महाकुंभ में भगदड़ मचने से 30 श्रद्धालुओं की मौत ने पुनः यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि आखिर अपने देश में भारी भीड़ वाले आयोजनों में जानलेवा हादसे क्यों होते रहते हैं? प्रयागराज में मेला क्षेत्र में रात दो बजे के करीब भगदड़ इसलिए मच गई, क्योंकि बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ आए। उनके दबाव से बैरीकेड टूट गई और फिर अव्यवस्था फैल गई।

इसके चलते लोग एक के ऊपर एक चढ़ते गए और आपाधापी में उन्होंने उन लोगों को भी कुचल दिया, जो मौनी अमावस्या पर संगम में डुबकी लगाने के लिए शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। इनमें से कुछ तो वहां सो रहे थे। जब प्रशासन इससे अच्छी तरह अवगत था कि मौनी अमावस्या पर करोड़ों श्रद्धालु आएंगे, तब उसने उन्हें संगम तट पर रुकने और सोने से क्यों नहीं रोका?

जब श्रद्धालुओं की अथाह भीड़ आनी थी, तब लोगों को संगम तट पर प्रतीक्षा करने और विश्राम करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी, क्योंकि इससे भीड़ का अनावश्यक दबाव बढ़ता। प्रशासन की प्राथमिकता तो यह होनी चाहिए थी कि श्रद्धालु आते जाएं और स्नान कर प्रस्थान करते जाएं।

लगता है वह स्थिति का आकलन करने में चूक गया और इसी के चलते अनहोनी हो गई। इस तरह की अप्रिय घटनाएं केवल सुरक्षा प्रबंधों में किसी कमी के कारण ही नहीं होतीं। वे लोगों की ओर से अनुशासन का परिचय न देने के कारण भी होती हैं।

प्रायः आस्था के आवेग में लोग या तो संयम खो देते हैं या फिर सुरक्षा प्रबंधों की अनदेखी कर देते हैं और दुर्भाग्य से कई बार वहां भी, जहां कोई भी सुरक्षा व्यवस्था तभी प्रभावी हो सकती है, जब लोग प्रशासन का सहयोग करें और उसके निर्देशों का पालन करने के लिए तत्पर रहें। काश, महाकुंभ पहुंचे सभी श्रद्धालु यह समझ पाते कि मानव इतिहास के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में उन्हें श्रद्धा भाव के साथ ही अनुशासन भाव का भी परिचय देना होगा।

जब भी इसका अभाव व्याप्त होता है, भगदड़ जनित घटनाएं हो जाती हैं। यह पहले से संभावित था कि मौनी अमावस्या पर महाकुंभ में आठ-दस करोड़ श्रद्धालु आ सकते हैं। इतनी तो अनेक देशों की कुल जनसंख्या भी नहीं।

महाकुंभ में भगदड़ के बाद जिस तरह आसपास के जिलों से आ रहे वाहनों को रोकना पड़ा और श्रद्धालुओं से भरी ट्रेनों को रुक-रुक कर चलाना पड़ा, उससे यह भी रेखांकित हो रहा है कि जब भीड़ प्रबंधन एक कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य दिख रहा था, तब ऐसे किसी संदेश के प्रचार-प्रसार से क्यों नहीं बचा गया कि महाकुंभ में स्नान की सबसे पावन बेला मौनी अमावस्या ही है? यह राहतकारी तो है कि भगदड़ के बाद स्थितियां नियंत्रण में कर ली गईं, लेकिन जो अनहोनी हुई, उससे सही सबक सीखने अनिवार्य हैं।