सबके हित की चिंता करे सरकार ?
सरकारें सबके लिए होती हैं। उन्हें जितनी चिंता सरकारी कर्मचारियों की करनी चाहिए उतनी ही अन्य लोगों की भी। इसलिए और भी क्योंकि अपने देश में एक बड़ी आबादी ऐसी है जो सामाजिक सुरक्षा के दायरे से बाहर है । सरकार को बजट या फिर उससे इतर यह देखना चाहिए कि अधिकाधिक लोग सामाजिक सुरक्षा की दायरे में कैसे आएं।
…. दिल्ली में विधानसभा चुनावों के चलते राजनीतिक दलों में मुफ्त या रियायती सुविधाएं देने की घोषणा करने की होड़ मची है। सभी घोषणाओं को रेवड़ी नहीं कहा जा सकता। कुछ घोषणाएं समय की मांग भी हैं, जैसे भाजपा का यह वादा कि वह दिल्ली के गिग वर्करों के लिए 10 लाख के जीवन बीमा और पांच लाख रुपये के दुर्घटना बीमा की व्यवस्था करेगी। यह अच्छी घोषणा है, लेकिन यह सुविधा तो सारे देश के गिग वर्करों को मिलनी चाहिए।
एक ऐसे समय जब गिग वर्करों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, तब सरकारों को यह देखना ही चाहिए कि वे अपना जीवनयापन सही तरह और सम्मानजनक ढंग से कर सकें। ई कामर्स कंपनियों के सामान के साथ खाने-पीने की सामग्री की डिलिवरी करने वाले गिग वर्कर कहे जाते हैं। वे स्थायी कर्मचारी नहीं होते हैं, बल्कि फ्रीलांसर के रूप में काम करते हैं। उन्हें न तो कोई छुट्टी मिलती है और न ही अन्य सुविधा। जितना काम, उतना पैसा।
काम नहीं तो पैसा नहीं। कंपनियां गिग वर्करों पर कम समय में सामान की डिलिवरी करने का दबाव तो बढ़ाती जा रही हैं, लेकिन वे उनकी कार्य दशाओं में सुधार लाने को तत्पर नहीं। उनके काम के घंटे तय नहीं। यदि वे किसी घटना-दुर्घटना के शिकार होते हैं तो जिस कंपनी के लिए काम कर रहे होते हैं, उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं।
पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार के साथ कुछ राज्य सरकारों की ओर से यह सुनने को मिल रहा है कि वे गिग वर्करों के कल्याण और विशेष रूप से सामाजिक सुरक्षा के लिए कुछ योजनाएं लाने वाली हैं, लेकिन अभी तक वे आश्वासन के स्तर पर ही हैं। देश में गिग वर्करों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। नीति आयोग की एक रपट के अनुसार 2020-21 में गिग वर्करों की संख्या 77 लाख थी, जिसके 2029-30 तक 2.35 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है।
ऐसे में सरकार को उनके हित की चिंता करनी ही चाहिए। जैसे गिग वर्कर तेजी से बढ़ रहे हैं, वैसे ही निजी सुरक्षा कर्मी भी। एक आंकड़े के अनुसार देश में इस समय सवा करोड़ निजी सुरक्षा गार्ड हैं। उनकी मांग बढ़ती ही जा रही है। आज हर कहीं और यहां तक कि सरकारी दफ्तरों में भी निजी सुरक्षा गार्ड दिखते हैं, लेकिन उनकी पर्याप्त सुध नहीं ली जा रही है।
पिछले से पिछले लोकसभा चुनाव में जब राहुल गांधी चौकीदार चोर है का नारा लगा रहे थे, तब प्रधानमंत्री मोदी ने मैं भी चौकीदार अभियान चलाया था और चौकीदारों यानी निजी सुरक्षा गार्डों को संबोधित किया था, लेकिन सरकार की ओर से ऐसी कोई पहल नहीं हो सकी, जिससे उनकी कार्यदशाएं बेहतर होतीं। हालांकि सुरक्षा गार्ड मुहैया कराने वाली कंपनियों को पंजीकरण कराना पड़ता है, लेकिन वे गार्डों को क्या सुविधाएं देती हैं, इसके लिए कोई ठोस नियम-कानून नहीं।
देश में रजिस्टर्ड निजी सुरक्षा कंपनियों की संख्या 23 हजार से अधिक है, लेकिन चंद ही सुरक्षा गार्डों को साप्ताहिक अवकाश और वे सुविधाएं देती हैं, जो उन्हें मिलनी चाहिए। अधिकतर निजी सुरक्षा कंपनियां गार्डों से 12 घंटे काम लेती हैं और उन्हें कोई छुट्टी नहीं देतीं। ये कंपनियां उनकी वर्दी का पैसा भी उनके वेतन से काट लेती हैं। सरकारें चाहें तो आसानी से ऐसी व्यवस्था कर सकती हैं, जिससे सभी कंपनियां सुरक्षा गार्डों के काम के घंटे कम करने के साथ उन्हें साप्ताहिक छुट्टी दें।
हाल में दिल्ली में चुनाव प्रचार के बीच अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि यदि उनकी सरकार बनी तो राजधानी में सभी आरडब्ल्यूए को सुरक्षा गार्ड रखने के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी, लेकिन आखिर इससे निजी सुरक्षा गार्डों को कोई राहत कैसे मिलेगी? गिग वर्करों और निजी सुरक्षा गार्डों की अनदेखी यही बताती है कि किस तरह समाज का एक बड़ा तबका सामने होते हुए भी नीति-नियंताओं की आंखों से ओझल सा है।
हाल में मोदी सरकार ने आठवें वेतन आयोग की घोषणा कर केंद्रीय सेवा के कर्मचारियों और पेंशनधारकों को खुश कर दिया। इस वेतन आयोग का लाभ राज्यों के सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों को भी मिलेगा। पिछले सप्ताह यह खबर भी आई कि मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए एकीकृत पेंशन स्कीम को अधिसूचित कर दिया।
यह योजना इसी एक अप्रैल से लागू होने जा रही है। नई पेंशन स्कीम को अनाकर्षक पा रहे सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम की मांग कर रहे थे। सरकार ने बीच का रास्ता निकाला और एकीकृत पेंशन स्कीम लेकर आई। इस पेंशन योजना को अपनाने वाले सरकारी कर्मचारियों को अब अंतिम वेतन का करीब 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलेगा।
यह पेंशन स्कीम लाकर सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की एक पुरानी मांग पूरी कर दी, लेकिन उसे यह भी पता होना चाहिए कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से जुड़े निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के संगठन लंबे समय से न्यूनतम पेंशन साढ़े सात हजार करने की मांग कर रहे हैं। इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि अभी उनकी न्यूनतम पेंशन एक हजार रुपये है। यह सर्वथा अनुपयुक्त है।
सरकारें सबके लिए होती हैं। उन्हें जितनी चिंता सरकारी कर्मचारियों की करनी चाहिए, उतनी ही अन्य लोगों की भी। इसलिए और भी, क्योंकि अपने देश में एक बड़ी आबादी ऐसी है, जो सामाजिक सुरक्षा के दायरे से बाहर है। सरकार को बजट या फिर उससे इतर यह देखना चाहिए कि अधिकाधिक लोग सामाजिक सुरक्षा की दायरे में कैसे आएं।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)