क्या है वेश्या और विवेकानंद का किस्सा, जिसने स्वामीजी को परास्त कर दिया था?

Swami Vivekananda Jayanti: क्या है वेश्या और विवेकानंद का किस्सा, जिसने स्वामीजी को परास्त कर दिया था?

अमेरिका रवाना होने से पहले जयपुर के महाराजा स्वामी विवेकानंद का सम्मान करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने उनके समेत कई संन्यासियों को आमंत्रित किया था. इसमें उस दौर की सबसे मशहूर वेश्या को भी महाराजा ने आमंत्रित कर लिया था. इसकी जानकारी होने पर स्वामी विवेकानंद ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.

Swami Vivekananda Jayanti: क्या है वेश्या और विवेकानंद का किस्सा, जिसने स्वामीजी को परास्त कर दिया था?

स्वामी विवेकानंद का दिलचस्प किस्साImage Credit source: Samir Jana/HT via Getty Images

उठो, जागो और तब तक न रुको, जब तक मंजिल न प्राप्त हो जाए. यह संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद के कायल भारतीय युवा ही नहीं, अमेरिका तक की जनता भी थी. गुलामी की बेड़ियों में जकड़े भारत को उन्होंने एक राह दिखाई. उनका कहना था कि यह जीवन बेदद छोटा है. संसार की विलासिता क्षणिक है. असल में जो दूसरों के लिए जीते हैं, वही वास्तव में जीते हैं. बेहद कम उम्र में युवाओं के मन में स्वाधीन भारत का सपना जगाने वाले और पूरी दुनिया में अपने ज्ञान का परचम फहराने वाले स्वामी विवेकानंद की जयंती हर साल 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है. इस अवसर पर आइए जान लेते हैं वह किस्सा जिसमें एक वेश्या ने स्वामी विवेकानंद को परास्त कर दिया था?

कलकत्ता में हुआ था स्वामी विवेकानंद का जन्मस्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट के एक कायस्थ परिवार में हुआ था. उनका नाम रखा गया था नरेंद्रनाथ दत्त. पिता का विश्वनाथ दत्त पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव था और वह नरेंद्रनाथ को भी अंग्रेजी पढ़ाकर आगे बढ़ाना चाहते थे. हालांकि, बचपन से ही प्रखर बुद्धि के नरेंद्रनाथ को परमात्मा को पाना था. इसलिए पहले वे ब्रह्मसमाज की ओर आकर्षित हुए. वहां उनको संतोष की प्राप्ति नहीं हुई तो स्वामी रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए. उन्होंने देखते ही पहचान लिया कि यह वही शिष्य है, जिसकी उनको तलाश थी और नरेंद्रनाथ उनके प्रमुख शिष्य बन गए. संन्यास ग्रहण करने के बाद नरेंद्रनाथ का नाम पड़ा स्वामी विवेकानंद.

खुद को कमरे में बंद कर लियायह साल 1893 की बात है. स्वामी विवेकानंद को सर्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका जाना था. उनकी इस यात्रा का सारा भार जयपुर के महाराजा ने उठाया था. अमेरिका रवाना होने से पहले जयपुर के महाराजा स्वामी विवेकानंद का सम्मान करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने उनके समेत कई संन्यासियों को आमंत्रित किया था. सबके लिए स्वागत समारोह का आयोजन किया गया था. इसमें उस दौर की सबसे मशहूर वेश्या को भी महाराजा ने आमंत्रित कर लिया था. इसकी जानकारी होने पर स्वामी विवेकानंद ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.

जयपुर के महाराजा ने मांगी माफीजयपुर को महाराजा को जब इस बात की जानकारी हुई कि स्वामी विवेकानंद ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया है, तो वह सारी बात समझ गए. वह सीधे कमरे में स्वामी विवेकानंद के पास उनसे माफी मांगने पहुंच गए. उन्होंने स्वामीजी से क्षमा याचना करते हुए कहा कि पहले कभी किसी संन्यासी की अगवानी नहीं की थी. इसीलिए उनसे यह भूल हो गई. महाराजा ने कहा कि जिसे बुलाया गया है, वह देश की सबसे बड़ी वेश्या है. उसको वापस भेजना भी अच्छी बात नहीं है. इस पर भी स्वामी विवेकानंद उसके सामने आने के लिए तैयार नहीं हुए.

वेश्या ने रोते हुए गाया गानाबताया जाता है कि इसी बीच वेश्या ने गाना शुरू कर दिया. वह एक संन्यासी गीत गा रही थी, जिसका मतलब था कि मुझे मालूम है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं, तब भी तुम थोड़ा करुणामय हो सकते थे. मैं रास्ते की धूल ही सही, यह मुझे मालूम है. फिर भीतुम्हें तो मेरे प्रति इतना विरोधात्मक तो नहीं होना चाहिए. मैं भले कुछ नहीं हूं. मैं अज्ञानी हूं और एक पापी हूं परंतु तुम तो एक पवित्र आत्मा हो. फिर तुम क्यों मुझसे भयभीत हो. यह गीत गाते वक्त वेश्या की आंखों से आंसू बह रहे थे.

और परास्त हो गए स्वामी विवेकानंदकमरे में बंद स्वामी विवेकानंद के गानों तक इस गीत के बोल पहुंचे तो उनको उस वेश्या की स्थिति का अनुभव हुआ. भजन रूपी गीत सुनकर स्वामी विवेकानंद कमरे से बाहर आ गए. वह वेश्या के पास गए. उससे कहा कि उनके मन में अब तक डर था. वह डर उनके मन में बसी वासना का था. इसे उन्होंने अब अपने मन से बाहर कर दिया है. इसकी प्रेरणा उन्हें उस वेश्या से ही मिली है. साथ ही स्वामी विवेकानंद ने वेश्या को पवित्र आत्मा कहा, क्योंकि उसने उनको एक नया ज्ञान दिया था. उन्होंने वेश्या को प्रणाम किया और कहा कि आपने मुझे पूरी तरह परास्त कर दिया है. ऐसी शुद्ध आत्मा मैंने पहले कभी नहीं देखी. मैं अब अगर आपके साथ अकेला भी रहूं तोकोईपरवाहनहीं.

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