गणतंत्र दिवस की तारीख 26 जनवरी ही क्यों !

गणतंत्र दिवस की तारीख 26 जनवरी ही क्यों, आजादी के जश्न इस दिन क्यों मनाए जाते थे?

Republic Day 2025 Interesting facts: 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ. स्वतंत्रता पश्चात संविधान निर्माण का कार्य 25 नवंबर 1949 को पूर्ण हुआ. 26 नवंबर को संविधान सभा ने उसे स्वीकार किया. इसे लागू कब किया जाए? इसका निर्णय अब अपनी सरकार-सदन को करना था. जानिए गणतंत्र दिवस की तारीख 26 जनवरी क्यों रखी गई और शुरुआती दौर में आजादी के जश्न इस दिन क्यों मनाए जाते थे?

गणतंत्र दिवस की तारीख 26 जनवरी ही क्यों, आजादी के जश्न इस दिन क्यों मनाए जाते थे?

अटारी-वाघा बॉर्डर पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों ने 76वां गणतंत्र दिवस की परेड का जश्न मनाया.

अंग्रेजों के भारत छोड़ने के फैसले के बाद देश की स्वतंत्रता की तारीख भी उन्हें ही तय करनी थी. उन्होंने 15 अगस्त की तारीख चुनी. देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ. स्वतंत्रता पश्चात संविधान निर्माण का कार्य 25 नवंबर 1949 को पूर्ण हुआ. 26 नवंबर को संविधान सभा ने उसे स्वीकार किया. इसे लागू कब किया जाए? इसका निर्णय अब अपनी सरकार – सदन को करना था. इसके लिए तारीख 26 जनवरी 1950 चुनी गई. लेकिन 26 जनवरी ही क्यों? इसलिए कि स्वतंत्रता के संघर्ष में इस तारीख का ऐतिहासिक महत्व है. गणतंत्र दिवस के अवसर पर पढ़िए इस तारीख से जुड़े प्रसंग,

31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था. मंच पर बैठे नेताओं से दूर तक फैले कार्यकर्ताओं का जोश उफान मार रहा था. उनका धैर्य चुक रहा था. वे अब और इंतजार को तैयार नहीं थे. मांग थी कि अंग्रेज जल्द देश छोड़ें. जनता को सिर्फ कुछ रियायतें नहीं चाहिए थीं. उसे पूर्ण स्वराज से कुछ भी कम स्वीकार नहीं था. अपने अध्यक्षीय भाषण में जवाहर लाल नेहरू ब्रिटिश राज को चुनौती दे रहे थे. यह भी संदेश दे रहे थे कि आजादी का मतलब सिर्फ विदेशी सत्ता से छुटकारा भर नहीं होगा. उन्होंने कहा था, “विदेशी शासन से अपने देश को मुक्त कराने के लिये अब हमें खुला विद्रोह करना है. देश के सभी नागरिकों को इसमें जुड़ना और मंजिल हासिल करने के लिए जुटना है.”

नेहरू ने यह भी साफ कर दिया था कि आजादी का मतलब सिर्फ विदेशी शासन को उखाड़ फेंकना भर नहीं है. उन्होंने कहा था, मुझे स्पष्ट स्वीकार कर लेना चाहिए कि मैं एक समाजवादी और रिपब्लिकन हूं. मेरा राजाओं और महाराजाओं में विश्वास नहीं है. न ही मैं उन उद्योगों में विश्वास रखता हूं जो राजे-महाराजे पैदा करते हैं और जो पुराने राजे-महाराजों से अधिक जनता की जिन्दगी और भाग्य को नियंत्रित करते हैं . लूटपाट और शोषण का तरीका अख्तियार करते हैं.”

पूर्ण स्वराज की तारीख 26 जनवरीलाहौर अधिवेशन ने पूर्ण स्वराज का लक्ष्य तय किया. इसके लिए 26 जनवरी 1930 की तारीख का ऐलान हुआ. अंग्रेजों को अल्टीमेटम दिया कि अगर इस तारीख तक पूर्ण स्वराज देने का फैसला नहीं करते तो देशवासी खुद को स्वतंत्र घोषित कर देंगे. अधिवेशन के फैसलों से साफ था कि कांग्रेस निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार है. इस मौके पर पारित प्रस्तावों में गोलमेज सम्मेलन के बहिष्कार , पूर्ण स्वराज्य को अपना मुख्य लक्ष्य घोषित करने , सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने , करों का भुगतान न करने, काउंसिल के चुनावों में भाग न लेने और मौजूदा सदस्यों के पद त्याग के फैसले शामिल थे. इन सबसे भी आगे 26 जनवरी 1930 को देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला था.

Republic Day 2025

26 जनवरी को देश भर में फहराया तिरंगा31 दिसम्बर 1929 की अर्द्धरात्रि में रावी नदी का जल शांत था. लेकिन तट पर स्वतंत्रता प्रेमियों का प्रवाह हिलोरे मार रहा था. ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों की गूंज धरती से आकाश तक थी. भारी उल्लास और संघर्ष के संकल्प के बीच स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा झंडा फहराया गया. यह क्रम यहीं नहीं थमना था. 26 जनवरी की तारीख पास थी और इस तारीख को देश के हर शहर-गांव और डगर पर तिरंगा फहराने की तैयारी थी. 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में जगह-जगह अंग्रेजी राज के दमन चक्र की परवाह किए बिना तिरंगा फहराया गया. सभाओं-सम्मेलनों का आयोजन हुआ. सामूहिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्त करने की शपथ ली गई. इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफलता मिली. गांवों तथा कस्बों में सभायें आयोजित की गयीं. 26 जनवरी को देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने का क्रम 1947 में आजादी मिलने तक जारी रहा.

संविधान रचना और उसकी स्वीकृतिभारत के संविधान का पहला प्रारूप अक्टूबर 1947 में तैयार हो गया था. इस प्रारूप के लिए बहुत सी आधार सामग्री संकलित की गई. “संवैधानिक पूर्वदृष्टान्त” नाम के तीन संकलनों में लगभग 60 देशों के संविधान के महत्वपूर्ण अंश सम्मिलित थे. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अगुवाई वाली प्रारूप कमेटी ने इस प्रारूप का परीक्षण किया. 21 फरवरी 1948 को इस कमेटी ने संविधान का प्रारूप पेश किया. ढेर सारी आपत्तियां और संशोधन पेश हुए.

इन पर विचार के लिए गठित विशेष कमेटी ने कतिपय संशोधनों को 26 अक्टूबर 1948 को संविधान सभा में पेश दूसरे प्रारुप में शामिल किया. संविधान का दूसरा वाचन 16 नवम्बर को पूर्ण हुआ. अगले दिन तीसरा वाचन प्रारम्भ हुआ. 26 नवम्बर 1949 को संविधान पारित करने का प्रस्ताव स्वीकार हुआ. इस तरह संविधान सभा के जरिये भारत की जनता ने प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार, अधिनियमित और स्वयं को समर्पित किया. संविधान बनाने में 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा.

Republic day parade

26 जनवरी, तब स्वतंत्रता दिवस, अब गणतंत्र दिवसस्वतंत्रता संघर्ष के दौरान 1930 से 1947 तक 26 जनवरी को देश भर में स्वतंत्रता दिवस के आयोजन किए जाते थे. स्वतंत्रता के पूर्व 26 जनवरी की तारीख़ स्वतंत्रता प्राप्त करने के लक्ष्य का स्मरण और संकल्प दिलाती थी. स्वतंत्रता के पश्चात यह तारीख विजय और उस लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति की प्रतीक बन गई. संविधान सभा 26 नवम्बर 1949 को लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार कर चुकी थी.

24 जनवरी 1950 संविधान सभा की आखिरी तारीख थी. 26 जनवरी 1950 से औपचारिक तौर पर संविधान प्रभावी हुआ और क्रियान्वयन में आ गया. भारतीय संविधान की बड़ी विशेषता उसका लचीलापन है. बदलते समय की अपेक्षाओं के अनुरूप उसमें संशोधनों का सिलसिला चला है. संविधान ने जिस लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया, उसने देश के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया. 1952 से अद्यतन केंद्र से राज्यों तक के चुनाव, शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण और उसके अनुरूप व्यवस्था संचालन संविधान की सफलता और क्षमता प्रमाणित करते हैं .

2024 के चुनाव में संविधान बन गया चुनावी मुद्दादेश के संविधान की सफलता की बड़ी मिसाल भिन्न विचारधाराओं के राजनीतिक दलों और प्रत्येक नागरिक में उसके प्रति आदर और संरक्षण का भाव है. पिछले 2024 के लोकसभा चुनाव में तो विपक्ष ने संविधान को बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया था. विपक्ष उसे खतरे में बता रहा था तो सत्ता पक्ष भरोसा दे रहा था कि संविधान को कोई छू नहीं सकता.

देश के संविधान की जब चर्चा होती है तो प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर भीम राव आंबेडकर के 25 नवम्बर 1949 के उस भाषण को जरूर याद किया जाता है, “मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान में अमल लाने का काम सौंपा जाए खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा. दूसरी ओर संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो यदि वे लोग जिन्हें संविधान अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा. “

आंबेडकर और राजेंद्र प्रसाद की नसीहतडॉक्टर अम्बेडकर ने सचेत किया था, “आजादी मिलने के साथ हमारे वे सारे बहाने खत्म हो गए हैं जिसके तहत हम हर ग़लती के लिए अंग्रेजों को जिम्मेदार ठहरा देते थे. अगर इसके बाद भी कुछ ग़लत होता है तो हम अपने अलावा किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकते.” 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का समापन भाषण भी संविधान की सफलता के लिए उसके पालन-संरक्षण से जुड़े हर अंग को नसीहत दे रहा था, ” जो लोग चुनकर आएंगे वे योग्य,चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे. यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नही कर सकता. आखिरकार एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है. इनमें प्राणों का संचार उन व्यक्तियों द्वारा होता है, जो इस पर नियंत्रण करते हैं तथा इसे चलाते हैं. “

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