इस योजना का उद्देश्य ग्राम स्वराज को जमीनी स्तर पर उतारना है। संपत्ति कार्ड के चलते विकास संबंधी योजनाएं सटीक होंगी, जिससे खराब नियोजन के कारण होने वाली बर्बादी और बाधाएं दूर होंगी। इसी तरह पंचायत भूमि और चरागाह क्षेत्रों की पहचान सहित संपत्ति के अधिकार भूमि स्वामित्व पर विवादों को हल करेंगे, जिससे ग्राम पंचायतें आर्थिक रूप से सशक्त होंगी। संपत्ति कार्ड से आपदाओं के दौरान मुआवजे का दावा भी आसान हो जाएगा।

अप्रैल 2020 में प्रारंभ स्वामित्व योजना का उद्देश्य गांव में प्रत्येक संपत्ति मालिक को ‘अधिकार अभिलेख’ प्रदान करके ग्रामीण भारत की आर्थिक प्रगति को सक्षम बनाना है। यह योजना नवीनतम ड्रोन सर्वेक्षण और जीआइएस तकनीक के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी वाली भूमिका का सीमांकन करती है। भारत में ग्रामीण भूमि के बंदोबस्त के लिए अंतिम सर्वेक्षण कई दशक पहले पूरा हुआ था।

इसके अलावा कई राज्यों में गांव के आबादी क्षेत्र का सर्वेक्षण या मानचित्रण नहीं किया गया था। इसलिए ग्राम आबादी क्षेत्र के लिए अधिकार अभिलेख नहीं बनाया जा सका। स्वाभाविक रूप से कानूनी दस्तावेज या स्वामित्व के प्रमाण के अभाव में आबादी क्षेत्र में संपत्ति मालिक अपने घर के उन्नयन या अपनी संपत्ति को बैंकों द्वारा ऋण और अन्य वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से स्वीकृत वित्तीय संपत्ति के रूप में संस्थागत ऋण प्राप्त नहीं कर पाए।

यह स्थिति पिछले सात दशकों से अधिक समय से चली आ रही थी, जो देश के तीव्र आर्थिक विकास के रूप में बाधक बनी हुई थी। संपत्ति एक ऐसा सामाजिक संबंध है, जो किसी व्यक्ति को ‘संपत्ति स्वामी’ के रूप में मान्यता देता है। यह उसके आत्मसम्मान, आत्मविश्वास के साथ-साथ सुरक्षा के भाव से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। इंस्टीट्यूट आफ रेस रिलेशंस के 2021 के एक अध्ययन के अनुसार संपत्ति का अधिकार मानव अधिकार है। यह लोगों को उनकी संपत्ति को कानूनी और सामाजिक मान्यता देता है। यह अधिकार स्वतंत्र समाज का अस्तित्व बनाए रखने का एक अभिन्न अंग है।

2008 में यूएनडीपी के तहत बने कार्य समूह कमीशन आन द लीगल एंपावरमेंट आफ द पुअर की सह-अध्यक्षता पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री मैडेलीन अलब्राइट और पेरू के अर्थशास्त्री हर्नांडो डी सोटो ने की थी। इस समूह ने ‘मेकिंग द ला वर्क फार एवरीवन’ शीर्षक से अपनी रपट में कहा था कि संपत्ति के अधिकार को मौलिक मानव अधिकार के रूप में समझा जाना चाहिए।

निजी संपत्ति का अधिकार देश की आर्थिक प्रगति में कैसे भागीदारी निभाता है, इसके उत्तर में डी सोटो कहते हैं कि किसी विकासशील देश की आर्थिक प्रगति में बाधक उद्यमिता की कमी नहीं, अपितु वह आर्थिक-सामाजिक ढांचा है, जो निर्धन को संपत्ति के अधिकार से वंचित करता है।

वह कहते हैं कि गरीब परिवारों को उनकी जमीन का मालिकाना हक देना उनकी पूंजी संचय की दर को बढ़ाने का एक प्रभावी तरीका होता है, क्योंकि इससे उन्हें ऋण प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। इस ऋण का उपयोग पूंजी निवेश के लिए किया जा सकता है, ताकि श्रम उत्पादकता और आय को बढ़ाया जा सके। यह निर्धनता दूर करने का कारगर उपाय सिद्ध होगा।

भूमि अधिकार आर्थिक और साथ ही सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है। संपत्ति के अधिकारों ने संसाधन आवंटन में मौलिक रूप से सुधार करने और अधिग्रहण को सीमित करके बाजार लेनदेन को सुविधाजनक बनाया है, जो आर्थिक निवेश को मजबूत करने की क्षमता रखता है। कीफर फिलिप एवं नैक स्टीफन का 108 देश में किया गया शोध ‘पोलराइजेशन, पालिटिक्स एंड प्रापर्टी राइट्स लिंक्स बिटवीन इनइक्वलिटी एंड ग्रोथ’ बताता है कि मजबूत संपत्ति अधिकार प्रति व्यक्ति आय की वार्षिक वृद्धि से जुड़ा था।

इस शोध के अनुसार निर्धनता का चक्र रोकने के लिए लोगों को उनके भूमि अधिकारों से लैस किया जाना आवश्यक है। भूमि और आवास आर्थिक सुदृढ़ीकरण की कुंजी मात्र नहीं हैं, बल्कि इनकी गहरी भावनात्मक प्रासंगिकता भी है। यद्यपि संपत्ति अधिकार तक पहुंच कुछ मामलों में पित्तृसत्तात्मक मानदंड द्वारा निर्धारित होती रही है, जो महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को रोकती है, परंतु स्वामित्व योजना ने इन मान्यताओं को दरकिनार करते हुए उनके आवास अधिकार प्राप्त करने के मार्ग प्रशस्त किए हैं।

स्पष्ट है कि स्वामित्व योजना आर्थिक के साथ ही सामाजिक विकास को भी पुष्ट करने वाली है। अध्ययन बताते हैं कि दलित, पिछड़े और आदिवासी परिवार अवैध कब्जों और लंबे अदालती विवादों से सबसे अधिक प्रभावित हैं। स्वामित्व योजना कानूनी प्रमाणीकरण के साथ लोगों को ऐसे अनचाहे पीड़ादायक अनुभवों से मुक्त कराती है। सभी संपत्ति कार्ड जारी होने पर देश में लाखों करोड़ रुपये की आर्थिक गतिविधियां शुरू होने का अनुमान है। हाशिए पर मौजूद लोगों को आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़ने में भी ये कार्ड सहायक बनेंगे।

(लेखिका समाजशास्त्री हैं)