भारत ने क्यों तय किया राजकोषीय घाटे को 4.9% तक लाने का लक्ष्य?

भारत ने क्यों तय किया राजकोषीय घाटे को 4.9% तक लाने का लक्ष्य?

जब सरकार का खर्च उसकी कमाई से ज्यादा हो जाता है, तो कर्ज लेना पड़ता है. जितना ज्यादा कर्ज लेना पड़ेगा, उतना ही ज्यादा राजकोषीय घाटा होगा. राजकोषीय घाटा दिखाता है कि सरकार की आर्थिक हालत कैसी है.

राजकोषीय घाटा कम होने से सरकार को बाजार से कम कर्ज लेना पड़ेगा

सरकार ने खर्चों को कंट्रोल करके और टैक्स कलेक्शन बढ़ाकर यह कामयाबी हासिल की है. हालांकि, इंडस्ट्री बॉडी CII ने सरकार को आगाह किया है कि राजकोषीय घाटे को कम करने की ज्यादा उत्सुकता देश की आर्थिक ग्रोथ को पटरी से उतार सकती है. 

भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने सुझाव दिया है कि सरकार को 2024-25 के लिए GDP के 4.9% और 2025-26 के लिए 4.5% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर ही टिके रहना चाहिए. उनका कहना है कि इन लक्ष्यों से आगे बढ़कर निर्धारित करने से आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. 

CII ने सरकार को क्या सुझाव दिए
CII ने आने वाले बजट को लेकर सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं. CII के डायरेक्टर जनरल चंद्रजीत बनर्जीने कहा, “दुनिया भर की इकॉनमी सुस्त पड़ रही है, लेकिन भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है. इस ग्रोथ के पीछे समझदारी से किया गया पैसों का मैनेजमेंट है, जिससे व्यापक आर्थिक स्थिरता बनी हुई है.”

सीआईआई ने सरकार को सलाह दी है कि आने वाले बजट में कर्ज कम करने का एक प्लान बनाया जाए. सीआईआई का कहना है कि सरकार को अपना कर्ज 2030-31 तक GDP के 50% से नीचे और लंबे समय में जीडीपी के 40% से नीचे लाने का लक्ष्य रखना चाहिए. सीआईआई के मुताबिक, ऐसा करने से भारत की क्रेडिट रेटिंग बेहतर होगी और इकॉनमी में ब्याज दरें भी कम होंगी.

भारत ने क्यों तय किया राजकोषीय घाटे को 4.9% तक लाने का लक्ष्य?

बजट 2024-25: आमदनी, खर्चा और राजकोषीय घाटे का हिसाब-किताब!
2024-25 के बजट के मुताबिक, सरकार की कुल आमदनी (उधार को छोड़कर) 32.07 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जबकि कुल खर्च 48.21 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है. सरकार को टैक्स से 25.83 लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है. इस साल राजकोषीय घाटा GDP का 4.9% रहने का अनुमान है.

सरकार जितना पैसा कमाती है और जितना खर्च करती है, उनके बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं. अगर सरकार ज्यादा खर्च करती है तो उसे कर्ज लेना पड़ता है. यह घाटा दिखाता है कि सरकार को कितना कर्ज लेना पड़ सकता है. SBI रिसर्च का कहना है कि सरकार को 4.9% का राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखना चाहिए, लेकिन इसे लेकर ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए. सरकार ने 2025-26 तक इस घाटे को GDP के 4.5% से कम करने का प्लान बनाया है.

सरकार का कर्ज घटेगा, तो ब्याज दरों पर भी होगा असर!
राजकोषीय घाटा कम होने से सरकार को बाजार से कम कर्ज लेना पड़ेगा. SBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2024-25 (FY25) में सरकार का सकल बाजार उधार (Gross Market Borrowing) घटकर करीब 13.5 लाख करोड़ रुपये रह जाएगा, जबकि अंतरिम बजट में यह 14.1 लाख करोड़ रुपये था. शुद्ध बाजार उधार (Net Market Borrowing) भी  11.8 लाख करोड़ रुपये से घटकर 11.1 लाख करोड़ रुपये रह जाएगा.

एसबीआई की ग्रुप चीफ इकॉनमिक एडवाइजर सौम्या कांति घोष ने इस रिपोर्ट में कहा है कि इससे ब्याज दरों में कमी आएगी और बॉन्ड मार्केट में स्थिरता आएगी. मतलब, सरकार कम कर्ज लेगी तो ब्याज दरें भी कम रहेंगी, जिससे आम आदमी को भी फायदा होगा. साथ ही, बॉन्ड मार्केट में भी ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होगा.

राजकोषीय घाटे को 4.9% तक लाने का लक्ष्य क्यों रखा?
सरकार ने अपने पैसों का हिसाब-किताब मैनेज करने के लिए एक खास कानून है- राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 (The Fiscal Responsibility and Budget Management Act 2003) (FRBMA). इसे भारत का ‘बजट संविधान’ भी कहा जा सकता है.

FRBMA एक्ट एक ऐसा कानून है जो सरकार को अपने खर्चों पर ‘लगाम’ लगाने के लिए कहता है. इस कानून का मकसद है राजकोषीय घाटे को कम करना और सरकार को पैसों के मामले में ज्यादा जिम्मेदार बनाना. 2003 में FRBM एक्ट बनने के बाद से सरकार के लिए पैसों का हिसाब-किताब रखना और भी जरूरी हो गया है. 

इस कानून के तहत केंद्र सरकार को अपना राजकोषीय घाटा GDP के 3% तक लाना है और हर साल 0.3% कम करते जाना है. साथ ही सरकार को हर साल राजस्व घाटा 0.5% कम करना है और 2008-09 तक इसे पूरी तरह खत्म कर देना है. अगर सरकार इन नियमों का पालन नहीं कर पाती है, तो वित्त मंत्री को इसकी वजह बतानी होगी और यह भी बताना होगा कि स्थिति को कैसे सुधारा जाएगा.

FRBMA एक्ट लाने की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल, 1980 के आखिर और 1990 की शुरुआत में भारत सरकार पर बहुत ज्यादा कर्ज हो गया था. सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए RBI से पैसे उधार ले रही थी, जिससे देश की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी. नतीजा यह हुआ कि 1991 में भारत को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा. उस समय स्थिति इतनी खराब थी कि सरकार के पास दो हफ्ते के आयात के लिए भी पैसे नहीं थे.

इस संकट से निपटने के लिए 1991 में आर्थिक सुधार किए गए और राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation) इन सुधारों का एक अहम हिस्सा था. शुरुआत में तो कुछ सुधार हुआ, लेकिन 1997-98 के बाद फिर से राजकोषीय घाटा बढ़ने लगा. इस बिगड़ती स्थिति को कंट्रोल करने के लिए सरकार ने 2003 में FRBM एक्ट लागू किया. यह कानून सरकार को अपने खर्चों पर नियंत्रण रखने और कर्ज कम करने के लिए कहता है. 1991 के आर्थिक संकट से सीख लेते हुए सरकार ने FRBM एक्ट के जरिए यह सुनिश्चित किया कि ऐसी स्थिति फिर से ना आए.

भारत ने क्यों तय किया राजकोषीय घाटे को 4.9% तक लाने का लक्ष्य?

FRBM एक्ट: जब नियमों से हटना पड़ा जरूरी!
FRBM एक्ट लागू होने के बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने पैसे के मामले में काफी समझदारी दिखाई. राज्यों ने तो तय समय से पहले ही अपने लक्ष्य पूरे कर लिए. केंद्र सरकार भी सही रास्ते पर थी, लेकिन तभी 2007-08 में दुनिया भर में आर्थिक मंदी आ गई.

इस मंदी का असर भारत पर भी पड़ा. ऐसे में सरकार को मजबूरी में FRBM एक्ट के कुछ नियमों को थोड़े समय के लिए ‘टालना’ पड़ा. सरकार को लोगों की मदद करने और अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़े, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ गया. लेकिन अच्छी बात यह रही कि मंदी से पहले FRBM एक्ट के नियमों का अच्छे से पालन किया गया था, इससे सरकार के पास कुछ पैसे बचाकर रखे हुए थे. इन्हीं पैसों की वजह से सरकार संकट के समय लोगों की मदद कर पाई और देश की अर्थव्यवस्था को गिरने से बचा पाई.

FRBM एक्ट में क्या बदलाव किए गए
FRBM एक्ट में कुछ ‘छूट’ के प्रावधान भी हैं, जिनका इस्तेमाल खास स्थितियों में किया जा सकता है. अगर देश में कोई बड़ी आर्थिक समस्या आ जाए, जैसे कि युद्ध या प्राकृतिक आपदा तो सरकार अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से GDP के 0.5% तक ज्यादा खर्च कर सकती है. यह FRBM एक्ट 2003 के सेक्शन 4(2) में लिखा है.

2012 के संशोधन में 0% राजस्व घाटे की शर्त को हटा दिया गया और उसकी जगह 2015 तक 0% प्रभावी राजस्व घाटा का लक्ष्य रखा गया. प्रभावी राजस्व घाटा यह बताता है कि सरकार ने अपनी आमदनी से ज्यादा कितना खर्च किया है, लेकिन इसमें वो पैसे शामिल नहीं हैं जो उसने राज्यों को कुछ बनाने के लिए दिए हैं (जैसे सड़क, पुल  वगैरह).

FRBM एक्ट की समीक्षा के लिए बनी ‘खास’ कमेटी!
FRBM एक्ट में बदलाव की जरूरत को देखते हुए सरकार ने मई 2016 में एक कमेटी बनाई. इस कमेटी का काम था FRBM एक्ट की समीक्षा करना और यह सुझाव देना कि इसमें क्या बदलाव किए जा सकते हैं. इस कमेटी के अध्यक्ष एनके सिंह थे, जो पहले राजस्व और व्यय सचिव और संसद सदस्य भी रह चुके हैं. कमेटी ने जनवरी 2017 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें उसने FRBM Act को बेहतर बनाने के लिए कई सुझाव दिए.

GST और राजकोषीय घाटा: भारत की इकॉनमी के दो पहलू!
जीएसटी यानी ‘गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स’ भी भारत के बजट में एक अहम भूमिका निभाता है. इससे पूरे देश में एक ही टैक्स सिस्टम हो जाता है और टैक्स कलेक्शन भी आसान हो जाता है. अप्रैल-सितंबर 2024 में भारत का राजकोषीय घाटा 4.75 ट्रिलियन रुपये था, जो 2024-25 के लक्ष्य का 29.4% है. यह पिछले साल के 7.02 ट्रिलियन रुपये से बेहतर है.

2024-25 (FY25) के लिए सरकार ने 4.9% का राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है. लेकिन यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि पूंजीगत व्यय में उम्मीद के मुताबिक ग्रोथ नहीं हो रही है. पूंजीगत व्यय यानी सरकार द्वारा किया गया वो खर्च जो देश के विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने में मदद करता है.

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