क्या दलितों और बीजेपी के बीच फिर बढ़ रही है दूरी?

क्या दलितों और बीजेपी के बीच फिर बढ़ रही है दूरी? 2014 से अब तक के आंकड़े

2014 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. इस चुनाव में दलितों का समर्थन इस पार्टी के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ था

साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण के मुद्दा का नैरेटिव सेट किया था. उस चुनाव में राहुल गांधी से लेकर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव चुनाव तक, जनता के बीच ये संदेश पहुंचाने में लगे थे कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो बाबा साहेब द्वारा बनाए गए संविधान को बदल देगी और दलित व पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण को खत्म कर देगी. 

इस नैरेटिव का यूपी की सियासत में जबरदस्त असर हुआ. बीजेपी यूपी में 62 सीटों से घटकर 33 पर सिमट गई जबकि सपा को 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं.

भारतीय राजनीति में दलित समुदाय एक अहम वोट बैंक रहा है, जिसका चुनाव परिणामों पर गहरा असर पड़ता है. भारतीय जनता पार्टी (BJP), जो पहले उच्च जातियों और अन्य सामाजिक वर्गों के बीच काफी ज्यादा लोकप्रिय थी, ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई पहल की. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने दलितों के लिए कई योजनाएं लागू की और सामाजिक न्याय का वादा किया, जिसके परिणामस्वरूप इस पार्टी का दलित वोट बैंक मजबूत हुआ.

लेकिन, पिछले कुछ सालों में एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिला है. दरअसल साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी को 2014 से ज्यादा के दलित वोट मिले थे वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित वोट शेयर में काफी गिरावट आई है. इस गिरावट के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें पार्टी की नीतियों में बदलाव, विपक्ष की सक्रियता, और कुछ विवादास्पद घटनाएं शामिल हैं. 

अब सवाल यह उठता है कि क्या दलित वोटर्स और बीजेपी के बीच की दूरी फिर से बढ़ने लगी है और क्या बीजेपी को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है? इस रिपोर्ट में हम 2014 से 2024 तक के आंकड़ों के आधार पर इस बदलते रिश्ते के बारे में जानेंगे.

क्या दलितों और बीजेपी के बीच फिर बढ़ रही है दूरी? 2014 से अब तक के आंकड़े

दलित वोटबैंक का आंकड़ा

भारत की 156 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोट काफी संख्या में है. 2024 लोकसभा चुनाव के परिणाम की बात करें तो इस चुनाव में 156 सीटों में से 93 सीटें  इस बार विपक्षी गठबंधन ने और 57 सीटें एनडीए ने जीती है. दलित वोट वाली 156 सीटों ने इस बार विपक्ष को 2019 के लोकसभा चुनाव के तुलना में 53 सीटों का फायदा कराया है. वहीं एनडीए को 34 सीट का नुकसान हुआ. 

यूपी- 42, पश्चिम बंगाल- 26, तमिलनाडु- 21, पंजाब- 13, कर्नाटक- 11, राजस्थान- 10, आंध्र प्रदेश- 9, बिहार- 6, हरियाणा- 5, तेलंगाना- 3, एमपी- 8, महाराष्ट्र- 4 सीट ऐसी हैं जहां 2024 के लोकसभा चुनाव में 20 प्रतिशत से ज्यादा यानी हर पांच में एक वोट दलित नागरिक का है. 

2014: बीजेपी की ऐतिहासिक जीत और दलितों का समर्थन

2014 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. इस चुनाव में दलितों का समर्थन इस पार्टी के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ था. उस वक्त बीजेपी के लिये ये जरूरी था कि वह अपने वोट बैंक का विस्तार करे, और दलितों को अपने पक्ष में खड़ा कर सके. उस दौरान पार्टी  ने सामाजिक न्याय और दलित उत्थान के लिए कई कदम उठाए थे. इन कदमों में एक प्रमुख कदम था ‘दलित नेतृत्व’ को बढ़ावा देना. मोदी सरकार ने दलितों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं का ऐलान किया था, जैसे कि प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन, जो सीधे तौर पर दलितों के जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में थीं.

इसके परिणामस्वरूप, 2014 में बीजेपी ने दलितों के बीच अपने समर्थन को दोगुना कर लिया था. लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार, 2009 में बीजेपी का दलित वोट शेयर केवल 11% था, जो 2014 में बढ़कर 22% हो गया. इस बढ़त का मुख्य कारण था नरेंद्र मोदी का नेतृत्व और बीजेपी की कल्याणकारी योजनाओं का असर.

2019: दलितों का समर्थन और बीजेपी की सामाजिक इंजीनियरिंग

2019 में बीजेपी के दलित वोट शेयर में और भी वृद्धि हुई थी. 2019 के चुनाव में पीर्टी ने 32% दलित वोट हासिल किए थे. इसे पार्टी की सामाजिक इंजीनियरिंग और दलितों के प्रति उनके सकारात्मक रुख का परिणाम माना जाता है. मोदी सरकार ने अपनी योजनाओं के जरिए दलितों को यह महसूस कराया था कि उनकी आवाज़ सुनी जा रही है और उनके लिए काम किया जा रहा है. बीजेपी द्वारा दलितों के लिए विशेष योजनाएं, जैसे कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और मुद्रा योजना बनाई गईं, जिनका सीधा लाभ दलितों को मिला.

बीजेपी ने दलितों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कुछ दलित नेताओं को भी महत्व दिया. पार्टी ने खुद को एक ऐसे राजनीतिक विकल्प के रूप में पेश किया, जो दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए गंभीर था.

क्या दलितों और बीजेपी के बीच फिर बढ़ रही है दूरी? 2014 से अब तक के आंकड़े

2024: बीजेपी के दलित वोट शेयर में गिरावट

हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के दलित वोट शेयर में गिरावट आई. भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में 32% दलित वोट प्राप्त किए थे, लेकिन 2024 में यह आंकड़ा घटकर 29% हो गया. यह गिरावट भले ही मामूली दिखे, लेकिन यह दलितों के बीच बीजेपी के समर्थन में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है.

लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में बीजेपी ने अपने कुल वोट शेयर में तो कोई खास कमी नहीं देखी, लेकिन दलितों के बीच उनका समर्थन कम हुआ. विशेष रूप से उन राज्यों में भाजपा को नुकसान हुआ जहां विपक्षी गठबंधन, यानी INDIA ब्लॉक, ने दलित वोटों को अपने पक्ष में किया. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान जैसे राज्यों में भाजपा का दलित वोट प्रतिशत घटा, जबकि INDIA ब्लॉक ने इस वोट बैंक पर कब्जा किया. इसके अलावा, बीजेपी पर यह भी आरोप है कि पार्टी ने दलितों के मुद्दों को लेकर अपनी प्राथमिकताओं को कम किया है. 

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दलितों पर मजबूत पकड़ बनाने में जुटी बीजेपी.

दलितों और बीजेपी के बीच बढ़ती दूरी क्यों?

दलितों की नाराजगी: बीजेपी पर आरोप है कि वह दलितों के मामलों को सख्ती से नहीं सुलझा रही है, खासकर आरक्षण और उनके सामाजिक अधिकारों को लेकर. उदाहरण के लिए, कई दलित संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाए हैं कि वह उनके अधिकारों को सीमित करने की कोशिश कर रही है.

दलितों के लिए योजनाओं का असर: बीजेपी सरकार ने कुछ योजनाएं बनाई हैं, जैसे “प्रधानमंत्री आवास योजना”, लेकिन आलोचना यह है कि इन योजनाओं में दलितों के लिए विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है या उनकी पूरी तरह से पहुंच नहीं हो पा रही है.

सामाजिक असमानता और हिंसा: बीजेपी सरकार के तहत कई स्थानों पर दलितों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएं हुई हैं, जिनकी वजह से दलित समुदाय में असंतोष बढ़ा है. खासकर, यूपी, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में जातिवाद आधारित हिंसा की घटनाएं इस असंतोष को बढ़ाती हैं.

भ्रष्टाचार और आर्थिक मुद्दे: 2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा की जीत का एक कारण था भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की नाराजगी और मोदी के नेतृत्व में एक बेहतर भविष्य का वादा. हालांकि, 2024 में यह मुद्दा उतना प्रभावी नहीं रहा. कई दलितों को यह महसूस हुआ कि बीजेपी ने उनके हितों को उतना प्राथमिकता नहीं दी, जितना पहले की सरकारों ने किया था.

विपक्ष का प्रभावी अभियान: 2024 में विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक ने दलितों के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और बीजेपी को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश की. विपक्ष ने भाजपा पर आरोप लगाया कि पार्टी दलितों के मुद्दों को हल्के में ले रही है और उनका अपमान कर रही है.

बीजेपी की सामाजिक इंजीनियरिंग की रणनीति: पार्टी की सामाजिक इंजीनियरिंग की रणनीति ने दलितों के बीच उसकी लोकप्रियता बढ़ाई थी, लेकिन 2024 में यह रणनीति ज्यादा प्रभावी नहीं रही. इसके बजाय, बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने एक मजबूत सामाजिक और आर्थिक न्याय का मुद्दा उठाया, जिसने दलितों को आकर्षित किया.

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