गणतंत्र दिवस परेड: क्या सभी राज्यों को मिलता है समान अवसर?
गणतंत्र दिवस परेड: क्या सभी राज्यों को मिलता है समान अवसर? कैसे होता है झांकियों का चयन
गणतंत्र दिवस परेड में कौन सी झांकी दिखाई जाएगी, इसके लिए एक पूरा प्रोसेस होता है. झांकियों के सेलेक्शन के लिए एक्सपर्ट्स की एक पूरी कमेटी होती है.
भारत आज 26 जनवरी को अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. साल 1950 में इसी दिन हमारा संविधान लागू हुआ था. लेकिन क्या आपको पता है कि 26 जनवरी को ही गणतंत्र दिवस क्यों मनाते हैं? और गणतंत्र दिवस परेड में क्या सभी राज्यों को अपनी सांस्कृतिक झांकियां प्रदर्शित करने का अवसर दिया जाता है?
हर साल गणतंत्र दिवस पर अलग-अलग राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और सरकारी मंत्रालय अपनी झांकियां निकालते हैं. इस साल 2025 की थीम है- “स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास”. इस बार तमाम राज्यों की झांकियां इसी थीम पर आधारित हैं, जो भारत की समृद्ध विरासत और विकास को दर्शा रही हैं.
कितने राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को मिली अनुमति?
राजधानी दिल्ली के कर्तव्य पथ पर भव्य गणतंत्र दिवस परेड में 15 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपनी रंग-बिरंगी झांकियां प्रस्तुत करेंगे. ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, बिहार, चंडीगढ़, दादर नगर हवेली और दमन दीव, गोवा, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल. इन राज्यों के अलावा 15 केंद्रीय मंत्रालय और विभाग भी अपनी झांकियों के जरिए देश की प्रगति और उपलब्धियों को प्रदर्शित करेंगे.
असम की झांकी इस बार भी कर्तव्य पथ पर नहीं दिखी?
इस साल भी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के कर्तव्य पथ पर भव्य परेड में असम की झांकी नहीं दिखेगी. यह लगातार दूसरा साल है जब असम की झांकी इस परेड का हिस्सा नहीं बन पायी. ऐसा इसलिए है क्योंकि परेड में शामिल होने वाले राज्यों के लिए एक ‘रोटेशन पॉलिसी’ होती है, जिसके तहत हर राज्य को बारी-बारी से मौका दिया जाता है. इस बार असम की बारी नहीं है.
‘रोटेशन प्लान’ के तहत हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को तीन साल के भीतर (2024-2026) गणतंत्र दिवस की परेड में अपनी झांकी दिखाने का मौका मिलेगा. 28 राज्यों ने इस प्लान पर सहमति दी है. कर्तव्य पथ पर असम की झांकी 2026 में दिखेगी.
लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि इस साल दर्शक असम की शानदार झांकी से वंचित रह गए. असम सरकार ने अपनी झांकी में राज्य के दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलो- चराईदेव मोइदाम और काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान को दिखाया है. इसके साथ ही झांकी में असम के समृद्ध इतिहास और संस्कृति की भी झलक मिलेगी. यह झांकी 26 जनवरी से 31 जनवरी तक लाल किले पर आयोजित होने वाले ‘भारत पर्व’ में प्रदर्शित की जाएगी.
क्या होगा उन राज्यों का जिनका चयन कर्तव्य पथ की परेड के लिए नहीं हुआ?
यह सच है कि कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड में सीमित संख्या में ही राज्य अपनी झांकियां प्रदर्शित कर पाते हैं.लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाकी राज्यों को निराश होना पड़ेगा.ऐसे सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश 26 से 31 जनवरी तक लाल किले पर आयोजित होने वाले ‘भारत पर्व’ में अपनी झांकियां सजा सकते हैं.
भारत पर्व एक विशाल सांस्कृतिक उत्सव है जो 26 जनवरी से 31 जनवरी तक लाल किले में आयोजित किया जाता है. इस उत्सव में देश के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकार, शिल्पकार और सांस्कृतिक समूह अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. कर्तव्य पथ पर चयनित नहीं होने वाले राज्य यहाx अपनी झांकी प्रदर्शित कर सकते हैं, जिससे देशभर से आए लोग उनकी संस्कृति और विरासत से रूबरू हो सकें.
परेड का सारा इंतजाम कौन देखता है?
परेड का सारा इंतजाम रक्षा मंत्रालय (MoD) करता है. राज्यों और दूसरे विभागों से बातचीत करना, सब कुछ यही देखता है. गणतंत्र दिवस की तैयारी तो महीनों पहले ही शुरू हो जाती है. झांकियों का सेलेक्शन भी इसी का एक हिस्सा है. क्योंकि झांकियों में कला और संस्कृति का तड़का भी होता है. इसलिए संस्कृति मंत्रालय भी इसमें मदद करता है. कौन सी झांकी अच्छी है, कौन सी नहीं, ये सब देखना, संस्कृति को प्रमोट करना, ये सब काम संस्कृति मंत्रालय करता है.
कैसे होता है झांकियों का सेलेक्शन?
परेड में कौन सी झांकी दिखाई जाएगी, इसके लिए एक पूरा प्रोसेस होता है. हर साल गणतंत्र दिवस से महीनों पहले रक्षा मंत्रालय सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और विभागों को एक थीम देता है. फिर सबको उस थीम पर अपनी झांकी का डिजाइन भेजना होता है.
झांकियों के सेलेक्शन के लिए एक्सपर्ट्स की एक पूरी कमेटी होती है. इस कमेटी में कला, संस्कृति, पेंटिंग, मूर्तिकला, संगीत, वास्तुकला, नृत्य जैसे क्षेत्रो के बड़े-बड़े एक्सपर्ट्स होते हैं. ये एक्सपर्ट्स झांकी के थीम, कॉन्सेप्ट, डिजाइन और उसके दिखावे के आधार पर उसे जज करते हैं.
ये एक्सपर्ट्स सभी प्रपोजल्स को ध्यान से देखते हैं और फिर तय करते हैं कि कौन सी झांकी परेड में शामिल होगी. ये एक्सपर्ट्स इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) की ओर से चुने जाते हैं. 2024 की परेड के लिए 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की झांकियों का चुनाव चार राउंड की मीटिंग के बाद किया गया है.
पहले राउंड में तो बस एक बेसिक चेकिंग होती है. अगर डिजाइन में कुछ बदलाव करने की जरूरत होती है, तो एक्सपर्ट्स बता देते हैं. जब डिजाइन फाइनल हो जाता है, तो उस झांकी का एक 3D मॉडल बनाकर एक्सपर्ट्स को दिखाना होता है. फिर एक्सपर्ट्स उसे अच्छे से चेक करते हैं और फाइनल सेलेक्शन करते हैं. जिनकी झांकी अगले राउंड के लिए चुनी जाती है, सिर्फ उन्हें ही बताया जाता है.
क्या सभी राज्यों को अपनी सांस्कृतिक झांकियां दिखाने का मिलता है अवसर?
अगस्त 2024 में लोकसभा में डिफेंस मिनिस्ट्री से सवाल पूछा गया था कि क्या यह सच है कि 26 जनवरी को होने वाली गणतंत्र दिवस परेड में सभी राज्यों को अपनी अनूठी सांस्कृतिक झांकियां प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया जाता है? इस सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि गणतंत्र दिवस परेड में हर राज्य की झांकी दिखे, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने एक खास योजना बनाई है. इस योजना के तहत हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को तीन साल के अंदर परेड में अपनी झांकी दिखाने का मौका जरूर मिलेगा.
इसके लिए 2024, 2025 और 2026 इन तीन सालों के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया गया है. इसमें यह तय किया गया है कि कौन सा राज्य किस साल अपनी झांकी प्रदर्शित करेगा. यह कार्यक्रम सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ बातचीत करके बनाया गया है. देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 6 जोन में बांटा गया है. हर जोन के लिए यह तय है कि उस जोन से कितनी झांकियां परेड में शामिल होंगी. ऐसा इसलिए किया गया है ताकि हर साल परेड में सभी जोन का प्रतिनिधित्व हो. इस तरह, हर जोन के सभी राज्यों को तीन साल के अंदर अपनी झांकी दिखाने का मौका मिल जाएगा.
स्कूल के बच्चों का परेड में सेलेक्शन कैसे होता है?
गणतंत्र दिवस परेड में स्कूल के बच्चों की परफॉर्मेंस तो देखते ही बनती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि परेड में कौन से स्कूल के बच्चे अपनी कला दिखाएंगे, यह कैसे तय होता है? दरअसल, जो स्कूल परेड में शामिल होना चाहते हैं, वो अपनी परफॉर्मेंस का प्रपोजल भेजते हैं. फिर एक्सपर्ट्स की एक कमेटी इन परफॉर्मेंस को देखती है. इस कमेटी में डांस, म्यूजिक और कोरियोग्राफी जैसे क्षेत्रों के बड़े-बड़े जानकार होते हैं.
ये एक्सपर्ट्स सभी स्कूलों की परफॉर्मेंस को ध्यान से देखते हैं और फिर तय करते हैं कि कौन से स्कूल परेड में शामिल होंगे.
गणतंत्र दिवस और बीटिंग रिट्रीट पर कितना खर्चा होता है?
इस सवाल के जवाब में लोकसभा में सरकार ने बताया था कि गणतंत्र दिवस परेड और बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में कई मंत्रालय, विभाग, संगठन और राज्य सरकारें शामिल होती हैं. रक्षा मंत्रालय इन सबके साथ तालमेल बिठाता है और सारा इंतजाम देखता है. अब, परेड और सेरेमनी के लिए जो भी खर्चा होता है, वो हर विभाग या संगठन अपने-अपने बजट से उठाता है. सारा खर्चा एक जगह इकट्ठा करके नहीं दिखाया जाता. रक्षा मंत्रालय के सेरेमोनियल डिवीजन को 2022-23 में पूरे साल के सभी समारोहों के लिए 1.32 करोड़ रुपये मिले थे.
26 जनवरी को ही गणतंत्र दिवस क्यों मनाते हैं?
15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी तो मिल गई थी, लेकिन उस दिन हमारा अपना कोई संविधान नहीं था. 26 जनवरी को हम ‘गणतंत्र’ बने, यानी हमें अपना लिखित संविधान मिला और हम पूरी तरह से एक स्वतंत्र देश बने. ‘गणतंत्र’ का मतलब है कि हमारे देश का मुखिया ‘राष्ट्रपति’ होता है, जिसे हम चुनते हैं. हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 को बना था, लेकिन लागू 26 जनवरी 1950 को हुआ. 26 नवंबर को हम ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाते हैं.
26 जनवरी को ही गणतंत्र दिवस मनाने के पीछे भी एक खास कारण है. 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने ‘पूर्ण स्वराज’ का ऐलान किया था. यानी उस दिन कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन से पूरी आजादी की मांग की थी. एक साल पहले दिसंबर 1929 में कांग्रेस का लाहौर में एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव पारित किया गया था. इस सम्मेलन के अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू थे.