, जो नवंबर 2024 में घटकर 0.84 करोड़ टन रह गया. वहीं, सोयाबीन तेल का आयात 0.15 करोड़ टन से बढ़कर 0.41 करोड़ टन हो गया और सूरजमुखी तेल का आयात 0.13 करोड़ टन से बढ़कर 0.34 करोड़ टन हो गया. 2024-25 में दुनिया में सोयाबीन का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान है. इससे यह उम्मीद है कि पाम ऑयल की कमी के बावजूद भारत में खाने के तेल की कुल आपूर्ति बनी रहेगी और दाम बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेंगे.